21 November 2014

प्रतिभूति कानून (संशोधन) अधिनियम,2014

देश की चिट-फंड कंपनियों द्वारा आम जनता से गलत तरीके से धन एकत्र करने अथवा सरकार द्वारा मान्य निर्धारित समय से पहले धन को दोगुना या तिगुना करने की योजनाओं पर नियंत्रण करने के लिए केंद्र सरकार ने संबंधित कानूनों में संशोधन के लिए प्रतिभूति कानून (संशोधन) अधिनियम, 2014 को लागू कर दिया है।
  •  इससे संबंधित विधेयक को लोक सभा ने 6 अगस्त, 2014 को तथा राज्य सभा ने 12 अगस्त, 2014 को पारित किया था।
  •  पुनः 22 अगस्त, 2014 को इस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाने और जनसाधारण को सूचित करने के लिए भारत के राजपत्र में 25 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हो जाने के बाद यह कानून पूरे देश में लागू हो गया है।
  •  देश के पूंजी-बाजार को नियंत्रित करने वाली संस्था ‘सेबी’ को इस संशोधित कानून के द्वारा व्यापक अधिकार और शक्ति प्रदान की गई है।
  •  इस उद्देश्य के लिए देश में पहले से ही लागू भारत का प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियिम, 1992, जिसके अंतर्गत ‘सेबी’ अर्थात ‘भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड’ (Securities and Exchange Board of India-SEBI) का गठन किया गया है, प्रतिभूति संविदाएं (विनियमन) अधिनियम, 1956 और ‘डिपॉजिटरीज’ (Depo-sitories) अधिनियम, 1996 के मूल प्रावधानों में या तो संशोधन किया गया है या उनमें नया प्रावधान जोड़ा गया है।
  •  सेबी कानून में हुए इस संशोधन के अनुसार, अब सेबी जनता को लालच देकर या उनके साथ धोखा करके धन एकत्र करने वाली कंपनियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही कर सकता है।
  • अब सेबी इस संशोधन से इतना सशक्त हो गया है कि वह ऐसी कंपनियों या योजनाओं के संचालकों के कार्यालयों पर छापा मार सकता है, महत्त्वपूर्ण दस्तावेज तथा संपत्तियों को जब्त कर सकता है, संपत्ति को बंधक बना सकता है तथा जनता से एकत्र किए गए धन को ऐसी जब्त संपत्तियों से वसूल करके उन्हें जनता को वापस कर सकता है।
  •  नए कानून में यह भी प्रावधान किया गया है कि सेबी अपने मामलों के शीघ्र सुनवाई और उसके निपटारे के लिए स्वयं एक विशेष न्यायालय का गठन कर सकता है। इस न्यायालय की स्थापना इसके मुख्यालय-शहर मुंबई में की जा सकती है।
  • वर्ष 1992 के पुराने कानून में ‘सेबी’ इतना सशक्त नहीं था। अतः अभी तक इसके द्वारा  केवल दो मामलों अर्थात आईपीओ घोटाला (2006) और सत्यम कंप्यूटर घोटाला (2009) में ही वसूली कार्यवाही की जा सकी।
  •  ‘सहारा इंडिया रियल स्टेट कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ (SIRECL) और ‘सहारा हाउसिंग इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ (SHICL) का मामला तीसरा बड़ा मामला है जिसमें सेबी ने सहारा की ओर से जनता से गलत तरीके से एकत्र किए गए अरबों रुपये को लौटाने का आदेश 24 नवंबर, 2010 को दिया था, किंतु सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय के द्वारा इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दिए जाने के कारण मामला विचाराधीन है। फिर भी उच्चतम न्यायालय ने सेबी की कार्यवाहियों को उचित माना है और जनता से एकत्र किए गए धन को वापस न कर पाने के कारण सुब्रत राय सहारा पिछले 4 मार्च, 2014 से उच्चतम न्यायालय की अभिरक्षा (जेल) में हैं।
  •  सहारा प्रकरण के बाद से ही सेबी को सशक्त करने की बात उठने लगी थी इसलिए प्रतिभूति कानून (संशोधन) अधिनियम, 2014 के प्रावधानों को प्रतिभूति विधियां (संशोधन) अध्यादेश, 2014 के रूप में 28 मार्च, 2014 से ही लागू किया गया था।
  •  नए कानून के द्वारा पुराने सेबी कानून, 1992 की धाराओं 11,15,26,28 और 34 में या तो नए प्रावधान जोड़े गए हैं या संशोधन किए गए हैं।
  •  अब सेबी किसी मामले की जांच या अन्वेषण में किसी भी व्यक्ति, संस्था, कंपनी या बैंक से किसी भी सूचना या दस्तावेज की मांग कर सकता है।
  •  सेबी द्वारा जब्त की गई धनराशि को ‘निवेशक सुरक्षा एवं शिक्षा कोष’ (Investor Protection and Education Fund – IPEF) में जमा किया जाएगा [नई धारा 11(5) ।
  •  अब 100 करोड़ रुपये या अधिक के निवेश की योजना को ‘सामूहिक निवेश योजना’ माना जाएगा।
  •  सेबी का मामला अब ‘न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी’ के बजाए ‘मुंबई में नामित मजिस्ट्रेट या न्यायालय के विशेष न्यायाधीश’ के द्वारा सुना जाएगा और निर्णीत किया जाएगा।
  •  धारा 26 में नया प्रावधान जोड़कर विशेष न्यायालय के गठन के लिए प्रावधान किया गया है। इसकी स्थापना केंद्र सरकार के द्वारा की जाएगी और जिला एवं सत्र न्यायाधीश के स्तर का कोई न्यायाधीश राज्य के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से इसका न्यायाधीश नियुक्त किया जाएगा।
  •  विशेष न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील उच्च न्यायालय के द्वारा सुनी जाएगी।
  •  अब जुर्माना की राशि कम से कम एक लाख रुपये होगी, जो 1 करोड़ रुपये तक हो सकती है। अन्य विशेष मामलों में यह राशि 10 लाख रुपये से लेकर 25 करोड़ रुपये तक हो सकती है।
  •  धारा 15 में नया प्रावधान जोड़कर यह प्रावधान किया गया है कि कोई व्यक्ति, जिसके विरुद्ध इस कानून के अंतर्गत सेबी या प्राधिकारी (जज) ने कार्यवाही प्रारंभ की है, समझौते के लिए आवेदन कर सकता है और क्षतिपूर्ति करने की शर्त पर समझौते को अंतिम रूप दिया जा सकता है।
  •  धारा 28 में धारा 28-A को जोड़कर यह प्रावधान किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति न्यायाधीश के द्वारा आदेशित जुर्माना देने में विफल रहता है या सेबी द्वारा धन वापस करने के आदेश का पालन करने में असफल रहता है या अन्य देय धन को जमा करने में विफल रहता है तब वसूली अधिकारी उस व्यक्ति की सभी चल या अचल संपत्ति, बैंक खाता संचालन को जब्त कर सकता है, ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करके कारावास में भेज सकता है और देय धनराशि की वसूली कर सकता है।
  •  उपर्युक्त मूल परिवर्तन के अनुरूप अन्य संबंधित कानूनों को भी संशोधित किया गया है।

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