25 September 2014

text of Prime Minister Shri Narendra Modi’s address on the historic successful insertion of Mars Orbiter Mission (MOM) into Martian orbit




मेरे प्‍यारे देशवासियो,

दुनिया भर के वैज्ञानिक जगत की fraternity आज MOM का मंगल से मिलन हो गया। आज मंगल को MOM मिल गई है। जिस समय इस मिशन का नाम, उसका Short form जब MOM बन गया तो मुझे पूरा विश्‍वास था कि MOM कभी निराश नहीं करती है। India has successfully reached Mars. आप सबको बधाई, देशवासियों को बधाई। और विश्‍व में भारत देश, और ये हमारे भारत के वैज्ञानिक वो पहले प्रयास में सफल होने वाला हिंदुस्‍तान, हिंदुस्‍तान के वैज्ञानिक, ये सफलता प्राप्‍त कर रहे हैं।

History has been created today. We have dared to reach out into the unknown. And have achieved the near impossible. I congratulate all ISRO scientists, as well as all my fellow Indians, on this historic occasion.

और मैंने पहले ही कहा कि साधन बहुत कम, अनेक मर्यादाएं और उसके बावजूद भी इतनी बड़ी सिद्धि प्राप्‍त होती है, वो वैज्ञानिकों के विश्‍वास के कारण उनके पुरूषार्थ के कारण, उनकी प्रतिबद्धता के कारण और इसलिए, हमारे देश के वैज्ञानिक अनके-अनेक अभिनंदन के अधिकारी हैं। और आज मुझे इनके बीच आ करके अभिनंदन देने का अवसर मिला है और अब देखिए इसकी, क्‍या कमाल है?

Travelling a mind-boggling distance of more than 650 million, or 65 crore kilometres.

यानी कि करीब-करीब 65 करोड़ किलोमीटर की यात्रा।

we have gone beyond the boundaries of human enterprise and imagination. We have, accurately navigated our spacecraft, through a route known to very few.

And, we have done so, from a distance so large; that it took even a command signal from Earth, more time to reach it, than it takes sunlight to reach us.

यानी कि सूरज की किरण को हमारे पास पहुंचने में जितना समय लगता है, उससे भी ज्‍यादा समय, यहां से हमारे वैज्ञानिक, उसे कुछ कहते हैं कि करो, उससे भी ज्‍यादा समय लग जाता है। यानी कि कितनी धीरज के साथ कमांड देने के 12-15 मिनट तक इंतजार करना पड़ता है कि गया, कि ठीक, नहीं गया है। कुछ हुआ कि नहीं हुआ। ये बड़ा कठिन होता है। अरे हम, भोजन की थाली पर बैठते हैं, खाना परोसने में देरी होती है, तो भी इधर उधर हो जाते हैं। तो इतने आप में इतना distance, उसके बावजूद भी, जिस धैर्य के साथ

The odds were stacked against us. Of the 51 missions attempted across the world so far, a mere 21 had succeeded.

But we have prevailed!

दुनिया में सबको सफलता नहीं मिली। बहुत कम मिली। और पहली बार में तो किसी देश को नहीं मिली। भारत के वैज्ञानिकों को, भारत को ये पहली बार सफलता मिली है।

With today’s spectacular success, ISRO joins an elite group of only three other agencies worldwide, to have successfully reached the red planet.

India, in fact, is the only country to have succeeded in its very first attempt. We put together the spacecraft in record time, within a mere 3 years of first studying its feasibility.

सिर्फ तीन साल में,यह छोटी बात नहीं है। हर हिंदुस्‍तानी आप लोगों के लिए गर्व करता है। नाज होता है। वैज्ञानिक के लिए नाज होता है।

Built it indigenously, in a pan-Indian effort stretching from Bangalore to Bhubhaneshwar, and Faridabad to Rajkot.

हमारे यहां के गवर्नर Vajubhai vala राजकोट के हैं। और इस Mars का एक instrument राजकोट में बना था और मैं अहमदाबाद इसरों में बार-बार जाता था। बड़ा मन करता था, क्‍या कर रहे हैं वैज्ञानिक बेचारे, एक लैब से बाहर नहीं निकलते हैं, तो कोई तो जाए मिलने के लिए। तो मैं जाता था और तब मुझे पता चला कि मिथेन गैस का sensor वहां बन रहा था और दूसरा, वहां कैमरा बन रहा था और शायद वह दोनों काम, उस समय मुझे बताया गया था, और शायद दुनिया में मिथेन गैस की जानकारी देने का पहला काम ये आपके प्रयत्‍नों से होगा। तो मैं जब ये, अहमदाबाद के इसरो में देखने के लिए जाता था, तो मुझे वहां के वैज्ञानिक हमारे गोस्‍वामी जी यहां है, मुझे सब समझते थे। क्‍या हो रहा है, कैसे हो रहा है।

Used a smaller rocket and payload to reduce the cost, even while increasing the complexity of an already challenging mission. मैंने पिछली बार जब गया था, श्रीहरिकोटा में, तब मैंने कहा था कि अमेरिका के हालीवुड में, जो फिल्‍में बनती हैं, मूवी, उससे भी कम खर्चे में हमारे वैज्ञानिकों ने काम किया है। यानी कि इससे ज्‍यादा खर्चा तो हालीवुड की मूवी बनाने में होता है। यानी कि कितनी बारीकि से Indigenes चीजों जोड़कर के छोटे-छोटे लोगों की मदद ले करके इतना बड़ा मिशन पार किया गया।

And launched it on our very own PSLV launch vehicle. These are all accomplishments that will go down as landmarks in history. Uncertainty is a part of the journey of every explorer who seeks to push boundaries.

The hunger of exploration and the thrill of discovery are not for the faint-hearted.

मेरे सामने दो प्रस्‍ताव थे। मैं आज ये रहस्‍य खोल दूं। जब ये आज सुबह मैं कहां रहूं? तो मुझे बताया गया, सब साइंटिस्‍टों ने कहा कि साहब, दुनिया में ये बहुत कठिन काम है। सफल होंगे, नहीं होंगे। आपको बुलाना, नहीं बुलाना, हमें दुविधा है। मैंने कहा, चिंता मत कीजिए। अगर विफलता आती है तो मेरी पहली जिम्‍मेवारी बनती है, इन वैज्ञानिकों के बीच आने की। और यश तो लेने के लिए सब आते हैं। लेकिन काम भी तो मंगल था। और जब काम मंगल होता है, इरादे मंगल होते हैं, तो मंगल की यात्रा भी तो मंगल होती है।

मुझे पहले कविताएं लिखने का शौक भी था, और समय भी मिलता था। तो मैंने एक बार लिखा था। वैसे लिखा तो गुजराती में है। लेकिन थोड़ा बहुत हिन्‍दी में बता देता हूं । मैंने लिखा था – कि अगर विफल होते हैं, तो आलोचना के शिकार होते हैं। और सफल होते हैं तो ईष्‍या के शिकार होते हैं।

आज हम सफल हुए हैं और इसलिए सफलता के साथ नई challenges भी आती है और वितवाद में, भारत के वैज्ञानिक में, भारत के यूथ में, भारत के talent में, कि हर चुनौतियों को चुनौती देने की ताकत, इन हमारी फौज में है। इन वैज्ञानिकों में है।

Innovation, after all, by its very nature involves risk; as you are trying to do something which has not been done before. It`s a leap into the dark. Humanity would not have progressed, if we had not taken such leaps into the unknown. And space is indeed the biggest unknown out there.

कभी कभी लोग सोचते हैं, risk क्‍यों लें, पानी में गए बिना तैरना सीखते हैं क्‍या, risk तो लेना ही पड़ता है। और सफलता बड़ी ताकत होती है, Risk लेने के निर्णय की moment क्‍योंकि एक अंधेरे में पैर रखना होता है और वो निर्णय करने का सामर्थ्‍य और मुझे तो अटल जी ने जब कहा था, हमें चन्‍द्र पर जाना है, ये हिम्‍मत होती है और तब जाकर लोग लग जाते हैं।

No one represents this zeal for exploring the unknown more, than our space scientists here at ISRO.

Through your brilliance and hard work, you have made it a habit of achieving the impossible.

अब मेरे इसरो के वैज्ञानिकों को impossible को possible करने की जैसे आदत ही लग गई है।

You have developed self-reliance across critical domains, often in the face of hostile circumstances.

Every generation of your scientists, has groomed the next home-grown lot

मुझे सबसे बड़ी खुशी इस बात की होती है, मैं जितनी बार आप लोगों के बीच आया हूं, हर पीढ़ी एक नई पीढ़ी को तैयार करती है। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बात है।

मैं देख रहा हूं, कितने यंग साइंटिस्‍ट मेरे सामने खड़े हैं। पुरानी पीढ़ी ने इनको तैयार किया है और ये नई पीढ़ी को तैयार करेंगे। यही परंपरा, गुरू शिष्‍य परंपरा एक प्रकार से हमारे देश की विशेषता रही है, जो मुझे आज ISRO में महसूस होती है। इन सीनियर मोस्‍ट वैज्ञानिकों ने जो परंपरा बनाई है, 50-60 साल में, वो आज भी आगे बढ़ रही है। इस कल्‍चर के लिए भी, इस परंपरा के लिए भी, आप सभी वैज्ञानिक बहुत-बहुत, इस उत्‍तम परंपरा को निर्मित करने के लिए अभिनंदन के अधिकारी हैं।

Through your achievements, you have honoured our fore-fathers, and inspired our future generations! You truly deserve all the love and respect you get from a grateful nation!

We Indians are a proud people!

Despite our many limitations, we aspire for the best.

The success of our space program is a shining example of what we are capable of as a nation.

Our space program has been an example of achievement, which inspires the rest of us to strive for excellence ourselves.

Moreover, space exploration requires cutting-edge expertise across diverse disciplines. A successful space program thus generates applications across multiple domains.

Our efforts in particular, have historically focussed on the ultimate objective of nation-building. Of translating space technology into space applications.

मैं जब गुजरात का मुख्‍यमंत्री था, मेरा अनुभव है। आप वैज्ञानिकों ने जो काम किया है, उसको अगर हम रोजमर्रा की जिंदगी में application करें, उसको apply करें, तो हम जीवन बदल सकते हैं। पूरा गवर्नेंस बदल सकते हैं। पूरी व्‍यवस्‍था बदल सकते हैं। पूरी व्‍यवस्‍था बदल सकते हैं। हमारी गति बदल सकते हैं। इतना बड़ा contribution स्‍पेस टेक्‍नोलोजी के द्वारा हो रहा है। space science के द्वारा हो रहा है और इसलिए मैं मानता हूं कि हमारे प्रयास, हमारे देश की क्‍वालिटी आफ गवर्नेंस, क्‍वालिटी ऑफ लाइफ, स्‍पीड ऑफ अचीवमेंट्स इन सबमें एक बहुत बड़ा बदलाव लाने का सामर्थ्‍य रखते हैं।

Delivering the fruits of this farthest frontier to the remotest corners of the country. Deepening our governance, strengthening our economy, and improving our lives.

We also have a great legacy and responsibility to live up to. Our ancestors had helped the world understand the mysteries of the heavens.

Grasp the idea of Shunya or nothingness.

Map spatial knowledge; such as the rotation of the Earth, motion of planets and occurrence of eclipses.

सदियों पहले आर्यभट्ट जैसे अनेक महापुरूषों ने हमें शास्‍त्र का ज्ञान दिया। हमें शून्‍य दिया। सारे जगत को आज, यही तो शून्‍य है, जो गति देने का कारण बन गया है। विज्ञान की खोज का अवसर, आधार बन गया है। यानी कोई ऐसा विषय नहीं, जिसे हमारे पूर्वजों ने रास्ता बनाकर न रखा हो।

एक प्रकार से ये प्रयास हमारे उन महान ऋषियों को, जो एक वैज्ञानिक थे, उनको एक बहुत बड़ी, उनके सम्मान में दी गई ये भेंट-सौगात है। और ये काम हजारों साल के बाद इस पीढ़ी ने दी है। इसलिए इस परंपरा को निभाने के लिए हम स्वंय अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं। ये महान काम लैब में बैठे हुए दिन-रात अपने सुख छोड़कर के, कुछ कर दिखाने की तमन्ना वाले वैज्ञानिकों के द्वारा होता है।

Modern India must continue playing this leading role of ‘Jagad-guru Bharat’.

स्वामी विवेकानंद ने कहा था – मैं देख रहां हूं, मेरी भारत माता फिर एक बार विश्व-गुरू का स्थान प्राप्त करेगी। ये कैसे करेगी, आप ही के लोगों के पुरुषार्थ से तो यह होने वाला है। हमारे देश की युवा पीढ़ी के पुरुषार्थ से होने वाला है। चाहे खेत में काम करने वाला किसान हो, चाहे मजदूरी करने वाला गरीब व्यक्ति हो या वैज्ञानिक इतना लैब में बैठकर के तपस्या करने वाला ऋषितुल्य जीवन हो, यही तो है जो भारत माता को जगत गुरू के स्थान पर विराजमान करेगी।

My dear friends!

Let me conclude by saying that in contrast with the linear nature of Western philosophy; there is no absolute ‘beginning’ or ‘end’ in our Eastern understanding of the cosmos.

There is only a continuous, unending cycle of dispassionate, detached perseverance.

Atal ji’s vision had inspired us to reach for the moon.

The successful Chandrayan mission, in turn led to the Mars Orbiter Mission.

This too, must become but a base for challenging the next frontier - of an inter-planetary mission.

Let today’s success, only drive us with even greater vigour and conviction. Let’s set ourselves even more challenging goals. And strive even harder to achieve them.

Let us push our boundaries. And then, push some more!

यही मिजाज, इसी उमंग के साथ हम आगे बढ़ें। गुरूदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने जो कहा था-

“Where the mind is led forward by thee into ever-widening thought and action ... Into that heaven of freedom, my Father, let my country awake.”

मैं फिर एक बार रविंद्र टैगोर की इस वाणी को श्रद्धा करते हुए, भारत जगेगा, भारत जगाएगा और हम सब इस जागरुक भारत को अपनी आंखों से देख पाएंगे। इसी विश्वास के साथ आप सब वैज्ञानिकों को आपके पुरुषार्थ और परिश्रम के लिए, आपकी प्रतिबद्धता के लिए, बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। मेरे प्यारे देशवासियों, हम सब गर्व करें, हमारे इन वैज्ञानिकों की सिद्धी के लिए, हमारी क्रिकेट टीम अगर एक टूर्नामेंट जीत कर आती है, पूरा देश नाच उठता है।

ये वैज्ञानिकों की सिद्धि उससे भी हजारों गुणा बहुत बड़ी है। सालों की तपस्या के बाद पाई हुई सिद्धि है। सवा सौ करोड़ देशवासियों के आशीर्वाद से जुड़ी हुई, ये सिद्धि है। आइए, मेरे देशवासी, कल से नवरात्री का प्रारंभ हो रहा है, शुभ शुरूआत हो रही है। मंगल, मंगल, मंगल होना तय है और जब मंगल, मंगल, मंगल होना तय है, तो इस मंगल की यात्रा हमें और मंगल करने की प्रेरणा देती रहेगी। आज पूरा हिंदुस्तान उन वैज्ञानिकों के सम्मान में आनंद उत्सव मनाएं। हर स्कूल, कॉलेज के अंदर पांच मिनट भी इकट्ठे होकर, तालियों के नाद के साथ, हमारे इन वैज्ञानिकों को याद करें, उनका गौरव करें। सवा सौ करोड़ देशवासी इस सिद्धि को अपनी बनाएं, आनंद उत्सव मनाएं। मंगलमय वातावरण बनाएं। यही एक अपेक्षा के साथ फिर एक बार आप सबको बहुत-बहुत शुभकामना। बहुत-बहुत बधाई। धन्यवाद 

Text of Prime Minister Shri Narendra Modi’s address at the inauguration of the India Food Park in Tumkur



विशाल संख्‍या में पधारे हुए मेरे किसान भाइयों एवं बहनों,

अभी मुख्‍यमंत्री जी कनडा भाषा में अपनी बात बता रहे थे। मैं कनडा भाषा नहीं जानता हूं। उसके बावजूद भी वो जो कह रहे थे, उसको में समझ पा रहा था। और उसका कारण यह है कि अगर देश को आगे बढ़ाना है, तो केंद्र और राज्‍य को मिलकर के काम करना होगा। राज्‍य की भावनाओं को केंद्र को समझना होगा और केंद्र की योजनाओं को राज्‍य और केंद्र को मिलकर के ही पार करना होगा।

आज ये जो फूड पार्क हम दे रहे हैं, इसमें राज्‍य सरकार, केंद्र सरकार और प्राइवेट पार्टी - तीनों की भागीदारी है। तीनों ने मिलकर के इस काम को आगे बढ़ाया है। देश को भी आगे बढ़ाने के लिए, दिल्‍ली में बैठी हुई इस नई सरकार का संकल्‍प है - अगर देश को आगे ले जाना है तो राज्‍यों को आगे ले जाना होगा। राज्‍य मजबूत होंगे तो देश मजबूत होगा। राज्‍य विकास करेंगे तो देश विकास करेगा। राज्‍य प्रगति करेंगे तो देश प्रगति करेगा।

पहले के समय में या तो राज्‍य और केंद्र प्रतिस्‍पर्धा में लगे थे, या राजनीतिक कारणों से विरोध में जुटे हुए थे। कुछ राज्‍यों को तो दुश्‍मनी के व्‍यवहार का अनुभव होता था। देश ऐसे नहीं चल सकता है। अगर देश चलाना है तो केंद्र और राज्‍यों को एक टीम बन करके काम करना होगा। प्रधानमंत्री और मुख्‍यमंत्रियों को - वे किसी भी दल के क्‍यों न हो, दल कोई भी क्‍यों न हो, देश तो एक है - कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ाना होगा। और मैं, एक के बाद एक, सभी राज्‍य सरकारों को विश्‍वास में लेकर के, सभी मुख्‍यमंत्रियों का साथ लेकर के, भारत के फेडरल स्‍ट्रक्‍चर को लेटर एंड स्पिरिट में कैसे उपयोग किया जा सकता है, कैसे उस ताकत का उपयोग किया जा सकता है, उसको करने के लिए हमारी पूरी कोशिश रहेगी।

आज का दिवस अनेक प्रकार से विशेष है। आज भारत के वैज्ञानिकों ने एक बहुत बड़ी सिद्धि प्राप्‍त की है। पहले ही प्रयास में मंगल के orbit में स्‍थान पाने वाला हिंदुस्‍तान पहला देश बन गया है। आज मेरा ये भी सौभाग्‍य रहा कि यहां आने से पहले परम पूज्‍य सिद्धगंगा स्‍वामीजी के चरण स्‍पर्श करने का अवसर मिला। उनके आर्शीवाद लेने का अवसर मिला। और आज, जैसे हमारे मंत्री जी ने कहा – अन्‍नं ब्रह्म। अन्‍न ब्रहम की पूजा करने का, इस प्रोजेक्‍ट के द्वारा अवसर मिला है।

हम सुनते आए हैं, भारत कृषि प्रधान देश है। लेकिन देश के किसानों का हाल क्‍या है? किसान देश का पेट भरता है और किसान की ताकत है, दुनिया के भी कई हिस्‍सों का पेट भर सकता है। लेकिन किसान की जेब नहीं भरती है। वह हमारा तो पेट भरे, लेकिन अगर उसकी जेब नहीं भरती है, तो हमारा किसान जाएगा कहां। और वो तब होगा, जब हम कृषि को वैज्ञानिक तरीके की और ले जाएंगे। हम हमारी उत्‍पादन क्षमता को बढ़ाएंगे। हम हमारे कृषि उत्‍पादन के रख-रखाव की अच्‍छी व्‍यवस्‍था करेंगे। हम Value addition करेंगे। किसान के रख-रखाव के भाव में वेयर हाउस नहीं हैं, cold storage नहीं हैं, infrastructure नहीं है, अपना फल-फूल पैदा कर के गांव से बाजार ले जाने को अच्‍छे रास्‍ते नहीं है। तो किसान कितनी भी मेहनत करेगा वह आर्थिक रूप से संपन्‍न नहीं हो सकता है। और यह समय की मांग है कि हमारा किसान जो उत्‍पादन करता है, उसको सही Market मिले, सही दाम मिले। रखरवाव की व्‍यवस्‍था मिले, Value addition के लिए processing हो। अगर ये किया गया, भारत का गांव समृद्ध होगा, भारत का गरीब समृद्ध होगा। अगर हिन्‍दुस्‍तान की economy को आगे बढ़ाना है, तो गांव के इंसान की खरीद शक्ति को बढ़ाना होगा, उसके purchasing power को बढ़ाना पड़ेगा। अगर गांव के व्‍यक्ति का purchasing power बढ़ता है, तो शहर की economy भी तेज गति से आगे बढ़ने लग जाती है। और गांव के व्‍यक्ति का purchasing power तब बढ़ता है, जब कृषि क्षेत्र में हमारी ताकत बढ़े। और इसलिए राज्‍य का, केन्‍द्र का, मिल कर के प्रयास रहना चाहिए कि हम कृषि क्षेत्र को किस प्रकार से आधुनिक बनायें, वैज्ञानिक बनायें।

Food Processing, यह हमारे देश के लिए नई चीज नहीं है। सदियों से हमारे पूर्वज अपने-अपने तरीके से व्‍यक्तिगत उपयोग के लिए इन चीजों को करते आए थे। अब देखिये, बिहार का कोई व्‍यक्ति, कहीं भ्रमण के लिए जाता है, महीने भर के लिए जाना है, तो अपने साथ सत्‍तू बना कर ले जाता है। और महीनों तक वह सत्‍तू खाने के काम आ जाता है। यही तो है Food Processing, और क्‍या है? हमारे पूर्वज हैं, जो किसी जमाने में गन्‍ने के रस से गुड़ बनाते थे। वह भी जमीन पर बनाते थे। वह भी तो Food Processing था।

एक जमाना था, सामुद्रिक मार्ग में एक रास्‍ता पूरे विश्‍व प्रसिद्ध था। सामुद्रिक मार्ग में, sea route में, एक Spices Trade Route सदियों से जाना जाता है। आज तो कई प्रकार के Trade Route की समुद्र से चर्चा होती है। पर वह spices का समुद्र में ट्रेड रूट था, हमारे देश के किसान जो मसाला पैदा करते थे, वह पूरे विश्‍व के बाजार में जाता था। और समुद्र के मार्ग का उपयोग भी Spices Trade Route के रूप में होता था। यह सामर्थ्‍य हमारे देश के किसानों में था।

आज समय की मांग है कि हमारे किसान जो पैदा करते हैं, उसका wastage अगर हम बचा लें, तो भी देश के 30-40 हजार करोड़ रुपये बच सकता है। और इसके लिए इस प्रकार के आर्थिक व्‍यवस्‍थाओं को हमें विकसित करना होगा। आज कल तो Nuclear Energy का उपयोग भी किसानों की भलाई के लिए करने की संभावनाएं पैदा हुई हैं। भारत उसको भी आगे बढ़ाना चाहता है।

उसी प्रकार से इन दिनों में कुछ कंपनियों के सामने मैंने एक विषय रखा है। हम Pepsi पीते हैं, Cola पीते है, न जाने कितने-कितने प्रकार के Beverages बाजार में मिलते हैं। अरबो-खरबों रुपये का व्‍यापार होता है। मैंने इन कंपनियों को कहा कि आप ये जो बनाते है, aerated waters, क्‍या उसमें 5% natural fruit juice को mix किया जा सकता है क्‍या? आप कल्‍पना कर सकते हैं, आज जो अरबो-खरबों रुपये का इस प्रकार के पेप्‍सी वगैरह पेय का जो व्‍यापार है, पांच प्रतिशत उसमें, ज्‍यादा मैं नहीं कह रहा हूं, 5% , किसान जो फल पैदा करता है, उसे फल का जूस अगर उसमें मिक्‍स कर दिया जाए, हिंदुस्‍तान के किसान को फल बेचने के लिए कभी बाजार ढूंढने नहीं जाना पड़ेगा। अरबो-खरबों रुपये के फलों का व्‍यापार एक निर्णय में हो सकता है।

मैंने भारत सरकार की जो Research Institutes हैं, उनसे भी आग्रह किया है, कि आप research करें कि इन aerated waters में - ये पेप्‍सी कोला वगैरह जो बिकता है - उसमें हमारा किसान जो पैदा करता है, उन फलों का जूस, नेचुरल जूस अगर उसमें डाला जाए तो तेरे किसान की आय बढ़ेगी, उनके फल बिक जाएंगे और मेरे किसान को कभी अपने फल चौराहे पर फेंकने की नौबत नहीं आएगी।

मैं अभी एक science magazine पढ़ रहा था। आज देखिए, आज किसान जो पैदा करता है, कोई चीज waste जाने वाली नहीं है। कितनी चीजें बन सकती है। हम cashewnut खाते हैं, cashewnut का बड़ा बाजार मिलता है। लेकिन अभी विज्ञान यह कह रहा है कि cashewnut का जो कवर होता है, जिसमें से cashew निकलता है, वो जो ऊपर का कवच होता है, जो हार्ड कवच रहता है, वह nutrient-rich च रहता है। अगर उसका जूस बाजार में जाएगा तो nutrition के लिए हर व्‍यक्ति को उपयोगी होगा। अब तक हम क्‍या करते थे, काजू निकालते थे और ऊपर का छिलका जला देते थे। अब उसमें value addition होने की संभावना हुई है।

केले, हमलोग केले की खेती करते है। केला निकालने के बाद वो चूरा पौधा जो होता है, पांच फीट, छह फीट ऊंचा होता है, उसको नष्‍ट करने के लिए अलग contract देते थे। एक बीघा जमीन में यह साफ करने के लिए 10 हजार 20 हजार रुपये हम देते थे। आज हमारे यहां एक university ने research किया है कि केले पकने के बाद, केले निकलाने के बाद जो पौधा बचता है, उसमें से बहुत बढि़या तंतु निकलते हैं, धागे बनते हैं। और उसमें से उत्‍तम प्रकार का कपड़ा बन सकता है। केले के waste में से कपड़ों का निर्माण होने की संभावना पैदा हुई है। यानी मूल्‍य वृद्धि - processing। हम सदियों से इन चीजों से परिचित है। हम करते आए हैं।

हम दूध में घी बनाते है। दूघ दो दिन भी टिकता नहीं है, लेकिन घी महीनों तक टिकता है। कौन सी technology है ये? सहज परिवार का ज्ञान है जो फूड प्रोसेसिंग प्रक्रिया को करता है। दूध में से घी बनता है और महीनों उस घी का उपयोग करता है। घी खराब नहीं होने देता है।

आज हमारा किसान टमाटर बेचता है, कम पैसे मिलते हैं, लेकिन अगर टमाटर का ketchup बनाकर के बेचे तो ज्‍यादा पैसा मिलता है। और ketchup का bottle भी बढि़या हो, नाम भी बढि़या हो और कोई नारी हाथ में बोटल लेकर खड़ी हो, तो उसे और ज्‍यादा पैसे बाजार में मिल जाते हैं, marketing का जमाना है। हमारा किसान अगर आम बेचता है तो कम पैसे मिलते हैं, लेकिन अचार बनाकर बेचता है तो दुनिया के बाजार में अचार बिकता है। आज पूरे विश्‍व में भारत के भोजन के प्रति एक आकर्षण पैदा हुआ है। भोजन में भारत का टेस्‍ट आज विश्‍व भर में एक आकर्षक का केंद्र बना है। लेकिन preparation उनके लिए संभव नहीं हैं। Ingredients available नहीं हैं। लेकिन अगर हम packed, ready-to-eat भोजन बनाकर करके बाजार में रखते हैं। आज पूरे विश्‍व में हमारा माल बिक सकता है।

अगर आप Indian Curry पैक करके बेचना शुरू करें, दुनिया खरीदने के लिए तैयार बैठी है। इतना बड़ा Global Market है, उसकों हम कैसे स्‍पर्श करें? आज Organic Farming, इसका महत्‍व बढ़ रहा है। सारा विश्‍व Holistic Healthcare की ओर जा रहा है। हमारे हिमालयन states, North East states, जिसमें organic farming की सबसे ज्‍यादा संभावना है – chemical fertilizer से मुक्‍त। अगर उनको हम अच्‍छी laboratory दें, अच्‍छा certification दें, दुनिया के बाजार में जो माल एक रूपए में बिकता है, अगर वो Organic Farming से बना तो वही माल एक डॉलर में बिक जाता है। ये संभावनाएं पड़ी हैं और इन संभावनाओं को तलाशने का प्रयास भारत सरकार कर रही है, उसे प्रोत्‍साहन दे रही है। हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने में किसान जो पैदावार करता है, उस पैदावार के लिए आवश्‍यक जो व्‍यवस्‍थाएं हैं, उन व्‍यवस्‍थाओं जितना infrastructure हम बढ़ाएगें। समुद्री तट से उसे विश्‍व व्‍यापार के लिए अवसर देंगे।

हमारा किसान बहुत चीजें कर सकता है। एक बार में एक function में गया था। ट्राइबल इलाका था। उन ट्राइबल लोगों ने मुझे गुलदस्‍ता भेंट किया और मैं हैरान था। गुलदस्‍ते में जो फूल थे, हर फूल पर मेरी तस्‍वीर लगी थी। मेरे लिए वो पहली घटना थी। मैंने कहा, भाई, ये क्‍या है? आदिवासी लोग थे, ट्राइबल लोग थे। उन्‍होंने कहा, हम laser technology से फूल पर photo print करते हैं और ये फूल बाजार में बेचते हैं। जो फूल हमारा दो रूपए में नहीं बिकता था, वो फूल आज हमारा दो सौ रूपए में बिकता है। अब देखिए technology दूर-दराज के गांव में रहने वाले आदिवासी भी किस प्रकार से वैल्‍यू एडिशन किया जा सके, वो कर रहा है। हम उसे पहुंचाएं बात को, हम व्‍यवस्‍थाएं खड़ी करें। और देश में आगे बढ़ने के लिए Public-Private Partnership Model को हम बढ़ावा देंगे। हम private companies कंपनियों को प्रोत्‍साहित करेंगे। आइये हमारे किसानों की जो पैदावार है, उसमें मूल्‍य वृद्धि कैसे हो, किसान को अधिक से अधिक लाभ कैसे मिले, किसान जो पैदा करता है, उसके wastage से हम बचें, किसान जो पैदा करता है, वो अन्‍य गरीब के पेट में जाए, गरीब का आर्शीवाद मिलें, उन बातों पर बल दे रहें हैं।

मैं आज इस India Food Park को देश के चरणों समर्पित करता हूं, भारत किसानों के चरणों में समर्पित करता हूं। और ये बदलाव, आने वाले समय में संपूर्ण किसी क्षेत्र में बदलाव लाएगा। इस विश्‍वास के साथ एक एग्रीकल्‍चर इकोनोमी को एक नया आयाम देने का प्रयास आने वाले दिनों में भारत के आर्थिक विकास की यात्रा में, हमारा किसान, किसान के द्वारा उत्‍पन्‍न की पैदा की गई पैदावार भी हमारे आर्थिक यात्रा को एक बहुत बड़ा बल देंगे। इसी विश्वास के साथ फिर एक बार मैं आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं, आपका आभार व्यक्त करता हूं।

किसानों के इस परिश्रम को लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था जय जवान-जय किसान। अटल जी ने कहा था जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान। आज का वो दिन है, जहां जय विज्ञान भी है, जय किसान भी है। ये जय विज्ञान, जय किसान, जय जवान के लिए भी कम आने वाला है, इसीलिए मैं आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद। 

Swachh Bharat Programme for Urban Areas



The Union Cabinet chaired by the Prime Minister, Shri Narendra Modi, today gave its approval for a massive program called "Swachh Bharat Mission for Urban Areas". This is proposed to be implemented over 5 years starting from 2nd October, 2014 in all 4041 statutory towns. The total expected cost of the programme over 5 years is Rs. 62,009 crore, out of which the proposed Central assistance will be of  Rs. 14,623 crore.

The programme includes elimination of open defecation, conversion of insanitary toilets to pour flush toilets, eradication of manual scavenging, Municipal Solid Waste Management, bringing about a behavioural change in people regarding healthy sanitation practices, generating awareness among citizens about sanitation and its linkages with public health, strengthening of urban local bodies to design, execute and operate systems to fulfil these objectives and creating an enabling environment for private sector participation in capital expenditure and operational expenditure.

The Programme consists of components for providing:

i.   Individual household toilets,
ii.  Community and public toilets and
iii. Municipal Solid Waste Management in all 4041 statutory towns.

It would cover 1.04 crore households, provide 2.5 lakh seats of community toilets, 2.6 lakh seats of public toilets and solid waste management facility for all towns. Community toilets will be proposed in residential areas, where it is difficult to construct individual household toilets, public toilets will be constructed in designated locations such as tourist places, markets, bus stations, near railway stations and places of public recreation wherever required.

The scheme will be part of a joint Swachch Bharat Mission to be implemented for rural areas by the Ministry of Drinking Water and Sanitation and for urban areas by the Ministry of Urban Development.

A National Advisory and Review Committee, headed by Secretary, Ministry of Urban Development and comprising of representatives of Finance and other concerned Ministries shall release funds, monitor and supervise the programme. A High Powered Committee headed by the Chief Secretary at the State level would steer the programme in its entirety. Detailed guidelines shall be prepared by the Government of India separately.

The coverage and funds needed under various components is:

S.No.

Component

Total

Remarks

1.

Individual            Household Toilets

Rs.4,165 Cr

100% coverage in two years

2.

Community Toilets

Rs. 655 Cr.

-    Do-

3.

Public Toilets

0

Through PPP

4.

Solid Waste Management

Rs.7,366 Cr.

90% in years 2 & 3

5.

Public Awareness

Rs.1,828Cr.



6.

Capacity Building & Admn. Exp.

Rs.609 Cr.



                        Total

Rs. 14,623 Cr.




Prime Minister’s statement prior to his departure for US



I am visiting the United States from 26 to 30 September 2014. I will attend the United Nations General Assembly in New York and, thereafter, visit Washington DC on 29-30 September 2014 for a bilateral summit with U.S. President Barack Obama.

Since its participation as a founding member of the United Nations in 1945, India has shown unwavering commitment to multilateral processes to advance peace and security and promote broad-based inclusive economic development in the world. India`s contribution to UN peacekeeping operations over decades is a strong testimony of our efforts to contribute to the achievement of the objectives of the UN charter.

The 69th session of the UN General Assembly is meeting at a moment of many pressing challenges for the international community – a still fragile global economy, turbulence and tension in many parts of the world, growth and spread of terrorism, the Ebola health crisis in Africa, climate change and the endemic global challenge of poverty.

I will call for a stronger global commitment and more concerted multilateral action in meeting these challenges. I will urge early adoption of the Post-2015 Development Agenda with focus on growth, development and elimination of poverty. As we head towards the 70th Session of the UNGA in 2015, I will also stress the urgency of early reforms in the United Nations, to ensure that it remains relevant and effective in dealing with the challenges of the 21st Century.

I will also meet the United Nations Secretary General Ban Ki Moon and leaders from other countries on the margins of the UNGA.

The New York leg of my visit will also cover important elements of our bilateral relations with the United States. I look forward to meeting business leaders to invite them to participate more actively in India`s economic growth and transformation. This is message that I will also convey to the U.S. business community in Washington DC. My participation in a public event in Central Park in New York that on poverty is to focus international attention on this great challenge for humanity and affirm my support for global civic action, especially involving the youth, to address it.

I keenly await the opportunity to meet the Indian American Community at the Madison Square Garden in New York. Their success in diverse fields, their contribution to the United States, their abiding bonds with India and their role as a vibrant bridge between the two largest democracies is a source of pride for us. They serve as a window to our heritage, progress and potential.

I look forward to meeting President Obama over two days in Washington DC. This will be my first meeting with him. His life`s journey is a remarkable testimony to the rights and opportunities that democracies provide, and an inspiration for people around the world.

Shared values, convergent interests and complementary strengths provide the foundation for natural partnership between the world`s oldest and largest democracies.

I see the United States as a vital partner for our national development, drawing especially on the rich possibilities of partnership in education, skills, research, technology and innovation – and, above all, a shared commitment to human values. Working together, and with others, we can bridge the many divisions of our times and contribute to building a more peaceful, stable, secure, sustainable and prosperous world.

I will discuss with President Obama how we can use the strength of all that we share and all that we have built so far to take our relationship to a new level in the interest of our two countries and the cause of this world. I am confident that the visit will mark the start of a new chapter in our strategic partnership. 

PM launches "Make in India" global initiative



The Prime Minister, Shri Narendra Modi, today launched the Make in India initiative with an aim to boost India`s manufacturing sector.

Addressing a gathering consisting of top global CEOs at the event in Vigyan Bhawan in the capital, the Prime Minister said "FDI" should be understood as "First Develop India" along with "Foreign Direct Investment." He urged investors not to look at India merely as a market, but instead see it as an opportunity.

The Prime Minister said it is important for the purchasing power of the common man to increase, as this would further boost demand, and hence spur development, in addition to benefiting investors. The faster people are pulled out of poverty and brought into the middle class, the more opportunity will there be for global business, the Prime Minister said. Therefore, he said, investors from abroad need to create jobs. Cost effective manufacturing and a handsome buyer - one who has purchasing power - are both required, the Prime Minister said. More employment means more purchasing power, he added.

The Prime Minister said that India is the only country in the world which offers the unique combination of democracy, demography, and demand. He said the new Government was taking initiatives for skill development to ensure that skilled manpower was available for manufacturing. He also referred to the Digital India mission, saying this would ensure that Government processes remained in tune with corporate processes.

The Prime Minister said he had felt a mood of gloom among India`s business community in the last few years, due to lack of clarity on policy issues. He said he had heard even Indian businessmen say that they would leave India and set up business elsewhere. The Prime Minister said this hurt him, and added that no Indian business should feel a compulsion to leave the country under any circumstances. He said on the basis of the experience of the last few months, he could say that the gloom has lifted.

The Prime Minister gave the example of the new Government`s initiative on self-certification of documents, and said this was illustrative of how the new Government trusted the citizens. The Prime Minister said trust is essential for investors to feel secure. Let us begin with trust; if there is an issue, Government can intervene, he said. The Prime Minister said trust too can be a transformative force.

Shri Narendra Modi said development and growth-oriented employment is the government`s responsibility.

The Prime Minister noted that India ranks low on the "ease of doing business" and added that he has sensitized Government officials in this regard. He also emphasized the need for "effective" governance.

To the expression "Look East," the Prime Minister added "Link West", and said a global vision was essential. He said Mission Swachh Bharat and "waste to wealth" could lead to good revenue models for business as well. He referred to his vision of waste water management and solid waste management in 500 towns across India through public private partnership.

The Prime Minister also spoke of infrastructure of the future – including i-ways besides highways – and mentioned port led development, optical fibre networks, gas grids and water grids.

The Prime Minister also unveiled the Make in India logo, and launched the website makeinindia.com

24 September 2014

ISRO HISTORIC MOVE

The Indian Space Research Organisation’s Mars Orbiter Spacecraft successfully entered the orbit of Mars on Wednesday morning after a liquid motor engine fired effectively for a little over 24 minutes to impart a little over the required velocity of 1098 metres per second at 1099 metres per sec.
The $ 71 million mission, one of the cheapest undertaken by any space faring nation, puts ISRO among an elite league of three other space agencies to undertake a successful voyage to the Red Planet. The successful entry of the MOS into the orbit of Mars (further data is still awaited on the exact orbit achieved) makes India the first country to make it to Mars on its first attempt.
The Mars Orbiter Spacecraft was intended to be placed in an elliptical orbit spanning 423 km X 80,000 km around Mars. The US space agency NASA which has 16 successful Mars mission to its credit placed its Maven spacecraft in 150 km X 6250 km orbit around Mars exactly two days ago.
The successful mission of the Mars Orbiter Spacecraft with Prime Minister Narendra Modi in attendance was greeted by cheers by scientists at ISRO’s mission operations centre 2 and was followed by the distribution of sweets.
“If our national cricket team wins a tournament the whole country celebrates. What our scientists have done is far greater,’’ Prime Minister Narendra Modi said following the success.
The Indian prime minister who appreciated the low cost nature of the project – costing less than the $ 100 million Hollywood movie Gravity – called on the scientists to continue to push their boundaries.  He said ISRO had carried out the MOS mission within three years of a feasibility study.
The Mars Orbit Insertion maneuver on Wednesday went to plan for ISRO with the Mars Orbiter Spacecraft triggering pre-loaded commands on the dot as prescribed by the pre-determined schedule. There were loud cheers in mission control when the liquid engine started firing at 7.17 AM and information was received in this regard at the earth stations at 7.30 AM.
The biggest cheers in mission control however emerged at 8.10 AM when first information came in from the spacecraft to indicate that the orbit insertion had gone to plan with the engine imparting the required thrust of 1098 metres/second during its 24 minute burst.
With Mars eclipsing the MOS for a period of nearly 20 minutes from 7.34 AM the major portion of the maneuver on Wednesday occurred with communication being shut down with MOS and with no solar power supply to the spacecraft. The orbiterfunctioned on its internal battery power till 8 AM before resuming communications and power supply at the end of the eclipse.
The maneuver on Wednesday involved reducing the velocity of the MOS and putting it in synch with the velocity of Mars. “When we reach Mars our spacecraft will have a velocity of 22.57 km/sec where as Mars velocity is 25.71 so our space craft is slow. But when it is coming under the influence of Mars gravity it gains a velocity of 5.7 km/sec but we don’t want that much velocity to put our spacecraft in the desired orbit. What we require is 4.6 km/sec.  So from 5.7 km/second the velocity has to be reduced to 4.6 km/sec so the velocity increment imparted is 1.1 km/sec,’’ the mission director at mission control Dr V Kesava Raju said.
-Scientists described the Mars Orbiter Mission, affectionately nicknamed MOM, as flawless. (Source: ISRO)

India, Switzerland join hands to reduce energy consumption


 As India strives for a low carbon inclusive growth — even as it facilitates speedy clearances for infrastructure projects — the government is looking at Switzerland to cut down its construction induced Greenhouse gas (GHG) emissions.
The on-going Indo-Swiss Building Energy Efficiency Project (BEEP) aims to reduce the energy consumption in new commercial, public and residential buildings and "disseminate best practices" for their construction, Swiss government officials said here. BEEP contributes to strengthen the objectives of government on energy conservation.
Speaking to The Times of India, Swiss Ambassador Dr Linus von Castelmur said Switzerland was pleased tha t the cooperation of the two countries on energy efficiency in buildings had already resulted in sizeable achievements.
"One recent milestone was the development of energy efficient design guidelines for residential buildings which have been endorsed by the Bureau of Energy Efficiency of the Ministry of Power and launched recently as part of the Government's 100 days agenda," he said.
Residential buildings in 2012 are said to have accounted for 20% of India's total electricity consumption which is expected to increase seven-fold by 2032.
In another project, Switzerland is supporting a research project on production of a new type of cement.
The Narendra Modi government also plans to develop 100 smart cities and other major infrastructure investments. As the demand for cement products increases, the pressure on India to contain its GHG emissions is also expected to rise
According to Swiss officials, it is now possible to double the quantity of cement produced from the same quantity of limestone. The so called Limestone Calcined Clay Cement (LC3) generates 30% less CO2 emissions compared to traditional cement. A joint research on LC3 is being carried out by an international team of the Federal Institute of Technology, Lausanne in Switzerland in collaboration with three Indian Institutes of Technology - IIT Delhi, IIT Madras and IIT Bombay - and a technology incubation partner, Technology and Action for Rural Advancement (TARA).
India is the first country where LC3 is being tested, both in laboratory and in the field, on a large scale, said Swiss authorities. "India was selected for the size of its market and its growth potential, the wide availability of kaolin clays and most importantly the commitment of the Indian government to reduce CO2 emissions," said a Swiss official.
According to Switzerland, Indo-Swiss bilateral cooperation moves in line with India's emphasis on low carbon inclusive growth and its international voluntary commitment to reduce GHG emission intensity.
Cement production presently shares 5-8% of manmade emissions globally. "Switzerland therefore considers India's construction environment as a priority sector, aiming to improve energy efficiency in the building sector (residential and public), strengthen capacities of the urban governments for integration of low carbon strategies in urban planning and improving the resource efficiency of building materials such as cement," said a Swiss official.

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