6 January 2018

INS Kalvari: All you need to know about navy’s first Scorpene submarine

INS Kalvari: All you need to know about navy’s first Scorpene submarine
Kalvari is named after the dreaded Tiger Shark, a deadly deep sea predator of the Indian Ocean
The first of a six scorpene submarine, Kalvari, was on Thursday handed over to the Indian Navy for its commissioning.
Kalvari is named after the dreaded Tiger Shark, a deadly deep sea predator of the Indian Ocean. The navy is betting on the ‘Make in India’ Scorpene project to sharpen its underwater attack capabilities.
Here’s all you need to know about the submarine:
The project
Kalvari was built indigenously under a venture called Project 75, at Mumbai’s Mazagon Docks. Under this project, the Indian Navy was authorised to build six submarines in collaboration with French firm DCNS at a cost of around Rs 350 crore.
Construction of the first submarine had started on May 23, 2009 and the project ended way behind schedule.
Features and stealth
Kalvari can carry 18 torpedoes and travel 1,020km underwater. The 66-metre submarine can dive up to a depth of 300 metres to elude enemy detection.
It has superior stealth and the ability to launch crippling attacks on the enemy with precision-guided weapons. The attack can be carried out with torpedoes as well as tube-launched anti-ship missiles underwater or from the surface.
This Scorpene submarine is designed to operate in all theatres of war, including the tropics. Kalvari is capable of handling various missions such as anti-surface warfare (attacking surface ships), anti-submarine warfare (destroying submarines), intelligence gathering, mine-laying and area surveillance.
Maiden sea trial of INS Kalvari. (Indian Navy website)
The Kalvari was built with a special kind of high-tensile steel that is capable of withstanding high yield stress. This feature allows it to withstand pressure exerted by water, hydrostatic force, while diving deeper to enhance stealth.
It is also capable of carrying weapons that can be easily reloaded at sea.
‘Reincarnation’ of first Kalvari
In keeping with the India’s’ mythologies and naval tradition, the Kalvari is a ‘reincarnation’ of the first Indian submarine to be commissioned into the Indian Navy on December 8, 1967. The previous Kalvari served for nearly three decades, before being decommissioned in May 1996.
“In true nautical tradition, she will now be reincarnated, by Mazagon Dock, once again a powerful predator of the deep, guarding the vast maritime interests of our nation,” the navy said.
Other Scorpene submarines
The second of the Scorpenes under construction, Khanderi, was launched in January 2017 and it is currently undergoing rigorous phase of sea trials. The third Scorpene, Karanj, is being readied for launch later this year.
The remaining submarines are likely to be delivered to the navy by 2020.
India’s submarine fleet
The Indian fleet consists of Russian Kilo-class and German HDW class 209 submarines. Limited serviceability is also an issue -- not all these boats are battle ready at any given point of time.
India’s sub-sea warfare capability pales in front of China’s. The Communist neighbour operates 53 diesel-electric attack submarines, five nuclear attack submarines and four nuclear ballistic missile submarines.
Text of PM’s address at the commissioning ceremony of naval submarine INS Kalvari at Mumbai
आज सवा सौ करोड़ भारतीयों के लिए यह गौरव से भरा हुआ एक महत्‍वपूर्ण दिवस है। मैं सभी देशवासियों को इस ऐतिहासिक उपलब्धि पर बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
INS कलवरी पनडुब्बी को राष्ट्र को समर्पित करना, मेरे लिए एक बहुत ही सौभाग्य का अवसर है।
मैं देश की जनता की तरफ से भारतीय नौसेना को भी अनेक-अनेक शुभकामनाएं अर्पित करता हूं।
करीब दो दशक के अंतराल के बाद, भारत को इस तरह की पनडुब्बी मिल रही है।
नौसेना के बेड़े में कलवरी का जुड़ना रक्षा क्षेत्र में हमारी तरफ से उठाया गया एक बहुत बड़ा कदम है। इसे बनाने में भारतीयों का पसीना लगा है, भारतीयों की शक्ति लगी है। ये Make In India का उत्तम उदाहरण है।
मैं कलवरी के निर्माण से जुड़े हर श्रमिक, हर कर्मचारी का आज भी हार्दिक अभिनंदन करता हूं। कलवरी के निर्माण में सहयोग के लिए मैं फ्रांस को भी बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं।
ये पनडुब्बी भारत और फ्रांस की तेजी से बढ़ती स्ट्रैटेजिक पार्टनर-शिप का भी एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
साथियों, ये वर्ष भारतीय नौसेना की सबमरीन आर्म का स्वर्ण जयंती वर्ष है। अभी पिछले हफ्ते ही सबमरीन आर्म को प्रेसिडेंट्स कलर से सम्मानित किया गया है। कलवरी की शक्ति, या कहें टाइगर शार्क की शक्ति हमारी भारतीय नौसेना को और मजबूत करेगी।
साथियों, भारत की सामुद्रिक परंपरा का इतिहास बहुत ही पुराना है। पाँच हजार साल पुराना, गुजरात का लोथल, दुनिया के शुरुआती sea-ports में से एक रहा है। इतिहासकार बताते हैं कि 84 देशों से व्यापार के लोथल के जरिए हुआ करता था। एशिया के अन्य देशों और अफ्रीका तक में हमारे संबंध समंदर की इन्हीं लहरों से होते हुए आगे बढ़े हैं। सिर्फ व्यापार ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक तौर पर भी हिंद महासागर ने हमें दुनिया के दूसरे देशों के साथ जोड़ा है, उनके साथ खड़े होने में हमारी मदद की है।
हिंद महासागर ने भारत के इतिहास को गढ़ा है और अब वो भारत के वर्तमान को और मजबूती दे रहा है। 7500 किलोमीटर से ज्यादा लंबा हमारा समुद्री तट, 1300 के करीब छोटे-बड़े द्वीप, लगभग 25 लाख स्क्वायर किलोमीटर की Exclusive Economic Zone एक ऐसी सामुद्रिक शक्ति का निर्माण करते हैं, जिसका कोई मुकाबला नहीं है। हिंद महासागर सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ये महासागर दुनिया के दो तिहाई Oil Shipments, दुनिया के एक तिहाई Bulk कार्गो और दुनिया के आधा Container Traffic का भार वहन करता है। इससे होकर गुजरने वाला तीन-चौथाई Traffic दुनिया के दूसरे हिस्सों में जाता है। इसमें उठने वाली लहरें दुनिया के
40 देशों और 40 प्रतिशत जनसंख्या तक पहुंचती हैं।
साथियों, कहा जाता है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है। ये भी तय है कि 21वीं सदी के विकास का रास्ता हिंद महासागर से होकर के ही निकलेगा। और इसलिए हिंद महासागर की हमारी सरकार की नीतियों में एक विशेष उसका स्‍थान है, विशेष जगह है। ये अप्रोच, हमारे विजन में झलकती है। मैं इसे एक स्पेशल नाम से भी उल्‍लेख करता हूं- S. A. G. A. R.- “सागर” अगर मैं सागर कहता हूं। यानि कि सेक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन। “सागर” हम हिंद महासागर में अपने वैश्विक, सामरिक और आर्थिक हितों को लेकर पूरी तरह सजग हैं, सतर्क हैं और इसलिए भारत की Modern और Multi-Dimensional नौसेना को पूरे क्षेत्र में शांति के लिए, स्थायित्व के लिए आगे बढ़कर के नेतृत्व कर रही है। जिस तरह भारत की राजनीतिक और आर्थिक Maritime Partnership बढ़ रही है, क्षेत्रीय Frame-work को मजबूत किया जा रहा है, उससे इस लक्ष्य की प्राप्ति और आसान नजर आती है।
साथियों, समुद्र में निहित शक्तियां हमें राष्ट्र निर्माँण के लिए आर्थिक शक्ति प्रदान करती हैं और इसलिए भारत उन चुनौतियों को लेकर भी गंभीर है, जिनका सामना भारत ही नहीं बल्कि इस क्षेत्र के अलग-अलग देशों को भी करना पड़ता है।
चाहे समुद्र के रास्ते आने वाला आतंकवाद हो, Piracy की समस्या हो, ड्रग्स की तस्करी हो, भारत इन सभी चुनौतियों से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सबका साथ-सबका विकास का हमारा ये मंत्र है। जल-थल-नभ में भी एक ही समान है।
पूरे विश्व को एक परिवार मानते हुए, वसुधैव कुटुम्‍ब की भावना को आगे बढ़ाते हुए भारत अपने वैश्विक उत्तरदायित्वों को लगातार निभा रहा है। भारत अपने साथी देशों के लिए उनके संकट के समय first responder बना हुआ है और इसलिए जब श्रीलंका में बाढ़ आती है तो भारत की नौसेना तत्परता से मदद के लिए सबसे पहले पहुँच जाती है।
जब मालदीव में पानी का संकट आता है तो भारत से जहाज़ भर-भर के पानी तत्काल पहुंचाया जाता है। जब बांग्लादेश में चक्रवात आता है तो भारत की नौसेना बीच समंदर में फंसे बांग्ला-देशियों को बाहर निकालकर लाती है। म्यांमार तक में तूफान से पीड़ित लोगों की मदद के लिए भारतीय नौसेना पूरी शक्ति के साथ मानवीय दृष्टिकोण से मदद करने में कभी पीछे नहीं रहती है। इतना ही नहीं, यमन में संकट के समय जब भारतीय नौसेना अपने साढ़े चार हज़ार से अधिक नागरिकों को बचाती है, तो साथ में 48 और देशों के व्यक्तियों को भी सुरक्षित संकट से बाहर निकाल करके ले आती है।
भारतीय डिप्लोमैसी और भारतीय सुरक्षा तंत्र का मानवीय पहलू ये भारत की विशेषता है, ये हमारी विशिष्‍टता है। मुझे याद है जब नेपाल में भूकंप आया था, तो कैसे भारतीय सेना और वायुसेना ने राहत कार्यों की कमान संभाली थी। 700 से ज्यादा उड़ानें, एक हजार टन से ज्यादा की राहत सामग्री, हजारों भूकंप पीड़ितों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना, सैकड़ों विदेशी नागरिकों को बाहर निकालना, ये “मैत्री-भाव” भारत के जहन में है, भारत के स्‍वभाव में है। भारत मानवता के काम को किए बिना कभी रह नहीं सकता है।
साथियों, समर्थ और सशक्त भारत सिर्फ़ अपने लिए नहीं संपूर्ण मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। आज हम दुनिया के विभिन्न देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। उनकी सेनाएं, हमारी सेना के साथ तालमेल बढ़ाने के लिए, हमसे अनुभव साझा करने के लिए आतुर रहती हैं। जब वे हमारे साथ Exercises में हिस्सा लेती हैं तो अक्‍सर ये चर्चा का विषय भी होता है।
पिछले वर्ष ही भारत में International Fleet Review के लिए 50 देशों की नौसेनाएं जुटीं थीं। विशाखापट्टनम के पास समंदर में उस समय बने विहंगम दृश्य किसी के लिए भी शायद ही भूलना संभव है।
इस वर्ष भी भारतीय नौसेना ने हिंद महासागर में अपने शौर्य से दुनिया का ध्यान खींचा है।
जुलाई में हुई Malabar Exercise में अमेरिका और जापान की नौसेना के साथ भारतीय नौसेना ने शानदार प्रदर्शन किया था। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया की नेवी के साथ, सिंगापुर की नेवी के साथ, म्यांमार, जापान, इंडोनेशिया की नेवी के साथ भारतीय नौसेना ने अलग-अलग महीनों में इस वर्ष Exercises का क्रम लगातार जारी रखा हैं। भारतीय सेना भी श्रीलंका, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, बांग्लादेश, सिंगापुर जैसे देशों के साथ संयुक्त अभ्यास कर चुकी है।
भाइयों और बहनों, ये पूरी तस्वीर इस बात की गवाह है कि दुनिया के देश, शांति और स्थायित्व के मार्ग में भारत के साथ चलने के लिए आज इच्‍छुक है, प्रतिबद्ध हैं।
साथियों, हम इस बात के प्रति भी सजग हैं कि देश की सुरक्षा के लिए चुनौतियों का स्वरूप बदल चुका है। हम अपनी रक्षा तैयारियों को इन चुनौतियों के अनुरूप करने के लिए भरसक प्रयास कर रहे हैं। Proactive कदम उठा रहे हैं।
हमारा प्रयास है कि हमारी Defence Power, Economic Power, Technical Power के साथ International Relation की Power, Public के Confidence की Power, देश की Soft Power, इन सभी Factors में एक सिनर्जी हो। ये परिवर्तन आज के समय की माँग है।
भाइयों और बहनों, पिछले तीन साल में रक्षा और सुरक्षा से जुड़े पूरे eco-system में बदलाव की एक शुरुआत हुई है। बहुत नई पहल की गई है। जहाँ एक ओर हम आवश्यक साजो सामान के विषय को प्राथमिकता के साथ Address कर रहे हैं, वहीं देश में ही आवश्यक technology के विकास के लिए Pro-active agenda भी सेट किया जा रहा है।
Licensing प्रक्रिया से Export प्रक्रिया तक, हम पूरे सिस्टम में पारदर्शिता और संतुलित प्रतिस्पर्धा ला रहे हैं। विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए भी हमारी सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। अब 49 प्रतिशत FDI automatic route से किया जा सकता है। डिफेंस सेक्टर के कुछ क्षेत्रों में तो अब 100 प्रतिशत FDI का रास्ता खुल गया है। Defence Procurement Procedure में भी हमने बड़े बदलाव किये हैं। इनसे Make in India को भी बढ़ावा मिल रहा है। इससे रोजगार के भी नए अवसरों का निर्माण हो रहा है।
जैसे, मुझे बताया गया है कि INS कलवरी के निर्माण में लगभग 12 लाख Man-days
लगे हैं। इसके निर्माण के दौरान जो तकनीकि दक्षता भारतीय कंपनियों को, भारतीय उद्योगों को, छोटे उद्यमियों को और हमारे इंजीनियरों को मिली है, वो देश के लिए एक तरह से “Talent Treasure” है। ये Skill-Set हमारे लिए एक asset है जिसका लाभ देश को भविष्‍य में लगातार मिलेगा।
साथियों, भारतीय कंपनियां डिफेंस सेक्टर के product’s बनाएं औऱ उसे दुनिया भर में export करे, इसके लिए defence exports पॉलिसी में भी हमने आमूल-चूल परिवर्तन किया है। जो product’s यहां बन रहे हैं, वो हमारे सैन्य बल भी आसानी से खरीद सकें, इसके लिए लगभग डेढ़-सौ non-core items की एक लिस्ट बनाई गई है। इनकी खरीद के लिए सैन्य बलों को Ordnance Factories से मंजूरी की जरूरत नहीं है, वे सीधे प्राइवेट कंपनियों से ये product खरीद सकती हैं।
देश को डिफेंस सेक्टर में आत्मनिर्भर बनाने के लिए, सरकार, भारतीय प्राइवेट सेक्टर के साथ Strategic Partnership Model लागू कर रही है। हमारी कोशिश है कि विदेशों की तरह ही भारतीय कंपनियां भी फाइटर प्लेन से लेकर हेलीकॉप्टर और टैंक से लेकर सबमरीन तक का निर्माण इसी धरती पर करें। भविष्य में यही Strategic Partner भारत की डिफेंस इंडस्ट्री को और मजबूत बनाएंगे।
सरकार ने रक्षा क्षेत्र से जुड़े सामान की खरीद में भी तेजी लाने के लिए भी अनेक नीतिगत फैसले लिए हैं। रक्षा मंत्रालय और सर्विस हेडक्वार्टर स्तर पर financial powers में भी बढोतरी की गई है। पूरी प्रक्रिया को और सरल और कारगर बनाया गया है। इन महत्वपूर्ण सुधारों से रक्षा-व्यवस्था और देश की सेनाओं की क्षमता और भी मज़बूत होंगी।
भाइयों और बहनों, हमारी सरकार की सुरक्षा नीतियों का अनुकूल प्रभाव बाहरी ही नहीं बल्कि देश की आंतरिक सुरक्षा पर भी सकारात्‍मक प्रभाव पैदा कर रहा है।
आप सभी जानते हैं कि किस प्रकार आतंकवाद को भारत के खिलाफ एक प्रॉक्सी वॉर के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारी सरकार की नीतियां और हमारे सैनिकों की वीरता का ये परिणाम है कि जम्मू-कश्मीर में हमने ऐसी ताकतों को सफल होने नहीं दिया है। जम्मू-कश्मीर में इस साल अब तक 200 से ज्यादा आतंकी, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सुरक्षाबलों के सहयोग से मारे जा चुके हैं। पत्थरबाजी की घटनाओं में भी काफी कमी आई है।
उत्तर पूर्व के राज्यों में भी, north eastern state में भी स्थिति में भी काफी सुधार दिखता है। नक्सली-माओवादी हिंसा भी कम हुई है। ये स्थिति इस बात का भी संकेत है कि इन क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा लोग अब विकास की मुख्यधारा में वापिस लौट रहे हैं।
मैं आज इस अवसर पर हर उस व्यक्ति का आभार व्यक्त करता हूं जिसने देश की सुरक्षा में अपना जीवन समर्पित कर दिया है।
राज्यों के पुलिस बल, अर्ध सैनिक बल, हमारी सेनाएं, सुरक्षा में लगी हर वो एजेंसी जो दिखती है, और हर वो एजेंसी जो नहीं दिखती है, उनके प्रति इस देश के सवा-सौ करोड़ लोग कृतज्ञ हैं। उनका अभिनंदन करता हूं। मैं उनका धन्‍यवाद करता हूं।
साथियों, देश की मजबूती हमारे सुरक्षाबलों की मजबूती से जुड़ी हुई है और इसलिए सुरक्षाबलों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, बिना विलंब किए हुए, उनके लिए फैसले लेना, उनके साथ खड़े रहना ये इस सरकार की प्राथमिकता है। और ये सरकार के स्‍वभाव में है। ये हमारी ही कमिटमेंट थी जिसके कारण कई दशकों से लंबित One Rank One Pension का वायदा हकीक़त में बदल चुका है। अब तक 20 लाख से अधिक रिटायर्ड फौजी भाइयों को लगभग 11 हजार करोड़ रुपए एरियर के तौर पर दिए भी जा चुके हैं।
भाइयों और बहनों, आज इस अवसर पर मैं सागर परिक्रमा के लिए निकली भारतीय नौसेना की 6 वीर, जांबाज अफसरों को भी याद करना चाहूंगा। उनका गौरव करना चाहूंगा।
हमारे देश के रक्षामंत्री श्रीमति निर्मला जी की प्रेरणा से, भारत की नारी शक्ति का संदेश लेकर, वो बहुत हौसले के साथ, ये हमारे छ: जांबाज सेनानी आगे बढ़ती चली जा रही हैं।
साथियों, आप ही जल-थल-नभ में इसी अथाह भारतीय सामर्थ्य को सहेजे हुए हैं। आज INS कलवरी के साथ एक नए सफर की शुरुआत हो रही है।
समुद्र देव आपको सशक्त रखें, आपको सुरक्षित रखें। “शम: नौ वरुण:” आपका ही ये Motto है। हमारी इसी कामना के साथ मैं आपको एक बार फिर नमन करता हूं, शुभकामनाओं के साथ आप सबको इस golden jubilee पर एक नये पदापर्ण के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं देते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।
बहुत-बहुत धन्‍यवाद

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