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18 January 2018

बसंत उत्सव का आयोजन दिनांक 24 व 25 फरवरी को किया जाएगा। #Uttarakhand


प्रदेश में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए Single-Window System लागू किया गया है। पूंजी निवेश को आकर्षित करने एवं इसे और कारगर बनाने के लिए SMS अलर्ट भेजने की व्यवस्था की गई है। 04 दिन में विभागाध्यक्ष को और 14 दिन में संबंधित सचिव को SMS अलर्ट जाएगा। इसके अलावा मॉनिटरिंग के लिए Dashboard भी बनाया जा रहा है। सिडकुल का डैशबोर्ड बन गया है। राज्य, जनपद और विभाग स्तर पर मॉनिटरिंग की अलग-अलग व्यवस्था की गई है। यह जानकारी मुख्य सचिव श्री Utpal Kumar Singh को सचिवालय में Single-Window System के मॉनिटरिंग कमेटी की बैठक में दी गई।
बताया गया कि अब आसानी से पता चल जाएगा कि कितने C.A.F. (Common Application Form) प्राप्त हुए। कितने का निस्तारण हुआ और कितने CAF लंबित हैं। यह भी पता चलेगा कि किस विभाग या अधिकारी द्वारा तय समय सीमा में निस्तारण नहीं किया गया। बैठक में बताया गया कि 10 करोड़ रुपये तक के पूंजी निवेश के प्रस्तावों का क्लीयरेंस जिला स्तर पर गठित समिति में किया जाता है। 10 करोड़ से अधिक के प्रस्ताव राज्य स्तर पर गठित समिति में रखे जाते हैं। सभी तरह की क्लीयरेंस तय समय सीमा में होती है। 15 दिन में सैद्धान्तिक सहमति और 30 से 60 दिन में संचालन की मंजूरी दी जाती है।
मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि भू-अभिलेखों को Digital बनाने के कार्य में तेजी लाएं। रजिस्ट्री, दाखिल खारिज की प्रक्रिया भी Online करें। जमीन को लीज पर देने या लीज पर लेने के लिए भी जरूरी है कि भू-अभिलेख Online हों। बताया गया कि Portal में ऐसी व्यवस्था की जा रही है कि जमीन का पूरा विवरण Online होगा। इसे राजस्व, स्टाम्प रजिस्ट्रेशन और बैंक से भी जोड़ा जाएगा।

मुख्यमंत्री श्री Trivendra Singh Rawat ने मुख्यमंत्री आवास स्थित जनता मिलन हाॅल में M.S.M.E. मंत्रालय, भारत सरकार एवं उद्योग विभाग, उत्तराखण्ड द्वारा आयोजित M.S.M.E. पखवाड़ा का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने Start Up Uttarakhand Portal का उद्घाटन, मेन्टरशिप कार्यक्रम का शुभारम्भ एवं क्राफ्ट्स आॅफ उत्तराखण्ड के डाॅक्यूमेंट का विमोचन किया। अपने सम्बोधन में मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों के लिए #Uttarakhand में परिस्थितियों के हिसाब से अपार संभावनाएं हैं। प्रदेश में छोटे उद्योगों के माध्यम से कम पूंजी में अधिक लोगों को रोजगार के साधन उपलब्ध होंगे। उन्होंने कहा कि 16 जनवरी से 30 जनवरी 2018 तक चलने वाले इस पखवाड़े का उद्देश्य लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों के लिए लोगों में जागरूकता लाना एवं प्रोत्साहित करना है। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि स्वयं सहायता समूहों में राज्य में महिलाएं अच्छा कार्य कर रही हैं। उन्होंने कहा कि सरकार महिला समूह को लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों के लिए ऋण योजना पर योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए Single-Window System के तहत 10 करोड़ रूपये तक के निवेशों के प्रस्ताव की मंजूरी का अधिकार जिलाधिकारियों को दिया गया है।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि स्थानीय उत्पादों, हस्तशिल्प, हथकरघा एवं जैविक उत्पादों की डिमांड तेजी से बढ़ रही है। यूरोपीय देशों में हाथ से बुनी हुई वस्तुओं की मांग तेजी से बढ़ रही है। प्रदेश में इन उत्पादों की अपार संभावनाएं हैं, इनको बढ़ावा देने के लिए लोगों में कौशल विकास की जरूरत है। उन्होंने कहा कि राज्य में प्रिटिंग के क्षेत्र में अच्छा स्कोप है, एक प्रिटिंग प्रेस से लगभग 20 स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है। उन्होंने कहा कि कट पेपर पर प्रिटिंग करने से उसकी लागत थोड़ा अधिक होता है। लेकिन इससे स्थानीय उद्योग स्थापित होगा और राज्य का पैसा राज्य में ही रहेगा। उन्होंने कहा कि नेशनल हैण्डलूम एक्सपो में पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष अच्छी सेल हुई। पिछले वर्ष 03 करोड़ 50 लाख की सेल हुई जो इस वर्ष बढ़कर 05 करोड़ 62 लाख हुई।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने इस अवसर पर राज्य में लघु उद्यम, हथकरघा एवं हस्तशिल्प के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले उद्यमियों को पुरस्कृत भी किया। लघु उद्यम में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए नैनीताल के श्री अभिषेक मिश्रा को प्रथम, देहरादून के श्री ललित मोहन उनियाल को द्वितीय एवं बागेश्वर के श्री दलीप सिंह खेतवाल एवं पिथौरागढ़ के श्री सतीश चन्द्र को तृतीय पुरस्कार दिया गया। हथकरघा के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने के लिए चमोली की श्रीमती नर्वदा देवी को प्रथम, उत्तरकाशी के श्री केदार चन्द्र को द्वितीय एवं पिथौरागढ़ की श्रीमती प्रेमा देवी को तृतीय पुरस्कार दिया गया। जबकि हस्तशिल्प के क्षेत्र में अच्छा कार्य करने पर पिथौरागढ़ के श्री सुरेश राम को प्रथम, बागेश्वर के श्री मनीष कुमार को द्वितीय एवं अल्मोड़ा के श्री भुवनचन्द्र शाह को तृतीय पुरस्कार दिया गया।


इस वर्ष राजभवन में बसंत उत्सव का आयोजन दिनांक 24 व 25 फरवरी को किया जाएगा। #Uttarakhand के उच्च स्थानों पर पाये जाने वाले ‘जम्बू’(Allium auriulatum) पुष्प पर स्पेशल पोस्टल कवर, डाक विभाग के सौजन्य से जारी किया जाएगा। मंगलवार को राज्यपाल Dr. K.K. Paul की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में बसंत उत्सव के आयोजन के संबंध में अनेक निर्णय लिए गए।
राज्यपाल ने कहा कि बसंत उत्सव के अवसर पर आयोजित चित्रकला प्रतियोगिता में अधिक से अधिक स्कूली बच्चों को प्रतिभाग करने के लिए प्रेरित किया जाए। पोस्टल कवर के लिए ऐसे पौधे को लिया जाए जो कि उत्तराखण्ड से जुड़ा हो। इस पर व्यापक विचार विमर्श के बाद स्पेशल पोस्टर के लिए ‘जम्बू’(Allium auriulatum) पर सहमति व्यक्त की गई। यह हिमालय में पाया जाने वाला पौधा है जो कि औषधीय गुणों से भरपूर है। उत्तराखण्ड के उच्च पर्वतीय भागों में स्थानीय लोगों द्वारा इसका उपयोग औषधि के साथ सब्जी व मसालों के रूप में भी किया जाता है।
राज्यपाल ने कहा कि बसंत उत्सव के आयोजन के पीछे उद्देश्य है कि उत्तराखण्ड में फ्लोरीकल्चर व ऐरोमेटिक पौधों की खेती को बढ़ावा दिया जाए। फूलों की खेती के माध्यम से किसानों की आय को दोगुनी करने के प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi जी के लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है। उद्यान विभाग केवल बसंत उत्सव तक सीमित न रहे बल्कि इन प्रयासों को लेकर बागवानों, काश्तकारों तक पहुंचे। राज्यपाल ने कहा कि इस आयोजन को ऐसा स्वरूप देना होगा कि दूर-दराज के पुष्पोत्पादन, जड़ी-बूटी, सगन्ध पौधों तथा अन्य जैविक उत्पादों की व्यावसायिक खेती से जुड़े काश्तकारों/उत्पादकों व ग्राहकों के लिए मंच के रूप में स्थापित हो सके। इन व्यवसायों से जुड़े काश्तकारों को मार्केट भी उपलब्ध करवाने के प्रयास करने होंगे।
जम्बू’(Allium auriulatum)

हिमोत्थान परियोजना
मुख्य सचिव श्री Utpal Kumar Singh ने सचिवालय में हिमोत्थान परियोजना के राज्य स्तरीय स्टीयरिंग कमेटी की बैठक की अध्यक्षता की। कहा कि हिमोत्थान सोसाइटी को मृदा परीक्षण कर किसानों को हेल्थ कार्ड भी देना चाहिए। किसानों को बताया जाय कि किस मिट्टी में कौन सी फसल का उत्पादन हो सकता है। आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए भी कार्य करना चाहिए। इसके साथ ही कौशल विकास पर भी फोकस करने की जरूरत है। #Uttarakhand के उत्पादों का एक ही Brand Name होना चाहिए। इससे उत्तराखंड की पहचान बनेगी।
बैठक में बताया गया कि हिमोत्थान जल स्रोतों की मैपिंग और सूख रहे स्रोतों के पुनर्जीवीकरण के लिए 300 गांवों में कार्य कर रहा है। इसके साथ ही अपने फेडरेशन के माध्यम से जल की गुणवत्ता पर भी कार्य किया जा रहा है। बताया गया कि विभिन्न कृषि उत्पादों के बीज का उत्पादन भी किया जा रहा है। इस वर्ष 300 क्विंटल बीज का उत्पादन कर किसानों को वितरित किया गया है। इससे फसल का उत्पादन बढ़ा है। हिमोत्थान सोसाइटी ग्राम्य विकास, कृषि, वानिकी, पशुपालन, शिक्षा, डेरी आदि विभागों और विशेषज्ञ संस्थानों के साथ मिलकर कार्य कर रहा है। बताया गया कि 10 पर्वतीय जनपदों में 35 क्लस्टर के माध्यम से 650 गांवों में कार्य किया जा रहा है। इससे 63000 लोगों को लाभ मिल रहा है। 18000 घरों के लिए 10 फसलों के उत्पादन और बाजार लिंकेज का कार्य किया जा रहा है। वर्ष 2018 से 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए mission mode में कार्य करने की योजना बनाई गई है। पशुओं को चारा उपलब्ध कराने के लिए 1100 हैक्टर जमीन पर उत्पादन किया जा रहा है। इससे 500 गांवों के 25000 परिवारों को लाभ मिल रहा है। 100 गांवों में 12 क्लस्टर बनाकर 2000 पशुपालकों को बकरी पालन का लाभ दिया जा रहा है। इसके अलावा स्वरोजगार, शिक्षाए, स्वच्छता, शुद्ध पेयजल, कौशल विकास की दिशा में भी कार्य किया जा रहा

मुख्यमंत्री श्री Trivendra Singh Rawat ने मुख्यमंत्री आवास स्थित जनता मिलन हाॅल में M.S.M.E. मंत्रालय, भारत सरकार एवं उद्योग विभाग, उत्तराखण्ड द्वारा आयोजित M.S.M.E. पखवाड़ा का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने Start Up Uttarakhand Portal का उद्घाटन, मेन्टरशिप कार्यक्रम का शुभारम्भ एवं क्राफ्ट्स आॅफ उत्तराखण्ड के डाॅक्यूमेंट का विमोचन किया। अपने सम्बोधन में मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों के लिए #Uttarakhand में परिस्थितियों के हिसाब से अपार संभावनाएं हैं। प्रदेश में छोटे उद्योगों के माध्यम से कम पूंजी में अधिक लोगों को रोजगार के साधन उपलब्ध होंगे। उन्होंने कहा कि 16 जनवरी से 30 जनवरी 2018 तक चलने वाले इस पखवाड़े का उद्देश्य लघु एवं सूक्ष्म उद्योगों के लिए लोगों में जागरूकता लाना एवं प्रोत्साहित करना है। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि स्वयं सहायता समूहों में राज्य में महिलाएं अच्छा कार्य कर रही हैं। उन्होंने कहा कि सरकार महिला समूह को लघु एवं सूक्ष्म उद्यमों के लिए ऋण योजना पर योजना बना रही है। उन्होंने कहा कि उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए Single-Window System के तहत 10 करोड़ रूपये तक के निवेशों के प्रस्ताव की मंजूरी का अधिकार जिलाधिकारियों को दिया गया है।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि स्थानीय उत्पादों, हस्तशिल्प, हथकरघा एवं जैविक उत्पादों की डिमांड तेजी से बढ़ रही है। यूरोपीय देशों में हाथ से बुनी हुई वस्तुओं की मांग तेजी से बढ़ रही है। प्रदेश में इन उत्पादों की अपार संभावनाएं हैं, इनको बढ़ावा देने के लिए लोगों में कौशल विकास की जरूरत है। उन्होंने कहा कि राज्य में प्रिटिंग के क्षेत्र में अच्छा स्कोप है, एक प्रिटिंग प्रेस से लगभग 20 स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है। उन्होंने कहा कि कट पेपर पर प्रिटिंग करने से उसकी लागत थोड़ा अधिक होता है। लेकिन इससे स्थानीय उद्योग स्थापित होगा और राज्य का पैसा राज्य में ही रहेगा। उन्होंने कहा कि नेशनल हैण्डलूम एक्सपो में पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष अच्छी सेल हुई। पिछले वर्ष 03 करोड़ 50 लाख की सेल हुई जो इस वर्ष बढ़कर 05 करोड़ 62 लाख हुई।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने इस अवसर पर राज्य में लघु उद्यम, हथकरघा एवं हस्तशिल्प के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले उद्यमियों को पुरस्कृत भी किया। लघु उद्यम में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए नैनीताल के श्री अभिषेक मिश्रा को प्रथम, देहरादून के श्री ललित मोहन उनियाल को द्वितीय एवं बागेश्वर के श्री दलीप सिंह खेतवाल एवं पिथौरागढ़ के श्री सतीश चन्द्र को तृतीय पुरस्कार दिया गया। हथकरघा के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने के लिए चमोली की श्रीमती नर्वदा देवी को प्रथम, उत्तरकाशी के श्री केदार चन्द्र को द्वितीय एवं पिथौरागढ़ की श्रीमती प्रेमा देवी को तृतीय पुरस्कार दिया गया। जबकि हस्तशिल्प के क्षेत्र में अच्छा कार्य करने पर पिथौरागढ़ के श्री सुरेश राम को प्रथम, बागेश्वर के श्री मनीष कुमार को द्वितीय एवं अल्मोड़ा के श्री भुवनचन्द्र शाह को तृतीय पुरस्कार दिया गया।

पौड़ी गढ़वाल का सुप्रसिद्ध थलनदी गेंद मेला राजकीय मेला घोषित ,

पौड़ी गढ़वाल का सुप्रसिद्ध थलनदी गेंद मेला राजकीय मेला घोषित ,
उत्तराखंड राज्य के जनपद पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर व दुगड्डा व द्वारीखाल ब्लाक के कुछ स्थानों में मकरसंक्रांति को एक अनोखा खेल खेला जाता ही| इस खेल का नाम ही गेंद मेला|यह एक सामूहिक शक्ति परीक्षण का मेला है|इस मेले में न तो खिलाडियों की संख्या नियत होती ही न इसमें कोई विशेष नियम होते हैं. बस दो दल बना लीजिये और चमड़ी से मढ़ी एक गेंद को छीन कर कर अपनी सीमा में ले जाइये.परन्तु जितना यह कहने सुनने में आसन है उतना है नही, क्योंकि दूसरे दल के खिलाड़ी आपको आसानी से गेंद नहीं ले जाने देंगे|बस इस बस इस गुत्थमगुत्था में गेंद वाला नीचे गिर जाता है जिसे गेन्द का पड़ना कहते है|गेन्द वाले से गेंद छीनने के प्रयास में उसके ऊपर न जाने कितने लोग चढ़ जाती हें| कुछ तो बेहोश तक हो जाते हैं| ऐसी लोगो को बाहर निकल दिया जाता है| होश आने पर वे फिर खेलने जा सकते हैं|जो दल गेन्द को अपनी सीमा में ले जाते हैं वहीं टीम विजेता मानी जाती है | इस प्रकार शक्तिपरीक्षण का यह अनोखा खेल 3 से 4 घन्टे में समाप्त हो जाता है
इस खेल का उद्भव यमकेश्वर ब्लाक व् दुगड्डा ब्लाक की सीमा थलनदी नमक स्थान पर हुआ जहाँ मुगलकाल में राजस्थान के उदयपुर अजमेर से लोग आकर बसे हें इसलिए यहाँ की पट्टियों(राजस्व क्षेत्र )के नाम भी उदेपुर वल्ला,उदेपुर मल्ला,उदेपुर तल्ला एवम उदेपुर पल्ला (यमकेश्वर ब्लाक) व अजमीर पट्टिया(दुगड्डा ब्लाक)हैं | थलनदी में यह खेल आज भी इन्हीं लोगो के बीच खेला जाता है|यमकेश्वर में यह किमसार,यमकेश्वर,त्योडों,ताल व कुनाव नामक स्थान पर खेला जाता है तथा द्वारीखाल में यह डाडामंडी व कटघर में खेला जाता है, कटघर में यह उदेपुर व ढागू के लोगो के बीच खेला जाता है| दुगड्डा में यह मवाकोट (कोटद्वार के निकट ) में खेला जाता है

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15 January 2018

uttarakhand pcs current affairs jan2018

भारत सरकार के आर्थिक मामले एवं वित्त मंत्रालय और एशियाई विकास बैंक द्वारा #Uttarakhand को बेस्ट परफाॅर्मिंग प्रोजेक्ट अवार्ड प्रदान किया गया है। 10 विभिन्न संकेतकों में उत्तराखण्ड इमरजेंसी असिस्टेंस प्रोजेक्ट को अवार्ड दिया गया। देश की 84 परियोजनाओं में इस परियोजना का चयन किया गया। यह जानकारी मुख्य सचिव श्री Utpal Kumar Singh की अध्यक्षता में सचिवालय में आयोजित उत्तराखण्ड इमरजेंसी असिस्टेंस की उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक में दी गयी। मुख्य सचिव ने निर्देश दिए कि निर्माण कार्यों की थर्ड पार्टी मूल्यांकन कराया जाय। प्रस्तावित S.D.R.F. के भवन का निर्माण पर्वतीय स्थापत्य से कराया जाय। जिन विभागों की परिसंपत्तियों का सृजन हुआ है, उन्हें हस्तांतरित किया जाय। आगे से जो भी निर्माण कार्य हों, उनमे नई तकनीक का इस्तेमाल किया जाए।

,,,,,,,,,,,,,,,,तीन महीने के अंदर Centre for Good Governance का Concept Paper प्रस्तुत करें। Concept Paper(विचार पत्रक) बनाने के पहले विशेषज्ञों और प्रतिष्ठित संस्थाओं से विचार विमर्श करें। सुशासन केंद्र को और अधिक आधुनिक और बेहतर बनाना है। केंद्र को सुझाव देना है कि नए विचार और नए सफल प्रयोगों को राज्य सरकार लोगों की बेहतरी के लिए कैसे कर सकते हैं। मुख्य सचिव श्री Utpal Kumar Singh सचिवालय में Centre for Good Governance (C.G.G.) के Board of Governors की बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे।
मुख्य सचिव ने कहा कि जन-कल्याणकारी योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए केंद्र महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। खासतौर से महिला स्वास्थ्य, बच्चों के कुपोषण को दूर करने के उपाय, लिंग अनुपात और स्वच्छता के लिए जन जागरूकता, जल की स्वच्छता और उपलब्धता, मानव संसाधन प्रबंधन आदि क्षेत्रों में दूसरे राज्यों के सफल प्रयोग पर सुशासन केंद्र को गंभीरता के साथ कार्य करना है। इसके लिए प्रतिष्ठित संस्थानों का सहयोग लेना होगा। विषय विशेषज्ञों को केंद्र के साथ जोड़ना होगा।

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि प्रदेश में कृषि एवं ग्राम्य विकास के लिये किसानों की आय दोगुनी करने के उद्देश्य से कृषकों को 02 प्रतिशत ब्याज पर एक लाख रूपये तक का ऋण उपलब्ध कराने हेतु "दीन दयाल उपाध्याय किसान कल्याण योजना" शुरू की गई है। अब तक लगभग एक लाख किसानों को सस्ता ऋण उपलब्ध कराया जा चुका है। प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये भी प्रभावी प्रयास किये जा रहे है। 13 जिलों में 13 नये पर्यटन गंतव्य बनाये जा रहे है। वर्ष 2017 में लगभग 22 लाख से अधिक पर्यटक चारधाम यात्रा में आये। प्रदेश में अधिक से अधिक पर्यटक आये इसके लिये केदारनाथ व बदरीनाथ के सौन्दर्यीकरण पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। कोटद्वार में, कोटद्वार इको टूरिज्म सर्किट विकास एवं सफारी वाहनों का संचालन शुरू किया गया है। ऊर्जा के क्षेत्र में उत्तराखण्ड की लंबित 33 जल विद्युत परियोजनाओं के संचालन में केन्द्रीय ऊर्जा और जल संसाधन मंत्री द्वारा सकारात्मक सहयोग दिया जा रहा है। राज्य में 25000 मेगावाट विद्युत उत्सर्जन क्षमता है, किन्तु अभी हम 4000 मेगावाट का ही उत्पादन कर पा रहे है। उत्तराखण्ड को ऊर्जा प्रदेश बनाने के लिये हमारे प्रयास जारी है। L.E.D बल्बों का सभी सरकारी एवं गैर सरकारी कार्यालयों में उपयोग अनिवार्य किया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रभावी पहल करते हुए राज्य के दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों में "ई-हैल्थ सेंटर" की शुरूआत के लिये राज्य सरकार द्वारा देश की प्रमुख I.T. Company के साथ MOU किया गया। राज्य के 35 अस्पतालों में टेली रेडियोलाॅजी एवं टेली मेडिसिन योजना प्रारम्भ की गई है। सभी जिला चिकित्सालयों मे न्यूनतम 2 बैड के I.C.U. की स्थापना का निर्णय लिया गया है। बड़ी संख्या में डाक्टरों व नर्सों की तैनाती पर्वतीय क्षेत्रों में की जा रही है। जल संरक्षण के लिये देहरादून में रिस्पना नदी व अल्मोड़ा में कोसी नदी के पुनर्जीवीकरण हेतु अभियान प्रारंभ किया गया है। आगामी 5 वर्षों में हमने 5 हजार प्राकृतिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने का लक्ष्य रखा है। रिस्पना के पुनर्जीवीकरण के लिए एक दिन में उद्गम से संगम तक वृक्षारोपण और साफ-सफाई अभियान का भी हमारा लक्ष्य है। मुख्यमंत्री ने कहा कि कौशल विकास के क्षेत्र में आगामी तीन वर्षों में एक लाख से अधिक युवाओं को स्किल्ड बनाने की दिशा में हमने कदम बढ़ाये हैं। इसके लिये 02 आवासीय कौशल विकास केन्द्र स्थापित किये जा रहे है। उद्योगों की आवश्यकता के अनुसार आई०टी०आई० और पाॅलिटेक्निक में नये ट्रेड का प्रशिक्षण एवं राज्य कौशल योजना को पुनर्गठित कर, पण्डित दीन दयाल उपाध्याय राज्य कौशल योजना प्रारम्भ करने का निर्णय लिया गया है। राज्य में साॅफ्टवेयर टैक्नोलाॅजी पार्क आॅफ इण्डिया(STPI) की स्थापना के साथ ही प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत स्टेट कम्पोनेंट में देश का प्रथम प्रशिक्षण केन्द्र उत्तराखण्ड में शुरू हो गया है। राज्य में Central Insititute of Plastic Engg. & Tech. (सीपैट) तथा नेशनल फैशन टेक्नोलाॅजी संस्थान, के लिये भवन एवं भूमि चिन्हित कर अगले वर्ष से कक्षाओं की शुरूआत करने की योजना गतिमान है। उच्च शिक्षा के लिये #Haridwar में (NIELIT) नेशनल इन्स्टीटयूट आॅफ इलेक्ट्रोनिक्स एण्ड एनफाॅरमेशन सेन्टर, अल्मोड़ा में एन.आई.ई.एल.आई.टी. का सब सेन्टर तथा उत्तराखण्ड में हाॅस्पिटेलिटी यूनिवर्सिटी भी स्थापित की जा रही है। इसके अतिरिक्त सेन्ट्रल इंस्टीटयूट प्लास्टिक इंजीनियरिंग एण्ड टैक्नोलाॅजी(सीपैट) की भी प्रदेश में स्थापना की जा रही है।
सड़क एवं रेल परिवहन की मजबूती के साथ ही गढ़वाल एवं कुमाॅऊ को जोड़ने वाला कण्डी मार्ग का निर्माण सरकार की प्राथमिकता हैं। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल मार्ग, देवबन्द-रूड़की रेल मार्ग का निर्माण राज्य के विकास में और अधिक गति प्रदान करेगा। चारधाम आल वेदर रोड का कार्य प्रगति पर है, शहरी विकास के अन्तर्गत देहरादून को स्मार्ट सिटी एवं माॅडल सिटी बनाने की दिशा में कार्य आरम्भ किया गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में शौचमुक्त करने में उत्तराखण्ड देश का चौथा राज्य बन गया है। 2018 तक 92 शहरी निकायों को #ODF का हमारा लक्ष्य है। मार्च 2018 तक प्रधानमंत्री आवास योजना के एक लाख लक्ष्य के अनुपात में आवास निर्माण योजना पर तेजी से कार्य किया जा रहा है। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा प्रदेश को प्रगतिशील बनाने के लिए निरंतर प्रयास किये जा रहे है

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अच्छी चीज़ों से सीखना चाहिए लेकिन बात तो तब बनेगी जब हम भी करके दिखाएँ
अहमदाबाद में मुख्यमंत्री श्री Trivendra Singh Rawat ने काकड़िया झील का निरीक्षण किया। उन्होंने झील परिसर में पर्यटन विकास सेे सम्बंधित योजनाओं एवं अन्य गतिविधियों का मुख्य सचिव एवं पर्यटन सचिव के साथ स्थलीय निरीक्षण भी किया। उन्होंने काकड़िया झील की तरह #Uttarakhand की झीलों में भी पर्यटन विकास की सम्भावनायें तलाशे जाने के लिये कार्ययोजना बनाने के निर्देश अधिकारियों को दिये।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि उत्तराखण्ड में पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं हैं। उत्तराखण्ड पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है, पर्यटन को और अधिक बढ़ावा देने के लिए नए प्रयासों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए सरकार की ग्रामीण पर्यटन व संस्कृति ग्राम जैसी योजना कारगर साबित हो सकती है, इसके माध्यम से पर्यटकों को उत्तराखण्ड की संस्कृति, सभ्यता और विशिष्टताओं के बारे में एक ही स्थान पर अधिक से अधिक जानकारी उपलब्ध हो सकेगी।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि काकड़िया गुजरात की सबसे बड़ी झील है जो 3 किलोमीटर की परिधि में फैली है। काकड़िया झील अहमदाबाद में काफी लोकप्रिय है तथा पर्यटकों के आकर्षण का भी केन्द्र है। इस झील में वर्तमान में, पर्यटकों के लिए एक एक्टीविटी सेंटर के तौर पर स्थापित किया गया है जहां कई प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध है। यहां बाल वाटिका है जो विशेष तौर पर बच्चों के लिए बनाई गई है। यहां एक बोट क्लब भी है जहां आकर पर्यटक, बोटिंग का लुफ्त भी उठा सकते है। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने काकड़िया झील परिसर में प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi द्वारा स्थापित किड सिटी का भी अवलोकन किया। उन्होंने कहा कि यहां पर बच्चों के कैरियर कौशल विकास की भी व्यवस्था बनाई गई है। बच्चे भविष्य में क्या बनना चाहेंगे, क्या कैरियर अपनाना चाहेंगे, इसकी भी तालीम की व्यवस्था है, इसके लिये यहां पर सम्बंधित विषयों के जानकार उपलब्ध रह कर बच्चों को उनके कैरियर चुनाव में मदद करते है, तथा उनकी जिज्ञासाओं का भी समाधान करते हैं। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने साबरमती रिवर फ्रंट में आयोजित फ्लावर शो का भी अवलोकन किया, इस फ्लावर शो में गुजरात के साथ ही राजस्थान, मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र के नर्सरी उत्पादकों द्वारा प्रतिभाग किया गया। मुख्यमंत्री ने अपने भ्रमण के दौरान एशिया के सबसे बड़े रेपटाइल पार्क का भी अवलोकन किया तथा इसके रख रखाव आदि की जानकारी प्राप्त की।
झील के चारों ओर व आसपास स्थित टूरिस्ट स्पॉट के दर्शन कराने के लिए यहां अटल एक्सप्रेस नाम से टॉय ट्रेन भी संचालित की जाती है। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने इस अवसर पर इस टाॅय ट्रेन की सवारी भी की। मुख्यमंत्री श्री रावत ने कहा कि राज्य की झीलों आदि में इस प्रकार के प्रयोग बच्चों के लिये शिक्षाप्रद होने के साथ ही पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकते है।
पर्यटकों को आकर्षित करने और यहां की संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए दिसंबर महीने के आखिरी सप्ताह में यहां काकड़िया कार्निवल मनाया जाता है। कार्निवल में कल्चरल, आर्ट और कई सोशल इवेंट्स होते हैं। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत इस कार्निवाल में भी सम्मिलित हुए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड में टिहरी, नैनीताल, नानक सागर, कालागढ़ के साथ ही सूर्यधार झील परियोजना व सौंग बांध आदि का इसी लेक की तर्ज पर पर्यटन व अन्य गतिविधियों के लिये विकसित किया जा सकता है, इसके लिये विस्तृत कार्ययोजना तैयार करने के भी निर्देश उन्होंने दिये हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड का नैसर्गिंक सौन्दर्य पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। यहां की झीलों के साथ ही रमणीय बुग्यालों, ओली, मुनस्यारी के बर्फीले तल, चारधाम के अलावा अन्य प्रमुख धार्मिक स्थलों को भी देश व दुनिया के सामने लाने की जरूरत है। इस दिशा में यदि प्रभावी पहल की जाये तो उत्तराखण्ड पर्यटन प्रदेश बनने के साथ ही प्रदेश की आर्थिकी का भी मजबूत आधार बन सकता है। इसी दिशा में प्रदेश के 13 जनपदों में 13 नये गतंव्य स्थापित किये जा रहे 

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मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र ने कहा कि रोजगार उपलब्ध कराने के लिए राज्य के 670 न्याय पंचायतों में ग्रोथ सेंटर खोले जायेंगे, जिसमें 15 सेन्टर रेडिमेट गारमेंट के शुरू किये जायेंगे। उन्होंने कहा कि #Dehradun में पिरूल रिसर्च सेन्टर खोला जायेगा। जिसमें तारपीन का तेल निकाला जायेगा, इसकी सारी तैयारी कर ली गई है तथा 10 महीने के भीतर इस पर कार्य शुरू कर दिया जायेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि LED बल्ब एवं लड़िया अधिक कीमतों पर बाजार से खरीदी जाती है। इसके लिए राज्य सरकार ने फैसला लिया है कि न्याय पंचायतों में ग्रोथ सेन्टर खोले जायेंगे, जिसमें गांव की महिलाओं को पांच दिन का प्रशिक्षण देकर गांव की महिलायें वहीं पर LED बल्ब एवं लड़िया बनायेंगी। उन्होंने कहा कि गांव से पलायन रोकने के लिए गांव में ही रोजगार के साधन उपलब्ध हो इसके लिए सरकार प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री ने कार्यक्रम में आंगनबाड़ी केन्द्र के कुपोषित बच्चों को ऊर्जा पोषाहार भी वितरित किये, साथ ही गंगा डेरी योजना के तहत पात्र किसानों को 40-40 हजार रूपये चेक भी वितरित किये। इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कृषि विभाग द्वारा तैयार की गई ‘‘कृषि रैबार’’ पत्रिका का भी विमोचन किया।

हरिद्वार सांसद डा. रमेश पोखरियाल निशंक के उपन्यास पर आधारित गढ़वाली फिल्म मेजर निराला रिलीज होने को तैयार है। फिल्म में हेमंत पांडे, हिमानी शिवपुरी जैसे कलाकार नजर आएंगे। इसके गीत कैलाश खैर व नरेंद्र सिंह नेगी ने गाए हैं।
हिमश्री प्रोडक्शन के बैनर तले रिलीज हो रही फिल्म मेजर निराला में एक फौजी के अदम्य साहस और मार्मिकता को दर्शाया है। फिल्म के डायरेक्टर गणेश बीरान गणि और प्रोड्यूसर डा. रमेश पोखरियाल निशंक की बेटी आरूषि निशंक हैं। खास बात यह है कि डा. निशंक ने फिल्म में दो गाने भी लिखे हैं। गीतों में आवाज नरेन्द्र सिंह नेगी और दिग्गज गायक कैलाश खैर ने दी है।
विदित हो कि नेगी के गीत अब कथगा खैल्यू को निशंक पर टिप्पणी माना गया था। इसके बाद निशंक और नेगी इस फिल्म के जरिए एक मंच पर आ रहे हैं । इसके साथ ही उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद के उपाध्यक्ष हेमंत पांडे ने भी पहली बार गढ़वाली फिल्म में नेपाली युवक की भूमिका अदा की है। अदाकारा हिमानी शिवपुरी भी फिल्म में नजर आएंगी। गत मई में फिल्म की अधिकांश शूटिंग पौड़ी के अलावा चकराता और मालदेवता में की गई।

उत्तराखण्ड में गाय गंगा महिला डेयरी योजना का शुभारंभ
किसान भवन रिंग रोड पर उत्तराखंड सहकारी डेयरी फेडरेशन हल्द्वानी के वार्षिक सामान्य बैठक के दौरान योजना का भी शुभारंभ किया गया। इस दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने 16 काश्तकारों को गाय लोन के चेक और छह को अपने हाथों से गाय दी। इस दौरान उन्होंने कहा कि प्रदेश में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने और पलायन रोकने में इस योजना से काफी मदद मिलेगी।
कार्यक्रम के दौरान सहकारिता मंत्री डा. धनसिंह रावत ने कहा मुख्यमंत्री से दुग्ध संघ भवन बनाने की भी मांग की। उन्होंने कहा कि जनवरी 2018 में मुख्यमंत्री कामधेनु डेयरी योजना की शुरूआत की जायेगी।

उप राष्ट्रपति ने किया निशंक की पुस्तक 'युग पुरुष भारत रत्‍‌न अटल जी ' का लोकार्पण
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू गुरुवार को नई दिल्ली में अपने निवास में डॉक्टर निशक द्वारा लिखी गई पुस्तक 'युग पुरुष भारत रत्‍‌न अटल जी' का लोकार्पण कर रहे थे। इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी का योगदान अविस्मरणीय है। इस दौरान उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बिताए दौर को भी साझा किया। उपराष्ट्रपति ने डॉ निशक को अंगवस्त्र ओढ़ाकर सम्मानित किया
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uttarakhand current affairs jan 2018

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uttarakhand special

गणतंत्र दिवस परेड, 2018 राजपथ #NewDelhi में #Uttarakhand राज्य की झांकी ‘ग्रामीण पर्यटन' (Village Tourism) को रक्षा मंत्रालय द्वारा नई दिल्ली में आयोजित बैठक में अंतिम रूप से चयनित कर लिया गया है। यह जानकारी देते हुए महानिदेशक सूचना डाॅ० पंकज कुमार पाण्डेय ने बताया है कि रक्षा मंत्रालय भारत सरकार के अधीन गठित विशेषज्ञ समिति के सम्मुख 29 राज्यों और 20 मंत्रालयों द्वारा अपने प्रस्ताव प्रेषित किये गये थे। जिसमें से अंतिम रूप से केवल 14 राज्य 07 मंत्रालयों की झांकियों का चयन किया गया है
..................डाॅ० पाण्डेय ने बताया कि राज्य गठन से लेेकर अभी तक उत्तराखण्ड द्वारा वर्ष 2003 में ‘फुलदेई‘, वर्ष 2005 में ‘नंदा राजजात', वर्ष 2006 में ‘फूलों की घाटी‘, वर्ष 2007 में ‘कार्बेट नेशनल पार्क', वर्ष 2009 में ‘साहसिक पर्यटन‘, वर्ष 2010 में ‘कुंभ मेला‘, वर्ष 2014 में ‘जड़ी-बूटी', वर्ष 2015 में ‘केदारनाथ‘ तथा वर्ष 2016 में ‘रम्माण‘ विषयों की झांकियों का प्रदर्शन राजपथ पर किया जा चुका है।
देवभूमि के नाम से विख्यात उत्तराखण्ड में प्रकृति और संस्कृति के मनमोहक नजारे बिखरे पड़े हैं। उत्तराखण्ड ग्रामीण पर्यटन के विकास की दृष्टि से अत्यंत संभावनाशील राज्य है। इस शांत व सुरम्य पर्वतीय अंचल के ग्रामीण क्षेत्रों में लोक-जीवन, कला-संस्कृति और विरासत के अद्भुत और अद्वितीय आयाम पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करते हैं। शहरों की भीड़भाड़ से दूर उत्तराखण्ड की शांत वादियां, यहां साफ-सुथरी आबो-हवा, विविधतापूर्ण विरासत और अतिथि सत्कार की समृद्ध लोक परंपरा ग्रामीण पर्यटन के दृष्टिकोण से उत्तराखण्ड को आदर्श गंतव्य के रूप में स्थापित करती हैं। इससे जहाॅ स्थानीय समुदाय को आर्थिक व सामाजिक रूप से लाभ होता है, वहीं पर्यटकों को समृद्ध पर्यटन की अनूठी अनुभूति से साक्षात्कार का सुअवसर प्राप्त हो रहा है। पर्यावरण के प्रति संवेनदशील ग्रामीण पर्यटन के अंतर्गत सांस्कृतिक पर्यटन, प्राकृतिक पर्यटन और पारिस्थितकीय पर्यटन जैसे अनेकों आयामों को सम्मिलित करते हुए इसमें स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,केंद्रीय मंत्री श्री गडकरी ने बताया कि #Auli को दावोस की भांति अंतर्राष्ट्रीय डेस्टिनेशन बनाने के लिए काम शुरु किया गया है। इसके लिए विश्व स्तरीय कंसल्टेंसी एजेंसी की सेवा भी ली गई है। कंसल्टेंसी एजेंसी द्वारा उत्तराखण्ड और हिमाचल में ऐसे 100 स्थल चिन्ह्ति किए गए हैं, जहां पर रोपवे ,केबल कार और फरनकुलर रेलवे जैसे वैकल्पिक परिवहन साधनों का उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वह मुख्यमंत्री के साथ बैठक कर इन सभी स्थानों पर विस्तृत चर्चा करेंगे और शीघ्र ही एक ठोस कार्ययोजना बनाई जाएगी। श्री गडकरी ने यह भी कहा कि उत्तराखंड की बड़ी झीलों और नदियों के लिए सी-प्लेन पर भी विचार किया जा सकता है। यह परिवहन के एक वैकल्पिक साधन के साथ ही पर्यटकों के आकर्षण का एक प्रमुख जरिया भी बनेगा।

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सरकारें judiciary के हस्तक्षेप का इंतजार क्यों करती हैं.

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learn about pros and cons of revenue police system in uttarakhand

learn about pros and cons of revenue police system in uttarakhand
#ukpcsinterview
Uttarakhand is known for a unique police system in which civil
officials of the Revenue Department have powers and functions of Police.Although regular police is established in the state, yet in some hill pattis jurisdiction of the police is yet to be extended to and the revenue officialsperform functions of police like arrest of offenders and investigation. With
their limited resources they are doing this for about a century. In this paper, an attempt has been made to discuss the law which authorizes therevenue officials to perform police functions. Besides this, related history
has also been touched in brief. To be truthful, the present paper is not anew work but has been prepared with study material of three books namely
1. ‘Uttarakhand Ka Faujdari Prabandh’ written by Hon’ble Mr. JusticePrafulla C. Pant, Judge of the Hon’ble High Court of Uttarakhand atNainital,
2. ‘British Administration in Kumaon Himalayas’ written by
Dr. Arun Kumar Mittal and 3, ‘Bharat Ka Vidhik Itihas’ written by Sh.Surendra Madhukar. Besides this, material made available by the revenue
department and guidance of seniors also helped to reduce the subject inutshell so as make it possible for the readers to go through the same inshort time.
2. As we know offences are defined and punishment there for areprescribed in Indian Penal Code, 1860 and other penal enactments such
as Arms Act, 1959, Narcotic Drugs & Psychotropic Substances Act, 1985,Prevention of Corruption Act, 1988, Schedule Caste and Schedule Tribes
(Prevention of Atrocities) Act, 1989 etc. Merely defining the offencesand providing punishment is not sufficient, as at the same time procedural
law is required so that the offences may be investigated, inquired into,
tried and otherwise dealt with. The Code of Criminal Procedure, 1973 is
such main law which provides that all the offences under the Indian Penal
* LL.M. Delhi University, Civil Judge, Senior Division, Roorkee, Haridwar
Revenue Police in Uttarakhand : History and Law
121
Code are to be investigated, inquired into, tried and otherwise dealt with
as per the provisions of the Code.
3. As far as investigation and other allied duties are concerned, in
the Code, they have been given to the police or more particularly to the
officer in charge of police station. Police was defined and established by
century old enactment known as Police Act, 1861. In the State of
Uttarakhand, the Uttarakhand Police Act, 2007 has been brought into force
and by which, the Act of 1861 has been repealed in context of the State.
However, there is one peculiar thing in Uttarakhand. In the Hill Pattis of
the State, certain revenue officials such as Kanoongo, Lekhpal and
particularly Patwari have been conferred upon the powers and functions
of the police officer to investigate the offences. As the Code of Criminal
Procedure, 1973 which extends to this State also, provides that investigation
may only be done by police officer; therefore, in the following paragraphs
an attempt is being made to discuss such special laws which give power
to the revenue officials to investigate and perform other connected
functions.
4. Although in the hilly areas of the State, powers have uniformly
been conferred upon the revenue officials to investigate offences, but the
special enactments, where-under such special powers have been given
are not one. The State of Uttarakhand may be classified into three regions
wherein three different enactments are in force which give the revenue
officials powers of police to arrest and investigate etc. These three regions
are:-
(a) Hill Pattis of Kumaon and Garhwal Division which once formed
part of British India.
(b) Hill Pattis of district Tehri and Uttarkashi.
(c) Jaunsar-Bawar region of district Dehradun.
5. Revenue Police in hill Pattis of Kumaon and Garhwal Division
which once formed part of British India:- The hill districts of Kumaon
Division which once formed part of British India are Almora, Bageshwar,
Champawat, Nainital and Pithoragarh. Till 1790, Kumaon was ruled by
Chand dynasty. During the Chand period, the Thokdars and Padhans
used to perform functions of police. In 1790 Chands were ousted by
Gurkhas who ruled Kumaon through military officers. As such, during the
Uttarakhand Judicial & Legal Review
122
Gurkha period, military officers performed functions of both, army and
police. Soon they invaded Garhwal and were successful in annexing a
large part thereof. Finally in 1815 A.D., British ousted Gurkhas and as per
the famous treaty of Saigauli, river Kali became the international border
of then British India and Nepal. It is said that the then rulers of Tehri who
had lost their territories to Gurkhas requested British to oust the Gurkhas
from Garhwal and promised to pay Nazrana in return. However, after
the war they could not pay the same and in lieu of the Nazrana promised,
the British kept western part of the Garhwal which they started calling
British Garhwal. It consisted of present day districts of Pauri, Chamoli
and Rudraprayag. As the British Garhwal was merged with Kumaon for
administrative purpose and became part of the then Kumaon
Commissionary, for sake of convenience we may call the Kumaon and
Garhwal which came under the British, the then British Kumaon.
6. British who came to India as traders and later became rulers,
were smart enough to appreciate the then peculiar geographical,
demographical and socio-economical features of hill pattis of British
Kumaon. Therefore, when G.W.Trail, then second Commissioner of
Kumaon who served as such from 1816 to 1830, wrote that no special
police was required as crimes were very rare in Kumaon, it was decided
that no regular police was needed except in towns like Almora, Ranikhet
and Nainital etc.. Soon the post of Patwari which was common in Mughal
administration and in the adjoining plain areas, was introduced in revenue
administration of British Kumaon. Although Kumaon had come under the
British rule, but due to its distinct geographical, demographical and socioeconomical
features, it remained a non-regulated area where as compared
to his counterpart of the plain, Commissioner had more powers and
autonomy. In non-regulated area, special rules and regulations could have
been framed and under the very such special rules, regulations and
administrative instructions, Patwaris were given powers and functions of
the police officer. Besides this, the conventional posts like Thokdars and
Padhans were not abolished, but they continued in the roll of the
Government and were also given limited functions of police like arrest of
offenders and forwarding them before a Patwari.
7. Thus, a special police system started functioning in British Kumaon
in which the revenue officials with the help of Thokdars and Padhans
Revenue Police in Uttarakhand : History and Law
123
had the powers to apprehend offenders, investigate the offences and do
connected functions. The System was functioning under the special rules
and administrative instructions and there was no superior law to the contrary
having simultaneous extension in British Kumaon. In this context,
noteworthy is the point that at the same time regular police was also
raised and police stations were established in towns like Almora, Ranikhet
and Nainital. The first police station was established at Almora in 1837.
After six years, in 1843 another police station was established at Ranikhet.
Although regular police was working in towns where police stations had
been established, a large part of the Commissionary was still under the
revenue police.
8. After few years, in the year 1833, which is considered by many
as milestone in the history of the Indian legal system, came an Act which
introduced codification of laws. Before 1833 there was no provision of
enactments. Regulations used to be the governing laws and all the three
presidencies namely Bengal, Bombay and Madras had separate and
independent powers to make regulations. By the time the Act of 1833
came into force, 675, 259 and 251 regulations had already been passed
respectively in Bengal, Bombay and Madras presidencies. Accordingly, at
that time India used to be called country of regulations. The Act of 1833
was enacted not only to introduce codification of the laws, but to establish
one single legislative institution at the central level to enact uniform laws,
as, at times regulations were contrary to each other on the same legal
point. Thus, after the Act of 1833 India started to have codified laws.
Indian Penal Code, 1860, Societies Registration Act, 1860, Police Act,
1861, Hindu Widow Re-marriage Act, 1856 were some of the initial
enactments.
9. Till now the revenue police system was based on administrative
instructions by whatever name they might have been called and there
was no superior law to the contrary. However, in 1861 the Police Act
was enacted and after some years the Code of Criminal Procedure, 1898
also came into force. Although, the Police Act which provides for
establishment of regular police had came into force in 1861, but it was
extended to the British Kumaon i.e. then Almora, Garhwal and Nainital
district in the year 1892 vide Notification No.1254/VIII-228-A-81 dated
30.8.1892. Thus, it appears that after coming into force of the said two
Uttarakhand Judicial & Legal Review
124
enactments, it became necessary to give the existing revenue police system
a legal basis which could confirm to the said two laws. Fortunately, in the
year 1874 Scheduled Districts Act had come into force. One of the objects
of this Act was to make special provisions for such parts of British India
which due to their distinct geographical, demographical and socio-economic
features were never brought under the general laws or for the same reason
could not be. Section 6 of the Act accordingly provides that the local
government within the scheduled district (districts enlisted in schedule of
the Act), may appoint officers to administer civil and criminal justice and
prescribe procedure to be followed.
10. Accordingly, in the year 1916, in exercise of Section 6 of the
Scheduled Districts Act, 1874, rules were made for appointing police
officers, regulating their procedure and prescribing the powers and duties
to be exercised and performed by them in the districts of Almora, Garhwal
and hill pattis of Nainital. The said rules are known as ‘KUMAUN
POLICE’ and were published vide Notification No. 494/VIII/-418-16 dated
07.3.1916. In rule 1 of the said rules, various revenue officials like
Peshkars, Kanoongo, Superintendent of Patwaris and Patwaris and
conventional posts such as Thokdars, Padhans and village headmen under
the roll of the Government were given various powers and functions of
police. Further, whereas the revenue official were given vide powers of
police including powers of officer in charge of the police station to register
the report and investigate, powers of conventional posts which now have
almost become redundant were limited only to arrest the offenders and
report the matter to revenue officials. In this context, it very important to
see that the opening words used in rule 1 of the rules ‘In addition to the
police enrolled in Act V of 1861…’ appears to give an idea that revenue
police system is in addition to and not in derogation of the regular police
and shall work where jurisdiction of the regular police does not extend.
11. The rules known as ‘Kumaun Police’ framed in exercise of
powers conferred by Section 6 of the Scheduled Districts Act, 1874 in the
year 1916 are still in force. They confer powers and functions of police
and officer in charge of the police station to such revenue officers as are
mentioned therein. Revenue officials perform police functions in such areas
of present districts of Almora, Bageshwar, Champawat, Chamoli,
Pithoragarh, Pauri, Rudraprayag and hill pattis of district Nainital where
Revenue Police in Uttarakhand : History and Law
125
jurisdiction of the regular police does not extend. Further, since Police Act
of 1861 has been repealed and replaced by the Uttarakhand Police Act,
2007 in Uttarakhand, and the Code of Criminal Procedure, 1898 by the
new Code of 1973 in the country, therefore, in the said rules of 1916
wherever the words ‘Police Act, 1861’ or ‘Code of Criminal Procedure,
1898’ occur, as per sub-section (1) of section 8 of General Clauses Act,
1897, they shall respectively be read as ‘Uttarakhand Police Act, 2007’
and ‘Code of Criminal Procedure, 1973’.
12. Revenue Police in Hill Pattis of District Tehri and Uttarkashi:-
It is said that though, the erstwhile Princely State of Tehri had its own
systems, yet it usually followed the criminal justice system as was prevalent
in British India. Like neighbouring British Garhwal, in Tehri also revenue
officers like Patwaris had police powers. After independence when this
princely state merged with Union of India, since the ‘Kumaun Police’
rules had extension to then district Garhwal only, to continue with the
revenue police system and to make uniformity in all hill pattis of State, a
special enactment was necessary which could confer upon the revenue
officials powers and functions of police. Accordingly, the Tehri Garhwal
Revenue Officials (Special Powers) Act, 1956 was enacted. This Act
does not itself give the revenue officers namely Lekhpal, Patwari etc.
police powers, but vide section 2 which provides that the State Government
may do so by issuing orders in this behalf. In exercise of such power, the
State Government issued orders dated 04.3.1958 where under Patwaris
of hill pattis of present districts of Tehri and Uttarkashi have been given
powers and functions of officer in charge of police station to arrest and
investigate. In this context, noteworthy is the point that the orders dated
04.3.1958 is very similar to the ‘Kumaun Police’ rules framed in 1916
under the Schedule Districts Act, 1874.
13. Revenue Police in Jaunsar-Bawar Region of District Dehradun:-
District Dehradun not only comprises plain region, but hill pattis also. The
Jaunsar-Bawar parganas has the same geographical, demographical and
socio-economic features as those of the other hill regions of the state. In
fact, till 1958, revenue police system was working in this region which like
the districts of Almora, Garhwal and Nainital was also under the British
Administration. Under the Bengal Regulation XI of 1831 Tehsildar
Chakrata was empowered with powers of police in Jaunsar-Bawar areas
Uttarakhand Judicial & Legal Review
126
of district Dehradun. It appears that soon after commencement of the
Tehri Garhwal Revenue Officials (Special Powers) Act, 1956 necessity
of a similar enactment was also felt for Jaunsar-Bawar area for two
probable reasons. The first was that under the Bengal Regulation XI of
1831, only Tehsildar of Chakrata was empowered with the police powers
and it might have been very difficult for him to exercise such powers in
the whole of the Jaunsar-Bawar area, and the Government might have
appreciated that like the other hill pattis of the State, other revenue officials
particularly Patwaris should be given powers and functions of the police
to arrest and investigate. Secondly, Bengal Regulation XI of 1831 was not
an enactment and under the Code read with Police Act, it was possible
for a police officer only to exercise powers and functions of police.
Accordingly, the Jaunsar-Bawar Pargana (District Dehradun) Revenue
Officials (Special Powers) Act, 1958 was passed which is very similar to
the Tehri Garhwal Revenue Officials (Special Power) Act, 1956.
14. Thus, in the state of Uttarakhand, the laws which confer upon the
revenue officials the powers of police to arrest and investigate are not
one. There are three such laws. Whereas ‘Kumaun Police’ rules of 1916
made under the Scheduled Districts Act, 1874 are applicable in present
districts of Almora, Bageshwar, Champawat, Chamoli, Pithoragarh, Pauri,
Rudraprayag and hill pattis of district Nainital, the Tehri Garhwal Revenue
Officials (Special Powers) Act, 1956 and the Jaunsar-Bawar Pargana
(District Dehradun) Revenue Officials (Special Powers) Act, 1958 operate
in the districts of Tehri and Uttarkashi, and the Jaunsar-Bawar Pargana
of district Dehradun, respectively. However, there is one thing common
among all the three. It being, that, for the purpose of investigation and
allied matters relating to the offences, the revenue officials mentioned
therein shall deemed to be a police officer so competent under the Code.
Further, such powers and functions of the revenue officials are in effect
in only those areas where the jurisdiction of regular police does not extend.

uttarakhand special

अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड के विश्वविद्यालय सिस्टम में 25 प्रतिशत महिला सहभागिता है। महिला रिसर्च स्काॅलर 16 प्रतिशत हैं जबकि महिला फेकल्टी 9 प्रतिशत हैं। इसमें उत्तराखंड में स्थित राज्य विश्वविद्यालयों, निजी विश्वविद्यालयों, केंद्रीय विश्वविद्यालय का तुलनात्मक अध्ययन भी किया गया। इसमें पाया गया कि उत्तराखंड में स्थित निजी व केंद्रीय विश्वविद्यालय की तुलना में राज्य विश्वविद्यालयों में महिला सहभागिता सर्वाधिक है। उत्तराखंड के राज्य विश्वविद्यालयों में महिला फेकल्टी व महिला पी.एच.डी., निजी व केंद्रीय विश्वविद्यालय से अधिक है। राज्य विश्वविद्यालयों में महिला फेकल्टी 20.98 प्रतिशत है जबकि निजी विश्वविद्यालयों में 16 प्रतिशत है। राज्य विश्वविद्यालयों में 18 प्रतिशत महिला पी.एच.डी. हैं जबकि उत्तराखंड में स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय में 11 प्रतिशत महिला पी.एच.डी. हैं।
,,,,,,,,,,,,,,,,मुख्यमंत्री Trivendra Singh Rawat ने मुख्यमंत्री आवास स्थित जनता मिलन हाॅल में फिक्की द्वारा आयोजित कार्यक्रम में FICCI LADIES ORGANISATION (FLO) के Uttarakhand Chapter का शुभारंभ किया। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मुख्यमंत्री श्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि प्रदेश में महिला सशक्तिकरण के लिये तीन योजनाएं संचालित की जा रही है। रेडिमेड वस्त्रों के 670 सेंटर स्थापित किये जायेंगे। प्रारम्भिक तौर पर 15 सेंटर स्थापित किये जा रहे है।

अगले चार महीने में 179 आटोमेटिक वेदर स्टेशन स्थापित हो जाएंगे। डॉप्लर रडार के लिए मसूरी, मुक्तेश्वर और पिथौरागढ़ में स्थल का चयन कर लिया गया है। स्थापित करने की प्रक्रिया 18 महीने में पूरी हो जाएगी। पहला डॉप्लर रडार मसूरी में लगाया जाएगा। यह जानकारी मुख्य सचिव श्री Utpal Kumar Singh ने सचिवालय में भारतीय मौसम विभाग के उप महानिदेशक डॉ० डी० प्रधान के साथ विचार विमर्श के दौरान दी।

मुख्यमंत्री श्री Trivendra Singh Rawat से मुख्यमंत्री आवास में पर्वतारोही सुश्री अमिषा चौहान ने शिष्टाचार भेंट की। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कु० अमिषा चौहान को बधाई एवं शुभकामनायें दी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा सुश्री अमिषा चौहान को हर संभव सहयोग दिया जायेगा। जिन्होंने देश के लिए एक नया रिकार्ड बनाया हैं तथा माउंट किलीमंजारो की चढ़ाई केवल 54 घण्टे में पूरी करने वाले वे पहली भारतीय महिला है। 

मुख्यमंत्री श्री Trivendra Singh Rawat से मुख्यमंत्री आवास में पर्वतारोही सुश्री अमिषा चौहान ने शिष्टाचार भेंट की। मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कु० अमिषा चौहान को बधाई एवं शुभकामनायें दी। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा सुश्री अमिषा चौहान को हर संभव सहयोग दिया जायेगा। जिन्होंने देश के लिए एक नया रिकार्ड बनाया हैं तथा माउंट किलीमंजारो की चढ़ाई केवल 54 घण्टे में पूरी करने वाले वे पहली भारतीय महिला है। 

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6 January 2018

Everyrhing ABOUT UKPSC by samveg ias

Samveg ias academy
Everyrhing ABOUT UKPSC by samveg ias
#UKPSCVIDEO
#ABOUTUKPSC
PLEASE WATCH THIS VIDEO ABOUT UKPSC AND SHARE IT, AND ALSO MAKE SUGGESTIONS TOO.
WE ARE WAITING FOR RESPONSE!!!
https://youtu.be/dv0oMzmV4ec

पंडित चक्रधर जोशी पर डाक आवरण पत्र

राजभवन में आयोजित एक संक्षिप्त कार्यक्रम में राज्यपाल Dr. K.K. Paul ने स्व० पंडित चक्रधर जोशी पर डाक आवरण पत्र का अनावरण किया। पं० चक्रधर जोशी ने 1946 में देवप्रयाग में नक्षत्र वैधशाला की स्थापना की थी।
राज्यपाल ने डाक विभाग को बधाई देते हुए कहा कि पं० चक्रधर जोशी, ज्योतिष के बड़े विद्वान थे। उन पर डाक आवरण जारी होने से लोग उनके व्यक्तित्व व कार्यों से परिचित होंगे। राज्यपाल ने स्व० चक्रधर जोशी द्वारा ज्योतिष पर लिखे ग्रन्थों का अंग्रेजी में अनुवाद किए जाने का सुझाव दिया ताकि दूसरे देशों के लोगों को भी उनके ज्ञान की जानकारी मिले।
रिस्पना और बिंदाल नदियों का रिवर फ्रंट डेवेलपमेंट किया जाएगा। इसके लिए हाइड्रोलॉजिकल स्टडी कर ली गयी है। नदियों के दोनों किनारों को विकसित किया जाएगा। एक किनारे पर सड़क और दूसरे किनारे पर ग्रीन स्पेस होगा। मास्टर प्लानिंग और फिजिबिलिटी स्टडी करा लिया गया है।

very good material about kida jadi collected from various sources

very good material about kida jadi collected from various sources.
पहाड़ों में कीड़ा जड़ी की तूफ़ानी माँग
हिमालय के ऊंचाई वाले इलाकों में एक नायाब जड़ी मिलती है ‘यारशागुंबा’ जिसका उपयोग भारत में तो नहीं होता लेकिन चीन में इसका इस्तेमाल प्राकृतिक स्टीरॉयड की तरह किया जाता है.
What is Keeda Jadi?
Himalaya is the place of medical plants which cannot be found anywhere else. Their rarity and remarkable healing power makes them expensive in the global market. One such rich biological resource is Cordyceps Sinensis which is locally known as Keeda Jadi. It can cure a variety of ailments from such as fatigue and cancer and to cure impotency. It is also known as Caterpillar fungus (English) and Yartsa Gungu (Tibetan).
Keeda Jadi is basically a fungus which grows as a parasite on the larvae of a particular kind of caterpillar. The fungus evolves in the living larva, which kills and mummifies the larva and then develops as a stalk-like fruiting figure. Caterpillars take 5 years to grow underground in Alpine grass and shrub lands before finally pupating (from larva) and are attacked by the fungus while feeding on roots. It finally takes the shape of 5-15 centimeter columnar mushroom out of the forehead of the caterpillar. It is mostly found in Darchula in Mahakali zone in the Nepal and India. As per Indian government rules, locals are allowed to gather Keeda Jadi, but not to trade it outside India.
यारसागंबू एक तरह का फफूंद है, जो सेक्स पावर बढ़ाने में इस्तेमाल किया जाता है। जंतु विज्ञानी इसे कारडिसेप्स साइनेंनसिक नाम से पुकारते हैं।
-तिब्बत में इसे जाड़े का कीड़ा भी कहा जाता है। फेफड़े की कार्य प्रणाली बेहतर करने के साथ ही शुक्राणु जनित रोगों के लिए भी यह फायदेमंद है।
-यह जड़ी 3200 से लेकर 4000 मीटर की ऊंचाई पर पाई जाती है। यह फंगस लारवा पर परजीवी के रूप में संक्त्रस्मण करता है। इसकी लंबाई सात से 10 सेंटीमीटर तक होती है।
-कीड़ा जड़ी में बिटामिन बी-12, मेनोटाल, कार्डिसेपिक अम्ल, इर्गोस्टाल के साथ-साथ 25 से 32 प्रतिशत तक कार्डोसेपिन, डीपाक्सीनोपिन भी होता है।
-यौन दुर्बलता दूर करने के साथ ही गठिया और वात रोग में भी यह कारगर है।
Market Value of Keeda Jadi:
In the global market, Keeda Jadi is worth Rs 18 lakh for a kilogram which is around 3500 and 4500 pieces of fungus. But in reality, the locals get only Rs 1 or 2 lakh for collecting and selling them. In India, every year families in some regions of rural Kumaon along with their children plod up in hills of Himalayas at the altitude of 3500 to 5000 meters to collect the Keeda Jadi. In India, it is found in Chamoli, Uttarakhand and hilly areas of Himachal Pradesh.
Their high value also leads to the conflict among villages and illegal trade as in India it is not legalized. This rare fungus is only found when summer sets in and snow (glacier) melts at higher altitudes of Kumaon region and exposes mummified caterpillars. People have started using uneven means to collect Keeda Jadi. Sometimes, forests are put on fire to melt the snow. Such unnatural practices are causing damage to the environment and precious species also. The government should take necessary steps to preserve these endangered caterpillar fungi. There are some incidents where police of Uttarakhand arrested the people carrying Herbal Viagra for trade purposes.
It has great demand in China where it is used for medical purposes since the 14th century. It is only found in the Himalayas and the areas of Tibetan Plateau. Bhutan government legalized its sale in 2001 and collects its revenue share from it. Because of overharvesting and over exploitation, it is one of the endangered species in China. It is in demand for its energy booster and aphrodisiac qualities. In the 1990s, some Chinese athletes gave credit of their success to Keeda Jadi which increased its demand in the Chinese market.
We all agree that we share the treasure nature has given us for medical purposes, but that does not justify the use of uneven means for any selfish motives. Situations like this also highlight the rural life of people of Uttarakhand who take up uneven means for their sustenance.
शक्ति बढ़ाने में इसकी करामाती क्षमता के कारण चीन में ये जड़ी खिलाड़ियों ख़ासकर एथलीटों को दी जाती है.
इस जड़ी की यह उपयोगिता देखकर पिथौरागढ़ और धारचूला के इलाक़ों में बड़े पैमाने पर स्थानीय लोग इसका दोहन और तस्करी कर रहे हैं क्योंकि चीन में इसकी मुँहमाँगी क़ीमत मिलती है.
यहाँ तक कि इसके संग्रह और व्यापार में शामिल लोगों में इसके लिए ख़ूनी संघर्ष होने की घटनाएं देखने में आई हैं और कुमाऊँ में हत्या के दो मामले भी दर्ज हो चुके हैं.
जब इसके अवैध कारोबार की ख़बर सरकार और वैज्ञानिकों के कानों में पड़ी तो सब जागे और इसकी खोज में निकल पड़े बर्फ से लदी चोटियों की तरफ.
कीड़ा-जड़ी
सामान्य तौर पर समझें तो ये एक तरह का जंगली मशरूम है जो एक ख़ास कीड़े की इल्लियों यानी कैटरपिलर्स को मारकर उसपर पनपता है.
इस जड़ी का वैज्ञानिक नाम है कॉर्डिसेप्स साइनेसिस और जिस कीड़े के कैटरपिलर्स पर ये उगता है उसका नाम है हैपिलस फैब्रिकस.
स्थानीय लोग इसे कीड़ा-जड़ी कहते हैं क्योंकि ये आधा कीड़ा है और आधा जड़ी है और चीन-तिब्बत में इसे यारशागुंबा कहा जाता है.
ये जड़ी 3500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है जहां ट्रीलाइन ख़त्म हो जाती है यानी जहां के बाद पेड़ उगने बंद हो जाते हैं. मई से जुलाई में जब बर्फ पिघलती है तो इसके पनपने का चक्र शुरू जाता है.
देहरादून स्थित भारतीय वन अनुसंधान संस्थान, एफआरआई का एक दल हाल ही में इसका अध्ययन करके लौटा है. एफआरआई में फॉरेस्ट पैथोलजी विभाग के प्रमुख डॉ निर्मल सुधीर हर्ष बताते हैं, "ये जड़ी 3500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है जहां ट्रीलाइन ख़त्म हो जाती है यानी जहां के बाद पेड़ उगने बंद हो जाते हैं. मई से जुलाई में जब बर्फ पिघलती है तो इसके पनपने का चक्र शुरू जाता है.”
इसकी तलाश करना आसान नहीं. एफआरआई की जिस टीम ने इसके लिए इन दुर्गम इलाक़ों की ख़ाक छानी उसके सदस्य रिसर्च एसोसिएट कुमार खनेजा ने अपना अनुभव बताया, “धारचूला से क़रीब 10 दिन की पैदल ट्रैकिंग करने के बाद बड़ी मुश्किल से हम वहाँ पहुँचे लेकिन स्थानीय लोगों ने वहाँ पहले से ही डेरा डाल रखा था.”
“इसे लाने के लिए उसे ही भेजा जाता है जिसकी निगाहें तेज़ हो क्योंकि ये नरम घास के बिल्कुल अंदर छुपा होता है और बड़ी कठिनाई से ही पहचाना जा सकता है.”
करामाती बूटी
ये करामाती जड़ी सुर्खियों में न आती, अगर इसकी तलाश को लेकर हाल के समय में मारामारी न मचती और ये सबसे पहले हुआ स्टुअटगार्ड विश्व चैंपियनशिप में 1500 मीटर, तीन हज़ार मीटर और दस हज़ार मीटर वर्ग में चीन की महिला एथलीटों के रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन के बाद.
उत्तराखंड की पहाड़िया
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करामाती बूटी उत्तराखंड के ऐसे ऊँचे इलाक़ों में ज़्यादा पाई जाती है
उनकी ट्रेनर मा जुनरेन ने पत्रकारों को बयान दिया कि उन्हें यारशागुंबा का नियमित रूप से सेवन कराया गया है.
बताया जाता है कि 3-4 साल पहले जहाँ ये फंगस चार लाख रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिकता था वहीं अब इसकी क़ीमत आठ से 10 लाख प्रति किलोग्राम हो गई है.
वनस्पतिशास्त्री डॉक्टर एएन शुक्ला कहते हैं, “इस फंगस में प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं. ये तत्काल रूप में ताक़त देते हैं और खिलाड़ियों का जो डोपिंग टेस्ट किया जाता है उसमें ये पकड़ा नहीं जाता.”
चीनी –तिब्बती परंपरागत चिकित्सा पद्धति में इसके और भी उपयोग हैं. देहरादून के एक बौद्ध मठ के पुजारी प्रेमा लामा कहते हैं, “फेफड़ों और किडनी के इलाज में इसे जीवन रक्षक दवा माना गया है.”
सूत्रों के अनुसार कीड़ा-जड़ी से अब यौन उत्तेजना बढ़ाने वाले टॉनिक भी तैयार किए जा रहे हैं जिनकी भारी मांग है.”
इन सब कारणों से इसकी अहमियत इतनी ज़्यादा है और गुपचुप कारोबार जारी है. उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक एसएस रावत कहते हैं कि, “इसके कारोबार को वैध करने का प्रयास किया जा रहा है और वन विभाग ख़ुद इसका संग्रह करवाएगा लेकिन इसमें इतना पैसा शामिल है कि अवैध संग्रहण और तस्करी जारी है.”
दूसरी ओर वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की चिंता ये है कि चाहे अवैध हो या वैध इसके अंधाधुंध दोहन से हिमालय की नाज़ुक जैव विविधता और पारिस्थितिकी का नुक़सान हो रहा है.

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