बढ़ती हुई जनसंख्या की वन एवं वृक्ष आधारित आवश्यकताओं की पूर्ति, धरती को बाढ़, सूखा एवं भू-क्षरण से बचाने तथा प्राण वायु ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित कर मानव जाति के अस्तित्व की रक्षा हेतु वनों के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता है। भारत में सर्वप्रथम वन रक्षा हेतु पहला कदम वर्ष 1855 में ‘भारतीय वानिकी चार्टर’ (Charter of Indian Forestry) की उद्घोषणा के साथ उठाया गया। यह चार्टर पेगू के वन अधीक्षक (Forest Superintendent) डॉ. क्लेलैंड (Dr. Clelland) की अनुशंसा पर जारी किया गया था। वर्ष 1856 में डेट्रीच ब्रैंडीस (Dietrich Brandis) को पेगू का वन अधीक्षक नियुक्त किया गया तथा 1 अप्रैल, 1864 को प्रथम महावन निरीक्षक (Inspector General of Forest) के पद पर इनकी नियुक्ति के साथ भारत में ‘वैज्ञानिक वानिकी’ की नींव पड़ी। इसी कारण इन्हें ‘भारतीय वानिकी का पिता’(Father of Indian Forestry) कहा जाता है। ब्रिटिश काल के दौरान ही डॉ. वोल्कर की अनुशंसा पर वर्ष 1894 में भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति प्रकाशित की गई। इस नीति की कमियों को दूर करने हेतु वर्ष 1952 मेंस्वतंत्र भारत की पहली राष्ट्रीय वन नीति तैयार की गई। इस नीति में वन संसाधनों के संरक्षण एवं विकास पर बल देते हुए देश के एक-तिहाई भू-भाग को वनाच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया था। तत्पश्चात भारत केवन संरक्षण अधिनियम, 1980 तथा राष्ट्रीय वन नीति, 1988 में वन संसाधनों के संरक्षण एवं वनीकरण हेतु स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं, परंतु भारतीय वन क्षेत्र पर अत्यधिक दबाव बना हुआ है। अतः वन क्षेत्र में वृद्धि एवं कमी के आंकड़ों की जानकारी न केवल सरकार के लिए वरन नागरिक समाज के लिए भी आवश्यक हो जाती है। इसी संदर्भ में देश के वनावरण एवं वृक्षावरण की निगरानी अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है तथा इसी परिप्रेक्ष्य में देहरादून स्थित ‘भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग’ (Department of Forest Survey of India) द्वारा प्रत्येक दो वर्ष पर सुदूर संवेदन (Remote Sensing) आधारित उपग्रह चित्रण के माध्यम से देश में वनों एवं वृक्षों की स्थिति पर आधारित ‘भारत वन स्थिति रिपोर्ट’ (ISFR-India State of Forest Report) जारी की जाती है।
पहली भारत वन स्थिति रिपोर्ट-1987 (संदर्भ वर्ष 1981-83) में तैयार की गई थी। इस शृंखला की 13वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2013 (ISFR- 2013) 8 जुलाई, 2014 को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रकाश जावड़ेकर द्वारा जारी की गई जो कि अक्टूबर, 2010 से जनवरी, 2012 के उपग्रह आंकड़ों पर आधारित है। उल्लेखनीय है कि 11वीं भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR-2009) जो कि फरवरी, 2010 में जारी की गई थी, से अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप रिपोर्ट तैयार होने के वर्ष को रिपोर्ट के शीर्षक में लिया जाने लगा है। भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2013 में भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह रिसोर्ससेट-I के सेंसर IRS-P6-LISS-III द्वारा 23.5 मी. के विभेदीकरण (Resolution) तथा 1:50,000 के मापक (न्यूनतम मानचित्रण योग्य क्षेत्र-1 हेक्टेयर) पर आधारित आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं। ज्ञातव्य है कि भारतीय परिस्थितियों के संदर्भ में अक्टूबर-दिसंबर का समय वनावरण मानचित्रण संबंधी उपग्रह आंकड़ों को प्राप्त करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त (मेघ-मुक्त आकाशीय स्थिति के कारण) रहता है।
ISFR-2013 में भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग द्वारा हाल के समय में कराए गए विशिष्ट अध्ययनों के आधार परभारतीय वन की महत्त्वपूर्ण विशेषताएं, शस्यवानिकी में वृक्ष, नगरीय वृक्ष संसाधन एवं भारत के संघीय क्षेत्र एवं राज्यों में वन एवं वृक्ष संसाधन पर अतिरिक्त सामग्री भी प्रस्तुत की गई है।
ISFR-2013 के महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष
उपग्रहीय आंकड़ों (अक्टूबर, 2010- जनवरी, 2012) के विश्लेषण वन/टीओएफ (TOF-Tree Outside Forests) गणना तथा भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग द्वारा कराए गए ISFR-2013 के प्रमुख निष्कर्ष इस प्रकार हैं-
(i) ISFR-2013 के अनुसार, देश में कुल वनावरण 69.79 मिलियन हेक्टेयर (697898 वर्ग किमी.) है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 21.23 प्रतिशत है।
(ii) इस रिपोर्ट के अनुसार, देश में कुल वनावरण एवं वृक्षावरण (Forest and Tree Cover) 78.92 मिलियन हेक्टेयर (789164 वर्ग किमी.) है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 24.01 प्रतिशत है।
- वृक्ष रेखा (Tree Line – 4000 मीटर ऊंचाई स्तर, जिससे ऊपर के क्षेत्र शीत मरुस्थल की भांति होते हैं तथा जो किसी भी प्रकार के वृक्ष की वृद्धि के लिए अनुपयुक्त हैं) से ऊपर के क्षेत्रों (182183 वर्ग किमी.) को हटाने पर यह बढ़कर 25.42 प्रतिशत हो जाता है।
- उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के अनुसार देश के एक-तिहाई अथवा 33.33 प्रतिशत क्षेत्र में (पहाड़ी क्षेत्रों में दो-तिहाई अथवा 66.67 प्रतिशत क्षेत्र में) वन अथवा वृक्षावरण होने आवश्यक हैं।
- ISFR-2011 की तुलना में ISFR-2013 में 5871 वर्ग किमी. के वन क्षेत्र की वृद्धि हुई है।
(iii) ISFR-2013 के अनुसार, देश में कुल वृक्षावरण (Tree Cover) 9.13 मिलियन हेक्टेयर (91266 वर्ग किमी.) है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.78 प्रतिशत है।
(नोट : वनावरण का आकलन उपग्रहीय आंकड़ों के आधार पर सतत मानचित्रण के द्वारा किया जाता है जबकि वृक्षावरण के आकलन के लिए प्रतिदर्श प्रणाली अपनाई जाती है।)
(iv) ISFR-2011 की तुलना में ISFR-2013 में पहाड़ी एवं जनजातीय जिलों में वनावरण में क्रमशः 40 वर्ग किमी. एवं 2396 वर्ग किमी. की वृद्धि दर्ज की गई है।
(v) उत्तर-पूर्वी राज्यों में, जो देश के कुल वनावरण में लगभग एक-चौथाई का योगदान करते हैं, विगत आकलन की तुलना में 627 वर्ग किमी. के वनावरण की कमी दर्ज की गई।
(vi) इस रिपोर्ट में पहली बार वन आच्छादित सूचना को ‘सर्वे ऑफ इंडिया टोपोशीट्स’ (Survey of India Toposheets) के ‘ग्रीन वाश एरिया’ (Green Wash Area) के आधार पर संबद्ध (Inside) एवं बाह्य(Outside) क्षेत्रों में पृथक किया गया है।
- सर्वे ऑफ इंडिया टोपोग्राफिक शीट्स पर कुछ क्षेत्रों को हल्के हरे रंग से प्रदर्शित किया गया है तथा इन्हें सामान्यतः ‘ग्रीन वाश एरिया’ के रूप में निर्दिष्ट किया जाता है।
(vii) ISFR-2011 की तुलना में ISFR-2013 में देश में मैंग्रोव आवरण (Mangrove Cover) में 34 वर्ग किमी. की कमी हुई।
(viii) भारतीय वनों के बाहर वृक्षों (TOF-Trees Outside Forests) का वृद्धिमान स्टॉक (Growing Stock) 5658.046 मिलियन घनमीटर आकलित किया गया है।
(ix) ISFR 2013 में 15 राज्य/संघीय क्षेत्र में उनके भौगोलिक क्षेत्र का 33 प्रतिशत से अधिक भाग वनाच्छादित है जबकि इनमें से 8 राज्य एवं संघशासित क्षेत्र ऐसे हैं जिनके भौगोलिक क्षेत्र का 75 प्रतिशत से अधिक भू-भाग वनाच्छादित है।
अभिलिखित वन क्षेत्र एवं वनावरण
अभिलिखित वन क्षेत्र (Recorded Forest Area) के अंतर्गत सरकारी रिकॉर्डों में ‘वन’ के रूप में अभिलिखित समस्त भौगोलिक क्षेत्र शामिल होता है, चाहे उसमें वनावरण/वृक्षावरण हों या न हों। इसमें मुख्यतः भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत संस्थापित आरक्षित वन क्षेत्र (Reserved Forest Area) तथा संरक्षित वन क्षेत्र (Protected Forest Area) आते हैं। साथ ही इसमें राज्यों के अधिनियमों द्वारा संस्थापित और राजस्व रिकॉर्डों में वन के रूप में अभिलिखित क्षेत्र भी शामिल होते हैं जिन्हें ‘अवर्गीकृत वन’ (Unclassed Forest) कहा जाता है।
दूसरी ओर, भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) में प्रयुक्त वनावरण (Forest Cover) क्षेत्र के तहत एक हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल वाले ऐसे समस्त भौगोलिक क्षेत्रों (अभिलिखित वन के भीतर और बाहर सभी क्षेत्रों) को शामिल किया जाता है जहां वृक्ष छत्र घनत्व (Tree Canopy Density) 10 प्रतिशत से अधिक हो। इसके तहत मैंग्रोव वन क्षेत्र भी शामिल होते हैं। इसे तीन भागों में बांटा जाता है :
- अति सघन वन (VDF-Very Dense Forest), जिनका वृक्ष छत्र घनत्व 70 प्रतिशत से अधिक होता है;
- मध्यम सघन वन (MDF – Moderately Dense Forest), जिनका वृक्ष छत्र घनत्व 40-70 प्रतिशत के बीच होता है; तथा
- खुले वन (OF-Open Forest), जिनका वृक्ष छत्र घनत्व 10-40 प्रतिशत के मध्य होता है।
उल्लेखनीय है कि 10 प्रतिशत से कम वृक्ष छत्र घनत्व वाली निम्नस्तरीय वन भूमि को वनावरण में शामिल नहीं किया जाता तथा इन्हें झाड़ी (Scurb) की श्रेणी में रखते हैं। ISFR- 2013 के अनुसार, देश में झाड़ियों का क्षेत्रफल 41,383 वर्ग किमी. है जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 1.26 प्रतिशत है।
वृक्षावरण (Tree Cover)
अभिलिखित वन क्षेत्र के बाहर के तथा 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल से कम क्षेत्र वाले वृक्षीय क्षेत्रों (वनावरण क्षेत्र के अतिरिक्त) को वृक्षावरण (Tree Cover) क्षेत्र के अंतर्गत शामिल किया जाता है। भारतीय वन सर्वेक्षण विभाग द्वारा देश में वर्ष 2001 से वृक्षावरण का आकलन किया जा रहा है। वर्तमान वृक्षावरण आकलन वर्ष 2006 से 2012 के दौरान देश के 179 प्रतिदर्श जिलों के 28,116 प्रतिदर्श प्लॉटों के आंकड़ों के अध्ययन पर आधारित है।
वृक्षावरण एवं टीओएफ
वृक्षावरण (Tree Cover) एवं टीओएफ (TOF-Tree Outside Forest) दो पृथक पद हैं, परंतु ये दोनों एक-दूसरे से निकटता से जुड़े हैं। टीओएफ के तहत अभिलिखित वन क्षेत्र से बाहर के सभी वृक्षीय क्षेत्रों को शामिल किया जाता है। 1.0 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र वाले टीओएफ को तो उपग्रहीय आंकड़ों के आधार पर वनावरण में शामिल कर लिया जाता है जबकि शेष (1.0 हेक्टेयर से कम क्षेत्र वाले) टीओएफ वृक्षावरण के संघटक रहते हैं।
ISFR-2013 में ISFR-2011 की तुलना में वनावरण में सर्वाधिक वृद्धि पश्चिम बंगाल में (3810 वर्ग किमी.) में तथा सर्वाधिक कमी नगालैंड (274 वर्ग किमी.) में हुई है।
ISFR-2013 के अनुसार, क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक वनावरण वाले 5 राज्य क्रमशः मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र एवं ओडिशा हैं जबकि क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक वनावरण वाले 5 संघीय क्षेत्रक्रमशः अंडमान व निकोबार, दादरा व नगर हवेली, दिल्ली, पुडुचेरी तथा लक्षद्वीप हैं। सर्वाधिक वनावरण प्रतिशतता वाले 5 राज्य/संघीय क्षेत्र क्रमशः मिजोरम (90.38%) लक्षद्वीप (84.56%), अंडमान व निकोबार द्वीप समूह (81.36%) अरुणाचल प्रदेश (80.39%) तथा नगालैंड (78.68%) हैं। सर्वाधिक वनावरण प्रतिशतता वाले भारत के 5 राज्य क्रमशः मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मेघालय एवं मणिपुर हैं जबकि न्यूनतम वनावरण प्रतिशतता वाले भारत के 5 राज्य क्रमशः पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं बिहार हैं। सर्वाधिक वनावरण प्रतिशतता वाले भारत के 4 संघीय क्षेत्र क्रमशः लक्षद्वीप, अंडमान व निकोबार, दादरा व नगर हवेली तथा चंडीगढ़ हैं। वृक्षावरण की दृष्टि से ISFR-2013 मेंसर्वाधिक क्षेत्रफल वाले 5 राज्य क्रमशः महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, जम्मू एवं कश्मीर तथा आंध्र प्रदेश हैं जबकि न्यूनतम क्षेत्रफल वाले 5 राज्य क्रमशः सिक्किम, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर एवं गोवा हैं। भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में सर्वाधिक वृक्षावरण वाले 5 राज्य क्रमशः गोवा, केरल, गुजरात, तमिलनाडु एवं जम्मू एवं कश्मीर हैं। संघीय क्षेत्रों में सर्वाधिक वृक्षावरण प्रतिशत क्रमशः लक्षद्वीप, चंडीगढ़, दमन व दीव तथा दिल्ली में हैं। कुल वृक्षावरण एवं वनावरण क्षेत्र की दृष्टि से सर्वाधिक क्षेत्रफल वाले 5 राज्य क्रमशः मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ एवं ओडिशा हैं जबकि इसी दृष्टि से भौगोलिक क्षेत्र के सर्वाधिक प्रतिशत वाले 4 राज्य/संघीय क्षेत्र क्रमशः लक्षद्वीप (97.06%), मिजोरम (91.44%), अंडमान एवं निकोबार (81.85%) तथा अरुणाचल प्रदेश (81.18%) हैं।
पहाड़ी जिलों में वनावरण
‘पहाड़ी क्षेत्रों और पश्चिमी घाट विकास कार्यक्रम’ के लिए योजना आयोग द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुसार समुद्र तल से 500 मीटर से अधिक ऊंचाई (Altitude) वाले तालुका पहाड़ी श्रेणी में आते हैं तथा किसी जिले में ऐसे तालुकाओं का कुल क्षेत्रफल जिले के क्षेत्रफल के आधे से अधिक होने पर वह ‘पहाड़ी जिला’ (Hill District) कहलाता है। इस परिभाषा के तहत देश के 16 राज्यों/संघीय क्षेत्रों में कुल 124 पहाड़ी जिले हैं।
ISFR-2013 के अनुसार, देश के पहाड़ी जिलों में कुल वनावरण 281,335 वर्ग किमी. (ISFR-2011 के आकलन की तुलना में 40 वर्ग किमी. अधिक) है जो कि इन जिलों के भौगोलिक क्षेत्रफल का 39.75 प्रतिशत है।
उल्लेखनीय है कि अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम, त्रिपुरा एवं उत्तराखंड के सभी जिले पहाड़ी हैं, तथा इन नौ राज्यों में वनावरण इनके समग्र भौगोलिक क्षेत्रफल का 62.86 प्रतिशत है।
जनजातीय जिलों में वनावरण
भारत सरकार के ‘एकीकृत जनजातीय विकास कार्यक्रम’ (Integrated Tribal Development Programme) के तहत देश के 26 राज्यों/संघीय क्षेत्रों के 189 जिलों को ‘जनजातीय जिले’ (Tribal District) की श्रेणी में रखा गया है। इन जनजातीय जिलों में ISFR-2013 के अनुसार कुल वनावरण 415,491 वर्ग किमी. (ISFR-2011 के आकलन से 2396 वर्ग किमी. वृद्धि) है जो कि इन जिलों के भौगोलिक क्षेत्रफल का 37.37 प्रतिशत है।
उत्तर-पूर्वी राज्यों में वनावरण
देश के पूर्वोत्तर भाग के आठ राज्यों नामतः अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम एवं त्रिपुरा में देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का मात्र 7.98 प्रतिशत भू-भाग है जबकि इनमें देश के कुल वनावरण का लगभग एक-चौथाई भाग स्थित है। ISFR- 2013 के अनुसार, इन राज्यों में कुल वनावरण172,592 वर्ग किमी. (ISFR-2011 की तुलना में 627 वर्ग किमी. कम) है जो कि इनके कुल भौगोलिक क्षेत्र का65.83 प्रतिशत है।
विभिन्न उच्चावच (Altitude) क्षेत्रों में वनावरण
ISFR-2013 में विभिन्न उच्चावच (समुद्र स्तर से ऊंचाई) क्षेत्रों में वनावरण के आकलन हेतु शटल रडार टोपोग्राफी मिशन (SRTM) डिजिटल एलीवेशन मॉडल (90 मी. विभेदीकरण क्षमता) का प्रयोग किया गया है। विभिन्न उच्चावच क्षेत्रों में वनावरण की स्थिति निम्न सारणी में प्रदर्शित है-
विभिन्न भूआकृतिक क्षेत्रों में वृक्षावरण
ISFR-2013 के अनुसार देश 14 भूआकृतिक क्षेत्रों (Physiographic Zones) में क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक वृक्षावरण क्रमशः पश्चिमी तट (10,391 वर्ग किमी.), मध्य उच्चभूमियां (10,127 वर्ग किमी.), पूर्वी दक्कन(9,644 वर्ग किमी.), पश्चिमी हिमालय (9,035 वर्ग किमी.) एवं उत्तरी मैदानों (8,609 वर्ग किमी.) क्षेत्र में है। भौगोलिक क्षेत्र के प्रतिशत के रूप में सर्वाधिक वनावरण क्रमशः पश्चिमी तट (8.57%), पश्चिमी घाट(5.79%), पूर्वी तट (3.58%), उत्तरी मैदानों (2.91%) तथा पूर्वी दक्कन (2.87%) में है।
उल्लेखनीय है कि पूर्वी हिमालय क्षेत्र में मात्र 448 वर्ग किमी. (0.60%) का वृक्षावरण है जो कि सभी भूआकृतिक क्षेत्रों में सबसे कम है। यहां वृक्षावरण कम होने का प्रमुख कारण इसके अधिकांश क्षेत्रों को वनावरण के तहत शामिल किया जाना है।
मैंग्रोव वन
मैंग्रोव (Mangrove) लवण सहिष्णु वनस्पति समुदाय हैं जो विश्व के ऐसे उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्ण कटिबंधीय अंतःज्वारीय (Intertidal) क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां वर्षा का स्तर 1000-3000 मिमी. के मध्य एवं ताप का स्तर 26-35oC के मध्य हो।
इन वनों को पृथ्वी पर आर्द्रभूमियों (Wet-lands) की जैवविविधता का संरक्षक माना जाता है। जैविक दबाव एवं प्राकृतिक आपदाएं मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र की शत्रु हैं। तटों के सहारे औद्योगिक क्षेत्रों में वृद्धि तथा घरेलू एवं औद्योगिक अपशिष्ट विसर्जन के कारण यह क्षेत्र प्रदूषित हो रहे हैं।
ISFR-2013 के अनुसार, भारत में मैंग्रोव आवरण विश्व की संपूर्ण मैंग्रोव वनस्पति का लगभग 3 प्रतिशत है जो कि देश के 12 तटीय राज्यों/संघीय क्षेत्रों के 4628 वर्ग किमी. (ISFR- 2013 की तुलना में 34 वर्ग किमी. कम) क्षेत्र में फैला हुआ है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.14 प्रतिशत है। इसमें अति सघन मैंग्रोव 1351 वर्ग किमी. (कुल मैंग्रोव क्षेत्र का 29.20%), मध्यम सघन मैंग्रोव 1457 वर्ग किमी. (31.49%) तथा खुले मैंग्रोव 1819 वर्ग किमी. (39.31%) क्षेत्र में फैले हुए हैं।
भारत में सर्वाधिक मैंग्रोव आच्छादित चार राज्य/संघीय क्षेत्र क्रमशः पश्चिम बंगाल (2097 वर्ग किमी.), गुजरात (1103 वर्ग किमी.), अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह (604 वर्ग किमी.) तथा आंध्र प्रदेश (352 वर्ग किमी.) हैं जबकि चार सर्वाधिक मैंग्रोव आच्छादित जिले क्रमशः दक्षिण चौबीस परगना-प. बंगाल (2069 वर्ग किमी.), कच्छ-गुजरात (789 वर्ग किमी.), अंडमान-अंडमान एवं निकोबार द्वीपसमूह (601 वर्ग किमी.) तथा पूर्वी गोदावरी (188 वर्ग किमी.) हैं। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल का संपूर्ण मैंग्रोव आच्छादित क्षेत्र सुंदरबन डेल्टा क्षेत्र में अवस्थित है।
वृद्धिमान स्टॉक
ISFR-2013 के तहत देश में राष्ट्रीय स्तर तथा राज्य स्तर पर वनों एवं वनों के बाहर वृक्षों (TOF) तथा विभिन्न भूआकृतिक क्षेत्रों में टीओएफ के वृद्धिमान स्टॉक (Growing Stock) का भी आकलन प्रस्तुत किया गया है जिसके अनुसार, देश में वृक्षों का वृद्धिमान स्टॉक 5,658.046 मिलियन घनमीटर अनुमानित है जिसमें 4,1173.362 मि. घनमीटर अभिलिखित वन क्षेत्र के भीतर तथा 1,484.684 मि. घनमीटर टीओएफ में आकलित है।
भूआकृतिक क्षेत्रों में टीओएफ में सर्वाधिक वृद्धिमान स्टॉक क्रमशः पूर्वी दक्कन, पश्चिमी हिमालय, पश्चिमी तट, दक्षिणी दक्कन एवं पश्चिमी घाट क्षेत्र में आकलित है।
राज्यों/संघीय क्षेत्रों में वनों में सर्वाधिक वृद्धिमान स्टॉक क्रमशः उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ में जबकि टीओएफ में सर्वाधिक वृद्धिमान स्टॉक क्रमशः जम्मू एवं कश्मीर, महाराष्ट्र एवं गुजरात में आकलित है। समग्रतः सर्वाधिक वृद्धिमान स्टॉक क्रमशः अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड एवं छत्तीसगढ़ में आकलित है।
प्रमुख वनस्पति प्रजातियों के संदर्भ में कुल फैलाव (Total Volume) के संदर्भ में टीओएफ में सर्वाधिक वृद्धिमान प्रजाति Mangifera indica (11.41%) है जिसके पश्चात Azadirachta indica (7.08%) एवं Cocos nucifera (6.08%) का स्थान है।
ISFR-2011 में वर्ष 2004 के आंकड़ों के अनुसार, वन भूमि में कार्बन स्टॉक 6,663 मिलियन टन के स्तर पर था जो ISFR-2013 में वर्ष 2011 की तुलना में 278 मिलियन टन की वृद्धि के साथ 6,941 मिलियन टन के स्तर पर है।
भारतीय वनों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएं
भारतीय वनों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएं ‘राष्ट्रीय वन सूची’ (National Forest Inventory) के आधार पर विश्लेषित की जाती हैं। राष्ट्रीय वन सूची का प्रारंभ वर्ष 2002 में किया गया था। इस सूची के तहत देश 14 भूआकृतिक क्षेत्रों में स्तरीकृत (Stratified) किया गया है तथा वन एवं टीओएफ की विस्तृत सूची यादृच्छिक (Randomly) ढंग से चुने गए 60 जिलों के द्विवर्षीय चक्रीय विवरण पर आधारित है। राष्ट्रीय वन सूची तैयार करने के दौरान निरपेक्ष वृक्ष मापन के अतिरिक्त वन क्षेत्र के तहत अन्य महत्त्वपूर्ण मापदंडों (भूमि उपयोग वैविध्य पुनरुद्भवन की प्रबलता, आग की दुर्घटना, फसलों की बर्बादी, चराई-बास संबंधी सूचना आदि) पर भी सूचना इकट्ठा की जाती है। ISFR- 2013 में इन संदर्भों पर दी गई समस्त सूचनाएं 179 जिलों में वर्ष 2004 से 2012 के मध्य एकत्रित किए गए क्षेत्र-आधारित आंकड़ों पर निर्भर है।
- अभिलिखित वन क्षेत्र को भूमि उपयोग की दृष्टि से निम्नलिखित सारणी में प्रस्तुत किया गया है-
ISFR 2013 में अभिलिखित वन क्षेत्र को पुनरुद्भवन प्रबलता (Intensity of Regeneration) के आधार पर ‘समुचित’ (Adequate), ‘अपर्याप्त’ (Indequate), ‘शून्यमान’ (Absent) एवं ‘अनुकूल नहीं’ (Not Applicable) क्षेत्रों में बांटा गया है।
इस आकलन के अनुसार 48 प्रतिशत वन क्षेत्र ‘समुचित पुनरुद्भवन’ वाले, 24 प्रतिशत वन क्षेत्र ‘अपर्याप्त पुनरुद्भवन’ वाले, 10 प्रतिशत वन क्षेत्र ‘शून्यमान पुनरुद्भवन’ वाले तथा 18 प्रतिशत वन क्षेत्र ‘पुनरुद्भवन के अनुकूल नहीं’ क्षेत्र के अंतर्गत हैं।
- 10,265 वर्ग किमी. वन क्षेत्र आग की घटनाओं से गंभीर रूप से प्रभावित हैं, जो कुल अभिलिखित वन क्षेत्र का 1.33 प्रतिशत है।
- 104,427 वर्ग किमी. क्षेत्र चराई से गंभीर रूप से प्रभावित हैं जो कुल अभिलिखित वन क्षेत्र का 13.53 प्रतिशत है।
- 17,289 वर्ग किमी. वन क्षेत्र मृदा अपरदन की दृष्टि से अत्यधिक गंभीर है जो कुल अभिलिखित वन क्षेत्र का 2.24 प्रतिशत है।
बांस (Bamboo) देश के वनों के साथ-साथ गैर वन क्षेत्रों में भी पाया जाने वाला महत्त्वपूर्ण गैर-लकड़ी (Non Wood) वन संसाधन है। बांस घास परिवार (Poaceae Gramineae) से संबंधित है। भारत में बांसों की 23 वंशों (Genera) से संबंधित 125 देशीय (Indigenous) और 11 विदेशी (Exotic) प्रजातियों (Species) की पहचान हुई है।
कुल अभिलिखित वन क्षेत्र के 70 प्रतिशत भाग पर बांस नहीं है तथा 7 प्रतिशत भाग पर बांस की सघनता ठीक-ठाक है।
नगरीय वृक्ष संसाधन
टीओएफ के तहत वृक्ष न केवल नगरीय पर्यावरण के लिए ही महत्त्वपूर्ण हैं बल्कि यहां अधिवासित गरीब लोगों के ईंधन एवं अन्य जरूरतों के भी महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। ISFR 2013 में पहली बार देश में नगरीय वृक्ष संसाधनों(Urban Tree Resources) की स्थिति पर भी सूचना प्रस्तुत की गई है जो कि वर्ष 2006 से 2012 के दौरान 179 जिलों के 6152 यूएफएस (UFS : Urban Frame Survey) ब्लाकों के सर्वे पर आधारित है।
राष्ट्रीय स्तर पर कुल नगरीय वृक्षावरण 12,790 वर्ग किमी. है जो कुल नगरीय क्षेत्र का 16.40 प्रतिशत है। तमिलनाडु राज्य 1,509 वर्ग किमी. क्षेत्र के नगरीय वृक्षावरण के साथ अग्रणी स्थान पर है। इस दृष्टि से इसके बाद क्रमशः महाराष्ट्र (1,373 वर्ग किमी.), कर्नाटक (1,276 वर्ग किमी.) एवं केरल (1,241 वर्ग किमी.) का स्थान है।
सिक्किम में 0.261 वर्ग किमी. का नगरीय वृक्षावरण है जो 28 राज्यों में न्यूनतम है। सिक्किम के बाद न्यूनतम वृक्षावरण क्षेत्र वाले राज्य क्रमशः अरुणाचल प्रदेश (6 वर्ग किमी.) एवं मणिपुर/त्रिपुरा (प्रत्येक में 15 वर्ग किमी.) हैं। सर्वाधिक नगरीय वृक्षावरण क्षेत्र वाला संघशासित प्रदेश दिल्ली है जबकि न्यूनतम नगरीय वृक्षावरण क्षेत्र वाला संघ शासित प्रदेश अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह है।
सर्वाधिक नगरीय वृक्षावरण अनुपात वाले चार राज्य/संघशासित प्रदेश इस प्रकार हैं-लक्षद्वीप (40.55%), गोआ (40.55 प्रतिशत), केरल (38.17%) एवं कर्नाटक (24.69%)। न्यूनतम नगरीय वृक्षावरण अनुपात वाला राज्यअरुणाचल प्रदेश है जबकि न्यूनतम नगरीय वृक्षावरण अनुपात वाला संघशासित प्रदेश अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह है।
ISFR 2013 में उत्तर प्रदेश की स्थिति
ISFR 2013 के अनुसार, उत्तर प्रदेश में अभिलिखित वन क्षेत्र (Recorded Forest Area) 16,583 वर्ग किमी. है जो इसके भौगोलिक क्षेत्र का 6.88 प्रतिशत है तथा भारत के कुल वन क्षेत्र का 2.15 प्रतिशत है। अभिलिखित वनों में 70.31 प्रतिशत आरक्षित वन, 8.56 प्रतिशत संरक्षित वन और 21.12 प्रतिशत अवर्गीकृत वन हैं।
अक्टूबर, 2010से जनवरी, 2012 के दौरान के सैटेलाइट आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर उत्तर प्रदेश में कुल वनावरण 14,349 वर्ग किमी. है जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 5.96 प्रतिशत है। इसमें 1,623 वर्ग किमी. क्षेत्र अति सघन वन (0.67 प्रतिशत), 4,550 वर्ग किमी. क्षेत्र मध्यम सघन वन (1.89 प्रतिशत) तथा 8,176 वर्ग किमी. क्षेत्र खुले वन (3.39 प्रतिशत) के अंतर्गत है। इनके अतिरिक्त 806 वर्ग किमी. क्षेत्र (0.33 प्रतिशत) पर राज्य में झाड़ियां (Scrub) हैं। ISFR 2011 के संशोधित आंकड़ों की तुलना में राज्य में वनावरण में 11 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है।
उत्तर प्रदेश में कुल वृक्षावरण 6,895 वर्ग किमी. है जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.86 प्रतिशत है। इस प्रकार, राज्य में कुल वनावरण एवं वृक्षावरण 21,244 वर्ग किमी. है जो कि राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 8.82 प्रतिशत है।
उत्तर प्रदेश में कुल नगरीय वृक्षावरण 816 वर्ग किमी. है जो राज्य के कुल नगरीय क्षेत्र का 12.45 प्रतिशत है।