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6 January 2018

INS Kalvari: All you need to know about navy’s first Scorpene submarine

INS Kalvari: All you need to know about navy’s first Scorpene submarine
Kalvari is named after the dreaded Tiger Shark, a deadly deep sea predator of the Indian Ocean
The first of a six scorpene submarine, Kalvari, was on Thursday handed over to the Indian Navy for its commissioning.
Kalvari is named after the dreaded Tiger Shark, a deadly deep sea predator of the Indian Ocean. The navy is betting on the ‘Make in India’ Scorpene project to sharpen its underwater attack capabilities.
Here’s all you need to know about the submarine:
The project
Kalvari was built indigenously under a venture called Project 75, at Mumbai’s Mazagon Docks. Under this project, the Indian Navy was authorised to build six submarines in collaboration with French firm DCNS at a cost of around Rs 350 crore.
Construction of the first submarine had started on May 23, 2009 and the project ended way behind schedule.
Features and stealth
Kalvari can carry 18 torpedoes and travel 1,020km underwater. The 66-metre submarine can dive up to a depth of 300 metres to elude enemy detection.
It has superior stealth and the ability to launch crippling attacks on the enemy with precision-guided weapons. The attack can be carried out with torpedoes as well as tube-launched anti-ship missiles underwater or from the surface.
This Scorpene submarine is designed to operate in all theatres of war, including the tropics. Kalvari is capable of handling various missions such as anti-surface warfare (attacking surface ships), anti-submarine warfare (destroying submarines), intelligence gathering, mine-laying and area surveillance.
Maiden sea trial of INS Kalvari. (Indian Navy website)
The Kalvari was built with a special kind of high-tensile steel that is capable of withstanding high yield stress. This feature allows it to withstand pressure exerted by water, hydrostatic force, while diving deeper to enhance stealth.
It is also capable of carrying weapons that can be easily reloaded at sea.
‘Reincarnation’ of first Kalvari
In keeping with the India’s’ mythologies and naval tradition, the Kalvari is a ‘reincarnation’ of the first Indian submarine to be commissioned into the Indian Navy on December 8, 1967. The previous Kalvari served for nearly three decades, before being decommissioned in May 1996.
“In true nautical tradition, she will now be reincarnated, by Mazagon Dock, once again a powerful predator of the deep, guarding the vast maritime interests of our nation,” the navy said.
Other Scorpene submarines
The second of the Scorpenes under construction, Khanderi, was launched in January 2017 and it is currently undergoing rigorous phase of sea trials. The third Scorpene, Karanj, is being readied for launch later this year.
The remaining submarines are likely to be delivered to the navy by 2020.
India’s submarine fleet
The Indian fleet consists of Russian Kilo-class and German HDW class 209 submarines. Limited serviceability is also an issue -- not all these boats are battle ready at any given point of time.
India’s sub-sea warfare capability pales in front of China’s. The Communist neighbour operates 53 diesel-electric attack submarines, five nuclear attack submarines and four nuclear ballistic missile submarines.
Text of PM’s address at the commissioning ceremony of naval submarine INS Kalvari at Mumbai
आज सवा सौ करोड़ भारतीयों के लिए यह गौरव से भरा हुआ एक महत्‍वपूर्ण दिवस है। मैं सभी देशवासियों को इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
INS कलवरी पनडुब्बी को राष्ट्र को समर्पित करना, मेरे लिए एक बहुत ही सौभाग्य का अवसर है।
मैं देश की जनता की तरफ से भारतीय नौसेना को भी अनेक-अनेक शुभकामनाएं अर्पित करता हूं।
करीब दो दशक के अंतराल के बाद, भारत को इस तरह की पनडुब्बी मिल रही है।
नौसेना के बेड़े में कलवरी का जुड़ना रक्षा क्षेत्र में हमारी तरफ से उठाया गया एक बहुत बड़ा कदम है। इसे बनाने में भारतीयों का पसीना लगा है, भारतीयों की शक्ति लगी है। ये Make In India का उत्तम उदाहरण है।
मैं कलवरी के निर्माण से जुड़े हर श्रमिक, हर कर्मचारी का आज भी हार्दिक अभिनंदन करता हूं। कलवरी के निर्माण में सहयोग के लिए मैं फ्रांस को भी बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं।
ये पनडुब्बी भारत और फ्रांस की तेजी से बढ़ती स्ट्रैटेजिक पार्टनर-शिप का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
साथियों, ये वर्ष भारतीय नौसेना की सबमरीन आर्म का स्वर्ण जयंती वर्ष है। अभी पिछले हफ्ते ही सबमरीन आर्म को प्रेसिडेंट्स कलर से सम्मानित किया गया है। कलवरी की शक्ति, या कहें टाइगर शार्क की शक्ति हमारी भारतीय नौसेना को और मजबूत करेगी।
साथियों, भारत की सामुद्रिक परंपरा का इतिहास बहुत ही पुराना है। पाँच हजार साल पुराना, गुजरात का लोथल, दुनिया के शुरुआती sea-ports में से एक रहा है। इतिहासकार बताते हैं कि 84 देशों से व्यापार के लोथल के जरिए हुआ करता था। एशिया के अन्य देशों और अफ्रीका तक में हमारे संबंध समंदर की इन्हीं लहरों से होते हुए आगे बढ़े हैं। सिर्फ व्यापार ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक तौर पर भी हिंद महासागर ने हमें दुनिया के दूसरे देशों के साथ जोड़ा है, उनके साथ खड़े होने में हमारी मदद की है।
हिंद महासागर ने भारत के इतिहास को गढ़ा है और अब वो भारत के वर्तमान को और मजबूती दे रहा है। 7500 किलोमीटर से ज्यादा लंबा हमारा समुद्री तट, 1300 के करीब छोटे-बड़े द्वीप, लगभग 25 लाख स्क्वायर किलोमीटर की Exclusive Economic Zone एक ऐसी सामुद्रिक शक्ति का निर्माण करते हैं, जिसका कोई मुकाबला नहीं है। हिंद महासागर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ये महासागर दुनिया के दो तिहाई Oil Shipments, दुनिया के एक तिहाई Bulk कार्गो और दुनिया के आधा Container Traffic का भार वहन करता है। इससे होकर गुजरने वाला तीन-चौथाई Traffic दुनिया के दूसरे हिस्सों में जाता है। इसमें उठने वाली लहरें दुनिया के
40 देशों और 40 प्रतिशत जनसंख्या तक पहुंचती हैं।
साथियों, कहा जाता है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है। ये भी तय है कि 21वीं सदी के विकास का रास्ता हिंद महासागर से होकर के ही निकलेगा। और इसलिए हिंद महासागर की हमारी सरकार की नीतियों में एक विशेष उसका स्‍थान है, विशेष जगह है। ये अप्रोच, हमारे विजन में झलकती है। मैं इसे एक स्पेशल नाम से भी उल्‍लेख करता हूं- S. A. G. A. R.- “सागर” अगर मैं सागर कहता हूं। यानि कि सेक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन। “सागर” हम हिंद महासागर में अपने वैश्विक, सामरिक और आर्थिक हितों को लेकर पूरी तरह सजग हैं, सतर्क हैं और इसलिए भारत की Modern और Multi-Dimensional नौसेना को पूरे क्षेत्र में शांति के लिए, स्थायित्व के लिए आगे बढ़कर के नेतृत्व कर रही है। जिस तरह भारत की राजनीतिक और आर्थिक Maritime Partnership बढ़ रही है, क्षेत्रीय Frame-work को मजबूत किया जा रहा है, उससे इस लक्ष्य की प्राप्ति और आसान नजर आती है।
साथियों, समुद्र में निहित शक्तियां हमें राष्ट्र निर्माँण के लिए आर्थिक शक्ति प्रदान करती हैं और इसलिए भारत उन चुनौतियों को लेकर भी गंभीर है, जिनका सामना भारत ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र के अलग-अलग देशों को भी करना पड़ता है।
चाहे समुद्र के रास्ते आने वाला आतंकवाद हो, Piracy की समस्या हो, ड्रग्स की तस्करी हो, भारत इन सभी चुनौतियों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सबका साथ-सबका विकास का हमारा ये मंत्र है। जल-थल-नभ में भी एक ही समान है।
पूरे विश्व को एक परिवार मानते हुए, वसुधैव कुटुम्‍ब की भावना को आगे बढ़ाते हुए भारत अपने वैश्विक उत्तरदायित्वों को लगातार निभा रहा है। भारत अपने साथी देशों के लिए उनके संकट के समय first responder बना हुआ है और इसलिए जब श्रीलंका में बाढ़ आती है तो भारत की नौसेना तत्परता से मदद के लिए सबसे पहले पहुँच जाती है।
जब मालदीव में पानी का संकट आता है तो भारत से जहाज़ भर-भर के पानी तत्काल पहुंचाया जाता है। जब बांग्लादेश में चक्रवात आता है तो भारत की नौसेना बीच समंदर में फंसे बांग्ला-देशियों को बाहर निकालकर लाती है। म्यांमार तक में तूफान से पीड़ित लोगों की मदद के लिए भारतीय नौसेना पूरी शक्ति के साथ मानवीय दृष्टिकोण से मदद करने में कभी पीछे नहीं रहती है। इतना ही नहीं, यमन में संकट के समय जब भारतीय नौसेना अपने साढ़े चार हज़ार से अधिक नागरिकों को बचाती है, तो साथ में 48 और देशों के व्यक्तियों को भी सुरक्षित संकट से बाहर निकाल करके ले आती है।
भारतीय डिप्लोमैसी और भारतीय सुरक्षा तंत्र का मानवीय पहलू ये भारत की विशेषता है, ये हमारी विशिष्‍टता है। मुझे याद है जब नेपाल में भूकंप आया था, तो कैसे भारतीय सेना और वायुसेना ने राहत कार्यों की कमान संभाली थी। 700 से ज्यादा उड़ानें, एक हजार टन से ज्यादा की राहत सामग्री, हजारों भूकंप पीड़ितों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना, सैकड़ों विदेशी नागरिकों को बाहर निकालना, ये “मैत्री-भाव” भारत के जहन में है, भारत के स्‍वभाव में है। भारत मानवता के काम को किए बिना कभी रह नहीं सकता है।
साथियों, समर्थ और सशक्त भारत सिर्फ़ अपने लिए नहीं संपूर्ण मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। आज हम दुनिया के विभिन्न देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। उनकी सेनाएं, हमारी सेना के साथ तालमेल बढ़ाने के लिए, हमसे अनुभव साझा करने के लिए आतुर रहती हैं। जब वे हमारे साथ Exercises में हिस्सा लेती हैं तो अक्‍सर ये चर्चा का विषय भी होता है।
पिछले वर्ष ही भारत में International Fleet Review के लिए 50 देशों की नौसेनाएं जुटीं थीं। विशाखापट्टनम के पास समंदर में उस समय बने विहंगम दृश्य किसी के लिए भी शायद ही भूलना संभव है।
इस वर्ष भी भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर में अपने शौर्य से दुनिया का ध्यान खींचा है।
जुलाई में हुई Malabar Exercise में अमेरिका और जापान की नौसेना के साथ भारतीय नौसेना ने शानदार प्रदर्शन किया था। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया की नेवी के साथ, सिंगापुर की नेवी के साथ, म्यांमार, जापान, इंडोनेशिया की नेवी के साथ भारतीय नौसेना ने अलग-अलग महीनों में इस वर्ष Exercises का क्रम लगातार जारी रखा हैं। भारतीय सेना भी श्रीलंका, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, बांग्लादेश, सिंगापुर जैसे देशों के साथ संयुक्त अभ्यास कर चुकी है।
भाइयों और बहनों, ये पूरी तस्वीर इस बात की गवाह है कि दुनिया के देश, शांति और स्थायित्व के मार्ग में भारत के साथ चलने के लिए आज इच्‍छुक है, प्रतिबद्ध हैं।
साथियों, हम इस बात के प्रति भी सजग हैं कि देश की सुरक्षा के लिए चुनौतियों का स्वरूप बदल चुका है। हम अपनी रक्षा तैयारियों को इन चुनौतियों के अनुरूप करने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। Proactive कदम उठा रहे हैं।
हमारा प्रयास है कि हमारी Defence Power, Economic Power, Technical Power के साथ International Relation की Power, Public के Confidence की Power, देश की Soft Power, इन सभी Factors में एक सिनर्जी हो। ये परिवर्तन आज के समय की माँग है।
भाइयों और बहनों, पिछले तीन साल में रक्षा और सुरक्षा से जुड़े पूरे eco-system में बदलाव की एक शुरुआत हुई है। बहुत नई पहल की गई है। जहाँ एक ओर हम आवश्यक साजो सामान के विषय को प्राथमिकता के साथ Address कर रहे हैं, वहीं देश में ही आवश्यक technology के विकास के लिए Pro-active agenda भी सेट किया जा रहा है।
Licensing प्रक्रिया से Export प्रक्रिया तक, हम पूरे सिस्टम में पारदर्शिता और संतुलित प्रतिस्पर्धा ला रहे हैं। विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए भी हमारी सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। अब 49 प्रतिशत FDI automatic route से किया जा सकता है। डिफेंस सेक्टर के कुछ क्षेत्रों में तो अब 100 प्रतिशत FDI का रास्ता खुल गया है। Defence Procurement Procedure में भी हमने बड़े बदलाव किये हैं। इनसे Make in India को भी बढ़ावा मिल रहा है। इससे रोजगार के भी नए अवसरों का निर्माण हो रहा है।
जैसे, मुझे बताया गया है कि INS कलवरी के निर्माण में लगभग 12 लाख Man-days
लगे हैं। इसके निर्माण के दौरान जो तकनीकि दक्षता भारतीय कंपनियों को, भारतीय उद्योगों को, छोटे उद्यमियों को और हमारे इंजीनियरों को मिली है, वो देश के लिए एक तरह से “Talent Treasure” है। ये Skill-Set हमारे लिए एक asset है जिसका लाभ देश को भविष्‍य में लगातार मिलेगा।
साथियों, भारतीय कंपनियां डिफेंस सेक्टर के product’s बनाएं औऱ उसे दुनिया भर में export करे, इसके लिए defence exports पॉलिसी में भी हमने आमूल-चूल परिवर्तन किया है। जो product’s यहां बन रहे हैं, वो हमारे सैन्य बल भी आसानी से खरीद सकें, इसके लिए लगभग डेढ़-सौ non-core items की एक लिस्ट बनाई गई है। इनकी खरीद के लिए सैन्य बलों को Ordnance Factories से मंजूरी की जरूरत नहीं है, वे सीधे प्राइवेट कंपनियों से ये product खरीद सकती हैं।
देश को डिफेंस सेक्टर में आत्मनिर्भर बनाने के लिए, सरकार, भारतीय प्राइवेट सेक्टर के साथ Strategic Partnership Model लागू कर रही है। हमारी कोशिश है कि विदेशों की तरह ही भारतीय कंपनियां भी फाइटर प्लेन से लेकर हेलीकॉप्टर और टैंक से लेकर सबमरीन तक का निर्माण इसी धरती पर करें। भविष्य में यही Strategic Partner भारत की डिफेंस इंडस्ट्री को और मजबूत बनाएंगे।
सरकार ने रक्षा क्षेत्र से जुड़े सामान की खरीद में भी तेजी लाने के लिए भी अनेक नीतिगत फैसले लिए हैं। रक्षा मंत्रालय और सर्विस हेडक्वार्टर स्तर पर financial powers में भी बढोतरी की गई है। पूरी प्रक्रिया को और सरल और कारगर बनाया गया है। इन महत्वपूर्ण सुधारों से रक्षा-व्यवस्था और देश की सेनाओं की क्षमता और भी मज़बूत होंगी।
भाइयों और बहनों, हमारी सरकार की सुरक्षा नीतियों का अनुकूल प्रभाव बाहरी ही नहीं बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा पर भी सकारात्‍मक प्रभाव पैदा कर रहा है।
आप सभी जानते हैं कि किस प्रकार आतंकवाद को भारत के खिलाफ एक प्रॉक्सी वॉर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारी सरकार की नीतियां और हमारे सैनिकों की वीरता का ये परिणाम है कि जम्मू-कश्मीर में हमने ऐसी ताकतों को सफल होने नहीं दिया है। जम्मू-कश्मीर में इस साल अब तक 200 से ज्यादा आतंकी, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सुरक्षाबलों के सहयोग से मारे जा चुके हैं। पत्थरबाजी की घटनाओं में भी काफी कमी आई है।
उत्तर पूर्व के राज्यों में भी, north eastern state में भी स्थिति में भी काफी सुधार दिखता है। नक्सली-माओवादी हिंसा भी कम हुई है। ये स्थिति इस बात का भी संकेत है कि इन क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा लोग अब विकास की मुख्यधारा में वापिस लौट रहे हैं।
मैं आज इस अवसर पर हर उस व्यक्ति का आभार व्यक्त करता हूं जिसने देश की सुरक्षा में अपना जीवन समर्पित कर दिया है।
राज्यों के पुलिस बल, अर्ध सैनिक बल, हमारी सेनाएं, सुरक्षा में लगी हर वो एजेंसी जो दिखती है, और हर वो एजेंसी जो नहीं दिखती है, उनके प्रति इस देश के सवा-सौ करोड़ लोग कृतज्ञ हैं। उनका अभिनंदन करता हूं। मैं उनका धन्‍यवाद करता हूं।
साथियों, देश की मजबूती हमारे सुरक्षाबलों की मजबूती से जुड़ी हुई है और इसलिए सुरक्षाबलों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, बिना विलंब किए हुए, उनके लिए फैसले लेना, उनके साथ खड़े रहना ये इस सरकार की प्राथमिकता है। और ये सरकार के स्‍वभाव में है। ये हमारी ही कमिटमेंट थी जिसके कारण कई दशकों से लंबित One Rank One Pension का वायदा हकीक़त में बदल चुका है। अब तक 20 लाख से अधिक रिटायर्ड फौजी भाइयों को लगभग 11 हजार करोड़ रुपए एरियर के तौर पर दिए भी जा चुके हैं।
भाइयों और बहनों, आज इस अवसर पर मैं सागर परिक्रमा के लिए निकली भारतीय नौसेना की 6 वीर, जांबाज अफसरों को भी याद करना चाहूंगा। उनका गौरव करना चाहूंगा।
हमारे देश के रक्षामंत्री श्रीमति निर्मला जी की प्रेरणा से, भारत की नारी शक्ति का संदेश लेकर, वो बहुत हौसले के साथ, ये हमारे छ: जांबाज सेनानी आगे बढ़ती चली जा रही हैं।
साथियों, आप ही जल-थल-नभ में इसी अथाह भारतीय सामर्थ्य को सहेजे हुए हैं। आज INS कलवरी के साथ एक नए सफर की शुरुआत हो रही है।
समुद्र देव आपको सशक्त रखें, आपको सुरक्षित रखें। “शम: नौ वरुण:” आपका ही ये Motto है। हमारी इसी कामना के साथ मैं आपको एक बार फिर नमन करता हूं, शुभकामनाओं के साथ आप सबको इस golden jubilee पर एक नये पदापर्ण के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं देते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।
बहुत-बहुत धन्‍यवाद

25 November 2017

Indian Air force contingent leaves for Israel to Participate in ‘Ex Blue Flag-17’

पहली बार इजरायल में संयुक्त युद्धाभ्यास 'ब्लू फ्लैग' में शामिल होगी भारतीय वायु सेना
Indian Air force contingent leaves for Israel to Participate in ‘Ex Blue Flag-17’
#blueflag17
A 45 member contingent of the Indian Air Force left for Israel today to participate in exercise ‘Blue Flag-17’. Blue Flag is a bi-annual multilateral exercise which aims to strengthen military cooperation amongst participating nations. Indian Air Force is participating with the C-130J special operations aircraft along with Garud commandos. The exercise would provide a platform for sharing of knowledge, combat experience and in improving operational capability of the participating nations. The exercise is being conducted at Uvda Air Force Base in Israel from 02-16 Nov 17. The team consists of personnel from various combat elements of the IAF and is led by Gp Capt Maluk Singh VSM.
This is the first time the Indian Air Force is operating with Israeli AF in a multilateral exercise setting. Exercise Blue Flag gives opportunity to the IAF to share and learn best practices with some of the best professionals from other Air Forces.
भारतीय वायु सेना ने इजरायल में होने वाले संंयुक्त युद्धाभ्यास में भाग लेने के लिए C-130J सुपर हरक्यूलिस एयरक्राफ्ट समेत अपना 45 सदस्यीय दस्ता मंगलवार को रवाना किया। भारतीय दस्ते में गरुड़ कमांडो भी शामिल हैं। भारतीय दस्ता यहां 2 से 16 नवंबर तक होने वाले बहुपक्षीय युद्धाभ्यास 'ब्लू फ्लैग-17' में भाग लेगा।
इजरायल के उवादा में होने वाले इस युद्धाभ्यास में भारत और इजरायल के अलावा अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूनान और पोलैंड भी हिस्सा लेंगे। यह पहली बार है जब भारत ने इजरायल में किसी युद्धाभ्यास में भाग लेने के लिए अपनी सैन्य टुकड़ी भेजी हो। पीएम नरेंद्र मोदी की इस साल हुए इजरायल दौरे के बाद यह टुकड़ी अभ्यास के लिए गई है।
एक अधिकारी ने बताया कि ब्लू फ्लैग एक बहुपक्षीय युद्धाभ्यास है। इसके जरिए इसमें हिस्सा लेने वाले देशों के बीच सैन्य सहयोग मजबूत करने का लक्ष्य होता है। उवादा एयर फोर्स बेस पर होने वाले इस अभ्यास में युद्ध कला की बारीकियां सीखने को मिलेंगी।
उन्होंने बताया, 'पहली भारतीय वायु सेना इजरायली वायु सेना के साथ बहुपक्षीय युद्धाभ्यास में भाग लेगी। इस युद्धाभ्यास में हमें दुनिया की बेहतरीन सेनाओं के साथ अनुभव साझा करने और सीखने का मौका मिलेगा।'

What is Nirbhay missile?

What is Nirbhay missile?
'Nirbhay', a two-stage missile, is 6-metre long, 0.52 metre wide and with a wingspan of 2.7 metre. It can carry the designated warhead at a speed of 0.6 -0.7 Mach. Its launch weight is about 1500 kg.
What is Nirbhay Missile?
On Tuesday, India successfully conducted a flight test of its state-of-the-art sleek cruise missile ‘Nirbhay’, which is capable of carrying warheads of up to 300 kg. The indigenously designed and developed long-range sub-sonic cruise missile was launched from a test range at Chandipur along the Odisha coast. Defence Research and Development Organisation (DRDO) sources told PTI that the missile was launched from a specially designed launcher from the launch complex-3 of the Integrated Test Range (ITR) at Chandipur in Odisha’s Balasore. This was the fifth experimental test of the homegrown missile system. This is a big feat for India because out of the four earlier trials ever since its debut launch in 2013, only one was successful.
How does it function?
‘Nirbhay’, a two-stage missile, is 6-metre long, 0.52 metre wide and with a wingspan of 2.7 metre. It can carry the designated warhead at a speed of 0.6 -0.7 Mach. Its launch weight is about 1500 kg.
With an operational range of 1,000 km, the missile is fueled by a solid rocket motor booster developed by the Advanced Systems Laboratory (ASL). The missile is guided by a highly-advanced inertial navigation system which is also indigenously designed and developed by the Research Centre Imarat (RCI), DRDO sources had told PTI. ‘Nirbhay’ missile can travel with a turbofan or turbojet engine. The way it functions is this: Soon after the cruise missile is able to achieve its designated altitude and velocity, the booster motor is separated and the engine automatically switches on taking further propulsion.
A DRDO scientist associated with the project told PTI that ‘mid-way in its flight, the missile’s wing opens up by commands generated by the high-tech on-board computer for stabilising the flight path’. There are ground-based radars and IAF aircraft that help track the missile’s trajectories from lift off to splash down.
What happened during earlier test flights?
The maiden test flight of ‘Nirbhay’ held on March 12, 2013 had to be terminated midway for safety reasons due to malfunction of a component. However, the second launch on October 17, 2014 was successful, he said. In the next trial conducted on October 16, 2015, the missile deviated from its path after covering 128 km. The last test flight held on December 21, 2016 had to be aborted after 700 seconds of its test flight as it deviated from its designated path. All these trials were conducted from the same base at Chandipur ITR.
Three Pune labs contributed significantly for crucial parts of Nirbhay missile
Three Pune laboratories of the DRDO played a significant role for crucial parts like initial booster, warhead and the launcher for Nirbhay missile. Pune-based High Energy Material Research Laboratory (HEMRL) has contributed for the initial booster system that launches the missile. Armament Research and Development Establishment (ARDE) helped in developing the warhead of the missile and its special launcher was designed and developed by the Research and Development Establishment (Engineers), R&DE(E) at Dighi in Pune.


CONGRATULATIONS 'Magnificent Mary' !!
Five-time world champion #MaryKom @MangteC wins #Gold medal 🏅at the #AsianBoxingChampionships beating North Korea’s #HyangMiKim in the 48 kg final #ASBC2017Women

Successful firing of Brahmos Air Launched Missile from Su-30 MKI Aircraft


Today, IAF has successfully fired the BrahMos air version anti shipping missile from its frontline Su-30 MKI fighter aircraft off the Eastern Coast. The launch from the aircraft was smooth and the missile followed the desired trajectory before directly hitting the ship target. The missile was fired by the test crew comprising Wg Cdr Prashant Nair and Wg Cdr KP Kiran Kumar. The chase aircraft was flown by Sqn Ldr Angad Pratap and Gp Capt Badrish N Athreya.
The air launched BrahMos missile is a 2.5 ton supersonic air to surface cruise missile with ranges of more than 400 kms. The IAF is the first Air Force in the world to have successfully fired an air launched 2.8 Mach surface attack missile of this category. The integration on the aircraft was very complex involving mechanical, electrical and software modifications on aircraft. The IAF was totally involved in the activity from its inception. The software development of the aircraft was undertaken by the IAF engineers while the HAL carried out mechanical and electrical modifications on aircraft. One of the major challenges overcome by scientists of RCI, DRDO in the missile development was optimization of Transfer Alignment of the inertial sensors of the missile.
The rich experience of the IAF flight test crew ensured that the integration was smooth. The dedicated and synergetic efforts of the IAF, DRDO, BAPL and HAL have proven the capability of the nation to undertake such complex integrations on its own.
The firing could be successfully undertaken with dedicated support from Indian Navy by way of ensuring availability of the target and a large number of monitoring ships to ensure range safety clearance.
The BrahMos missile provides Indian Air Force a much desired capability to strike from large stand-off ranges on any target be in sea or land with pinpoint accuracy by day or night and in all weather conditions. The capability of the missile coupled with the superlative performance of the Su-30 aircraft gives the IAF a strategic reach and allows it to dominate the ocean and the battle fields.

27 June 2017

Setting up the defence industrial ecosystem

Setting up the defence industrial ecosystem

Much will depend on how the government’s ‘strategic partnership’ model plays out on the ground\

Setting up the defence industrial ecosystem
Much will depend on how the government’s ‘strategic partnership’ model plays out on the ground
Last week was an interesting one for Indian defence manufacturing. On Monday, Tata Advanced Systems Ltd and US plane-maker Lockheed Martin Corp. signed an agreement at the Paris Air Show to produce F-16 fighter jets in India. On Tuesday, in Delhi, Reliance Defence entered into a strategic partnership with Serbia’s Yugoimport for ammunition manufacturing in India. On Wednesday, back in Paris, Reliance Defence joined hands with France’s Thales to set up a joint venture that will develop Indian capabilities in radars and high-tech airborne electronics.

In Moscow, on Friday, defence minister Arun Jaitley and his Russian counterpart signed off on a road map for strengthening bilateral military ties. Meanwhile, at home in India, the army rejected, for the second year in a row, an indigenously-built assault rifle after it failed field tests—a pointed reminder of how the country’s sub-par defence industry continues to damage the military’s operational preparedness.

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For the most part, India has sought to make up for that failing at home with imports from abroad. Between 2012 and 2016, India was the world’s largest importer of major arms, accounting for 13% of the global total and increasing its arms imports by 43% from the 2007-11 period, according to the Stockholm International Peace Research Institute (Sipri).

That being said, in recent years there has been a greater focus on developing indigenous capabilities through technology transfers and joint production projects with international partners. The Narendra Modi government has also put defence at the core of its flagship domestic manufacturing programme, Make in India. It has opened up the still largely state-run sector to private players and foreign firms in an effort to build a “defence industrial ecosystem” that will not only support the country’s military requirements but also emerge as an important economic lever—generating exports, creating jobs, and spurring innovation.

The target is to source about 70% of India’s military needs from domestic sources by 2020. This is an ambitious plan—that’s approximately how much India imports at the moment—but it is one that has been in the works for quite some time now. Notably, the defence manufacturing industry has been open to the private sector for well over a decade, and several foreign firms are involved in the joint production of weapons systems in India.

Yet the defence industrial ecosystem hasn’t quite taken off. The Indian military is still heavily reliant on foreign imports and state-owned defence firms are still the dominant force in the market. Private firms, though growing in number, have struggled to find their feet. It is too early to say if the incumbent administration’s efforts will bring better results, but much will depend on how its “strategic partnership” model, released late May, plays out on the ground.

Conceptualized by the Dhirendra Singh committee in 2015, this model has the defence ministry identifying a few Indian private companies as strategic partners (SPs) to tie up with a few foreign original equipment manufacturers to produce some big-ticket military platforms. In the process, the SPs are expected to help catalyse the country’s defence industrial ecosystem. This has already led to some concern about the ministry of defence (MoD), often criticized for not offering a level playing field to the private sector, picking favourites.


As Laxman Behera from the Institute for Defence Studies and Analyses (Idsa) notes, “Time and again, the MoD has deviated from its own promise of fair play in award of contracts and handed over large orders to DPSUs (defence public sector undertakings) and OFs (ordnance factories) on nomination”.

Moreover, the MoD also prohibits its strategic partners from working in more than one segment. This is supposed to ensure that the SPs keep their focus but, as Richard Heald at the UK India Business Council points out, this “ring-fencing of six strategic platforms” is problematic because “many of the six named domestic champions have already invested in defence verticals that may be different from those they are selected to focus on. Then, questions are being raised as to whether mechanisms will be put in place to achieve ‘value for money’ once the sector has been awarded to a strategic partner on an exclusive basis”.

Yet another issue is that of how small and medium-scale enterprises (SMEs) will respond to this model. SMEs are crucial to building a vibrant and robust ecosystem. In particular, they do a much better job of absorbing, developing and commercializing niche technology, which is key in the defence sector. But while the government acknowledges their role and importance, it is unclear if its policy supports that vision.

Outside of policy design, the biggest challenge to developing India’s defence industry ecosystem is undoubtedly human resource and skill development. The Dhirendra Singh committee report deals with this issue at length, noting that “India at present does not have a structured framework and a robust system to prepare its human resources to address all issues connected with building and sustaining defence systems”. The report recommends several measures to bridge this skills gap—from changes to academic curriculum to setting up institutions that specialize in defence and security to raising a new generation of system integration managers. The government must consider these carefully.

How do you think India can build its defence industrial ecosystem?

22 May 2017

Designing cybersecurity for the financial sector

Designing cybersecurity for the financial sector

There is no dearth of regulatory intervention at present to secure India’s financial ecosystem, and more of the same need not necessarily lead to better outcomes
The most recent ransomware attacks, currently estimated to have locked up more than 100,000 computers across 100 countries, yet again highlights the very real peril of cyber-threats in the virtual world. The Mirai botnet’s distributed denial of service attacks last year, soon followed by BrickerBot’s permanent incapacitation of several devices forming part of the Internet of Things, exposed the vulnerabilities of a world where everything from room heaters to wearable fitness trackers is connected. Attacks of this kind have proved themselves capable of even imperilling national security, economic stability and public health.
The critical information infrastructure rules framed in 2013 under the Information Technology Act, 2000, identified banking, financial services and insurance (BFSI) as one among five critical sectors. Yet, the past years have seen an increasing number of large-scale cyber-attacks in this sector. About 3.2 million debit cards were compromised last year through a hack on Hitachi’s ATM switch server. Phishers assumed the Reserve Bank of India’s (RBI’s) identity to hoodwink a gullible staffer in the Union Bank of India and inject malware into the bank’s servers. The $171 million, transferred through unlawful access to the bank’s SWIFT codes for cross-border transactions, was fortunately rolled back due to early detection. At a lesser level of sophistication, software vulnerabilities in the Bank of Maharashtra’s Unified Payment Interface app were recently exploited to complete digital transactions even when there was insufficient balance in the sender’s account.
These attacks, coupled with the exponential growth of fintech platforms and solutions partly fuelled by the demonetisation exercise, underscore the need for strong cybersecurity initiatives. In this regard, Union finance minister Arun Jaitley’s budget speech this year, which announced the formation of a sectoral Computer Emergency Response Team for Finance (Cert-Fin), merits closer scrutiny. The design and approach of this newly proposed body is central to its success. There is no dearth of regulatory intervention at present to secure India’s financial ecosystem, and more of the same need not necessarily lead to positive outcomes.
To quickly take stock, RBI circulars have identified the key features of an optimal cybersecurity framework for banks, including network management, user access, customer authentication, and incident response and management. Similarly, the Securities and Exchange Board of India (Sebi) and the Insurance Regulatory and Development Authority of India (Irdai) have issued guidelines for strengthening the cybersecurity framework in capital markets and insurance, respectively. The Indian Computer Emergency Response Team (Icert) continues performing its statutory mandate—information sharing and management, cybersecurity alerts, emergency responses, etc.—on a non-sectoral basis. Even assuming Cert-Fin entirely replaces Icert as the cyber-warrior for the BFSI sector, can it add real value over and beyond what sectoral regulators such as RBI, Sebi and Irdai are already addressing? Or would it just be an additional layer of compliance and friction for innovators in the fast-changing fintech landscape?
We believe there are gaps in the cybersecurity framework that an appropriately designed Cert-Fin can still address better than the existing framework. Broadly these are in the areas of research, talent-building and industry-academia coordination; digital literacy; and better information flows between various actors in the security ecosystem.
Without undermining Icert’s vigilance thus far in issuing timely advisories, it is clear that the body has been unable to take leadership in knowledge creation. The white papers and other research material it has managed to put out are mostly outdated and fail to keep pace with current security trends.
A body built on the foundational principle of shared responsibility with a larger body of stakeholders, including banks, fintech start-ups, cybersecurity companies, and academic institutions, is better placed to effectively fund advanced research and even incubate cybersecurity solutions on a co-creation basis. The Biotechnology Industry Research Assistance Council serves as a good precedent.
Cert-Fin should also have a valued say in the revamping of engineering course curriculum to mitigate the existing skills and supply gap for cybersecurity professionals. The financial sector, with its growth potential highly dependent on the presence of security and trust, is a prime candidate for both skilling and hiring new talent.
Another key intervention, without which any security measure at the service provider end remains likely to fall short, is digital literacy and cybersecurity awareness for customers. Apart from taking the lead, Cert-Fin should also be vested with powers to mandate and evaluate on-the-ground initiatives by private players towards educating end users on safe and responsible access practices. Many a hack has been caused by poor password security.
Finally, Cert-Fin must serve the function of a data escrow, taking important decisions on real-time data sharing and ideally veering towards more information flows than less. A common trend today is the denial of responsibility by all actors in the security chain as soon as news of a hack breaks out. Only a well-designed Cert-Fin can prevent this attitude from regressing into a collective action problem. Suitable exceptions to the law of evidence must also be fashioned to encourage maximum information disclosure to the Cert-Fin.
If these normative goals are sought to be achieved by building them into the very design of Cert-Fin, it could hopefully serve as a healthy template for other jurisdictions too, in addition to facilitating the transition to a digital India for financial transactions.

Maoist war: For the right cause in a wrong manner

Maoist war: For the right cause in a wrong manner

Fifty years into the violent Maoist uprising of Naxalbari, which milestones has the red revolution crossed?
One morning, while going to school in Allahabad, I read a slogan in Bengali reading: Aamar badi, tomar badi, Naxalbari Naxalbari. It means, “my home, your home, Naxalbari.” Many years later, while passing through Almora, I again noticed slogans propagating the message of rebellion. What was common both times was the symbol of hammer and sickle next to the slogans. A question came to my mind: Down the generations, which milestones has the Maoist revolution crossed?
It is the right time to discuss this subject because 25 May will commemorate 50 years of the violent Maoist uprising of Naxalbari.
Let me inform the younger generations that during a meeting in West Bengal’s Naxalbari area in March 1967, a decision was taken to embark on an armed rebellion in order to bring in a regime that would uphold the rights of peasants and workers. The brain behind this rebellion was Charu Mazumdar. On 23 May, during a meeting called with this objective, the police and the revolutionaries clashed. A policeman was killed in the violence. This was just the beginning of the turmoil.

Two days later, on 25 May, the police laid siege to a mammoth farmers’ gathering in which nine women and children lost their lives. Jyoti Basu, who was the state’s home minister those days, asked the police to strictly carry out the orders.
Earlier this month, after the killing of 26 Central Reserve Police Force (CRPF) personnel on 24 April, some people thought the Maoist movement was still going strong. But the truth is that the movement, which began in the name of fighting exploitation, has lost its way. On 17 March 2017, Union home minister Rajnath Singh told the Lok Sabha that the number of districts affected by Maoist violence had reduced from 106 to 68. Before that, its influence was spread over 20,000 sq km. It has now shrunk to one-fourth of this. It has been an incremental decline over the years. In 2009, the then home minister told Parliament that around 223 districts of the country were affected by Maoist violence. In 2011, this number stood at 203. Of these, 84 districts were witnessing violence and 119 districts were influenced by Maoist ideology. Three years later, 80% of Maoist-related violence was taking place in only 26 districts. Still, seven states of the nation were affected. At present, just six districts are said to be extremely affected by Maoist depredations.
Some experts give the credit for this to Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Act. Also, some state governments assisted by the Central government paid attention to development, along with launching anti-terror operations.

Maoists appear to oppose all kinds of development work. Apart from inflicting damage on all projects carried out by the government machinery, they consider roads to be their greatest enemy. The CRPF personnel attacked in Sukma were supervising road construction.
The way the imperial Roman armies did it, Maoists, too abduct innocent children. The Romans used to train children to be gladiators even as Maoists glorify them by anointing them “soldiers of the people’s revolution”. Those innocent children, who are oblivious to the theories of “people’s awakening” and “people’s war”, are made to indulge in violence and carry out spying work. Beating up people, in a way, is part of the training regime of Naxalites. The boy who first participates in a massacre is applauded. The advocates of a violent struggle provoke these children to become bloodthirsty: If you don’t have the instinct to kill enemies of the class, then you are not fit for the movement, they are told.
No wonder the number of comrades disenchanted by this movement is rising. If 394 Maoist extremists surrendered in 2011, the number rose to 1,442 in 2016. Similarly, 1,840 people associated with Maoist organizations were arrested last year.

A surrendered Maoist militant told the police that he wanted to get married, have children and lead a normal life. He said his dreams had been shattered and he was disillusioned by the leadership. Just this month two area commanders have given up arms. This is the other face of the Maoist slogan: Jal, jangal, zameen, izzat aur adhikaar (Water, forests, land, respect and rights).
That is the logic which gives peaceniks the assurance that despite Sukma-like attacks, violence is the last stop in a one-way street. Why don’t the Maoist guerrillas understand that they are waging a war for the right cause in a wrong manner?

4 May 2017

India’s dominance in Indian Ocean is intact

India’s dominance in Indian Ocean is intact

India does not have to match China in the number game. The former has the geographical advantage
China recently launched its first indigenous aircraft carrier. Construction of the 70,000 tonne Type 001A carrier which may be named Shandong started in 2013 and it is likely to be commissioned in 2020. It will be China’s second carrier after it commissioned a modified Ukrainian Kuznetsov class aircraft cruiser Varyag into its navy as Liaoning in 2012.
Many Indian commentators have written about the implication of China acquiring its second aircraft carrier on India’s security. A column in Bloomberg View said the Shandong “will give China an edge for the first time in the carrier race with its Asian rival, a literal two-to-one advantage”. The premise is wrong on various counts.
First, China’s existing carrier, the Liaoning, is being used to train the crew to operate aircraft carriers and is not on operational deployment yet. Compare this with India’s aircraft carrier: The INS Vikramaditya is fully operational. And India also has decades of experience in operating aircraft carriers, it has used them in warfare.
Second, the Shandong has only been launched, it doesn’t mean it’s ready for operational deployment. It will undergo outfitting with various systems and then undergo sea trials before being commissioned around 2020. India launched its first indigenous carrier, Vikrant, in 2013 and it is likely to be commissioned in the early 2020s after delays for various reasons.
Imagery expert Colonel Vinayak Bhat, who analysed the pictures of the Shandong, says it is at least two years away from commissioning. He says that the engines of the carrier have not yet been started and no radar or weapons installed. It also does not have the arrestor cables and the pictures suggest a lot of areas being covered up where work probably has not been completed, such as the ammunition elevator and jet blast deflectors. Moreover, they don’t have enough J-15 fighter jets for the carrier.
Third, even after China commissions the Shandong, it will not send both its carriers on permanent deployment in the Indian Ocean. China’s primary areas of interest are the hotly contested waters and islands of the East and South China Sea. The US maintains a potent naval presence in the area. China will maintain both its carriers there although it will make symbolic port visits in the Indian Ocean region especially to Gwadar in Pakistan.
China plans a four- to six-carrier navy which will give it the capability to permanently deploy in the Indian Ocean. But that will take a couple of decades at best and depends on the trajectory of the Chinese economy, which is slowing down. By that time, India will have three aircraft carriers in service.
Fourth, the two Chinese carriers are conventionally powered, not nuclear, which means they cannot be put on extended deployment. They lack the logistics capability to operate far away from Chinese shores.
Fifth, China has to contend with India’s two unsinkable aircraft carriers: the Andaman and Nicobar Islands located close to the choke point of Malacca Strait and the Indian mainland itself which juts into the Indian Ocean. The Andamans has India’s only tri-services command and there are plans to beef up military presence there. India will be able to target PLAN (People’s Liberation Army Navy) warships and interdict supplies using land-based assets like aircraft and missiles. India has deployed its premier fighter aircraft, the Su-30MKI, in the Andamans and also in southern India.
To break India’s dominance in the Indian Ocean, China has invested in a number of port projects in India’s neighbourhood, referred to as string of pearls. All of them, including China’s expected naval base in Gwadar in Pakistan, are within range of India’s land-based fighters and missiles.
Finally, India does not have to match China in the numbers game. The former has the geographical advantage. With over 40 warships under construction, it will have nearly 200 warships by 2025. China has to contend with multiple naval powers in its core areas of interest. The US navy looms large. Japan has a powerful navy with advanced warships and submarines. It recently commissioned its second helicopter carrier, which could carry the F-35B stealth fighter. South Korea has a potent navy and Vietnam has acquired Russian Kilo-class submarines to counter the mightier Chinese navy.
India has multinational cooperation in the maritime domain primarily with the US and Japan. India and the US share information on China’s maritime movements and train extensively during Exercise Malabar. India’s chief of naval staff has said that India has plans in place for China’s naval presence in Gwadar.
India has to prepare for any Chinese threat. It should beef up its air defence and land-based anti-ship missiles in the Andaman and Nicobar Islands as well as peninsular India. Stationing the S-400 surface-to-air missile system that India plans to acquire in the Andamans will cover 500,000 sq. km of airspace over the Bay of Bengal. All major Indian warships are being equipped with Barak 8 long-range surface-to-air missiles along with the supersonic Brahmos anti-ship cruise missiles. India is going to acquire nuclear and diesel-electric attack submarines. While there are delays in the acquisition process, there is no need to panic as the Chinese dragon will not be in a position to breathe fire on India in the Indian Ocean anytime soon.
Yusuf Unjhawala is editor of Defence Forum India and a commentator on defence and strategic affairs.

8 April 2017

What is Tomahawk Land Attack Missile?

What is Tomahawk Land Attack Missile?
The Tomahawk Land Attack Missiles (TLAM) was used by the United States to attack a Syrian airfield on Friday.
The Tomahawk Land Attack Missiles (TLAM) used by the United States to attack a Syrian airfield are all-weather, long range, subsonic cruise missiles. They are used primarily for land attack warfare and launched from ships as well as submarines. Depending on the variant their range could be between 1500 km and 2500 km.
The Tomahawk missiles can carry both nuclear and conventional payloads. For instance, the conventional, land-attack, variant can have a 1,000-pound-class warhead while the submunitions dispenser variant could hold 166 combined-effects bomblets.
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Designed to fly at very low altitudes at subsonic speeds, these missiles use mission tailored guidance systems to evade detection. Deployed first for the 1991 Operation Desert Storm, the missile has been used in several conflicts since.
In 1995, UK became the first foreign country to acquire 65 of these missiles.
Built by Raytheon Systems Company the Tomahawk missiles have been in existence since 1984, with variants in 1994 and 2004. Each unit costs nearly $569,000 and propelled by Williams International F107 cruise turbo-fan engine. They are between 5.56 and 6.25 meters long with a 51.81 cm diameter and 2.67 meters wingspan. They weigh between 1,315.44 kg and 1,587.6 kg depending on the payload. The missiles can hit speeds of up to 880 km/h and have a maximum range of 2500 km.
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The Tomahawk Block IV (TLAM-E), the latest version of the missile, comes with “increased flexibility utilising two-way satellite communications to reprogram the missile in-flight”, option to change mission en route and live missile health and status messages during the flight. They also offer faster launch timelines, mission planning capability on the launch platform as well as the ability to loiter in the target area before striking.

18 March 2017

Counter-Terrorism Conference

Union Home Minister’s speech at Counter-Terrorism Conference
Following is the text of the speech delivered by the Union Home Minister Shri Rajnath Singh at the Counter Terrorism Conference organized here today:
“मैं, देश के सामने उत्‍पन्‍न चुनौतियों और अवसरों पर अपने स्‍वतंत्र विश्‍लेषण के लिए India Foundation द्वारा 3rd Counter-Terrorism Conference-2017 के आयोजन पर आप सभी को हार्दिक बधाई देता हूँ ।
विश्‍व के ज्‍वलंत और समसामयिक मुद्दों पर देश में जागरूकता फैलाने का आपका यह कार्य सराहनीय है।
India Foundation ने हाल के कुछ वर्षों में देश ही नहीं अपितु समग्र विश्‍व के लिए खतरा बन चुके आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दे पर चर्चा की शुरूआत की। आपका यह सफर वर्ष 2015 में Pink City जयपुर से शुरू होकर आज 3rd Counter Terrorism Conference, दिल्‍ली तक पहुंच गया है। मैं, इस पहल के लिए आपका धन्‍यवाद करता हूँ।
इस Conference में चर्चा का विषय ‘TERRORISM IN THE INDIAN OCEAN REGION रहा है। इस महत्‍वपूर्ण विषय पर भारत ही नहीं बल्कि अन्‍य देशों से पधारे Counter Terror Strategy Specialists के बीच आपसी विचार-विमर्श हुआ। मेरा विश्‍वास है कि इस सेमिनार में शामिल policy makers और security experts द्वारा OCEAN BORDERS SECURITY से संबंधित विभिन्‍न विषयों पर  विचार-विमर्श से आतंकवाद जैसे गंभीर वैश्विक-संकट से निपटने के लिए बहुआयामी विधाओं का सृजन हुआ होगा।
भौगोलिक रूप से, भारत एक दिशा में हिमालय की पर्वत श्रेणियों और तीन दिशाओं में समुद्री क्षेत्र से घिरा है जिनमें Bay of Bengal, Indian Ocean और Arabian Sea सहित 7516.6 किलोमीटर लंबी Maritime Boundary है। इन तीनों समुद्री क्षेत्रों में Indian Ocean दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा समुद्रीय क्षेत्र है।
विश्‍व की आबादी का लगभग 1/3 भाग IOR में है, जिसमें 25% landmass, 40% energy resources हैं और यह विश्‍व के अति महत्‍वपूर्ण 50% Container traffic movement में support करता है।
 Indian Ocean के किनारे अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण तेल व गैस भंडारों और Global Trade में लगभग 30 प्रतिशत माल आवाजाही के कारण भारतीय महासागरीय क्षेत्र (IOR) का व्‍यापक global strategic महत्‍व है। Indian Ocean Region (IOR) में East-Western Maritime Trade Corridor मुख्‍यत: Hormuz, Bab-el-Mandeb (West) Straits, Malacca Straits (East) जैसे महत्‍वपूर्ण स्‍थलों से गुजरता है। इन स्‍थलों से विश्‍व के 60 प्रतिशत तेल का आवागमन होने के कारण, ये विशेष संवेदनशील हैं।
भारत के व्‍यापार का 90 प्रतिशत तथा ऊर्जा आवश्‍यकता का 70 प्रतिशत का परिवहन Indian Ocean के माध्‍यम से होता है, जिसके लिए कच्‍चे माल एवं तेल आपूर्ति जैसे महत्‍वपूर्ण सामानों को लाने ले जाने के लिए प्रतिवर्ष 40 हजार से अधिक जहाज आते-जाते हैं। इसलिए इस समुद्री मार्ग की safety एवं security भारत के लिए सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण है।
पांच दशकों से अधिक समय से विश्‍व-भर में Anti-Castro rebels, पुर्तगाली, अंगोलियाई, फिलिस्तीनी, श्रीलंकाई तमिल, फिलिपिनों एवं आइरिश विद्रोहियों तथा अलकायदा व लश्‍कर-ए-तैय्यबा जैसे कई rebel और terrorist groups द्वारा किए गए विभिन्‍न प्रकार के Maritime Terrorism का प्रभाव देखा गया है।

वर्ष 2002 में फ्रांसीसी टैंकर पर हमला और अक्‍तूबर, 2007 में USS Cole पर अलकायदा का हमला जैसी अनेक प्रमुख आतंकवादी घटनाएं हाल ही के कुछ वर्षों में Indian Ocean Region में घटित हुई हैं।
इसके अलावा हमने भी sea-routes से किए जा रहे terrorist attacks को झेला है फिर चाहे वह 12 मार्च, 1993 को मुंबई में श्रृंखलाबद्ध बम-धमाकों की बात हो जिसमें उपयोग किया जाने वाला explosives एवं ammunition को गुजरात एवं महाराष्‍ट्र तक Sea-routes से ही भेजा गया था या 26/11/2008 की घटना हो जिसे मुंबई में पाकिस्‍तान  प्रशिक्षित आतंकवादियों ने अंजाम दिया।  
समु्द्री मार्गों का प्रयोग कर LeT द्वारा अपने कॉडरों की घुसपैठ कराने के संबंध में लगातार इनपुट मिलते रहे हैं। Extremist terror group Islamic State of Iraq और Syria (ISIS) के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण West Asia और North Africa (WANA) के निकटवर्ती जल-क्षेत्रों में maritime terrorism की संभावना से इन्‍कार नहीं किया जा सकता।
Horn of Africa के पास से organized piracy activities प्राथमिक रूप से सोमालिया एवं Gulf of Aden के आस-पास के क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं और Arabian Peninsula में Al-Qaeda (AQ-AP) की गतिविधियों से प्रेरित होकर ISIS अपने गढ़ यमन में maritime risk बन सकते हैं। International Targets पर हमला करने के उद्देश्‍य से AQ-AP Gulf of Aden के उस पार अल-सह-बाब जैसे संगठनों से अपने संपर्क बढ़ाने का प्रयास कर सकता है। 
मैं आपको बताना चाहता हूँ कि Coastal security के संबंध में भारत बिलकुल सतर्क है एवं भारत सरकार ने देश की Coastal security को और अधिक सुदृढ़ करने और खतरों व खामियों के continuously review के लिए effective mechanism की स्‍थापना के साथ-साथ अन्‍य  Comprehensive Measures किए हैं।
Indian Ocean से भारत सहित 36 देशों की तटीय सीमाएं लगी हुई है। समुद्री रास्‍तों से व्‍यापार व अन्‍य आर्थिक गतिविधियों को सुरक्षित और सुविधाजनक बनाने तथा maritime domains की safety और protection सुनिश्चित करने के लिए भारत सहित इस क्षेत्र के देशों को एक साथ मिलकर काम करने की आवश्‍यकता है:-
इसके लिए सबसे पहले United Nations Organization द्वारा आतंकवाद की comprehensive definition को स्‍वीकार करने की आवश्‍यकता है और ऐसे देश, जो इस परिभाषा की परिधि का उल्‍लंघन करते हैं, को यदि आवश्‍यक हो तो दंडित किया जाए और ostracized भी किया जाए।
आतंकवाद की Comprehensive definition में State Support Groups को भी शामिल किया जाए। ऐसे देश जो लगातार सक्रिय रूप से ऐसे समूहों को समर्थन दे रहे हैं, एवं प्रायोजित कर रहे हैं उन्‍हें United Nations द्वारा स्‍वीकार किए गए इस Comprehensive definition की परिधि में लाया जाए।
State Sponsored Terrorism’ की पहचान एवं उसे अलग-थलग करने में असफल रहना निश्‍चय ही ऐसे समूहों के लिए सबसे महत्‍वपूर्ण encouraging factor होंगे जो ऐसे राज्‍यों से समर्थन प्राप्‍त करते रहे हैं।
Ocean Region में आतंकवाद पर सहयोग को केवल सम्‍मेलन तथा अन्‍य कार्यक्रम का आयोजन अथवा इस पर केवल बयानबाजी तक ही सीमित नहीं होना चाहिए।
इसके बजाय, concrete measures किए जाने एवं strong mechanism स्‍थापित करने की आवश्‍यकता है, जिसके माध्‍यम से सहयोगी देशों एवं क्षेत्रों के बीच information का constant flow संभव हो सके।
जैसा कि आप सभी अवगत होंगे इस दिशा में आगे बढ़ते हुए Indian Ocean क्षेत्र में आतंकवाद से लड़ने के लिए Indian Ocean Rim Association (IORA) द्वारा कुछ दिनों पहले जकार्ता में प्रथम शिखर सम्‍मेलन का आयोजन किया गया। Indian Ocean क्षेत्र के सभी    36 देशों में से 21 देश इस Association में शामिल हुए है। अमेरिका, चीन, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और मिस्र इस संघ के वार्ता साझेदार है। इस शिखर सम्‍मेलन में भारत की ओर से हमारे देश के उप-राष्‍ट्रपति महोदय ने भाग लिया, जिसमें उन्‍होंने स्‍पष्‍ट किया कि State Sponsored Terrorism को किसी भी रूप स्‍वीकार नहीं किया जाना चाहिए तथा आतंकवाद को बढ़ावा देने और उसे आर्थिक प्रश्रय प्रदान करने वाले राष्‍ट्रों को अलग-थलग किए जाने की आवश्‍यकता है।
Indian Ocean Region बहुत व्‍यापक है। Aerial Satellite तथा Communication monitoring द्वारा technical competence को बढ़ाए जाने की आवश्‍यकता है। किसी जहाज या Craft, जिसको Hijack किया गया या आतंकवादी समूहों द्वारा उपयोग किया जा रहा है, की सैटेलाइट के माध्‍यम से निगरानी की जा सकती है और उसके सही ठिकाने को ढूंढा जा सकता है।
Indian Ocean region में piracy की स्थिति के कारण आतंकवाद का मुद्दा जटिल हो सकता है। Piracy activities को कुछ हद तक नियंत्रित किया गया है, फिर भी ये उन कारणों से सिर उठा सकते हैं, जिनका समाधान नहीं किया जा सका है।

यहाँ यह उल्‍लेख करना महत्‍वपूर्ण है कि विगत समय में कुछ आतंकवादी संगठनों द्वारा आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देने के लिए pirates के इस्‍तेमाल की कोशिश भी की जा चुकी है।
Sea robbers को नियंत्रित करने में एक और महत्‍वपूर्ण उपाय ‘Floating Armories’ का उपयोग किया जाना है। इन ‘’Floating Armories’’ को मुख्‍य रूप से सोमा‍लिया तट पर marine naval crafts की sea pirates से रक्षा के लिए तैयार किया गया है।  
विश्‍व के लगभग 90% सामान का आवागमन Cargo Containers के माध्‍यम से किया जाता है। इन Containers को आतंकवादियों द्वारा use किए जाने की संभावना है। इसलिए international shipping की संवेदनशीलता जाँच के दायरे में आ गई है। अकेले भारत में ही हमारे Containers  बन्‍दरगाहों द्वारा वर्ष 2015-16 में लगभग 12 मिलियन Ton Equivalent Units की handling की गई है।

Container Security की परिकल्‍पना multi-phased परियोजना के रूप में की गई है। जो USA  की container security initiative पर आधारित है।
      इन तथ्‍यों को ध्‍यान में रखते हुए हमें thoroughly debate एवं discussion करना है तथा अपने लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने के लिए time-bound implementation हेतु कार्य-योजना बनानी है।
मैं अपने देश की विभिन्‍न सुरक्षा एजेंसियों से भी कहना चाहूँगा कि एक-दूसरे के साथ synergy और better inter operability कायम करना सबसे ज्‍़यादा महत्‍वपूर्ण है। हमारी यह भी कोशिश बनी रहेगी कि हम उन स्थितियों से कारगर ढ़ंग से निपटें, जो आतंक को फैलाने में मदद करती हैं। आज हमें आतंकवादियों के इन परिस्थितियों का इस्तेमाल करने से रोकने और उनका डटकर मुकाबला करने की भी जरूरत है। हमें आतंकवाद का कारगर ढ़ंग से मुकाबला करने के लिए first responders की Anti-Terrorism Capacity को और सशक्‍त करने की जरूरत है।
एक बार फिर India Foundation को इस कार्यक्रम का आयोजन करने के लिए बधाई देता हूँ। इस conference में Indian Ocean को सुरक्षित बनाने के लिए राष्‍ट्र-प्रमुखों, बुद्ध‍जीवियों और विचारकों, सेना और पुलिस के सुरक्षा‍ विशेषज्ञों द्वारा अपने अनुभव और ज्ञान को साझा किया गया। मुझे यह विश्‍वास है कि नीति-निर्माताओं और सुरक्षा एजेन्सियों द्वारा इनके अनुभव और ज्ञान का समुचित रूप से उपयोग किया जाएगा। हम मैत्रीपूर्ण देशों के प्रतिभागियों और विभिन्‍न गणमान्‍य व्‍यक्तियों को भी यह भरोसा दिलाना चाहेंगे कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय के साथ दृढ़ता से खड़ा है।

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