21 November 2014

रोसेटा : किसी धूमकेतु की कक्षा में पहुंचने वाला पहला अंतरिक्षयान

र्तमान में खगोलविदों के सामने जो पहेलियां हैं उनमें प्रमुख हैं, सौरमंडल का जन्म कैसे हुआ और पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई? वैज्ञानिकों को विश्वास है कि धूमकेतुओं के प्रेक्षण से उन्हें इन पहेलियों को सुलझाने में मदद मिल सकती है।
सौरमंडल की उत्पत्ति हुए लगभग 450 करोड़ वर्ष हो चुके हैं लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि धूमकेतु संभवतः अभी भी अपने मूल रूप में ही मौजूद हैं और उनमें अधिक विकास नहीं हुआ है। इस कारण धूमकेतु सौरमंडल की उत्पत्ति के समय की रासायनिक और भौतिक संरचना के बारे में जानकारी जुटाने में महत्त्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। इसके अलावा धूमकेतु एक और गुत्थी सुलझाने में मददगार हो सकते हैं, वह ये कि, पृथ्वी पर जीवन के पनपने के लिए सहायक कारक क्या धूमकेतुओं से प्राप्त हुए?
वैज्ञानिकों का तो मानना है कि पृथ्वी पर पानी का आगमन धूमकेतुओं के जरिए ही हुआ है। आरंभ में पृथ्वी की भौतिक परिस्थितियां ऐसी नहीं थीं कि यहां जीवन के उद्भव एवं विकास के लिए अत्यावश्यक दो तत्व-पानी एवं कार्बनिक अणु टिके रह सकें। धूमकेतुओं में ये दोनों ही चीजें उपस्थित हैं। धूमकेतुओं में लगभग 40 प्रतिशत पानी और लगभग 15 प्रतिशत कार्बनिक पदार्थ होते हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पृथ्वी के वायुमंडल में धूमकेतुओं के बर्फीले पिंडों की वर्षा से पानी व कार्बन-युक्त अणु यहां पहुंचे। अब तक अमेरिका, रूस एवं जापान के अतिरिक्त यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने धूमकेतुओं के अध्ययन के लिए मिशन संचालित किए हैं। इनमें से अधिकतर मिशन धूमकेतुओं के निकट से गुजरकर (Flyby) या उनसे टकराकर (Impact) महत्त्वपूर्ण जानकारियां जुटाने का प्रयास कर चुके हैं। रोसेटा (Rosetta) ऐसा पहला रोबोटिक मिशन है जिसे किसी धूमकेतु की कक्षा में प्रवेश (Orbit) तथा फिर उसकी सतह पर लैंड (Land) कर अन्वेषण करने हेतु प्रक्षेपित किया गया था।
  •  ’67पी/चुर्युमोव-गेरासिमेंको (67P/Churyu-mov-Gerasimenko) नामक धूमकेतु (Comet) के विस्तृत अध्ययन हेतु रोसेटा रोबोटिक मिशन को 2 मार्च, 2004 को एरियन 5G+ रॉकेट द्वारा फ्रेंच गुयाना के कौरू स्थित प्रक्षेपण केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था।
  •  यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा संचालित इस मिशन में रोसेटा नामक ‘ऑर्बिटर’ (Orbiter) के अतिरिक्त एक रोबोटिक लैंडर भी शामिल है जिसे फिले (Philae) नाम दिया गया है।
  •   मिशन को रोसेटा नाम ‘रोसेटा पत्थर’ (Rosetta Stone) के नाम पर दिया गया है।
  •  उल्लेखनीय है कि वर्ष 1799 में नील नदी के मुहाने के पास रोसेटा नामक स्थान पर नेपोलियन की सेना के एक सिपाही को पत्थर की एक शिला मिली थी।
  •  इस शिला पर यूनानी लिपि और प्राचीन मिस्र की दो अज्ञात लिपियों में अभिलेख खुदे हुए थे।
  •  पत्थर पर खुदे इन तीन अभिलेखों की आपस में तुलना कर इतिहासकार प्राचीन मिस्र की रहस्यमयी ‘हाइरोग्लिफिक लिपि’ (Hieroglyphic Script) के गूढ़ अर्थ को समझने में सफल हुए थे।
  •  मिशन में शामिल ‘लैंडर’ (Lander) का नाम मिस्र के नील नदी क्षेत्र में स्थित ‘फिले द्वीप’ (Philae Island) के नाम पर रखा गया है।
  •  ज्ञातव्य है कि फिले द्वीप पर पाए गए एक सूची स्तंभ से फ्रांसीसी इतिहासकार ‘जां-फ्रांस्वा शांपोल्यों’ (Jean – Francois Champollion) को रोसेटा पत्थर पर खुदे अभिलेखों के गूढ़ अर्थ को समझने के ‘अंतिम सूत्र’ (Final Clues) प्राप्त हुए थे।
  •  प्रक्षेपण के समय रोसेटा अंतरिक्षयान का कुल द्रव्यमान 3000 किग्रा. था जबकि उसमें संलग्न लैंडर का वजन 100 किग्रा. है।
  •  ऑर्बिटर में 11 उपकरण संलग्न हैं जबकि लैंडर 10 उपकरणों से लैस है।
  •  10 उपकरणों से युक्त लैंडर धूमकेतु की सतह और ‘अधस्थल पदार्थ’ (Subsurface Material) के संगठन तथा संरचना का विश्लेषण करने में सक्षम है।
  •  रोसेटा मिशन में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी अपना योगदान दिया है।
  •  नासा के वैज्ञानिक मिशन में शामिल चार उपकरणों यथा- MIRO (Microwave Spectrometer for the Rosetta Orbiter), ALICE (Ultraviolet Imaging), IES (Ion and Electron Sensor- RPC उपकरण समूह का अंग) एवं ROSINA (Rosetta Orbiter Spectrometer for Ion and Neutral Analysis) की मदद से किए जा रहे अनुसंधान कार्यों में शामिल हैं।
  •  इसके अतिरिक्त नासा का ‘डीप स्पेस नेटवर्क’ (Deep Space Network) अंतरिक्षयान की ट्रैकिंग और नैविगेशन के लिए यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के ‘ग्राउंड स्टेशन नेटवर्क’ (Ground Station Network) को सहयोग प्रदान कर रहा है।
  •  उल्लेखनीय है कि ग्राउंड स्टेशन नेटवर्क रोसेटा अंतरिक्षयान से प्राप्त होने वाले वैज्ञानिक डाटा के संग्रहण और अनुसंधानकर्ताओं को उनके वितरण के लिए उत्तरदायी है।
  •  ग्राउंड स्टेशन नेटवर्क जर्मनी के ‘डर्मस्टेट’ (Darmstadt) स्थित ‘यूरोपियन स्पेस ऑपरेशंस सेंटर’ (ESOC : European Space Operations Centre) में स्थित है।
  •  प्रक्षेपण के 10 वर्ष, 5 माह और 4 दिन के उपरांत ‘घुमावदार पथ’ (Circuitous Route) पर लगभग 6.4 बिलियन किमी. की यात्रा कर रोसेटा अंतरिक्षयान 6 अगस्त, 2014 को अपने लक्ष्य अर्थात 67पी/चुर्युमोव-गोरासिमेंको धूमकेतु तक पहुंच गया।
  •  धूमकेतु के निकट पहुंचकर अंतरिक्षयान उसकी सतह से 100 किमी. की दूरी पर ‘त्रिभुजाकार कक्षा’ (Triangular Orbit) में स्थापित हो गया।
  • इसके उपरांत अंतरिक्षयान धूमकेतु की सतह से 30 किमी. की दूरी पर पहुंचकर ‘वृत्ताकार कक्षा’ (Circular Orbit) में स्थापित होने का प्रयास करेगा।
  • इसके बाद फिले लैंडर को धूमकेतु की सतह पर उतारने का कार्य प्रारंभ हो जाएगा।
  • लैंडर नवंबर, 2014 में धूमकेतु की सतह पर उतरेगा और वर्ष 2015 के अंत तक कार्यरत रहेगा।
  • इस प्रकार किसी धूमकेतु की कक्षा में स्थापित और उसकी सतह पर लैंड होने वाला यह पहला मिशन होगा।
  •  चूंकि कोई प्रक्षेपणयान रोसेटा अंतरिक्षयान को धूमकेतु की कक्षा में सीधे स्थापित करने में सक्षम नहीं था इसलिए इस हेतु मंगल एवं पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की मदद ली गई।
  •  मंगल के निकट से एक बार (वर्ष 2007 में) तथा पृथ्वी से निकट से तीन बार (वर्ष 2005, 2007 एवं 2009 में) गुजरकर रोसेटा अंतरिक्षयान ने धूमकेतु की कक्षा में प्रवेश करने हेतु पर्याप्त गति हासिल की।
  • अपने इस मिशन के दौरान रोसेटा अंतरिक्षयान ‘मुख्य क्षुद्रग्रह घेरे’ (Main Asteroid Belt) में स्थित दो क्षुद्रग्रहों यथा 2867 स्टेंस (2867 Steins) तथा 21 ल्यूटेशिया (21 Lutetia) के निकट से गुजरा।

67पी/चुर्युमोव-गेरासिमेंको
   67पी/चुर्युमोव-गेरासिमेंको एक धूमकेतु है जो 6.6 वर्षों में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करता है। इस धूमकेतु की खोज वर्ष 1969 में ‘कीव खगोलीय वेधशाला’ (Kiev Astronomical Observatory) के खगोलविदों ‘क्लिम चुर्युमोव’ तथा ‘स्वेतलाना गेरासिमेंको’ ने की थी। इस धूमकेतु का व्यास लगभग 4 किमी. है। अपनी कक्षा में सूर्य के परिक्रमण के दौरान जब ये बृहस्पति ग्रह से आगे निकल जाता है तो ये सूर्य से अधिकतम दूरी (Aphelion) पर होता है जबकि मंगल और पृथ्वी की कक्षाओं के बीच में आने पर इसकी दूरी सूर्य से न्यूनतम (Perihelion) होती है।
  •  इस मिशन के दौरान 8 जून, 2011 से 20 जनवरी, 2014 तक रोसेटा अंतरिक्षयान ‘अस्थायी रूप से निष्क्रिय अवस्था’ (Hibernation) में रहा।
  •  इसे अस्थायी रूप से निष्क्रिय करना इसलिए जरूरी था क्योंकि मिशन के दौरान सौरमंडल में इसका रास्ता इसे सूर्य से इतना दूर ले जाने वाला था कि इसके सौर पैनल बहुत कम ऊर्जा पैदा कर पाते।
  • अंतरिक्षयान की अस्थायी रूप से निष्क्रिय अवस्था के दौरान सभी उपकरण और लगभग सभी नियंत्रण प्रणालियां निष्क्रिय रहीं।
  • इस दौरान कंप्यूटर और कुछ हीटर ही सक्रिय रहे और यान अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता रहा।
  • उल्लेखनीय है कि रोसेटा मुख्य क्षुद्रग्रह घेरे के पार जाने वाला ऐसा पहला अंतरिक्षीय मिशन है जो ऊर्जा उत्पन्न करने हेतु पूरी तरह सौर सेलों पर निर्भर है।
  • पूर्व में जितने भी मिशन मुख्य क्षुद्रग्रह घेरे के पार भेजे गए हैं, उन सभी में ऊर्जा उत्पादन हेतु नाभिकीय रेडियो आइसोटोप थर्मल जेनरेटरों का प्रयोग किया गया था।
  •  रोसेटा अंतरिक्षयान में लगे नवीन प्रौद्योगिकी आधारित सौर सेल उसे सूर्य से 800 मिलियन किमी. दूर होने पर भी परिचालन (Operate) में सक्षम बनाते हैं, जहां सूर्य के प्रकाश का स्तर पृथ्वी की तुलना में केवल 4 प्रतिशत होता है।
  •  रोसेटा मिशन का अनुमानित जीवनकाल लगभग 12 वर्ष है जिसमें से 10 वर्ष से अधिक का समय व्यतीत हो चुका है।
  • अपनी कक्षा में परिक्रमण के दौरान धूमकेतु 67पी/चुर्युमोव-गेरासिमेंको 13 अगस्त, 2015 को सूर्य से निकटतम बिंदु (Perihelion) पर होगा और उसके बाद बाह्य सौरमंडल की ओर प्रस्थान करना प्रारंभ कर देगा।
  •  इसी के बाद दिसंबर, 2015 में रोसेटा मिशन औपचारिक रूप से समाप्त हो जाएगा

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