23 October 2015

UNEP द्वारा वैश्विक अपशिष्ट प्रबंधन दृष्टिकोण जारी

UNEP द्वारा वैश्विक अपशिष्ट प्रबंधन दृष्टिकोण जारी

मशीनीकरण तथा औद्योगिकरण के वर्तमान दौर में जैसे-जैसे मनुष्य विकास की नई ऊंचाइयां स्पर्श करता जा रहा है, वैसे-वैसे ही प्रदूषण के नए रूपों का भी जन्म हो रहा है। तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या, भोगवादी प्रवृत्ति तथा जीवन स्तर के ऊंचे उठने से ठोस अपशिष्टों की मात्रा एवं विविधता दोनों बढ़ी है। खास तौर पर यह समस्या नगरों में अधिक है क्योंकि यहां पर औद्योगिक अपशिष्ट (रासायनिक, इलेक्ट्रॉनिक, रेडियोधर्मी), चिकित्सकीय अपशिष्ट, घरों, कार्यालयों से निकलने वाला नगरपालिकीय ठोस अपशिष्ट आदि की वजह से प्रदूषण की समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। इन अपशिष्टों की बढ़ती मात्रा व विविधता ने पर्यावरण के समक्ष एक नई चुनौती पैदा की है, क्योंकि इसके पर्यावरणीय दुष्प्रभाव व्यापक हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि इन अपशिष्टों के निस्तारण एवं प्रबंधन की आधुनिक विधियां खोजी जाएं, ताकि इस समस्या के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके।
बहुत से मानव-निर्मित पदार्थों (अपशिष्ट) का अपघटन जीवाणु अथवा दूसरे मृतजीवियों द्वारा नहीं हो पाता। इन पदार्थों पर भौतिक प्रक्रम जैसे कि ऊष्मा तथा दाब का प्रभाव होता है। ये पदार्थ सामान्यतः अक्रिय हैं तथा लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं और पर्यावरण के अन्य साधनों को हानि पहुंचाते हैं। अतः इन अपशिष्टों को नष्ट करने तथा उसके सुरक्षित भंडारण के लिए हमें तीन प्रक्रियाओं-‘कमी’ (Reduce), ‘पुनः प्रयोग’ (Re-use) तथा ‘पुनर्चक्रण’ (Re-cycle) को अपनाने की आवश्यकता होती है। इन्हीं चुनौतियों एवं समस्याओं के मद्देनजर 7-9 सितंबर, 2015 को ‘एंटवर्प शहर’ (बेल्जियम) में UNEP द्वारा ‘वैश्विक अपशिष्ट प्रबंधन दृष्टिकोण’ रिपोर्ट जारी किया गया है।
  • 7-9 सितंबर, 2015 को ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (UNEP) और ‘अंतर्राष्ट्रीय ठोस अपशिष्ट संघ’ (ISWA) द्वारा ‘वैश्विक अपशिष्ट प्रबंधन दृष्टिकोण’ (Global Waste Management Outlook) रिपोर्ट जारी किया गया। इस रिपोर्ट का उद्देश्य कचरा प्रबंधन पर जागरूकता पैदा करना है।
  • यह रिपोर्ट UNEP के ‘अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण तकनीकी केंद्र’ (IETC) और ISWA द्वारा संयुक्त रूप से तैयार की गई है।
  • यह रिपोर्ट 7-9 सितंबर, 2015 तक एंटवर्प (बेल्जियम) में आयोजित ‘अंतर्राष्ट्रीय ठोस अपशिष्ट संघ’ (ISWA) को वर्ल्ड कांग्रेस, 2015 में जारी की गई।
  • वैश्विक आधार पर ‘कचरा प्रबंधन’ के लिए यह प्रथम रिपोर्ट है।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार, अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन सार्वजनिक स्वास्थ्य, आर्थिक और पर्यावरण के लिए एक प्रमुख समस्या बन गया है।
  • वैश्विक रूप से प्रति वर्ष 7 से 10 बिलियन टन शहरी अपशिष्ट का उत्पादन होता है।
  • विश्वभर में 3 अरब के लगभग व्यक्ति नियंत्रित अपशिष्ट निपटान की सुविधा से वंचित हैं।
  • वर्ष 2030 तक निम्न आय वाले अफ्रीकी और एशियाई शहरों में बढ़ती जनसंख्या नगरीकरण और बढ़ते उपभोग के कारण अपशिष्ट उत्पादन दो गुना हो जाने की संभावना है।
  • वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष कुल नगरपालिका ठोस अपशिष्ट लगभग दो बिलियन टन है।
  • प्रत्येक देश के अंदर एवं विश्व के विभिन्न देशों के मध्य अपशिष्ट उत्पादन में भिन्नता है।
  • उच्च आय वाले देशों में नगरपालिकीय ठोस अपशिष्ट उत्पादन दर स्थिर होना प्रारंभ हो गया है।
  • निम्न और मध्यम आय वाले देशों की अर्थव्यवस्था में तेज वृद्धि होने से प्रति व्यक्ति ठोस अपशिष्ट उत्पादन तेज होने का अनुमान है।
  • विश्व के उच्च आय वाले क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि, शहरों की ओर पलायन और अर्थव्यवस्था के विकास के कारण अपशिष्ट उत्पादन में तीव्र वृद्धि हुई है।
  • वर्ष 2010 में परंपरागत उच्च आय वाले देशों में संपूर्ण अपशिष्ट का आधा उत्पादन होता था।
  • वर्ष 2030 में एशिया समग्र नगरपालिकीय अपशिष्ट उत्पादन के मामले में उच्च आय वाले देशों को पीछे छोड़ देगा।
  • इस सदी में अफ्रीका, समग्र नगरपालिकीय अपशिष्ट उत्पादन के संदर्भ में एशिया और उच्च आय वाले देशों को पीछे छोड़ देगा।
  • निम्न आय वाले देशों में समग्र नगरपालिकीय ठोस अपशिष्ट में कार्बनिक अंश की मात्रा (50 से 70 प्रतिशत) उच्च आय वाले देशों (20 से 40 प्रतिशत) की तुलना में अधिक है।
  • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट संग्रह को संपूर्ण शहरी आबादी तक विस्तार करना एक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता है।
  • पर्यावरण संरक्षण के लिए प्राथमिकता अनियंत्रित निपटान को खत्म करना है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया में प्रमुख डंपिंग स्थलों में से एक बन गया है।
  • विश्व के 50 प्रमुख डंपिंग स्थलों में से 3 डंपिंग स्थल भारत में स्थित हैं। [सर्वाधिक नाइजीरिया 6, पेरू 5 । ]
  • भारत में नगरपालिकीय ठोस अपशिष्ट के प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी में संपूर्ण विश्व द्वारा किए गए कुल निवेश का 5 प्रतिशत निवेश किया गया है।

आयु एवं स्वास्थ्य पर W.H.O. की रिपोर्ट

आयु एवं स्वास्थ्य पर W.H.O. की रिपोर्ट

7 अप्रैल, 1948 को अपने गठन के बाद से ही प्रति वर्ष ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ द्वारा इसी तिथि को ‘विश्व स्वास्थ्य दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इसका मुख्यालय जेनेवा में है और वर्तमान में इसके महानिदेशक डॉ. मार्गरेट चान हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी ‘विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी, 2015’ के अनुसार, वर्ष 2013 में भारत में जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 66 वर्ष थी जबकि विश्व स्तर पर यह 71 वर्ष थी। इसी वर्ष जन्म के समय जीवन प्रत्याशा विकसित देशों जैसे-जापान, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और सं.रा. अमेरिका में क्रमशः 84, 82, 81 और 79 वर्ष थी। विकसित देशों में अधिक जीवन प्रत्याशा का मुख्य कारण बेहतर खान-पान और उन्नत स्वास्थ्य सुविधाएं हैं किंतु इसका नकारात्मक पहलू यह है कि इन देशों की अधिकांश आबादी वृद्ध हो रही है और वहां कार्यशील जनसंख्या घट रही है।
भारत विश्व का सबसे युवा देश है। भारत की 63 प्रतिशत आबादी 15-59 वर्ष की है और यह कार्यशील जनसंख्या है। भारत में बेहतर खान-पान एवं स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हुई है। हाल ही में जारी ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ की ‘आयु एवं स्वास्थ्य’ पर विश्व रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत में वृद्ध व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि होने का अनुमान व्यक्त किया गया है।
  • 30 सितंबर, 2015 को ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ द्वारा ‘आयु एवं स्वास्थ्य पर विश्व रिपोर्ट, 2015’ जारी की गई।
  • इस रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं-
  • भारत में वर्ष 2015 में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या 11 करोड़ 65 लाख 53 हजार है।
  • figure WHO
    वर्ष 2050 तक भारत में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या 33 करोड़ 43 हजार होने का अनुमान है।
  • ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2050 तक भारत में 10 में से लगभग दो व्यक्ति 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के होंगे।
  • भारत में वर्तमान में एक नवजात शिशु की जीवन प्रत्याशा 65 वर्ष है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 65 से 74 वर्ष की आयु के 61.2 प्रतिशत व्यक्ति भोजन करने, सांस लेने, बिस्तर और शौचालय का उपयोग करने की समस्याओं से पीड़ित हैं।
  • 75 वर्ष से अधिक की आयु के 77 प्रतिशत व्यक्ति भी उपर्युक्त समस्याओं से पीड़ित हैं।
  • उल्लेखनीय है कि वर्ष 2015 में विश्व की कुल जनसंख्या में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों का अनुपात 12 प्रतिशत है।
  • ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2050 में यह अनुपात लगभग दो गुना बढ़कर 22 प्रतिशत हो जाएगा।
  • वर्ष 2015 में विश्व में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या 900 मिलियन है।
  • वर्ष 2050 तक 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या के 2 बिलियन हो जाने की संभावना है।
  • वर्तमान में विश्व में 125 मिलियन व्यक्तियों की आयु 80 वर्ष या उससे अधिक है।
  • वर्ष 2050 में 80 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या के 434 मिलियन हो जाने का अनुमान है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 में अकेले चीन में ही 80 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या के 120 मिलियन होने की संभावना है।
  • ऐसा अनुमान है कि वर्ष 2050 तक 80 प्रतिशत वृद्ध व्यक्ति निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में निवास कर रहे होंगे।
  • वर्ष 2020 तक 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के व्यक्तियों की संख्या पांच वर्ष से छोटे बच्चों की संख्या से अधिक हो जाएगी।
  • जापान की 30 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या पहले ही 60 वर्ष से अधिक आयु की हो चुकी है।
  • वर्ष 2050 तक चिली, चीन, ईरान एवं रूस की जनसंख्या का 30 प्रतिशत हिस्सा 60 वर्ष से अधिक आयु की हो जाएगी।
  • रिपोर्ट के अनुसार, 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के 20 प्रतिशत व्यक्ति मानसिक या तंत्रिका संबंधी विकार से ग्रस्त है।
  • 60 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग के व्यक्तियों में होने वाले सामान्य मनोविकारों में मनोभ्रंश (Dementia) और अवसाद हैं।
  • ऐसा अनुमान है कि विश्व भर में 47.5 मिलियन व्यक्ति मनोभ्रंश (Dementia) से पीड़ित हैं।
  • वैश्विक स्तर पर प्रति माह 10 में से एक वृद्ध व्यक्ति शोषण का शिकार होता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ‘वृद्धावस्था एवं स्वास्थ्य पर वैश्विक रणनीति एवं कार्य-योजना’ तैयार की जा रही है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वृद्ध व्यक्तियों के लिए निर्धारित प्राथमिकता के पांच क्षेत्र हैं-
    1. स्वस्थ वृद्धावस्था के प्रति प्रतिबद्धता
    2. वृद्ध व्यक्तियों के अनुकूल स्वास्थ्य प्रणाली बनाना
    3. लंबे समय तक देखभाल के लिए प्रणाली विकसित करना
    4. आयु के अनुकूल वातावरण का निर्माण
    5. निरीक्षण, निगरानी एवं समझ में सुधार करना।

संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत विकास लक्ष्यों पर सहमति

संयुक्त राष्ट्र द्वारा सतत विकास लक्ष्यों पर सहमति

सतत विकास की अवधारणा का प्रारंभ वर्ष 1962 में वैज्ञानिक रॉकल कारसन की पुस्तक ‘दी साइलेंट स्प्रिंग’ तथा वर्ष 1968 में जीव विज्ञानी पॉल इरलिच की पुस्तक ‘पॉपुलेशन बम’ से हुआ। लेकिन इस शब्द का वास्तविक रूप से विकास वर्ष 1987 में ‘ब्रुटलैंड आयोग’ की रिपोर्ट ‘हमारा साझा भविष्य’ (Our Common Future) के प्रकाशन के साथ हुआ। ‘सतत विकास’ संसाधनों का उपयोग करने का एक आदर्श मॉडल है जो यह बताता है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ पर्यावरण को भी सुरक्षित करना है। इसका उद्देश्य है-वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित रखते हुए इस प्रकार प्रयोग करना ताकि प्राकृतिक संसाधनों का न्यूनतम क्षरण हो।
4 अगस्त, 2015 को संयुक्त राष्ट्र में महत्त्वाकांक्षी ‘सतत विकास लक्ष्य’ (Sustainable Development Goals-SDGs) प्रस्तुत किया गया, जिसमें ‘सतत विकास एवं युवा रोजगार’ पर विशेष बल दिया गया है। ‘सतत विकास लक्ष्य’ जो वर्ष 2016-30 तक के लिए लक्ष्यित किया गया है, पहले से लागू ‘सहस्राब्दि विकास लक्ष्य’ (Millenium Development Goals-MDGs) का स्थान लेगा। 4 अगस्त, 2015 को सतत विकास लक्ष्य के लिए संयुक्त राष्ट्र की 193 सदस्यीय महासभा ने सहमति बनाते हुए कहा कि आगामी 25-27 सितंबर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र महासभा की होने वाली उच्चस्तरीय पूर्ण बैठक में इसे स्वीकार किया जाएगा। ‘सतत विकास लक्ष्य’ में 17 मुख्य विकास लक्ष्यों तथा 169 सहायक लक्ष्यों को निर्धारित करते हुए P5 (People, Planet, Peace, Prosperous तथा Partnership पर विशेष बल दिया गया है।
25-27 सितंबर, 2015 को न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में आयोजित शिखर बैठक में पूर्व निर्धारित घोषणा के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 देशों द्वारा ‘सतत विकास लक्ष्य’ (एजेंडा-2030) को स्वीकार कर लिया गया।
  • 25-27 सितंबर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र का ‘सतत विकास सम्मेलन’ न्यूयॉर्क में आयोजित किया गया जिसमें 150 देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने हिस्सा लेते हुए एजेंडा- 2030 को औपचारिक तौर पर अंगीकृत कर लिया।
  • ‘सतत विकास लक्ष्य’ को नाम दिया गया है-‘हमारी दुनिया का रूपांतरण : सतत विकास के लिए 2030 का एजेंडा’ (Transforming Our World : The 2030 Agenda for Sustainable Development)।
  • ‘सतत विकास लक्ष्य’- एजेंडा-2030, 1 जनवरी, 2016 से प्रभावी होगा।
  • ‘सतत विकास लक्ष्य’ को वर्ष 2016-30 तक के लिए लक्ष्यित किया गया है। इसे ‘2015 पश्चात विकास एजेंडा’ भी कहा गया है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासचिव ‘बान की-मून’ के अनुसार, ‘एजेंडा -2030’ समृद्धि को साझा करने वाला, सशक्तीकरण के साथ शांति सुनिश्चित करने वाला तथा भावी पीढ़ियों को स्वस्थ बनाने वाला है।
  • पोप फ्रांसिस ने ‘सतत विकास लक्ष्य को ‘मिडिल ईस्ट’ तथा अफ्रीका के लिए ‘आशा का एक महत्त्वपूर्ण संकेत’ (An Important Sign of Hope) कहा है।
  • संयुक्त राष्ट्र महासभा के 70वें सत्र के अध्यक्ष ‘मोगेन्स लाइकेटॉफ’ (Mogens Lykketoft) के अनुसार, ‘एजेंडा -2030’ दुनिया की सबसे बड़ी समस्याओं-गरीबी तथा असमानता के उन्मूलन एवं पृथ्वी ग्रह के संरक्षण के लिए हितकर होगा।
  • भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उच्चस्तरीय शिखर सम्मेलन को संबोधित किया।
  • 4 अगस्त, 2015 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘सतत विकास लक्ष्य’ (SDGs) को प्राप्त करने के लिए निर्धारित बिंदु निम्नवत हैं-
    गरीबी के सभी रूपों की पूरे विश्व से समाप्ति
  • वर्ष 2030 तक गरीबी के सभी स्तरों में 50 प्रतिशत तक कमी लाना।
  • लगभग 836 मिलियन लोग अभी भी गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
  • विकासशील देशों में 5 में से 1 व्यक्ति प्रति दिन 1.25 डॉलर से भी कम आय में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
    भूख की समाप्ति, खाद्य सुरक्षा और बेहतर पोषण तथा टिकाऊ कृषि को बढ़ावा
  • वर्ष 2030 तक कुपोषण के सभी रूपों को समाप्त करते हुए कृषि उत्पादकता एवं लघु स्तर पर खाद्य उत्पादकों की आय को दो गुना करना, विशेष रूप से महिलाओं, घरेलू लोगों, किसानों, मछुआरों आदि के आय को बढ़ाना।
  • वर्ष 2020 तक बीजों की आनुवांशिक विविधता को बनाए रखना।
  • वर्ष 2030 तक सतत खाद्य उत्पादन प्रणाली को सुनिश्चित करना और लचीली कृषि पद्धतियों को लागू करना ताकि उत्पादकता और उत्पादन में वृद्धि हो।
    सभी आयु के लोगों में स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वस्थ जीवन को बढ़ावा देना
  • वर्ष 2030 तक वैश्विक मातृत्व मृत्यु दर को प्रति 100,000 जीवित जन्म पर 70 से कम करना।
  • वर्ष 2030 तक नवजात तथा 5 वर्ष से कम उम्र के ऐसे बच्चों की मृत्यु रोकना जिन्हें बचाया जाना संभव है।
  • वर्ष 2030 तक नवजात बच्चों की मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्म पर 12 तक करना तथा 5 वर्ष तक के बच्चों में यह दर 25 प्रति हजार तक करना है।
  • वर्ष 2030 तक एड्स, तपेदिक, मलेरिया आदि का उन्मूलन तथा हेपेटाइटिस व जलजन्य, संक्रामक रोगों पर काबू पाना।
  • वर्ष 2020 तक सड़क दुर्घटना में होने वाली वैश्विक मौतों को आधा करना।
  • वर्ष 2030 तक पोर्न एवं पुनर्जनन, स्वास्थ्य सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुंच।
  • वर्ष 2030 तक यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज।
  • वर्ष 2030 तक खतरनाक रसायनों, हवा, मिट्टी, पानी आदि के प्रदूषण से होने वाली बीमारियों एवं मौतों की संख्या को कम करना।
    समावेशी और न्याय संगत गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के साथ ही सभी को सीखने का अवसर देना
  • वर्ष 2030 तक सभी लड़कों एवं लड़कियों को निःशुल्क, समान व गुणवत्तापरक प्राथमिक, माध्यमिक शिक्षा सुनिश्चित करना।
    लैंगिक समानता प्राप्त करने के साथ ही सभी महिलाओं एवं लड़कियों का सशक्तीकरण
  • वर्ष 2030 तक महिलाओं के खिलाफ, भेदभाव, हिंसा तथा तस्करी की समाप्ति।
    बाल विवाह, भ्रूण हत्या, बलात विवाह इत्यादि की पूर्ण समाप्ति।
    सभी के लिए स्वच्छता एवं जल के सतत प्रबंधन की उपलब्धता सुनिश्चित करना
  • वर्ष 2030 तक सुरक्षित व वहनीय पेयजल की पहुंच सुनिश्चित करना।
  • वर्ष 2030 तक खुले में शौच की प्रवृत्ति की समाप्ति।
  • वर्ष 2030 तक ऊर्जा दक्षता में सुधार की वैश्विक दर को दो गुना करना।
    सभी के लिए सतत, समावेशी, सतत आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार तथा मर्यादित कार्य को बढ़ावा देना
  • अल्पविकसित देशों में कम से कम 7 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर प्राप्त करना।
  • वर्ष 2025 तक बाल श्रम के सभी रूपों की समाप्ति।
  • वर्ष 2020 तक युवा रोजगार के लिए वैश्विक रणनीति का विकास।
  • लचीले बुनियादी ढांचे, समावेशी और सतत औद्योगिकरण तथा नवाचार को बढ़ावा देना।
  • देश के भीतर तथा विभिन्न देशों के बीच असमानता में कमी।
  • शहरों एवं मानव बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित एवं सहनशील तथा सतत बनाना।
  • स्थायी उपभोग और उत्पादन प्रणाली को सुनिश्चित करना।
  • जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करना।
  • महासागर, समुद्र तथा सागरीय संसाधनों का संरक्षण और सतत उपयोग करना।
  • वर्ष 2025 तक सभी प्रकार के समुद्री प्रदूषण को कम करना।
  • सतत उपयोग को बढ़ावा देने वाले स्थलीय पारिस्थितिकीय प्रणालियों, सुरक्षित जंगलों, भूमि क्षरण और जैव विविधता के बढ़ते नुकसान को रोकने का प्रयास करना।
  • सतत विकास के लिए शांतिपूर्ण और समावेशी समितियों को बढ़ावा देने के साथ ही सभी स्तरों पर इन्हें प्रभावी, जवाबदेही बनाना ताकि सभी के लिए न्याय सुनिश्चित हो सके।
    सतत विकास के लिए वैश्विक भागीदारी को पुनर्जीवित करने के अतिरिक्त कार्यान्वयन के साधनों को मजबूत बनाना।
  • ‘सहस्राब्दि विकास लक्ष्य’ (MDGs) वर्ष 2000 में प्रस्तुत किया गया था जिसका लक्ष्यित वर्ष 2001-2015 है।
  • ‘सतत विकास लक्ष्य’ (SDGs) में ‘सहस्राब्दि विकास लक्ष्य’ के 8 बिंदुओं को भी शामिल किया गया है

वर्ल्ड फ्री ऑफ पॉवर्टी’

विश्व बैंक ने अपने आदर्श वाक्य ‘वर्ल्ड फ्री ऑफ पॉवर्टी’ अर्थात ‘गरीबी मुक्त विश्व’ को चरितार्थ करने के लिए वर्ष 2013 में दो स्पष्ट लक्ष्यों को प्रतिपादित किया है। ये लक्ष्य हैं-वर्ष 2030 तक अत्यधिक गरीबी को समाप्त करना और साझा समृद्धि को बढ़ावा देना। इस क्रम में 4 अक्टूबर, 2015 को विश्व बैंक द्वारा जारी ‘पॉलिसी रिसर्च वर्किंग पेपर और नोट्स’ वैश्विक गरीबी अनुमानों के नवीनतम आंकड़ों को दर्शाते हैं। जो इस प्रकार हैं-
  • वर्ष 2015 में पहली बार ‘वैश्विक चरम गरीबी’ (Global Extreme Poverty) के 10 प्रतिशत से नीचे गिर कर एक अंकीय होने का अनुमान है।
  • नए आंकड़ों के अनुसार, अभी भी दुनिया भर में 702 मिलियन लोग गरीब हैं। इनमें अधिकांशतः दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र के निवासी शामिल हैं।
  • वर्ष 2012 में 12.8 प्रतिशत विश्व की जनसंख्या या 902 मिलियन लोग चरम (Extreme) गरीब अनुमानित हैं जबकि वर्ष 2015 में 9.6 प्रतिशत लोग चरम गरीब अनुमानित हैं (10 प्रतिशत से कम)।
  • वर्ष 2015 में विश्व की दो तिहाई गरीब आबादी दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र की है

  • वैश्विक गरीबी अनुमान के लिए विश्व बैंक ने नई गरीबी रेखा को अपनाया है।
  • वर्ष 2011 में क्रय शक्ति समतुल्यता (PPP) के आधार पर 1.90 डॉलर प्रतिदिन तक की आय वालों को गरीबी रेखा के नीचे माना जाता था। जो पूर्व में 1.25 डॉलर प्रतिदिन (वर्ष 2005 के PPP पर आधारित) थी।
  • निचले 40 प्रतिशत (Bottom 40 Percent) जनसंख्या की आय में संवृद्धि, अधिकांशतः 85 प्रतिशत मध्यम-आय देशों में परिलक्षित हुई है।
  • वर्ष 1990 में आधे वैश्विक गरीबों की जनसंख्या पूर्वी एशिया में थी और 15 प्रतिशत गरीब जनसंख्या उप-सहारा अफ्रीका में थी।
  • यह स्थिति वर्ष 2015 तक एकदम उलट गई और उप-सहारा अफ्रीका में आधी जनसंख्या गरीब है जबकि पूर्वी एशिया में यह 12 प्रतिशत है।
  • वर्ष 2015 के अनुमानों के अनुसार, पूर्वी एशिया और पैसिफिक में 4.1 प्रतिशत जनसंख्या गरीब है जो वर्ष 2012 के 7.2 प्रतिशत से कम है।
  • लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में गरीबी वर्ष 2012 के 6.2 प्रतिशत से गिरकर 5.6 प्रतिशत हो गई है।
  • वर्ष 2012 में दक्षिण एशिया में गरीबी उसकी जनसंख्या के 18.8 प्रतिशत से गिरकर वर्ष 2015 में 13.5 प्रतिशत होना अनुमानित है।
  • वर्ष 2012 में उप-सहारा अफ्रीका में गरीबी उसकी जनसंख्या के 42.6 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2015 में 35.2 प्रतिशत होने का अनुमान है।
poverty two

सीरिया पर रूसी बमबारी

सीरिया पर रूसी बमबारी

जैस्मिन क्रांति से उभरे जन-विद्रोह ने अफ्रीका एवं एशिया के कई तानाशाहों को अपदस्थ कर लोकतांत्रिक सत्ता की स्थापना की है। पश्चिम एशिया जो पहले से ही वैश्विक शक्तियों की क्रीड़ास्थली रही है इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी। पश्चिम एशियाई देश सीरिया में भी अरब बसंत से प्रेरित नागरिकों ने बशर अल-असद के अधिनायकवादी शासन के खिलाफ भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, अभिव्यक्ति की आजादी का हनन आदि मुद्दों को लेकर सशस्त्र विद्रोह कर दिया है। विदेशी शक्तियों द्वारा पोषित यह विद्रोह आज गृहयुद्ध में बदल चुका है। सीरिया में असद की सेना को विभिन्न मोर्चों पर ISIS (Islamic State of Iraq and Syria), कुर्दों तथा फ्री सीरियन आर्मी (इसमें सेना के विद्रोही सैनिक हैं) जैसे अनेक विद्रोही संगठनों से लड़ना पड़ रहा है। ज्ञातव्य है कि सीरिया के अनेक हिस्सों पर विद्रोहियों का नियंत्रण स्थापित हो चुका है।
सीरिया के गृहयुद्ध ने अब तक अत्यधिक मानवीय क्षति की है लाखों लोग मारे जा चुके हैं जबकि लगभग 60 प्रतिशत आबादी (सकल आबादी 18 मिलियन) को विस्थापित होना पड़ा है। विस्थापितों में लगभग 4 मिलियन लोग देश के बाहर शरणार्थी जीवन व्यतीत करने को बाध्य हैं। इससे विश्व के अन्य देशों विशेषकर यूरोप में शरणार्थी समस्या उत्पन्न हो गई है।
ISIS के अमानवीय कृत्यों, नागरिकों के पलायन तथा बशर अल-असद के घटते प्रभाव के आलोक में असद समर्थक रूस ने सीरिया के मामलों में हस्तक्षेप करते हुए ISIS एवं विद्रोहियों के ठिकानों पर हवाई हमला शुरू किया है। रूस द्वारा किए गए इन हमलों पर वैश्विक समुदाय द्वारा अनेक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। इनका विश्लेषण बिंदुवार निम्नलिखित हैं-
  • सीरिया, पश्चिम एशियाई देश है जो उत्तर में तुर्की, पूर्व में इराक, दक्षिण में जार्डन, दक्षिण- पश्चिम में इस्राइल एवं लेबनान तथा पश्चिम में भूमध्य सागर से घिरा हुआ है।
  • यहां वर्ष 2011 से राष्ट्रपति बशर अल-असद के अधिनायकवादी शासन के खिलाफ भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, अभिव्यक्ति की आजादी, कुर्दों का दमन आदि मुद्दों को लेकर व्यापक जन-विद्रोह (सशस्त्र विद्रोह) चल रहा है।
  • सीरिया का मुद्दा आंतरिक न रहकर अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों का क्रीड़ास्थल बन गया है। रूस, ईरान, इराक, लेबनान जैसे देश असद को सत्ता में बने रहने हेतु वित्तीय, सैन्य एवं कूटनीतिक सहयोग प्रदान कर रहे हैं।
  • दूसरी ओर सं.रा. अमेरिका, ब्रिटेन, तुर्की, सऊदी अरब, कुवैत आदि असद को व्यापक नरसंहार का दोषी मानते हुए इनके अपदस्थीकरण हेतु विद्रोहियों को सहयोग प्रदान कर रहे हैं। ज्ञातव्य है कि अगस्त, 2013 में विद्रोहियों पर रासायनिक हमले (सरीन गैस) के आरोप में विश्व समुदाय ने असद की कड़ी निंदा की थी।
  • विगत वर्षों में सीरिया में ISIS के बढ़ते प्रभाव को गंभीर वैश्विक समस्या के रूप में देखा जा रहा है।
  • सीरिया में मानवता की रक्षा एवं स्थिति पर नियंत्रण हेतु रूस ने विद्रोहियों के ठिकानों पर सितंबर, 2015 के अंत से हवाई हमले शुरू कर दिए हैं।
  • हवाई हमले हेतु रूस द्वारा सीरिया के प्रमुख बंदरगाह शहर लटाकिया में अस्थायी एयर बेस बनाया गया है जबकि मिसाइल हमले हेतु कैस्पियन सागर में स्थित युद्धपोत का प्रयोग किया जा रहा है।
    विरोध का बिंदु
  • सं.रा. अमेरिका सहित असद विरोधी खेमे के देश रूसी हमले की निंदा इस आधार पर कर रहे हैं कि यह लोकतंत्र की स्थापना में बाधा पहुंचा रहा है।
  • उनका कहना है कि रूस ISIS के बजाय सीरिया विद्रोहियों पर अधिक हमले कर रहा है जो लोकतंत्र के लिए लड़ रहे हैं।
  • रूस का यह कदम असद को लाभ पहुंचाने वाला है न कि आतंकवाद के खिलाफ।
  • इससे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई और जटिल होगी।
    रूसी हित
  • सीरिया में हस्तक्षेप से (हवाई हमले से) रूस के अनेक अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक हित सधते हैं।
  • सीरिया में शांति स्थापना के साथ-साथ बशर अल-असद की सहायता करना।
  • आतंकी गठबंधनों को तोड़ना तथा विश्व शांति की स्थापना करना। ज्ञातव्य है कि रूस को प्रभावित करने वाले चेचन्याई आतंकियों का ISIS से जुड़ाव/गठबंधन है।
  • पश्चिम एवं मध्य एशिया में रूसी प्रभाव की पुनर्वापसी करना।
    सं.रा. अमेरिका की एंटी-आई.एस. (Anti-IS) रणनीति
  • ISIS को वैश्विक समस्या मानते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका ने चार सूत्रीय रणनीति बनाई है।
  • ISIS जहां कहीं भी हो (सीरिया सहित) पर चरणबद्ध हवाई अभियान/हमला,
  • उन संगठनों को (असद को छोड़कर) जो ISIS से लड़ रहे हैं, मदद पहुंचाना,
  • ISIS की वित्त आपूर्ति शृंखला को तोड़ना,
  • प्रभावित लोगों को मानवीय सहायता की उपलब्धता सुनिश्चित करना।

जलवायु परिवर्तन पर भारत की प्रतिबद्धता प्रेषित

जलवायु परिवर्तन पर भारत की प्रतिबद्धता प्रेषित

जलवायु परिवर्तन विश्व समुदाय के समक्ष मौजूद एक आसन्न चुनौती है। पर्यावरण की शर्तों पर विकास तथा बढ़ती भौतिकवादी प्रवृत्तियों से आज मनुष्य और उसके निवास ग्रह पृथ्वी के सहअस्तित्व की संभावना संदिग्ध लगने लगी है। तरक्की और विकास की बाध्यताओं और पर्यावरण के प्रति सम्मान के बीच अंतर्संबंध स्थापित किए बिना विकास अर्थहीन सिद्ध होगा। विकास तो करना है, लेकिन विकास का टिकाऊ होना आवश्यक है।
जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न समस्याओं के प्रति दुनिया भर के लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए पहली बार वैश्विक स्तर पर जून, 1972 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ। इसकी दसवीं वर्षगांठ पर मई, 1982 में नैरोबी (केन्या) में राष्ट्रों का सम्मेलन हुआ, जिसमें पर्यावरण से जुड़ी विभिन्न कार्य-योजनाओं का एक घोषणा-पत्र स्वीकृत किया गया।
स्टॉकहोम सम्मेलन की बीसवीं वर्षगांठ पर जून, 1992 में रियो डी जनेरियो (ब्राजील) में संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी शिखर सम्मेलन हुआ। इसी सम्मेलन के दौरान जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ (यूएनएफसीसीसी) नामक संधि हस्ताक्षरित की गई। जिसके तहत पहला संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CoP1), 1995 में बर्लिन (जर्मनी) में हुआ था। इसका बीसवां सम्मेलन कोप-20 (Conference of the Parties-CoP) का आयोजन लीमा (पेरू) में 1 से 14 दिसंबर, 2014 को किया गया। इस सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन में कटौती के मुद्दे पर विकसित एवं विकासशील देशों के बीच अंतिम क्षणों में दिसंबर, 2015 में पेरिस (CoP-21) के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाली नई वैश्विक जलवायु संधि के मसौदे पर सहमति बनी। ‘जलवायु कार्रवाई का लीमा आह्वान’ नाम के इस मसौदे को दिसंबर, 2015 में पेरिस सम्मेलन में अंतिम रूप से स्वीकृत होना है। इसी स्वीकृत मसौदे के तहत संयुक्त राष्ट्र के सभी देशों को अपने कार्बन उत्सर्जन कटौती के लक्ष्य को प्रस्तुत करना है।
इसी के मद्देनजर भारत ने भी अपना लक्ष्य घोषित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान 2 अक्टूबर (गांधी जयंती) को आईएनडीसी (INDC) घोषित करने की अनुमति मांगी थी। उनका कहना था कि यदि भारत 2 अक्टूबर को INDC की घोषणा करता है, तो इससे हमारी प्रतिबद्धता में बहुत महत्त्वपूर्ण नैतिक आयाम भी जुड़ जाएगा।
  • 1 अक्टूबर की मध्य रात्रि को अर्थात 2 अक्टूबर को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भारत के 38 पन्नों की एक कार्य-योजना (Intended Nationally Determined Contribution) की घोषणा की।
  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को सौंपी गई भारत की जलवायु कार्य योजना व्यापक, महत्त्वाकांक्षी व प्रगतिशील है, जो उत्सर्जन को व्यापक तौर पर कम करने में मददगार होगी।
  • आईएनडीसी के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद के कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक 33 से 35 फीसदी तक कम करना है।
  • वर्ष 2030 तक कुल बिजली उत्पादन में 40 फीसदी हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पादित करने का लक्ष्य है।
  • वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्षावरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइ ऑक्साइड के समतुल्य अतिरिक्त कार्बन ह्रास सृजित करना है।
  • एशियाई विकास बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत में जलवायु परिवर्तन से होने वाली क्षति सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.8 प्रतिशत होने की संभावना है।
  • अब से 2030 के बीच भारत के जलवायु परिवर्तन कार्यों को पूरा करने के लिए कम से कम 2.5 खरब डॉलर (2.5 Trillion, वर्ष 2014-15 की कीमतों पर) खर्च का प्रारंभिक अनुमान है।
  • भारत की ‘अभिप्रेत राष्ट्रीय अभिनिर्धारित योगदान’ (INDC) 1992 कन्वेंशन पर आधारित है।
  • हालांकि संचयी वैश्विक उत्सर्जन (केवल 3 प्रतिशत) और प्रति व्यक्ति उत्सर्जन (वर्ष 2010 में 1.56 + CO2e ) के मामले में भारत का योगदान अत्यधिक कम है, लेकिन यह अपने कार्यों में निष्पक्ष और महत्त्वाकांक्षी है।
    न्यूनीकरण रणनीतियां (Mitigation Strategies)
  • स्वच्छ और ऊर्जा सुरक्षित भारत के लिए ग्रीन जनरेशन : नवीकरणीय ऊर्जा में 5 गुना वृद्धि करते हुए 35 गीगावॉट (मार्च, 2015 तक) से वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट उत्पादन।
  • राष्ट्रीय और मिशन : 20 गीगावॉट से 5 गुना बढ़ाकर वर्ष 2022 तक 100 गीगावॉट करना।
  • कोच्चि हवाई अड्डा, दुनिया का पहला हवाई अड्डा है जो पूर्ण रूप से सौर ऊर्जा से संचालित हो रहा है।
  • देश भर में सभी टोल संग्रह बूथों के लिए परिकल्पित सौर ऊर्जा चालित टोल प्लाजा।
  • कुशल पारेषण और वितरण नेटवर्क के लिए राष्ट्रीय स्मार्ट ग्रिड मिशन की शुरुआत।
  • अक्षय ऊर्जा संयंत्रों से निकासी सुनिश्चित करने के लिए हरित ऊर्जा गलियारा परियोजनाएं शुरू की जा रही हैं।
  • वर्ष 2018-19 तक वर्तमान ऊर्जा खपत का 10 प्रतिशत बचाने के लक्ष्य के साथ ऊर्जा संरक्षण के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान की शुरुआत।
  • स्वच्छ और सतत पर्यावरण के निर्माण द्वारा नई पीढ़ी के शहरों का विकास करने के लिए ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ की शुरुआत।
  • समावेशी तरीके से शहरी नियोजन, आर्थिक वृद्धि और विरासत के संरक्षण के लिए ‘राष्ट्रीय विरासत नगर विकास और संवर्धन योजना’ (हृदय) की शुरुआत।
  • भारत में 500 शहरों के लिए एक नया शहरी नवीनीकरण मिशन, ‘शहरी परिवर्तन और कायाकल्प के लिए अटल मिशन’ (अमृत)।
  • वर्ष 2019 तक देश को कूड़े से मुक्त और स्वच्छ बनाने के लिए ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की शुरुआत।
  • ऊर्जा और संसाधन दक्षता बढ़ाने के लिए, प्रदूषण नियंत्रण, अक्षय ऊर्जा के उपयोग, कचरा प्रबंधन आदि के लिए मेक इन इंडिया अभियान के साथ जीरो इफेक्ट, जीरो डिफेक्ट (ZED)।
  • राष्ट्रीय राजमार्गों के दोनों ओर 140,000 किमी. लंबी ‘ट्री लाइन’ (Tree Line) विकसित करने के लिए हरित राजमार्ग (वृक्षारोपण तथा रख-रखाव) नीति का निर्माण।
  • तीव्र स्वीकृति तथा हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए ‘फेम इंडिया’ (FAME India-Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid & Electric Vehicles)।
  • देश की पहली यात्री वाहन ईंधन दक्षता मानकों को अंतिम रूप।
  • डीजल इंजनों में कर्षण ईंधन (Traction Fuel) में 5 प्रतिशत बायोडीजल का प्रयोग करने के लिए निदेशक नीति जारी किया गया।
  • एक विशेष शहर में वायु प्रदूषण का दर्जा देने के लिए एक नंबर, एक रंग और एक विवरण के साथ राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक की शुरुआत।
    अनुकूलन रणनीतियां
  • ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’ की शुरुआत। इसके अतिरिक्त, देश भर में 100 मोबाइल मृदा-परीक्षण प्रयोगशालाओं की व्यवस्था।
  • जैविक खेती के तरीकों को बढ़ावा देने के लिए ‘परंपरागत कृषि विकास योजना’ की शुरुआत।
  • कुशल सिंचाई प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ की शुरुआत।
  • देश में वाटरशेड विकास को अतिरिक्त प्रोत्साहन देने के लिए एक नया कार्यक्रम ‘नीरांचल’।
  • नदी को पुनः जीवंत करने के लिए ‘स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन’ (नमामि गंगे) की शुरुआत।
  • जल के दक्ष उपयोग के संवर्द्धन, विनियमन और नियंत्रण हेतु प्रस्तावित ‘जल उपयोग दक्षता का राष्ट्रीय ब्यूरो’ (NBWUE)।
  • जरूरतमंद नागरिकों के लिए रसोई गैस पर सब्सिडी छोड़ने के लिए ‘गिव इट अप’ (Give it up) अभियान की शुरुआत।
    जलवायु वित्त नीतियां
  • 3500 मिलियन रुपये (55.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर) के राष्ट्रीय अनुकूलन कोष की स्थापना करना।
  • डीजल, केरोसिन और घरेलू एलपीजी सहित जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी में कटौती।
  • स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं और गंगा पुनरोद्धार में वित्तीय मदद के लिए कोयला उपकर को चार गुना बढ़ाकर 50 रुपये से 200 रुपये प्रति टन किया गया।
  • अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए टैक्स फ्री इंफ्रास्ट्रक्चर बांड की शुरुआत।
  • इस प्रकार जलवायु परिवर्तन के खिलाफ दुनिया के प्रयास में योगदान के लिए भारत ने महत्त्वाकांक्षी योजना पेश की है। वैसे भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अपनी विकास आवश्यकताओं को विलंबित नहीं कर सकता इसलिए सेक्टर विशेषीकृत लक्ष्य निर्धारित नहीं कर रहा है। भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती धन और तकनीक की है। जरूरत इस बात की है कि विकसित देश विकासशील देशों को धन व तकनीक मुहैया कराए ताकि वे जलवायु परिवर्तन को रोकने के अपने लक्ष्य को असली जामा पहना सके। 25 सितंबर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जलवायु न्याय’ (Climate Justic) की बात की थी, जो कि प्राकृतिक आपदाओं के खतरों से गरीबों के भविष्य को सुरक्षित करने की भारत की संवेदनशीलता को प्रदर्शित करती है। भारत द्वारा इसी दिशा में प्रयास जारी है।
अन्य देशों द्वारा घोषित आईएनडीसी
  • चीन-वर्ष 2030 तक, 2005 के स्तर से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन (जीडीपी की प्रति इकाई पर उसर्त्जन) में 60 से 65 प्रतिशत कटौती।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका-वर्ष 2025 तक, 2005 के स्तर से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 26 से 28 प्रतिशत की कटौती।
  • यूरोपीय संघ-वर्ष 2030 तक, वर्ष 1990 के स्तर से कम से कम 40 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कटौती।
  • रूस-वर्ष 2030 तक, वर्ष 1990 के स्तर से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 25 से 30 प्रतिशत कटौती।
  • जापान-वर्ष 2030 तक, वर्ष 2013 के स्तर से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 26 प्रतिशत की कटौती (2005 के स्तर से 25.4 प्रतिशत कटौती)।

Dr Sekhar Basu takes charge as Chairman, AEC and Secretary, DAE

Dr Sekhar Basu takes charge as Chairman, AEC and Secretary, DAE
Dr. Ratan Kumar Sinha, Chairman, Atomic Energy Commission and Secretary to Government of India, Department of Atomic Energy, remitted his office on Friday, October 23, 2015 on superannuation after about 42 years of distinguished service in the Department. Dr. Sekhar Basu, Director, BARC took the charge from Dr. R. K. Sinha in a simple ceremony held at the Headquarters of the Department in Mumbai.
             Dr. Sinha, who led the Department for about three and a half years, while relinquishing office said that Department of Atomic Energy has a special mandate that bridges range of activities from basic science to final deliveries in multiple dimensions for growth of the nation. He said that he has great satisfaction in being a part of this department for the last 42 years and for having been witness to many historical developments of far reaching impacts. He further said, “Today, while I am relinquishing office, I go with full confidence that the DAE will continue to move further to fulfil its mandated deliveries to meet the progressively increasing needs of the country. I wish my successor Dr. Sekhar Basu my very best wishes for a successful tenure as Chairman, AEC and Secretary DAE”.
Dr. Basu while thanking Dr. Ratan Kumar Sinha, assured that he will do his best to contribute to the advancement of science and to meet the societal objectives to serve the nation. He also pointed out that benefits of Atomic Energy are multifaceted and its contribution to health, food and water security are as important as energy security. He said, he will give top priority towards the completion of our ongoing projects including augmentation of domestic production of uranium.

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