31 May 2014

धरोहर संरक्षण : वैज्ञानिक कार्यप्रणाली की भूमिका

 
यह कहा जाता है ‘’किसी व्‍यक्ति का अपनी धरोहर से संबंध उसी प्रकार का है, जैसे एक बच्‍चे का अपनी मां से संबंध होता है। हमारी धरोहर हमारा गौरव है और इसे भविष्‍य में आने वाली पीढि़यों के लिए बचाना तथा इसका संरक्षण करना हम सबकी जिम्‍मेदारी है। भारतीय संविधान के अनुच्‍छेद 51ए(एफ) में स्‍पष्‍ट कहा गया है कि अपनी समग्र संस्‍कृति की समृद्ध धरोहर का सम्‍मान करना और इसे संरक्षित रखना प्रत्‍येक भारतीय नागरिक का कर्तव्‍य है।

भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (एएसआई) इस कार्य में काफी महती भूमिका निभाता रहा है और इसकी विभिन्‍न शाखाओं को विभिन्‍न क्षेत्रों तकनीकी महारत हासिल है तथा ये सभी पूर्ण समन्‍वय के साथ इस विलक्षण कार्य को अंजाम दे रही है। एएसआई की सबसे पुरानी शाखाओं में वैज्ञानिक शाखा भी है और इसकी स्‍थापना 1917 में की गई थी। इसका मकसद देश के ऐतिहासिक स्‍मारकों की वैज्ञानिक पद्धति से संरक्षण प्रक्रिया की जिम्‍मेदारी को साझा करना है, जिसमें संरक्षण की उपलब्‍ध बेहतर पारंपरिक तथा आधुनिक विधाओं का इस्‍तेमाल किया जाता है। ऐतिहासिक स्‍मारकों को वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित करने का मुख्‍य उद्देश्‍य उनके सौन्‍दर्यात्‍मक आकर्षण में सुधार लाना हानिकारक तत्‍वों तथा मलबे को हटाना, खतरनाक अपशिष्‍टों को निष्‍प्रभावी करना और इसे अंतिम संरक्षणात्‍मक उपचार के लिए तैयार करना हैा

ऐसे बहुत से प्राकृतिक और मानवजनित कारक है, जिन्‍हें विभिन्‍न संरक्षण समस्‍याओं के लिए आमतौर पर जिम्‍मेदार माना जाता है और ये किसी भी स्‍मारक की निर्माण सामग्री को नुकसान पहुचाते है। चट्टानों की उत्‍पति के दौरान विभिन्‍न भूवैज्ञानिक एवं धातु संबंधी त्रुटियां विभिन्‍न संरक्षणात्‍मक समस्‍याओं के लिए जिम्‍मेदार हो सकती है और अंतत: स्‍मारकों को नुकसान पहुंचाती है। यह निर्माण सामग्री की स्‍वाभाविक कमजोरी के कारण होता है।

स्‍मारकों को नुकसान पहुंचाने वाले कारकों में कुछ वैज्ञानिक कारक भी है, जिनमें स्‍मारकों पर कोई शैवाल, लाईकेन, कवक और अन्‍य उच्‍चकुल के पौधों की वृद्धि शामिल है। ये न केवल स्‍मारकों को भद्दा बनाते है, बल्कि उसकी निर्माण सामग्री को भौतिक तथा रासायनिक नुकसान पहुंचाते है।

चट्टानी पत्‍थरों पर उत्‍कृष्‍ट कार्यों तथा चित्रकारी को चमगादड़ तथा पक्षियों का विष्‍ठा बहुत नुकसान पहुंचाता है। अजंता की गुफाओं में शैल कलाकृतिों पर चमगादड़ के मलमूत्र के जमने से इनको काफी रासायनिक नुकसान पहुंचा है।

हवा में तैरते सूक्ष्‍म प्रदूषक कण (एसपीएम) और अन्‍य रासायनिक सक्रिय प्रदूषक तत्‍व धूल के साथ मिलकर स्‍मारकों को कुरूप बनाते है। इसी तरह जलवायु की दशाए, नमी और तेज सौर विकिरण भी विशिष्‍ट स्‍मारकों के क्षरण के लिए जिम्‍मेदार है।

विभिन्‍न भौगोलिक क्षेत्रों के लिए संरक्षणात्‍मक समस्‍याएं भी अलग-अलग होती है। उदाहरण के तौर पर लेह और लद्दाख जैसे क्षेत्रों में अधिक ऊँचाई पर स्थित बौद्ध मठों की संरक्षण समस्‍याए, मिट्टी आधारित स्‍मारकों से अलग होती है। इसी तरह तटीय क्षेत्रों में स्थित स्‍मारकों को लवण की मार को झेलना पड़ता है। चट्टानी कलाकृति, प्‍लास्‍टर और मोर्टार के सांचे में घुलनशील लवण के क्रिस्‍टल बन जाने से इन्‍हें गंभीर नुकसान पहुंचता है। इसे चट्टानी कलाकृति की छिद्र आकृतियां बाधित होती है और धीरे-धीरे उसकी निर्माण सामग्री को नुसान पहुंचता है, जिसकी मरम्‍मत बाद में बहुत मुश्किल होती है। मंदिरों में पूजा के दौरान विभिन्‍न प्रकार के तेल और तेल लैंपों के इस्‍तेमाल से इन स्‍मारकों को बहुत नुकसान होता है।

विभिन्‍न कालों में ऐतिहासिक स्‍मारकों पर की गई मानव वर्बरता से भी संरक्षण संबंधी समस्‍याएं पैदा होती है। ‘ऐतिहासिक स्‍मारक एवं पुरातात्विक स्‍थल एवं अवशेष कानून-2010’ में प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्‍मारकों, पुरातात्विक स्‍थलों, राष्‍ट्रीय महत्‍व के अवशेषों के संरक्षण तथा इन्‍हे नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ दंड का प्रावधान है।

एएसआई की विज्ञान शाखा चट्टान, चट्टानी कलाकृति, प्‍लास्‍टर तथा अन्‍य निर्माण सामग्री के भौतिक एवं रासायनिक गुणों का अध्‍ययन करती है। संरक्षण संबंधी विभिन्‍न समस्‍याओं का पूरी तरह पता लगाकर विशेषज्ञ पुरातात्विक रसायनविद की मदद से एक उपयुक्‍त कार्य पद्धति विकसित की जाती है, जिसमें उपयुक्‍त रसायनों, विलयको और सामग्री का इस्‍तेमाल किया जाता है।

ऐतिहासिक स्‍मारकों को सुरक्षित और संरक्षित रखने के लिए विभिन्‍न संरक्षणात्‍मक उपायों की योजना बनाकर, बेहतर नतीजे हासिल करने के लिए व्‍यवस्थित तरीके से क्रि‍यान्‍वि‍त कि‍या जाता है। इनमें स्‍मारकों की सामान्‍य साफ सफाई, मड पैक क्‍लीनि‍ग, कैल्‍शि‍यम अपशिष्टों तथा मलबे को हटाना, जैवि‍क उपचार और जल नि‍रोधक उपचारात्‍मक उपाय शामि‍ल है।

स्‍मारकों पर जमे मलबे और पौधों की जैवि‍क वृद्धि‍ को साफ करने के लि‍ए अमोनि‍या के बहुत ही पतले घोल एवं गैर आयन डि‍टरजेंट का हल्‍के ब्रश के साथ इस्‍तेमाल कि‍या जाता है।

चूना प्‍लास्‍टर वाले स्‍मारकों की बाहरी सतह से सूक्ष्‍म पौधों को हटाने के लि‍ए जलीय माध्यम में ब्‍लीचिंग पावडर का इस्‍तेमाल कि‍या जाता है। मड पैक क्‍लीनिंग प्रक्रि‍या का इस्‍तेमाल उन समतल एवं सजावटी संगमरमरी बाहरी हि‍स्‍सो के लि‍ए कि‍या जाता है जहां सामान्य सफाई संभव नहीं है। इस पैक को बेनटोनाइट मि‍ट्टी में नि‍श्‍चि‍त अनुपात में कुछ रसायनो के साथ मि‍लाकर तैयार कि‍या जाता है और यह अधि‍शोषण के सि‍द्धांत पर आधारि‍त है। इस प्रक्रि‍या का इस्‍तेमाल ताजमहल और अन्‍य संगमरमरी ढांचों के संरक्षण के लि‍ए सफलतापूर्वक कि‍या जा रहा है। स्‍मारकों पर कैल्‍शि‍यम नि‍क्षेपों के अलावा, कबि‍न ब्‍लैक/कालि‍ख की मोटी परत, तेल के धब्‍बों, रेड ओकर और रंगो को हटाने के लि‍ए वि‍भि‍न्‍न रसायनों को जरूरत के अनुसार मि‍लाया जाता है।

स्‍मारकों पर जैवि‍क वृद्धि‍ को रोकने अथवा इसे कम करने के लि‍ए बायोसाइड उपचार की मदद ली जाती हैं। इसमें सफाई के पश्‍चात सोडि‍यम पेन्‍टा क्‍लोरो फीनेट के दो से तीन प्रति‍शत जलीय घोल का इस्‍तेमाल कि‍या जाता है। इस उपचार की प्रभावि‍ता में जल नि‍रोधक उपचार से सुधार कि‍या जाता हैं जि‍से सूखी सतह पर बायो साइड उपचार के बाद कि‍या जाता है।

देहरादून स्‍थि‍त एएसआई की वि‍ज्ञान शाखा प्रयोगशाला वि‍भि‍न्‍न वि‍शेषज्ञ वैज्ञानि‍क संस्‍थानो के साथ समन्‍वय से कार्य करती है ताकि‍ उपयुक्‍त बायोसाइड उपचार का मूल्यांकन कर स्‍मारकों के लि‍ए वि‍शि‍ष्‍ट उपचार प्रणाली को वि‍कसि‍त कि‍या जा सके।

ताजमहल, कुतुब मीनार, अजंता की गुफाएं, मीनाक्षी मंदि‍र, भीमभेटका चट्टानी आश्रय, खजुराहो के मंदि‍र, चन्‍देरी में बादल गेट, सांची का महान स्‍तूप, मांडू का जहाज महल और अन्‍य वि‍रासती इमारतें हमारी प्रभावी समग्र संस्‍कृति‍ को दर्शाती है

ऐति‍हासि‍क एवं सामाजि‍क महत्‍व के इन स्‍मारकों के लि‍ए वैज्ञानि‍क उपचार उपलब्‍ध कराने के अलावा हमारी धरोहर की सुरक्षा के लि‍ए बेहतर संरक्षण प्रक्रि‍याओं को अपनाए जाने की आवश्‍यकता है।

No comments:

Post a Comment

Featured post

UKPCS2012 FINAL RESULT SAMVEG IAS DEHRADUN

    Heartfelt congratulations to all my dear student .this was outstanding performance .this was possible due to ...