5 January 2018

जीतना ही सब कुछ नहीं है।winning in the game is not every thing.

जीतना ही सब कुछ नहीं है।winning in the game is not every thing.
'जीतना या हारना महत्वपूर्ण नहीं है, व्यक्तिगत तौर पर बेहतर बनना महत्वपूर्ण है।
very true for civil service aspirants too....
#LearnfromLegend
बैडमिंटन कोर्ट के बाहर पुलेला गोपीचंद बहुत धीमी आवाज में बोलते हैं, लेकिन जब वह कोर्ट के नजदीक होते हैं तो उनकी आवाज बहुत तेज हो जाती है, जैसे पी वी सिंधु के हाल ही में दुबई सुपर सीरीज फाइनल में खेलने पर उन्हें देखा गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि गोपीचंद जीतना पसंद करते हैं।
वह रोजाना सुधार करने को और भी पसंद करते हैं। गोपीचंद (44) ने हाल ही में कहा था, 'जीतना ही सब कुछ नहीं है। यह व्यक्तिगत तौर पर बेहतरीन बनना है। आज मैं क्या हूं और मैं क्या बेहतर कर सकता हूं।' उन्होंने कहा, 'आज को गुजरे हुए कल से बेहतर होना चाहिए और आने वाले कल को आज से बेहतर होना चाहिए। मैं इस पर ध्यान देता हूं।'
........................प्रकाश पादुकोण के बाद गोपीचंद ने भी प्रतिष्ठित ऑल-इंग्लैंड चैंपियनशिप जीती थी। हालांकि, चोट की वजह से बतौर खिलाड़ी उनका करियर छोटा हो गया। जिसके बाद उन्होंने कोचिंग देनी शुरू की। इस समय भारत बैडमिंटन के क्षेत्र में जो मुकाम हासिल कर रहा है, उसका काफी हद तक श्रेय गोपीचंद को जाता है। मौजूदा दौर में बैडमिंटन में भारत का नाम रोशन करने वाली पी वी सिंधु, सायना नेहवाल और किदंबी श्रीकांत जैसे प्लेयर गोपीचंद के शिष्य हैं।
..............गोपीचंद कहते हैं, 'कई वर्षों तक तक मेरे लिए खेल का मतलब सिर्फ जीतना था। एक छात्र या माता-पिता के रूप में अगर हम कहते हैं कि हम असफल हो गए, तो हम इसे छिपाने की कोशिश करते हैं। लेकिन एक खिलाड़ी के रूप में अगर आप नाकाम हो जाते हैं, तो आपको लोगों के सामने इस कड़वे सच को स्वीकार करना होता है कि 'मैं हार गया हूं'। अगर आप इसके बाद अपनी गलतियों को सुधार कर वापसी करते हैं तो आप जीत सकते हैं। यह सबसे बड़ा आत्मविश्वास है, जो जिंदगी आपको दे सकती है। यही वास्तविक खेल है।'
................गोपीचंद ने अपने शिष्यों को क्या सीख दी? उनके शिष्यों में ओलंपिक पदक और सुपर सीरीज के विजेता भी हैं, और उन्होंने जीवन के बारे में क्या महसूस किया। उनका कहना है, 'जीतना या हारना महत्वपूर्ण नहीं है, व्यक्तिगत तौर पर बेहतर बनना महत्वपूर्ण है। परिणाम के बजाय प्रक्रिया लक्ष्य है। मैं नहीं जानता कि कैसे चैंपियन पैदा होते हैं और कैसे वे बनाए जाते हैं। मुझे नहीं पता है कि उन्हें क्या प्रेरणा मिली है क्योंकि मेरा मानना ​​है कि प्रत्येक व्यक्ति के पास एक विशिष्ट विशेषता है। अगर जीतना ही सब कुछ था, तो हमें कुछ खेलों में हिस्सा नहीं लेना चाहिए।'
.................अपने करियर के दौरान गोपीचंद को लगातार चोटों से जूझना पड़ा था। इसी वजह से कई जीत उनके हाथ से निकल गई और उनकी शोहरत पर भी इसका असर पड़ा। हालांकि, इससे उन्हें अच्छी सीख भी मिली। गोपीचंद ने कहा, 'मेरी चोटों और अफलताओं ने मुझे अच्छा प्लेयर और कोच बनने में मदद की। अगर चोटें और असफलता नहीं होती तो मुझे अपने अंदर झांकने और खेल से प्यार करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला होता। जितना समय मैंने खेल से दूर बिताया है, वह मेरे लिए अधिक कीमती रहा और चोटें एक प्रकार से मेरे लिए सफलता रही हैं।'

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