2 June 2014

Country's first tobacco-free village in Nagaland

Gariphema village in Nagaland has been declared the country's first "tobacco-free village". The declaration was made by Principal Secretary R Benchilo Thong on the occasion of "World No Tobacco Day" yesterday at the Gariphema Village Council hall near here.

It was result of an initiative taken by the Gariphema village council, Village Vision Cell and Village Students' Union, Thong said.

A resolution was taken at the village that whoever sells alcohol and tobacco or whoever gets drunk and disturbs peace would be imposed a fine of Rs 1000 while those consuming alcohol, 'bidi', 'paan', betel nut or smokeless tobacco on the street and public places would be fined Rs 500.

Thong said Gariphema has shown a great example not only to villages in Nagaland but also to other regions of the country and urged the villagers to strictly follow the declaration.

At the programme, Deputy Director, National Tobacco Control Programme, MC Longai said 67.9 per cent men and 28.1 per cent women of Nagaland consume tobacco.

Over 2200 Indians die every day due to tobacco use and 40 per cent of all cancers in the country are caused due to tobacco use, he said, adding 90 per cent oral cancer cases were tobacco related.

India has the highest number of oral cancer cases in the world, he said.
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31 May 2014

In a major development in the field of aviation safety CSIR-National Aerospace Laboratories (CSIR-NAL), Bangalore and India Meteorological Department (IMD) inked a partnership pact for joint production of Drishti System; a sophisticated instrument for assessment of Runway visual range, which is a vital parameter for safe landing and takeoff of aircraft in poor visibility.

The joint agreement between two government sector entities will lead to indigenization of a technology which so far was the exclusive domain of few developed countries. The indigenous production of this advanced instrument will not only result in considerable saving of foreign exchange but will also make the country self-reliant in the field of front-end technology.

Drishti Transmissometer (Drishti System)

A visibility measuring system indigenously designed and developed by CSIR-NAL to cover the wide span of lowest to highest visibility (< 25 to > 2000 meters) assisting pilots for safe landing and take-off. This cost-effective product is a mandatory system required at all airports as per International Civil Aviation Organisation (ICAO) and World Meteorological Organisation (WMO). At present, Seven Drishti systems are functioning in three international airports, viz., Choudhary Charan Singh International Airport, Lucknow, Netaji Subhash Chandra Bose International Airport. Five systems are working in country’s most stringent CAT IIIB airport, viz., Indira Gandhi International Airport, New Delhi, for the last 2 years. Other important features of this system include web enabled health monitoring and remote control of the system from any location in the country for accessing the data and for maintenance.

“Drishti” has also won several awards during 2013-14 from National Research Development Corporation (NRDC), Institution of Electronics and Telecommunication Engineers (IETE), India, and Indian Electronics & Semiconductor Association (IESA) as the most innovative, meritorious product of the year.
Lithuania’s incumbent President Dalia Grybauskaite (58) has been declared the winner in the country’s run-off Presidential elections. She got 58% votes whereas her Social Democrat rival Zigmantas Balcytis only 42% votes. The election was held amid rising concerns in the region after Russia’s annexation of Crimea from Ukraine.

धरोहर संरक्षण : वैज्ञानिक कार्यप्रणाली की भूमिका

 
यह कहा जाता है ‘’किसी व्‍यक्ति का अपनी धरोहर से संबंध उसी प्रकार का है, जैसे एक बच्‍चे का अपनी मां से संबंध होता है। हमारी धरोहर हमारा गौरव है और इसे भविष्‍य में आने वाली पीढि़यों के लिए बचाना तथा इसका संरक्षण करना हम सबकी जिम्‍मेदारी है। भारतीय संविधान के अनुच्‍छेद 51ए(एफ) में स्‍पष्‍ट कहा गया है कि अपनी समग्र संस्‍कृति की समृद्ध धरोहर का सम्‍मान करना और इसे संरक्षित रखना प्रत्‍येक भारतीय नागरिक का कर्तव्‍य है।

भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) इस कार्य में काफी महती भूमिका निभाता रहा है और इसकी विभिन्‍न शाखाओं को विभिन्‍न क्षेत्रों तकनीकी महारत हासिल है तथा ये सभी पूर्ण समन्‍वय के साथ इस विलक्षण कार्य को अंजाम दे रही है। एएसआई की सबसे पुरानी शाखाओं में वैज्ञानिक शाखा भी है और इसकी स्‍थापना 1917 में की गई थी। इसका मकसद देश के ऐतिहासिक स्‍मारकों की वैज्ञानिक पद्धति से संरक्षण प्रक्रिया की जिम्‍मेदारी को साझा करना है, जिसमें संरक्षण की उपलब्‍ध बेहतर पारंपरिक तथा आधुनिक विधाओं का इस्‍तेमाल किया जाता है। ऐतिहासिक स्‍मारकों को वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित करने का मुख्‍य उद्देश्‍य उनके सौन्‍दर्यात्‍मक आकर्षण में सुधार लाना हानिकारक तत्‍वों तथा मलबे को हटाना, खतरनाक अपशिष्‍टों को निष्‍प्रभावी करना और इसे अंतिम संरक्षणात्‍मक उपचार के लिए तैयार करना हैा

ऐसे बहुत से प्राकृतिक और मानवजनित कारक है, जिन्‍हें विभिन्‍न संरक्षण समस्‍याओं के लिए आमतौर पर जिम्‍मेदार माना जाता है और ये किसी भी स्‍मारक की निर्माण सामग्री को नुकसान पहुचाते है। चट्टानों की उत्‍पति के दौरान विभिन्‍न भूवैज्ञानिक एवं धातु संबंधी त्रुटियां विभिन्‍न संरक्षणात्‍मक समस्‍याओं के लिए जिम्‍मेदार हो सकती है और अंतत: स्‍मारकों को नुकसान पहुंचाती है। यह निर्माण सामग्री की स्‍वाभाविक कमजोरी के कारण होता है।

स्‍मारकों को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों में कुछ वैज्ञानिक कारक भी है, जिनमें स्‍मारकों पर कोई शैवाल, लाईकेन, कवक और अन्‍य उच्‍चकुल के पौधों की वृद्धि शामिल है। ये न केवल स्‍मारकों को भद्दा बनाते है, बल्कि उसकी निर्माण सामग्री को भौतिक तथा रासायनिक नुकसान पहुंचाते है।

चट्टानी पत्‍थरों पर उत्‍कृष्‍ट कार्यों तथा चित्रकारी को चमगादड़ तथा पक्षियों का विष्‍ठा बहुत नुकसान पहुंचाता है। अजंता की गुफाओं में शैल कलाकृतिों पर चमगादड़ के मलमूत्र के जमने से इनको काफी रासायनिक नुकसान पहुंचा है।

हवा में तैरते सूक्ष्‍म प्रदूषक कण (एसपीएम) और अन्‍य रासायनिक सक्रिय प्रदूषक तत्‍व धूल के साथ मिलकर स्‍मारकों को कुरूप बनाते है। इसी तरह जलवायु की दशाए, नमी और तेज सौर विकिरण भी विशिष्‍ट स्‍मारकों के क्षरण के लिए जिम्‍मेदार है।

विभिन्‍न भौगोलिक क्षेत्रों के लिए संरक्षणात्‍मक समस्‍याएं भी अलग-अलग होती है। उदाहरण के तौर पर लेह और लद्दाख जैसे क्षेत्रों में अधिक ऊँचाई पर स्थित बौद्ध मठों की संरक्षण समस्‍याए, मिट्टी आधारित स्‍मारकों से अलग होती है। इसी तरह तटीय क्षेत्रों में स्थित स्‍मारकों को लवण की मार को झेलना पड़ता है। चट्टानी कलाकृति, प्‍लास्‍टर और मोर्टार के सांचे में घुलनशील लवण के क्रिस्‍टल बन जाने से इन्‍हें गंभीर नुकसान पहुंचता है। इसे चट्टानी कलाकृति की छिद्र आकृतियां बाधित होती है और धीरे-धीरे उसकी निर्माण सामग्री को नुसान पहुंचता है, जिसकी मरम्‍मत बाद में बहुत मुश्किल होती है। मंदिरों में पूजा के दौरान विभिन्‍न प्रकार के तेल और तेल लैंपों के इस्‍तेमाल से इन स्‍मारकों को बहुत नुकसान होता है।

विभिन्‍न कालों में ऐतिहासिक स्‍मारकों पर की गई मानव वर्बरता से भी संरक्षण संबंधी समस्‍याएं पैदा होती है। ‘ऐतिहासिक स्‍मारक एवं पुरातात्विक स्‍थल एवं अवशेष कानून-2010’ में प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्‍मारकों, पुरातात्विक स्‍थलों, राष्‍ट्रीय महत्‍व के अवशेषों के संरक्षण तथा इन्‍हे नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ दंड का प्रावधान है।

एएसआई की विज्ञान शाखा चट्टान, चट्टानी कलाकृति, प्‍लास्‍टर तथा अन्‍य निर्माण सामग्री के भौतिक एवं रासायनिक गुणों का अध्‍ययन करती है। संरक्षण संबंधी विभिन्‍न समस्‍याओं का पूरी तरह पता लगाकर विशेषज्ञ पुरातात्विक रसायनविद की मदद से एक उपयुक्‍त कार्य पद्धति विकसित की जाती है, जिसमें उपयुक्‍त रसायनों, विलयको और सामग्री का इस्‍तेमाल किया जाता है।

ऐतिहासिक स्‍मारकों को सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए विभिन्‍न संरक्षणात्‍मक उपायों की योजना बनाकर, बेहतर नतीजे हासिल करने के लिए व्‍यवस्थित तरीके से क्रि‍यान्‍वि‍त कि‍या जाता है। इनमें स्‍मारकों की सामान्‍य साफ सफाई, मड पैक क्‍लीनि‍ग, कैल्‍शि‍यम अपशिष्टों तथा मलबे को हटाना, जैवि‍क उपचार और जल नि‍रोधक उपचारात्‍मक उपाय शामि‍ल है।

स्‍मारकों पर जमे मलबे और पौधों की जैवि‍क वृद्धि‍ को साफ करने के लि‍ए अमोनि‍या के बहुत ही पतले घोल एवं गैर आयन डि‍टरजेंट का हल्‍के ब्रश के साथ इस्‍तेमाल कि‍या जाता है।

चूना प्‍लास्‍टर वाले स्‍मारकों की बाहरी सतह से सूक्ष्‍म पौधों को हटाने के लि‍ए जलीय माध्यम में ब्‍लीचिंग पावडर का इस्‍तेमाल कि‍या जाता है। मड पैक क्‍लीनिंग प्रक्रि‍या का इस्‍तेमाल उन समतल एवं सजावटी संगमरमरी बाहरी हि‍स्‍सो के लि‍ए कि‍या जाता है जहां सामान्य सफाई संभव नहीं है। इस पैक को बेनटोनाइट मि‍ट्टी में नि‍श्‍चि‍त अनुपात में कुछ रसायनो के साथ मि‍लाकर तैयार कि‍या जाता है और यह अधि‍शोषण के सि‍द्धांत पर आधारि‍त है। इस प्रक्रि‍या का इस्‍तेमाल ताजमहल और अन्‍य संगमरमरी ढांचों के संरक्षण के लि‍ए सफलतापूर्वक कि‍या जा रहा है। स्‍मारकों पर कैल्‍शि‍यम नि‍क्षेपों के अलावा, कबि‍न ब्‍लैक/कालि‍ख की मोटी परत, तेल के धब्‍बों, रेड ओकर और रंगो को हटाने के लि‍ए वि‍भि‍न्‍न रसायनों को जरूरत के अनुसार मि‍लाया जाता है।

स्‍मारकों पर जैवि‍क वृद्धि‍ को रोकने अथवा इसे कम करने के लि‍ए बायोसाइड उपचार की मदद ली जाती हैं। इसमें सफाई के पश्‍चात सोडि‍यम पेन्‍टा क्‍लोरो फीनेट के दो से तीन प्रति‍शत जलीय घोल का इस्‍तेमाल कि‍या जाता है। इस उपचार की प्रभावि‍ता में जल नि‍रोधक उपचार से सुधार कि‍या जाता हैं जि‍से सूखी सतह पर बायो साइड उपचार के बाद कि‍या जाता है।

देहरादून स्‍थि‍त एएसआई की वि‍ज्ञान शाखा प्रयोगशाला वि‍भि‍न्‍न वि‍शेषज्ञ वैज्ञानि‍क संस्‍थानो के साथ समन्‍वय से कार्य करती है ताकि‍ उपयुक्‍त बायोसाइड उपचार का मूल्यांकन कर स्‍मारकों के लि‍ए वि‍शि‍ष्‍ट उपचार प्रणाली को वि‍कसि‍त कि‍या जा सके।

ताजमहल, कुतुब मीनार, अजंता की गुफाएं, मीनाक्षी मंदि‍र, भीमभेटका चट्टानी आश्रय, खजुराहो के मंदि‍र, चन्‍देरी में बादल गेट, सांची का महान स्‍तूप, मांडू का जहाज महल और अन्‍य वि‍रासती इमारतें हमारी प्रभावी समग्र संस्‍कृति‍ को दर्शाती है

ऐति‍हासि‍क एवं सामाजि‍क महत्‍व के इन स्‍मारकों के लि‍ए वैज्ञानि‍क उपचार उपलब्‍ध कराने के अलावा हमारी धरोहर की सुरक्षा के लि‍ए बेहतर संरक्षण प्रक्रि‍याओं को अपनाए जाने की आवश्‍यकता है।

eagles fall prey to diclofenac


Vultures already threatened after feeding on carcasses of animals given the drug

After pushing vultures to the verge of extinction in the country, the veterinary painkiller and anti-inflammatory drug, Diclofenac, is turning out to be a serious threat to eagles as well.

A research paper published in Bird Conservation International, a Cambridge University journal, says other raptor species such as hawks, kites and harriers that feed on carcasses of animals, will possibly fall prey to the drug too.

Scientists from the Bombay Natural History Society (BNHS), the U.K.-based Royal Society for the Protection of Birds and the Indian Veterinary Research Institute at Bareilly in Uttar Pradesh conducted the study. Diclofenac residue was detected in the tissues of two steppe eagles (Aquila nipalensis) found dead in a cattle carcass dump in Rajasthan in February 2012.

“We conducted several tests on the bird carcasses that showed the same clinical signs of kidney failure as seen in vultures after they had ingested diclofenac,” Vibhu Prakash, co-author of the paper, told The Hindu.

The research paper says this is the first instance of diclofenac-related mortality in species outside the Gyps genus of vultures. Dr. Prakash says the drug should be banned, and suggests more studies.

PMO to have Foreign Policy Adviser


Prime Minister Narendra Modi is firming up plans to appoint a Foreign Policy Adviser to guide his office’s handling of critical national security and geo-strategic issues, highly placed government sources told The Hindu on Friday.

The appointment is likely to take place within days, the sources said. The sources said Subrahmanyam Jaishankar, an Indian Foreign Service officer who currently serves as India’s Ambassador to the U.S., was among the leading contenders for the position.

The former Intelligence Bureau chief Ajit Kumar Doval was appointed National Security Adviser on Friday.

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