जलवायु परिवर्तन पर भारत की प्रतिबद्धता प्रेषित
जलवायु परिवर्तन विश्व समुदाय के
समक्ष मौजूद एक आसन्न चुनौती है। पर्यावरण की शर्तों पर विकास तथा बढ़ती
भौतिकवादी प्रवृत्तियों से आज मनुष्य और उसके निवास ग्रह पृथ्वी के
सहअस्तित्व की संभावना संदिग्ध लगने लगी है। तरक्की और विकास की बाध्यताओं
और पर्यावरण के प्रति सम्मान के बीच अंतर्संबंध स्थापित किए बिना विकास
अर्थहीन सिद्ध होगा। विकास तो करना है, लेकिन विकास का टिकाऊ होना आवश्यक
है।
जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न समस्याओं के प्रति दुनिया भर के लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए पहली बार वैश्विक स्तर पर जून, 1972 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ। इसकी दसवीं वर्षगांठ पर मई, 1982 में नैरोबी (केन्या) में राष्ट्रों का सम्मेलन हुआ, जिसमें पर्यावरण से जुड़ी विभिन्न कार्य-योजनाओं का एक घोषणा-पत्र स्वीकृत किया गया।
स्टॉकहोम सम्मेलन की बीसवीं वर्षगांठ पर जून, 1992 में रियो डी जनेरियो (ब्राजील) में संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी शिखर सम्मेलन हुआ। इसी सम्मेलन के दौरान जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ (यूएनएफसीसीसी) नामक संधि हस्ताक्षरित की गई। जिसके तहत पहला संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CoP1), 1995 में बर्लिन (जर्मनी) में हुआ था। इसका बीसवां सम्मेलन कोप-20 (Conference of the Parties-CoP) का आयोजन लीमा (पेरू) में 1 से 14 दिसंबर, 2014 को किया गया। इस सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन में कटौती के मुद्दे पर विकसित एवं विकासशील देशों के बीच अंतिम क्षणों में दिसंबर, 2015 में पेरिस (CoP-21) के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाली नई वैश्विक जलवायु संधि के मसौदे पर सहमति बनी। ‘जलवायु कार्रवाई का लीमा आह्वान’ नाम के इस मसौदे को दिसंबर, 2015 में पेरिस सम्मेलन में अंतिम रूप से स्वीकृत होना है। इसी स्वीकृत मसौदे के तहत संयुक्त राष्ट्र के सभी देशों को अपने कार्बन उत्सर्जन कटौती के लक्ष्य को प्रस्तुत करना है।
इसी के मद्देनजर भारत ने भी अपना लक्ष्य घोषित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान 2 अक्टूबर (गांधी जयंती) को आईएनडीसी (INDC) घोषित करने की अनुमति मांगी थी। उनका कहना था कि यदि भारत 2 अक्टूबर को INDC की घोषणा करता है, तो इससे हमारी प्रतिबद्धता में बहुत महत्त्वपूर्ण नैतिक आयाम भी जुड़ जाएगा।
जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न समस्याओं के प्रति दुनिया भर के लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए पहली बार वैश्विक स्तर पर जून, 1972 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन हुआ। इसकी दसवीं वर्षगांठ पर मई, 1982 में नैरोबी (केन्या) में राष्ट्रों का सम्मेलन हुआ, जिसमें पर्यावरण से जुड़ी विभिन्न कार्य-योजनाओं का एक घोषणा-पत्र स्वीकृत किया गया।
स्टॉकहोम सम्मेलन की बीसवीं वर्षगांठ पर जून, 1992 में रियो डी जनेरियो (ब्राजील) में संयुक्त राष्ट्र पृथ्वी शिखर सम्मेलन हुआ। इसी सम्मेलन के दौरान जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन’ (यूएनएफसीसीसी) नामक संधि हस्ताक्षरित की गई। जिसके तहत पहला संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (CoP1), 1995 में बर्लिन (जर्मनी) में हुआ था। इसका बीसवां सम्मेलन कोप-20 (Conference of the Parties-CoP) का आयोजन लीमा (पेरू) में 1 से 14 दिसंबर, 2014 को किया गया। इस सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन में कटौती के मुद्दे पर विकसित एवं विकासशील देशों के बीच अंतिम क्षणों में दिसंबर, 2015 में पेरिस (CoP-21) के लिए मार्ग प्रशस्त करने वाली नई वैश्विक जलवायु संधि के मसौदे पर सहमति बनी। ‘जलवायु कार्रवाई का लीमा आह्वान’ नाम के इस मसौदे को दिसंबर, 2015 में पेरिस सम्मेलन में अंतिम रूप से स्वीकृत होना है। इसी स्वीकृत मसौदे के तहत संयुक्त राष्ट्र के सभी देशों को अपने कार्बन उत्सर्जन कटौती के लक्ष्य को प्रस्तुत करना है।
इसी के मद्देनजर भारत ने भी अपना लक्ष्य घोषित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिकी यात्रा के दौरान 2 अक्टूबर (गांधी जयंती) को आईएनडीसी (INDC) घोषित करने की अनुमति मांगी थी। उनका कहना था कि यदि भारत 2 अक्टूबर को INDC की घोषणा करता है, तो इससे हमारी प्रतिबद्धता में बहुत महत्त्वपूर्ण नैतिक आयाम भी जुड़ जाएगा।
- 1 अक्टूबर की मध्य रात्रि को अर्थात 2 अक्टूबर को केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भारत के 38 पन्नों की एक कार्य-योजना (Intended Nationally Determined Contribution) की घोषणा की।
- केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र को सौंपी गई भारत की जलवायु कार्य योजना व्यापक, महत्त्वाकांक्षी व प्रगतिशील है, जो उत्सर्जन को व्यापक तौर पर कम करने में मददगार होगी।
- आईएनडीसी के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद के कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक 33 से 35 फीसदी तक कम करना है।
- वर्ष 2030 तक कुल बिजली उत्पादन में 40 फीसदी हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पादित करने का लक्ष्य है।
- वर्ष 2030 तक अतिरिक्त वन और वृक्षावरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइ ऑक्साइड के समतुल्य अतिरिक्त कार्बन ह्रास सृजित करना है।
- एशियाई विकास बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक भारत में जलवायु परिवर्तन से होने वाली क्षति सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.8 प्रतिशत होने की संभावना है।
- अब से 2030 के बीच भारत के जलवायु परिवर्तन कार्यों को पूरा करने के लिए कम से कम 2.5 खरब डॉलर (2.5 Trillion, वर्ष 2014-15 की कीमतों पर) खर्च का प्रारंभिक अनुमान है।
- भारत की ‘अभिप्रेत राष्ट्रीय अभिनिर्धारित योगदान’ (INDC) 1992 कन्वेंशन पर आधारित है।
- हालांकि संचयी वैश्विक उत्सर्जन (केवल 3 प्रतिशत) और प्रति व्यक्ति
उत्सर्जन (वर्ष 2010 में 1.56 + CO2e ) के मामले में भारत का योगदान
अत्यधिक कम है, लेकिन यह अपने कार्यों में निष्पक्ष और महत्त्वाकांक्षी है।
न्यूनीकरण रणनीतियां (Mitigation Strategies) - स्वच्छ और ऊर्जा सुरक्षित भारत के लिए ग्रीन जनरेशन : नवीकरणीय ऊर्जा में 5 गुना वृद्धि करते हुए 35 गीगावॉट (मार्च, 2015 तक) से वर्ष 2022 तक 175 गीगावॉट उत्पादन।
- राष्ट्रीय और मिशन : 20 गीगावॉट से 5 गुना बढ़ाकर वर्ष 2022 तक 100 गीगावॉट करना।
- कोच्चि हवाई अड्डा, दुनिया का पहला हवाई अड्डा है जो पूर्ण रूप से सौर ऊर्जा से संचालित हो रहा है।
- देश भर में सभी टोल संग्रह बूथों के लिए परिकल्पित सौर ऊर्जा चालित टोल प्लाजा।
- कुशल पारेषण और वितरण नेटवर्क के लिए राष्ट्रीय स्मार्ट ग्रिड मिशन की शुरुआत।
- अक्षय ऊर्जा संयंत्रों से निकासी सुनिश्चित करने के लिए हरित ऊर्जा गलियारा परियोजनाएं शुरू की जा रही हैं।
- वर्ष 2018-19 तक वर्तमान ऊर्जा खपत का 10 प्रतिशत बचाने के लक्ष्य के साथ ऊर्जा संरक्षण के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान की शुरुआत।
- स्वच्छ और सतत पर्यावरण के निर्माण द्वारा नई पीढ़ी के शहरों का विकास करने के लिए ‘स्मार्ट सिटी मिशन’ की शुरुआत।
- समावेशी तरीके से शहरी नियोजन, आर्थिक वृद्धि और विरासत के संरक्षण के लिए ‘राष्ट्रीय विरासत नगर विकास और संवर्धन योजना’ (हृदय) की शुरुआत।
- भारत में 500 शहरों के लिए एक नया शहरी नवीनीकरण मिशन, ‘शहरी परिवर्तन और कायाकल्प के लिए अटल मिशन’ (अमृत)।
- वर्ष 2019 तक देश को कूड़े से मुक्त और स्वच्छ बनाने के लिए ‘स्वच्छ भारत मिशन’ की शुरुआत।
- ऊर्जा और संसाधन दक्षता बढ़ाने के लिए, प्रदूषण नियंत्रण, अक्षय ऊर्जा के उपयोग, कचरा प्रबंधन आदि के लिए मेक इन इंडिया अभियान के साथ जीरो इफेक्ट, जीरो डिफेक्ट (ZED)।
- राष्ट्रीय राजमार्गों के दोनों ओर 140,000 किमी. लंबी ‘ट्री लाइन’ (Tree Line) विकसित करने के लिए हरित राजमार्ग (वृक्षारोपण तथा रख-रखाव) नीति का निर्माण।
- तीव्र स्वीकृति तथा हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण को बढ़ावा देने के लिए ‘फेम इंडिया’ (FAME India-Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid & Electric Vehicles)।
- देश की पहली यात्री वाहन ईंधन दक्षता मानकों को अंतिम रूप।
- डीजल इंजनों में कर्षण ईंधन (Traction Fuel) में 5 प्रतिशत बायोडीजल का प्रयोग करने के लिए निदेशक नीति जारी किया गया।
- एक विशेष शहर में वायु प्रदूषण का दर्जा देने के लिए एक नंबर, एक रंग और एक विवरण के साथ राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक की शुरुआत।
अनुकूलन रणनीतियां - ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना’ की शुरुआत। इसके अतिरिक्त, देश भर में 100 मोबाइल मृदा-परीक्षण प्रयोगशालाओं की व्यवस्था।
- जैविक खेती के तरीकों को बढ़ावा देने के लिए ‘परंपरागत कृषि विकास योजना’ की शुरुआत।
- कुशल सिंचाई प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना’ की शुरुआत।
- देश में वाटरशेड विकास को अतिरिक्त प्रोत्साहन देने के लिए एक नया कार्यक्रम ‘नीरांचल’।
- नदी को पुनः जीवंत करने के लिए ‘स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन’ (नमामि गंगे) की शुरुआत।
- जल के दक्ष उपयोग के संवर्द्धन, विनियमन और नियंत्रण हेतु प्रस्तावित ‘जल उपयोग दक्षता का राष्ट्रीय ब्यूरो’ (NBWUE)।
- जरूरतमंद नागरिकों के लिए रसोई गैस पर सब्सिडी छोड़ने के लिए ‘गिव इट अप’ (Give it up) अभियान की शुरुआत।
जलवायु वित्त नीतियां - 3500 मिलियन रुपये (55.6 मिलियन अमेरिकी डॉलर) के राष्ट्रीय अनुकूलन कोष की स्थापना करना।
- डीजल, केरोसिन और घरेलू एलपीजी सहित जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी में कटौती।
- स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं और गंगा पुनरोद्धार में वित्तीय मदद के लिए कोयला उपकर को चार गुना बढ़ाकर 50 रुपये से 200 रुपये प्रति टन किया गया।
- अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए टैक्स फ्री इंफ्रास्ट्रक्चर बांड की शुरुआत।
- इस प्रकार जलवायु परिवर्तन के खिलाफ दुनिया के प्रयास में योगदान के लिए भारत ने महत्त्वाकांक्षी योजना पेश की है। वैसे भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अपनी विकास आवश्यकताओं को विलंबित नहीं कर सकता इसलिए सेक्टर विशेषीकृत लक्ष्य निर्धारित नहीं कर रहा है। भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती धन और तकनीक की है। जरूरत इस बात की है कि विकसित देश विकासशील देशों को धन व तकनीक मुहैया कराए ताकि वे जलवायु परिवर्तन को रोकने के अपने लक्ष्य को असली जामा पहना सके। 25 सितंबर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जलवायु न्याय’ (Climate Justic) की बात की थी, जो कि प्राकृतिक आपदाओं के खतरों से गरीबों के भविष्य को सुरक्षित करने की भारत की संवेदनशीलता को प्रदर्शित करती है। भारत द्वारा इसी दिशा में प्रयास जारी है।
अन्य देशों द्वारा घोषित आईएनडीसी
- चीन-वर्ष 2030 तक, 2005 के स्तर से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन (जीडीपी की प्रति इकाई पर उसर्त्जन) में 60 से 65 प्रतिशत कटौती।
- संयुक्त राज्य अमेरिका-वर्ष 2025 तक, 2005 के स्तर से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 26 से 28 प्रतिशत की कटौती।
- यूरोपीय संघ-वर्ष 2030 तक, वर्ष 1990 के स्तर से कम से कम 40 प्रतिशत ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कटौती।
- रूस-वर्ष 2030 तक, वर्ष 1990 के स्तर से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 25 से 30 प्रतिशत कटौती।
- जापान-वर्ष 2030 तक, वर्ष 2013 के स्तर से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 26 प्रतिशत की कटौती (2005 के स्तर से 25.4 प्रतिशत कटौती)।
No comments:
Post a Comment