19 March 2016

Text of PM’s speech at Krishi Unnati Mela 2016

Text of PM’s speech at Krishi Unnati Mela 2016
मेरे प्यारे किसना भाइयों और बहनों
यह किसान मेला भारत के भाग्‍य का मेला है, अगर भारत का भाग्‍य बदलना है, तो गांव से बदलने वाला है, किसान से बदलने वाला है और कृषि क्रांति से बदलने वाला है। हम लोग सालों से पीढ़ी दर पीढ़ी से एक ही प्रकार से किसानी करते आए हैं। बहुत कम किसान हैं जो नया प्रयोग करते हैं या कुछ नया करने का साहस करते हैं। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती  यही है कि हम हमारी किसानी को आधुनिक कैसे बनाएं, टेक्‍नोलॉजी युक्‍त कैसे बनाएं, हमारी युवा पीढ़ी जो आधुनिक आविष्‍कार हो रहे हैं, उन आधुनिक आविष्कारों को खेत तक कैसे पहुंचाएं। किसान के घर तक कैसे पहुंचाएं। इस किसान मेले के माध्‍यम से एक प्रशिक्षण का प्रयास है। और मुझे खुशी है कि आज कृषि विभाग ने यह कार्यक्रम ऐसा बनाया है कि न सिर्फ यहां बैठे हुए लोग लेकिन पूरे हिंदुस्‍तान के हर गांव में किसान इस कार्यक्रम को देख रहे हैं।
और सिर्फ प्रधानमंत्री का भाषण सुनना है इसलिए देख रहे हैं ऐसा नहीं है। तीन दिन तक यहां जितनी चर्चाएं होने वाली हैं वो सारी चर्चाएं गांव में बैठा हुआ किसान भी उसको देख सकता है, सुन सकता है, समझ सकता है। क्‍योंकि जब तक हम इन बातों को किसान तक पहुंचाएंगे नहीं, किसान में विश्‍वास पैदा नहीं करेंगे तो वो अगल-बगल में जो देखता है वो ही करता रहता है। और किसान का स्‍वभाव है अगर पड़ोसी ने अपने खेत में लाल डिब्‍बे वाली दवाई डाली तो यह भी जा करके लाल डिब्‍बे वाली दवाई लाकर डाल देगा। बगल वाले ने पीली दवाई डाल दी तो यह भी पीली दवाई डाल देगा। उसको ऐसा लगता है उसने किया तो मैं भी कर लूं। और जो बेचने वाले हैं उनको तो इसकी चिंता ही नहीं है कोई भी माल जाओ बेच दो, एक बार बिक्री हो जाए। बाद में कौन पूछने वाला है किसान का क्‍या हुआ।
और इसलिए कृषि क्षेत्र को एक अलग नजरिये से develop करने की दिशा में यह सरकार प्रयास कर रही है। हमारे देश में पहली कृषि क्रांति हुई वो पहली कृषि क्रांति अधिकतम जहां पानी था उस पानी के भरोसे हुई। लेकिन दूसरी कृषि क्रांति सिर्फ पानी के भरोसे करने से बात पूरी तरह संतोष नहीं देगी। और इसलिए दूसरी कृषि क्रांति विज्ञान के आधार पर, टेक्‍नोलॉजी के आधार पर, आधुनिक आविष्‍कारों के आधार पर करना आवश्‍यक हो गया है। पहली कृषि क्रांति हिंदुस्‍तान के पश्चिमी छोर पर, पश्चिमी उत्‍तर भाग में हुई। पंजाब, हरियाणा इसने नेतृत्‍व किया दूसरी कृषि क्रांति उन प्रदेशों में संभावनाएं पड़ी  है। जिस पर अगर हमने थोड़ा सा भी ध्‍यान दिया तो बहुत बड़ा बदलाव आ सकता है और वो है पूर्वी उत्‍तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, नॉर्थ ईस्‍ट, ओडि़शा ये सारे हिंदुस्‍तान का पूर्वी इलाका, जहां पानी भरपूर है, जमीन की विपुलता है, जमीन ऊपजाऊ है, लेकिन वो पुराने ढर्रे से वो सब जुड़ा हुआ है और इसलिए इस सरकार का प्रयास है कि भारत के पूर्वी इलाके से एक दूसरी कृषि क्रांति कैसे हो, उस दिशा में हम कदम बढ़ा रहे हैं।
भारत की आर्थिक धारा भी गांव की धुरा से जुड़ी हुई है। अगर गांव में गांव के गरीब व्‍यक्ति के द्वारा अगर आज वो पांच हजार रुपया का माल बाजार से खरीदता है साल में और अगली बार दस हजार का खरीदता है, तो economy को वो ताकत  देता है। देश आगे बढ़ता है। और  यह अगर करना  है तो गांव के लोगों  की खरीद शक्ति बढ़ानी पड़ेगी, उनका purchasing power बढ़ाना पड़ेगा। और वो purchasing power तब तक नहीं बढता है जब तक कि गांव आर्थिक रूप से गतिशील न हो। गांव में आर्थिक गतिविधि का कारोबार न हो तो यह संभव नहीं है।
और इसलिए आपने इस बार देखा होगा चारों तरफ इस सरकार के बजट की तारीफ ही तारीफ हो रही है। कुछ लोग मौन हैं क्‍योंकि उनके लिए तारीफ करना मुश्किल है, लेकिन विरोध में बोलने के लिए कुछ है नहीं। पहली बार जिन जिन लोगों ने इस विषय के ज्ञाता है, उन्‍होंने लिखा है कि एक बड़े लम्‍बे अरसे के बाद एक ऐसा बजट आया है जो पूरी तरह गांव, गरीब और किसान को समर्पित किया गया है।और यह काम इसलिए किया है अगर भारत को आर्थिक संपन्न बनना है, आने वाले 25-30 साल तक लगातार आगे बढ़ना है, रूकना ही नहीं है, तो वो जगह सिर्फ गांव है, गरीब है, किसान है।
हमारा एक सपना है, लेकिन वो सपना मेरा होगा उससे बात बनेगी नहीं। वो सपना सिर्फ दिल्‍ली  सरकार का होगा तो बात बनेगी नहीं। चाहे केंद्र सरकार हो,  चाहे राज्‍य  सरकार हो,  चाहे हमारे किसान भाई-बहन हो, हम सबका मिला-जुला सपना होना चाहिए, हम सबकी जिम्‍मेदारी वाला सपना होना चाहिए। और  वो सपना है 2022 छह साल बाकी है, जब भारत की आजादी के 75 साल होंगे, क्‍या हम हमारे देश के किसानों की आय दोगुना कर सकते हैं क्‍या? किसानों की आय डबल कर सकते हैं क्‍या? अगर एक बार किसान, राज्‍य सरकार, केंद्र सरकार यह मिल करके तय कर लें तो काम मुश्किल नहीं है, मेरे भाईयों-बहनों। कुछ लोगों को लगता है कि यह मुश्किल काम है। मैं इस विभाग में जाना नहीं चाहता। लेकिन यह करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए इसमें कोई दुविधा नहीं हो सकती, कोशिश जरूर करनी चाहिए।
अब तक हमने देश को आगे बढाने में कृषि उत्‍पादन के growth को ही केंद्र में रखा है। हम कृषि उत्‍पादन के growth तक सीमित रह करके किसान का कल्‍याण नहीं कर सकते हैं। हमने किसान का कल्‍याण  करना है तो हमने और पचासों चीजें उसके साथ जोड़नी होगी, और तब जा करके 2022 का सपना हम पूरा कर सकते हैं। अब हम यह सोचे कि हमारी धरती माता बेचारी बोलती नहीं है, पीड़ा है तो रोती नहीं है, आप उस पर जितने जुल्‍म करो वो सहती रहती है। अगर हम धरती मां  की आवाज़ नहीं सुनेंगे, तो धरती मां भी हमारी आवाज़ नहीं सुनेगी। अगर हम धरती माता की पीड़ा महसूस नहीं करेंगे तो धरती मां भी हमारी पीड़ा कभी महसूस नहीं करेगी। और इसलिए हम सबका सबसे पहला दायित्‍व है कि हम हमारी धरती माता की पीड़ा को समझे। हमने कितने जुल्‍म किये हैं उस पर, न जाने कैसे कैसे कैमिकलों से उसको  नहला दिया। न जाने कैसी-कैसी दवाईंया पिलाई उसको, न जाने कितने-कितने जुल्‍म किये हैं उस पर अगर हम भी बीमार हो जाते हैं न तो अड़ोस-पड़ोस के लोग कहते हैं कि बेटा बहुत दवाइयां मत खाओं और ज्‍यादा बीमार हो जाओगे। डॉक्‍टर भी कहते है कि भई ठीक है बीमार हो दवा की जरूरत है लेकिन ऐसा नहीं कि एक गोली की बजाए 10 गोली खा जाओगे, ठीक  हो जाओगे। जो हमारे शरीर का हाल है, वो ही हाल यह हमारी धरती माता का भी है। और इसलिए हम कभी कम से कम देखे तो सही कि हमारी धरती माता की तबीयत कैसे है, कोई  बीमारी तो नहीं है? क्‍या कारण है कि हम फसल बोते हैं लेकिन जितनी मेहनत करते हैं उतना मिलता नहीं है, मां रूठी क्‍यों है।
और इसलिए आपकी मदद से एक बड़ा अभियान पूरा करना है वो Soil health card. हमारी जमीन की तबीयत कैसी है, उसकी परत  कैसी है, उसके अंदर ताकत कौन सी  है, उसके अंदर कमियां कौन सी है, उसके अंदर बीमारियां कौन सही है। यह हमने जांच करवानी चाहिए और यह regular करवानी चाहिए। यह कोई  महंगा काम नहीं है, सरकार आपकी मदद कर रही है। और जांच करवा ली, लेकिन हम उस रिपोर्ट को एक खाते में डालकर कागज पड़ा है, पड़ा रहे, फायदा नहीं होगा। अगर कोई  इंसान बीमार रहता है, laboratory में जाकर टेस्‍ट  करवाया और पता चला  कि diabetes है वो आ करके कागज घर  में रख दे और खाता है जैसे ही मिठाई मिले खाता रहे, जितना मिले उतना खाता रहे तो क्‍या diabetes उसको जाएगा क्‍या? बीमारी बढ़ेगी कि नहीं बढ़ेगी। मौत निश्चित हो जाएगी कि नहीं हो जाएगी।
और इसलिए soil health card के द्वारा हमें जमीन की जो कमियां नजर आई है। जमीन की जो ताकत ध्‍यान में आई है। जमीन की जो बीमारियां ध्‍यान  में आई  है, उसके अनुसार हमें खेती करनी चाहिए तो आपकी आधी समस्‍याएं तो वहीं सुलझ जाएगी। मैं दावे से कहता हूं मेरे किसान भाईयों-बहनों आपकी आधी समस्यायें, अगर जमीन की ठीक देखभाल कर दी, तो आपकी आधी समस्‍या वहीं सुलझ जाएगी। और एक बार धरती माता का ख्‍याल रखोगे न तो धरती माता तो आपका चार गुना ज्‍यादा ख्‍याल रखेगी। कभी आपको पीछे मुड़ करके देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 
दूसरी बात है पानी, किसान का स्‍वभाव है अगर उसको पानी मिल जाए तो वो मिट्टी में से सोना पैदा कर सकता है। उसे और कुछ नहीं चाहिए। और इसलिए हमने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना पर बल दिया है। किसानों को पानी कैसे पहुंचे? और कम से कम पानी बर्बाद हो, उस रूप में कैसे पड़े, इस पर काम चल रहा है। आपको हैरानी होगी मैं जरा हिसाब लगा रहा था कि हमारे किसान को पानी पहुंचाने की इतनी योजनाएं बनी  हाल क्‍या है। मेरे किसान भाईयों-बहनों आपको हैरानी होगी कि हम कुछ भी करते हैं तो हमारे विरोधी यह कहते हैं कि यह तो हमारे समय का है। यह तो हमारे जमाने का है। उनके जमाने का हाल क्‍या है मैं बताता हूं किसानों का मैंने करीब 90 प्रोजेक्‍ट ऐसे खोज कर निकालें कि जहां पानी तो भरा पड़ा लेकिन किसान को पानी पहुंचाने के लिए कोई व्‍यवस्‍था ही नहीं है। अब मुझे बताइये भइया अगर कहीं डैम भरा पड़ा है। हजारों, लाखों, करोड़ों रुपया खर्च कर दिया गया है, लेकिन अगर किसान के खेत तक पानी ले जाने का प्रबंध नहीं है वो सिर्फ दर्शन करने के सिवा किसी काम आएगा क्‍या? हमने 90 ऐसे प्रोजेक्‍ट हाथ में लिए है। और उस पर बड़ा जोर लगाया है कि वो पानी किसान तक पहुंचे। जितनी उसकी capacity है पानी कैसे पहुंचे, काम लगाया है। जब यह काम पूरा कर लेंगे करीब 80 लाख हेक्‍टेयर भूमि को पानी पहुंचना शुरू हो जाएगा भाईयों-बहनो। और पानी पहुंचेगा तो वो जमीन कितना कुछ देगी आप अंदाज कर सकते हैं।
20 हजार करोड़ रुपया, इस काम के लिए लगाने की दिशा में काम कर रहा हूं मैं। इतना ही नहीं मनरेगा, बड़ी चर्चा होती है,  लेकिन कहीं asset create नहीं होता है। इस सरकार ने बल दिया है। और मैं चाहूंगा इन गर्मी के दिनों में गांव-गांव मनरेगा से एक ही काम होना चाहिए, एक ही काम और सिर्फ तालाब है तो तालाब गहरे करना, मिट्टी निकालना, जहां पर  पानी रोक सकते हैं रोकना। इस बजट में पांच लाख तालाब बनाने का सपना है, पांच लाख  तालाब।
जहां हमारे छोटे-छोटे पर्वतीय इलाके होते हैं, पहाड़ी इलाके होते हैं, जहां तीन या चार पहाड़ इकट्ठे  होते हैं, वहां अगर थोड़ी सी खुदाई कर दें तो बहुत बड़े तालाब बनने की संभावना हो जाती है। मैंने forest department को भी कहा है जंगलों को बचाना है तो वहां छोटे-छोटे तालाब का काम किया जाए, ताकि पानी होगा तो हमारे जंगल भी बचेंगे। जंगल होंगे तो वर्षा बढ़ेगी, वर्षा बढेगी तो हमारी ज़मीन में पानी ऊपर आएगा। जो 12 महीने मेरे किसान को फायदा करेगा। हम गांव-गांव इस गर्मी के दिनों में पानी बचाने के साधन कैसे तैयार करें और जितना ज्‍यादा पानी बचाने का प्रयास करेंगे, पहली बारिश में यह सब भर जाएगा। और फिर कभी बारिश इधर-उधर हो गई तो भी वो पानी हमारी खेती को बचा लेगा। उसी प्रकार से जितना महात्‍मय जल संचय का है, उतना ही महात्‍मय जल सिंचन का है।
पानी यह परमात्‍मा ने दिया हुआ प्रसाद है। इसको बर्बाद करने का हमें कोई  अधिकार नहीं है। एक-एक बूंद पानी का उपयोग होना चाहिए। और इसलिए per drop more crop एक-एक बूंद से फसल कैसे ज्‍यादा पैदा हो, उस पर काम करना है। हम micro irrigation में जाए, हम drip irrigation में जाए छोटे-छोटे पम्‍प लगा करके पानी पहुंचाने के लिए प्रबंध करे। liquid fertilizer दें। आप देखिए मेहनत कम हो जाएगी। खर्चा कम हो जाएगा और उत्‍पादन बढ़ जाएगा। कुछ लोगों की गलतफहमी है कि sugar में भी बहुत पानी चाहिए, जमाना चला गया। अब तो micro irrigation से sugar भी हो सकता है, paddy भी हो सकता है।
और इसलिए जो हमारी पुरानी मान्‍यता है कि अगर पूरा लबालब पानी से खेत भरा होगा तभी फसल होगी, ऐसी जरूरत नहीं है। अब विज्ञान बदल गया, टेक्‍नोलॉजी बदल गई। आप आराम  से बदलाव करके कर सकते हैं। और इसलिए मेरे किसान भाईयों-बहनों, यह हमारी रोजमर्रा के काम है, इस पर अगर हम ध्‍यान देंगे। हम हमारे खर्च को कम कर पाएंगे। और हमारी आय को बढ़ा पांएगे। और उसी से किसान का कल्‍याण होने वाला है।
हमारे यहां फसल के लिए मार्केट, यह 14 अप्रैल को बाबा साहेब अम्‍बेडकर की जन्‍म जयंती पर भारत सरकार एक ई प्‍लेटफॉर्म शुरू कर रही है, ताकि किसान को अपना माल कहां बेचना, सबसे ज्‍यादा दाम कहां मिलते हैं वो अपने मोबाइल फोन पर देख सकता है कि मुझे मेरा माल किस मंडी में कैसे बेचना और उसके कारण उसको दाम ज्‍यादा मिले। आज किसान बेचारा अगर गाँव से निकला, दो बजे अगर मंडी में पहुंचा, मंडी वाले अगर चले गए वो अपना माल बेच नहीं पाता है अगर वो सब्‍जी वगैरह लाया है तो वहीं छोड़कर चला जाता है, क्‍योंकि कोई खरीददार नहीं होता है। अगर हम इस प्रकार की व्‍यवस्‍था का उपयोग करेंगे, और आज मैंने अभी एक किसान सुविधा लॉन्च किया है। किसान अपने मोबाइल फोन पर आज के आधुनिक विज्ञान डिजिटल के माध्‍यम से अपनी आवश्‍यकताओं की जानकारी वो पा सकता है। weather का रिपोर्ट ले सकता है,  मार्केट का रिपोर्ट ले सकता है। बाजार में कहां पर अच्‍छा  बीच मिल  सकता है ले सकता है। कृषि के कौन वैज्ञानिक है किसका संपर्क करना चाहिए, यह सारी जानकारियां आपकी हथेली में देने का प्रयास किया है।
अगर हम उसका प्रयोग करेंगे तो मेरे किसान को आज जो अकेलापन महसूस होता है, उसको लगता है कि मेरा कोई नहीं है। यह सरकार कंधे से कंधा मिला करके किसान के सुख-दुख का साथी है और हम आपके साथ मिल करके काम करना चाहते हैं, क्‍योंकि हमें बदलाव लाना है उस दिशा में हम काम करना चाहते हैं। उसी प्रकार से अब समय की मांग है कि हम मूल्‍य वृद्धि करे। value addition करे, processing करे। जितना ज्‍यादा food processing होगा, उतना ही ज्‍यादा हमारे किसान की आय बढ़ने वाली है। जितना ज्‍यादा value addition करेंगे, उतनी कमाई बढ़ने वाली है। अगर आप दूध बेचते हैं, कम पैसा मिलता है, लेकिन अगर दूध का मावां बना करके बेचते हैं, तो ज्‍यादा पैसा मिलता होगा। दूध  में से घी बना करके बेचते हैं ज्‍यादा पैसा मिलता है। अगर आप कच्‍चा आम बेचते हैं कम पैसा मिलता है, लेकिन अगर कच्‍चे आम का अचार बना करके बेचे तो ज्‍यादा पैसा मिलता है। आप हरी मिर्ची बेचे, कम पैसा मिलता है। लेकिन लाल हो करके पाऊडर बना करके पैकिंग करके बेचे तो ज्‍यादा पैसा मिलता है। हमारे किसान की आय बढ़ाने का यह एक उत्‍तम से उत्‍तम से मार्ग है कि हम food processing को बल दें और food processing के लिए भारत जैसे देश में दुनिया की बहुत बड़ी टेक्‍नोलॉजी की जरूरत है, ऐसा नहीं है, हमारे यहां आमतौर पर इन चीजों को करने का स्‍वभाव बना हुआ है। उसको बल देने की जरूरत है। और गांव मिल करके करेगा। तो बहुत बड़ी ऊंचाईयों पर चला जा सकता है गांव। और आज हमने देखा है कि ऐसी चीजों ने अपने जगह बना ली है।
आज दुनिया के अंदर.. मुझे अभी गल्‍फ कंट्रीज के अमीरात के क्राउन प्रिंस यहां आए थे UAE के । उन्‍होंने एक बड़ी महत्‍वपूर्ण बात बताई। उन्‍होंने कहा हमारा जो गल्‍फ कंट्रीज है प्रट्रोलियम के पैसे तो बहुत है हमारे पास, लेकिन हमारे पास पेट भरने के लिए खेती के लिए कोई संभावना नहीं है हमारी जमीन रेगिस्‍तान है। हमारी जनसंख्‍या बढ़ रही है। हमें आने वाले दिनों में जैसे-जैसे जनसंख्‍या बढ़ेगी, हमारा पेट भरने के लिए भारत से ही अन्‍न मंगवाना पड़ेगा। इसका मतलब यह हुआ कि हिंदुस्‍तान का किसान जो पैदा करेगा दुनिया के बाजार में जाने की संभावनाएं बढ़ रही है। एक बहुत बड़ा ग्‍लोबल मार्केट हमारा इंतजार कर रहा है हम अगर अपनी व्‍यवस्‍थाओं को उस स्‍टेंडर्ड की बना दें तो दुनिया हमारी चीजों को स्‍वीकार करने के लिए तैयार हो जाएगी।
इन दिनों holistic health care. हर किसी को लगता है आप भले तो जग भला। और इसलिए लोग organic खाना खाना पसंद करते हैं। कैमिकल से आया हुआ उनको खाना नहीं है। आम भी बिकता है तो पूछते हैं organic है। चावल भी लाए तो पूछते हैं organic है, गेंहू लाए तो पूछते हैं organic है। वो कहता है साहब पैसा डबल होगा, वो बोले डबल ले लो भाई दवाई खाने से ज्‍यादा अच्‍छा है कि महंगा चावल खा लूं, लेकिन दवाई खाने के लिए मुझे केमिकल वाला नहीं खाना। लोग सोच रहे हैं कि दवाई में जो पैसे जाते हैं उसके बजाय अगर वो पैसे organic चीजों को खाने में जाते हैं तो स्‍वास्‍थ्‍य भी अच्‍छा रहेगा और खर्चा भी कम होने लगेगा। लेकिन यह तब संभव होगा, जब हम organic farming की तरफ प्रयास करें। हम कोशिश करें।
आज मैं सिक्‍कम प्रदेश को बधाई देता हूं| पहाड़ों में 2003 से उन्‍होंने मेहनत चालू की, 2003 से और दस साल के भीतर-भीतर सिक्किम के पूरे प्रदेश को उन्‍होंने organic state बना दिया। आज वहां chemical fertilizer का नामो-निशान नहीं है। और उनका उत्‍पादन बड़ा है, दवाईयां डालनी नही पड़ती है। जमीन में सुधार आया, पहले जो जमीन जितना देती थी। वो जमीन आज दोगुना, तीनगुना देने लग गई है। और उनका बहुत बड़ा ग्‍लोबल मार्केर्टिंग हो रहा है। क्‍या हमारे देश में हम organic farming को बल दे सकते हैं? ये तरीके हैं जो हमने आधुनिक कृषि की तरफ जाना है।
मैं किसानों से एक और आग्रह करना चाहता हूं। हमारी किसानी को तीन हिस्‍सों में बांटना यह अनिवार्य हो गया है। आज हम हमारी किसानी एक ही खम्‍बे पर चलाते हैं और उसका कारण जिस समय आंधी आ जाए वो खम्‍बा हिल जाए, ओले गिर जाए वो खम्‍बा गिर जाए, बहुत बड़ी बारिश आ जाए, वो खम्‍बा गया तो पूरी साल बर्बाद हो जाती है, पूरा परिवार बर्बाद हो जाता है। लेकिन अगर तीन खम्‍बों पर हमारी किसानी खड़ी होगी तो आफत आएगी तो एक-आध खम्‍बा गिरेगा। दो खम्‍बे पर तो हमारी जिंदगी टिक पाएगी भाई।
और इसलिए तीन खम्‍बे कौन से हैं जिस पर हमें किसानी करनी चाहिए एक तिहाई हम जो regular खेती करते हो वो, जो भी करते हो, मक्‍का हो, धान हो, फल हो, फूल हो, सब्‍जी हो जो करते है वो करें। एक तिहाई ताकत जहां आपके खेत की सीमा पूरी होती है। जहां boundary पर आप बाढ़ लगाते हैं बड़ी-बड़ी, एक-एक, दो-दो मीटर जमीन बर्बाद करते हैं। इधर  वाला भी जमीन बर्बाद करता हैं, उधर वाला भी जमीन बर्बाद करता है, दोनों पड़ोसी बीच में जमीन बर्बाद करते हैं। क्‍या हम वहाँ पर टिम्‍बर की खेती कर सकते हैं क्‍या? ऐसे पेड़ उगाए जिससे फर्नीचर बनता है, मकान बनाने में काम आता है। ऐसे वृक्षों की खेती करे। ऐसे पेड़ लगाए। 15-20 साल में घर में बेटी शादी हो करने योग्‍य जाएगी, यह एक पेड़ काट दोगे, बेटी की शादी हो जाएगी। आज हिंदुस्‍तान बहुत बड़ी मात्रा में टिम्‍बर import करता है। विदेशों में पैसा जाता है हमारा। अगर हमारा किसान तय कर ले कि खेत के किनारे पर जो जमीन आज बर्बाद हो करके पड़ी है, सिर्फ demarcation के लिए पड़ोसी ले न जाए इसलिए बाढ़ लगा करके बैठे हैं दो-दो, तीन-तीन मीटर खराब हो रही है, जमीन। आप देखिए कितनी बड़ी income हो सकती है।
और तीसरा, तीसरा महत्‍वपूर्ण पहलू है animal husbandry. दूध के लिए कुछ करे, अण्‍डों के लिए पॉल्‍ट्री फार्म करे। मधुमक्‍खी का पालन करे, मधु का निर्माण करे, शहद का निर्माण करे। इसके लिए अलग ताकत नहीं लगती है। सहज रूप से साथ-साथ चलता है। और यह भी बहुत बड़ा ताकत देने वाला काम है।
और मैं चाहूंगा कि भारत जो कि दुनिया में सबसे ज्‍यादा दूध उत्‍पादन करता है, लेकिन यह दुर्भाग्‍य है कि प्रति पशु जितना दूध उत्‍पादन होना चाहिए वो अभी हमें पार करना बाकी है। और इसलिए हमारे पशु की दूध की productivity कैसे बढ़े, उस पर हमने बल देना है। पशु  को आहार मिले, उस आहार के लिए अलग से प्रबंध करना है। पशु को आरोग्‍य की सुविधाएं मिलें उस पर ध्‍यान केंद्रित करना है। हमारे पशु की नस्‍ल बदलें इसके लिए सरकार बड़ा मिशन ले करके काम कर रही है। ऐसे अनेक प्रयास है जिन-जिन प्रयासों के परिणामस्‍वरूप हम हमारे पशुधन की ताकत को बढ़ा सकते हैं। उससे हम अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
आज शहद दुनिया में शहद का बहुत बड़ा मार्केट है। भारत का किसान शहद के उत्‍पादन में बहुत कम संख्‍या में है। और शहद ऐसा है कभी खराब नहीं होता। सालों तक घर में रहे, घर में भी काम आता है बेचने के भी काम आता है। दवाईयों में भी बिकता है और एक खेत के कोने में हमारे घर के ही कोई व्‍यक्ति उसको संभाले तो काम चल जाता है।
इन तीनों खम्‍बों पर अगर हम हमारी किसानी को आगे बढ़ांएगे, तो किसान को प्राकृतिक आपदा के कारण संकट आने के बावजूद भी बचने का रास्‍ता निकल आ सकता है, बर्बाद होने से बच सकता है। और इसके लिए सरकार की योजनाएं हैं। इस बार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना मेरे किसान भाईयों-बहनों के चरणों में मैंने रखी है। यह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना यह सिर्फ कागज़ी योजना नहीं है, यह किसान की जिंदगी से जुड़ा हुआ काम है। और मैंने बड़ी भक्ति के साथ मेरे किसानों की भक्ति करने के लिए यह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ले करके मैं आपके पास आया हूं। बड़ा विचार-विमर्श किया है मैंने किसानों से सलाह-मश्‍विरा किया है, अर्थशास्त्रियों से किया है, सरकारों से किया है, बीमा कंपनियों से किया है और तब जा करके योजना बनी  है।
हमारे देश में अटल बिहारी वाजपेयी जी की सरकार ने फसल बीमा योजना चालू की। बाद में दूसरी सरकार आई उसने उसमें थोड़ा इधर-उधर कर दिया। मुसीबत यह आई कि किसान का फसल बीमा में से विश्‍वास ही उठ गया। उसको लगता है कि पैसे ले तो जाते हैं लेकिन मुसीबत के समय आते ही नहीं है। किसान की शिकायत सच्‍ची है। मैंने उन सारी शिकायतों को ध्‍यान  में रख करके योजना बनाई है। और यह पहली प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना ऐसी है कि जिसमें प्रीमियम कम से कम है। और सुरक्षा ज्‍यादा से ज्‍यादा है। यह पहली बार ऐसा हुआ है।
अब तक हमारे देश में सौ किसान हो, तो 20 किसान से ज्‍यादा फसल बीमा कोई लेता ही नहीं है। और धीरे-धीरे वो भी कम हो रहे थे। कम से कम इतना तो तय करे कि एक-दो साल में गांव के आधे किसान फसल बीमा योजना ले लें। इतना हम कर सकते हैं क्‍या? अब टेक्‍नोलॉजी का उपयोग होने वाला कि प्राकृतिक आपदा आई तो क्‍या नुकसान हुआ, कहां नुकसान हुआ? तुरंत हिसाब लगाया जाएगा। और तुरंत पैसे मुहैया कराने की व्‍यवस्‍था यह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में है। अब दो-दो, तीन-तीन साल इंतजार करने की जरूरत नहीं।
और एक महत्‍वपूर्ण काम है, पहले ओले गिर गए, आंधी आ गई, नुकसान हो गया, उसका भी हिसाब रहता था। लेकिन फसल काटने के बाद खेत में अगर उसका ढेर पड़ा है, और अचानक आंधी आई, बारिश आई, ओले गिरे, बर्बाद हो गया तो सरकार कहती थी कि भई नहीं यह फसल बीमा में नहीं आता, क्‍यों? क्‍योंकि यह तो तुम्‍हारी कटाई हो गई है, तुम घर नहीं ले गए इसलिए खराब हुआ तुमको ले जाना था। इस सरकार ने एक ऐसी फसल बीमा योजना लाई है कि कटाई के बाद अगर 14 दिन तक खेत के अंदर अगर पड़ा है सामान और अगर बारिश आ गई तो उसका भी बीमा मिलेगा, यहां तक निर्णय किया गया है।
और एक निर्णय किया है कि मान लीजिए आपने सोचा कि जून महीने में बारिश आने वाली  है, सारा खेत तैयार करके रखा, बीज ला करके रखे, मेहनत करने के लिए जो भी करना पड़े सब करके रखा, लेकिन जून महीने में बारिश आई नहीं, जुलाई महीने में बारिश आई नहीं, अगस्‍त महीने में बारिश आई नहीं। अब आपका क्‍या होगा भई, जब बारिश ही नहीं आई, तो फसल खराब होने का सवाल ही नहीं होता है, क्‍यों, क्‍योंकि आपने बोया ही नहीं है। अब जब बोया ही नहीं है तो फसल हुई ही नहीं। फसल हुई नहीं तो फसल बर्बाद हुई नहीं और फिर बीमा वाले कह देते हैं अब तुम्‍हारी छुट्टी, कुछ नहीं मिलेगा। इस सरकार ने एक ऐसी योजना बनाई है कि अगर आपके इलाके में बारिश नहीं आई, आपका बोना संभव ही नहीं हुआ तो भी आपको 25 प्रतिशत पैसे मिल जाएंगे, ताकि आपका साल बर्बाद न हो जाए, यह काम हमने सोचा है।
भाईयों-बहनों किसान के लिए क्‍या किया जा सकता है इसकी एक-एक बारीक चीज पर हमने ध्‍यान दिया है। अगर हमारे यहां पहले कोई प्राकृतिक आपदा आ जाए, तो 50 प्रतिशत अगर नुकसान होता था तब पैसे मिलते थे और वो भी एक पूरे इलाके में 50 प्रतिशत हिसाब बैठना चाहिए। हमने यह सब निकाल दिया और हमने कहा अगर 33 percent भी हुआ तो भी उसको मुआवजा दिया जाएगा। आजादी से अब तक सभी सरकारों में इस विषय की चर्चा हुई। हर किसानों ने इसकी मांग की, लेकिन किसी सरकार ने इसको किया नहीं था। हमने इसको कर दिया।
भाईयों-बहनों प्राकृतिक आपदा में किसान को मदद कैसे मिले? इसके सारे norms बदल दिये। सारी परंपराएं निकाल दी है। और किसान को विश्‍वास  दिलाया है और दूसरा यह भी किया है कि जनधन अकाउंट खोलो, मदद सीधी आपके खाते में जाएगी। कोई बिचौलिए के पैर आपको पकड़ने नहीं पड़ेंगे। हम सब जानते हैं यूरिया के लिए क्‍या-क्‍या होता था। रात-रात कतार में किसान खड़ा रहता था। कल यूरिया आने वाला है। और यूरिया की काला-बाजारी होती थी। कहीं-कहीं पर यूरिया लेने के लिए लोग किसान आते थे, लाठी चार्ज होता था। और मेरा तो अनुभव है मैं प्रधानमंत्री बन करके बैठा तो पहले तीन, चार, पांच महीने सारे मुख्‍यमंत्रियों की एक ही चिट्ठी आती थी कि हमारे प्रदेश में यूरिया कम है यूरिया भेजो, यूरिया भेजो, यूरिया भेजो। भारत सरकार यूरिया क्‍यों देती नहीं है। जो हमारे विरोधी लोग थे वो बयान देते थे अखबारों में भी छपता था कि मोदी सरकार यूरिया नहीं देती। पिछले दिनों यूरिया पर इतना काम किया, इतना काम किया कि गत वर्ष मुझे एक भी मुख्‍यमंत्री ने यूरिया की कमी है ऐसी  चिट्टी नहीं लिखी। पूरे देश में कहीं पर भी यूरिया को ले करके लाठी चार्ज नहीं हुआ है। कहीं पर किसान को मुसीबत झेलनी पड़ी।
और अब तो और कुछ किया है हमने यूरिया को नीम कोटिंग किया है। यह नीम कोटिंग क्‍या है? यह जो नीम के पेड़ होते हैं, उसकी जो फली होती है उसका तेल यूरिया पर लगाया गया है, उसके  कारण जमीन को ताकत मिलेगी। अगर आज आप दस किलो यूरिया उपयोग करते हैं, नीम कोटिंग है, तो छह किलो, सात किलो में चल जाएगा, तीन किलो, चार किलो का पैसा बच जाएगा। यह किसान की income में काम आएगा। किसान की income डबल कैसे होगी, ऐसे होगी। नीम कोटिंग का यूरिया। और इससे एक और फायदा है जहां-जहां नीम के पेड़ हैं वहां अगर लोग फली इकट्ठी करेंगे तो उस फली का बहुत बड़ा बाजार खड़ा हो जाएगा, क्‍योंकि यूरिया बनाने वालों को नीम कोटिंग के लिए चाहिए, क्‍योंकि भारत सरकार ने hundred percent यूरिया नीम कोटिंग का कर दिया है। इसका दूसरा परिणाम यह होगा पहले क्‍या होता था यूरिया सारा लिखा जाता था तो किसान के नाम पर। सरकार के दफ्तर में लिखा जाता था कि किसान को यूरिया की सब्सिडी में इतने हजार करोड़ गए। लेकिन क्‍या सचमुच में वो किसान के लिए जाते थे क्‍या? सब्सिडी जाती थी, यूरिया के लिए जाती थी, लेकिन यूरिया किसान तक नहीं पहुंचता था वो केमिकल के कारखाने में पहुंच जाता था। क्‍योंकि उसको सस्‍ता माल मिलता था, वो उस पर काम करता था और उसमें से वो चीजें बना करके बाजार में बेचता था और हजारों-लाखों रुपये की कमाई हो जाती थी। अब नीम कोटिंग के कारण एक ग्राम यूरिया भी किसी केमिकल फैक्‍ट्री को काम नहीं आएगा। चोरी गई, बेईमानी गई और किसान को जो चाहिए था वो किसान को पहुंच गया।
मेरे कहना का तात्‍पर्य यह है मेरे किसान भाईयों-बहनों कि अब हमें आधुनिक विज्ञान का उपयोग करते हुए कृषि के क्षेत्र में आगे बढ़ना है। हमने प्रयोग करने की हिम्‍मत दिखानी है। आज सब कुछ विज्ञान मौजूद है। आज जो सरकार ने initiative लिए हैं, वो आपके दरवाजें पर दस्‍तक दे रहे हैं। मैं खास करके युवा किसानों को निमंत्रण देता हूं आप आइये, मेरी बात पर गौर कीजिए, भारत सरकार की नई योजनाओं को ले करके आगे बढि़ए। और मैं विश्‍वास दिलाता हूं भारत का ग्रामीण जीवन, भारत के ग्रामीण गरीब का जीवन, भारत के किसान का जीवन हम बदल सकते हैं और उस काम के लिए मुझे आपका साथ और सहयोग चाहिए। मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं। राधामोहन जी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं है। यह कृषि मेला के द्वारा आने वाले दिनों में सभी किसान उसका फायदा उठाए। यही शुभकामनाओं के साथ बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

18 March 2016

government Notifies Plastic Waste Management Rules, 2016

government Notifies Plastic Waste Management Rules, 2016

‘Minimum Thickness of Plastic Carry Bags Increased from 40 to 50 Microns’: Javadekar
            The Government has notified the Plastic Waste Management Rules, 2016, in suppression of the earlier Plastic Waste (Management and Handling) Rules, 2011.   The Minister of State for Environment, Forest and Climate Change, Shri Prakash Javadekar, said here today that the minimum thickness of plastic carry bags has been increased from 40 microns to 50 microns.  He stated that 15, 000 tonnes of plastic waste is generated every day, out of which 9, 000 tonnes is collected and processed, but 6, 000 tonnes of plastic waste is not being collected.  Shri Javadekar also said that the rules, which were admissible upto municipal areas, have now been extended to all villages.   The Minister said that notifying the new Plastic Waste Management Rules is a part of the revamping of all Waste Management Rules.   “This will help in achieving the vision of our Prime Minister of Swacchh Bharat and cleanliness is the essence of health and tourism”, Shri Javadekar added. 
The draft rules, namely the Plastic Waste Management Rules, 2015 were published by the Government of India vide G.S.R. 423(E), dated the 25th May, 2015 in the Gazette of India, inviting public objections and suggestions.  The Plastic Waste Management Rules, 2016 aim to:
·                     Increase minimum thickness of plastic carry bags from 40 to 50 microns and stipulate minimum thickness of 50 micron for  plastic sheets also to facilitate collection and recycle of plastic waste,
·                     Expand the jurisdiction of applicability from the municipal area to rural areas, because plastic has reached rural areas also;
·                     To bring in the responsibilities of producers and generators, both in plastic waste management system and to introduce collect back system of plastic waste by the producers/brand owners, as per extended producers responsibility;
·                     To introduce collection of plastic waste management fee through pre-registration of the producers, importers of plastic carry bags/multilayered packaging and vendors selling the same for establishing the waste management system; 
·                     To promote use of plastic waste for road construction as per Indian Road Congress guidelines or energy recovery, or waste to oil etc. for gainful utilization of waste and also address the waste disposal issue; to entrust more responsibility on waste generators, namely payment of user charge as prescribed by local authority, collection and handing over of waste by the institutional generator, event organizers.
            An eco-friendly product, which is a complete substitute of the plastic in all uses, has not been found till date.  In the absence of a suitable alternative, it is impractical and undesirable to impose a blanket ban on the use of plastic all over the country. The real challenge is to improve plastic waste management systems.
            In addition, the expected outcome from the new rules includes:
(i)         Increase in the thickness of carry bags and plastic sheets
            Increasing the thickness of plastic carry bags from 40 to 50 micron and stipulation of 50 micron thickness for plastic sheets is likely to increase the cost by about 20 %. Hence, the tendency to provide free carry bags will come down and collection by the waste-pickers also increase to some extent.
ii)         Collect back system
            The producersimporters and brand owners who introduce the plastic carry bags, multi-layered plastic sachet, or pouches, or packaging in the market within a period of six months from the date of publication of these rules, need to establish a system for collecting back the plastic waste generated due to their products.  They shall work out modalities for waste collection system based on Extended Producers Responsibility and involving State Urban Development Departments, either individually or collectively, through their own distribution channel or through the local body concerned. This plan of collection has to be submitted to the State Pollution Control Boards while applying for consent to Establish or Operate or Renewal. The producers / brand owners whose consent has been renewed before the notification of these rules shall submit such plan within one year from the date of notification of these rules and implement within two years thereafter. 
            The introduction of the collect back system of waste generated from various products by the producers/brand owners of those products will improve the collection of plastic waste, its reuse/ recycle.
(iii)       Phasing out of manufacture and use of non- recyclable multilayered plastic
            Manufacture and use of non-recyclable multilayered plastic if any should be phased out in two years’ time.
(iv)       Responsibility of waste generator
            All institutional generators of plastic waste, shall segregate and store the waste generated by them in accordance with the Solid Waste Management Rules, and handover segregated wastes to authorized waste processing or disposal facilities or deposition centers, either on its own or through the authorized waste collection agency.
            All waste generators shall pay such user fee, or charge, as may be specified in the bye-laws of the local bodies for plastic waste management, such as waste collection, or operation of the facility thereof, etc.;
            Every person responsible for organising an event in open space, which involves service of food stuff in plastic, or multilayered packaging, shall segregate and manage the waste generated during such events, in accordance with the Solid Waste Management Rules.
(v)        Responsibility of local bodies and Gram Panchayat
            The local bodies shall be responsible for setting up, operationalisation and co-ordination of the waste management system and for performing associated functions.
(vi)       Responsibility of retailers and street vendors
            Retailers or street vendors shall not sell, or provide commodities to consumers in carry bags, or plastic sheet, or multilayered packaging, which are not manufactured and labelled or marked, as prescribed under these rules.
            Every retailer, or street vendor, selling or providing commodities in, plastic carry bags or multilayered packaging or plastic sheets, or like, or covers, made of plastic sheets which are not manufactured, or labelled, or marked, in accordance with these rules shall be liable to pay such fines, as specified under the bye-laws of the local bodies.

(vii)      Pre- registration fee
            The shopkeepers and street vendors willing to provide plastic carry bags for dispensing any commodity shall register with local body. The local body shall, within a period of six months from the date of final publication of these rules on the Official Gazette of India notification of these rules, by notification, or an order under their appropriate state statute or byelaws shall make provisions for such registration on payment of plastic waste management fee of minimum         Rs. 48, 000/- @ Rs. 4,000/- per month. The concerned local body may prescribe higher plastic waste management fee, depending upon the production, or sale capacity. The registered shopkeepers shall display at prominent place that plastic carry bags are given on payment.
            Only the registered shopkeepers, or street vendors shall be eligible to provide plastic carry bags for dispensing the commodities.
            The local body shall utilize the amount paid by the customers for the carry bags exclusively for the sustainability of the waste management system within their jurisdictions.
            The introduction of provision to collect fee from the producers, importers of plastic carry bags / multilayered packaging and vendors selling the same, will strengthen the financial status of local authorities and improve Plastic Waste Management System.
(viii)     Reuse of plastic waste
            The options on reuse of plastic in various applications namely, road construction, waste to oil, waste to energy will enhance the recycling of plastic.
(ix)       Land for waste management facility
            The responsibility to provide land for establishing waste management facility has been made to theDepartment with business allocation of land allotment in the State Government.  This would eliminate the issue of getting land for the waste management facility.
            The Ministry had initially notified the Recycled Plastic Manufacture and Usage Rules in 1999, which was mainly on manufacturing and usage of Plastic carry bags. It is specified that the minimum thickness of plastic bags should be of 20 microns.   The Plastic Waste (Management and Handling) Rules, 2011 laid down certain conditions for manufacturing, stocking, sale and use of plastic carry bags and sachets, which were required to be monitored and implemented by the State Pollution Control Boards/ Municipal Authorities. It specified that the minimum thickness of plastic bags should be of 40 microns. This was to facilitate its collection and recycle. However, the implementation of these rules was not so effective because the ambit of these rules was limited to notified municipal areas whereas today, the plastic has reached to our rural areas also. There were no provisions on responsibility of waste generators. The rules did not address the promotion of conversion of waste to useful resources. Though, it provided for Extended Producers Responsibility for the establishment of waste management system, pricing of carry bags etc. those were not exercised by the local authorities as it was simply left at the discretion of municipal authorities.
To implement these rules more effectively and to give thrust on plastic waste minimization, source segregation, recycling, involving waste pickers, recyclers and waste processors in collection of plastic waste and adopt polluter pays principle for the sustainability of the waste management system, the Central Government reviewed the existing rules and drafted revised rules.   Stakeholders’ consultation meets were organized in New Delhi, Mumbai and Kolkata wherein major Associations, industrial units, experts in various fields were invited. Consultative meetings with relevant State governments, State Pollution Control Boards were also held on these draft Rules. The suggestions / objections (238 in number) were received on these draft rules and have been examined by the Working Group. Based on the recommendations of the Working Group, now, the Plastic Waste Management Rules, 2016 have come into force.
Plastic has multiple uses and the physical and chemical properties lead to commercial success.  However, the indiscriminate disposal of plastic has become a major threat to the environment.  In particular, the plastic carry bags are the biggest contributors of littered waste and every year, millions of plastic bags end up in to the environment vis-a-vis soil, water bodies, water courses, etc and it takes an average of one thousand years to decompose completely. Therefore, to the address the issue of scientific plastic waste management, new regulations namely, the Plastic Waste (Management and Handling) Rules, 2011 were notified in 2011, which included plastic waste management.

17 March 2016

A new chapter in Myanmar

A new chapter in Myanmar

The election of U Htin Kyaw as Myanmar’s President is a watershed moment in its history. Mr. Htin Kyaw’s government would be its most democratic administration since 1962 when the military seized power. During this period, the generals ran a repressive regime that denied the people even basic democratic rights and isolated the country internationally. For Myanmar’s pro-democracy camp, the election is a moment of joy, and sorrow. Finally a legitimate, democratic government is in place, but there is deep disappointment at the fact that Aung San Suu Kyi, their “rightful” leader, could not become the President. A provision in the military-era Constitution bars Ms. Suu Kyi from assuming the highest office as her children are foreign citizens. Her National League for Democracy (NLD) lacks the parliamentary power to rewrite the Constitution. Efforts by Ms. Suu Kyi to reach a settlement with the generals did not bear fruit either. It was against this background that she nominated Mr. Htin Kyaw, an economist and writer she has known from her early school days, as the party’s presidential candidate. Ms. Suu Kyi has made it clear that she will be in control of the government, irrespective of her constitutional status.
While the formation of a democratic government is clearly a firm step forward, the new government faces an uphill task. Primarily, it has to address the deep economic problems. Myanmar is one of the poorest countries in Asia. In the years of isolation under the junta, economic growth stagnated, trapping millions in acute poverty. Getting the economy back on track is no easy task, and Myanmar will need regional and global assistance. Besides, though the generals have agreed to civilian takeover of political power, they still wield enormous influence over Myanmar’s institutions. One-quarter of seats in both Houses of Parliament are reserved for the military. This prevents any constitutional amendments without the military’s approval. The military also has direct control of three key Ministries: defence, home affairs and border affairs. Two recent actions of the military indicate it is still not ready to cede influence over institutions completely. The first is its refusal to let Ms. Suu Kyi become the President. It knew that if Ms. Suu Kyi, hugely popular at home and widely respected abroad, becomes President, that could expedite the country’s transition into a full democracy. Second, by successfully getting Myint Swe, a controversial retired general who served the previous junta, elected as one of the two vice-presidents, the military has sent a clear message to the government that it is not going to completely stay away from power. But the good news is that the balance of power has clearly shifted in favour of the pro-democracy camp after the November elections. Ms. Suu Kyi and President Htin Kyaw will have to tread cautiously but purposefully to build on the democratic gains, and expedite Myanmar’s transition into a full democracy.

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LS passes Aadhaar bill in original form

LS passes Aadhaar bill in original form

Lok Sabha rejected five amendments proposed by Rajya Sabha and passed the bill in its original form

Aadhaar is set to receive statutory backing after Parliament passed a bill that will make the unique identification project the central plank for delivering government subsidies and welfare benefits.
Only the President’s signature is now required for the bill to become law, which will enable the government to reset the subsidy regime and deliver state benefits directly to their intended beneficiaries, plugging leakages.
The money will go into the bank or post-office accounts of beneficiaries linked to the 12-digit biometric identity number provided by the Unique Identification Authority of India (UIDAI).
Late on Wednesday evening, the Lok Sabha rejected five amendments proposed by the Rajya Sabha earlier in the day and passed the bill in its original form.
The lower House passed the Aadhaar (Targeted Delivery of Financial and Other Subsidies, Benefits and Services) bill, 2016, as a money bill on Friday.
A money bill cannot be rejected by the Rajya Sabha, which can only suggest changes the Lok Sabha is free to reject. The ruling National Democratic Alliance is vastly outnumbered by the opposition in the upper House.
The opposition has voiced concerns that the privacy of individuals may be compromised by Aadhaar and that a provision that allows the government to access the biometric information in cases pertaining to national security may be misused.
The amendments to the bill moved by Congress MP Jairam Ramesh sought to replace the term ‘national security’ with ‘public emergency and public safety’ and limit the use of Aadhaar to delivery of subsidies. He also suggested that the use of Aadhaar be made optional so that subsidies can be accessed even without the unique identity number.
Key digital and social security schemes of the government are critically dependent on the use of Aadhaar, which will help better targeting of beneficiaries for delivery of subsidies, budgeted at Rs.2.5 trillion in the next fiscal year. It will also be key to India managing its transition to a cashless economy.
Statutory backing will address the uncertainty surrounding the project after the Supreme Court restricted the use of the Aadhaar number until a constitution bench delivers its verdict on a number of cases challenging the mandatory use of Aadhaar in government schemes, and rules on the issue of privacy violation.
“The entire controversy is political in nature. The problem is ensuring subsidies reach the poor,” said former civil servant N.C. Saxena, a member of the erstwhile Planning Commission. “It has nothing to do with the law. A large number of poor are not part of the Aadhaar programme. That is the main problem,” he said. “We need to see better implementation. Merely passing the law is not enough,” Saxena added.
Opposition parties cut across party lines on Wednesday to criticize the government’s decision to present the draft law as a money bill—a move they alleged undermined the legislative competence and authority of Rajya Sabha.
During the debate in the Rajya Sabha, Ramesh said the Congress supports the bill but would like some changes made because the bill in its current form gives “sweeping powers in the name of national security”.
“Information should be shared only for public emergency and public safety,” he said. He expressed concerns that current provisions could be interpreted in a way that would enable collection of DNA information by UIDAI.
“Whatever information the UIDAI wants to collect, it should be empowered by Parliament. No suo moto authority should be granted to UIDAI. In order to remove ambiguity, it should be part of the law,” he said.
He also sought removal of a clause that allows private agencies to use Aadhaar.
Finance minister Arun Jaitley, while responding to concerns raised by opposition members, said the government had made several improvements to the original version introduced by the previous United Progressive Alliance (UPA) regime in order to address privacy concerns.
“The privacy provisions that we have included in the bill are much stronger than what was included in the UPA’s bill,” he said.
Jaitley pointed out that there was an absolute bar on sharing of core biometric information and that it can be used only for generation of Aadhaar number and authentication.
He also pointed out that lower courts cannot order disclosure of information. In addition, disclosure of information requests will be specially directed to a joint secretary-level government official. Every decision this official makes will be reviewed by a committee headed by the cabinet secretary.
On Ramesh’s suggestion of replacing the term national security with ‘public emergency and public safety’, Jaitley said, “There is no concept of a public emergency. It is a vague phrase which would lead to governments having greater power to encroach on privacy. National security is a much narrower definition,” he said.
Sitaram Yechury of the Communist Party of India (Marxist) said the bill’s definition of national security was nebulous.
“How are cases of sedition registered against students of universities; how is someone labelled anti-national; what will be added later and who will it be shared with? These are matters that are serious encroachments to privacy,” he said.
Yechury opposed the government’s decision to introduce the draft as a money bill, noting that even the job guarantee scheme and the Food Security Act entailed withdrawal of funds from the consolidated fund of India but legislation for those had not been tabled in the form of money bills.

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The women who helped draft our constitution

The women who helped draft our constitution

Excerpts from an ongoing online project on the 15 women who were part of the constituent assembly that shaped our country’s laws
sn’t it a curious thing that in the initial years of Indian politics, the idea of women as political equals of men was the norm and not a deviance? Even when stuffy ideas threatened to seep in and undermine equal suffrage, Indian polity stood united on the fundamental ideas about equal rights.
Almost a century after Indian provincial legislatures voted for equal suffrage—the women’s movement in India had been fighting for suffrage since 1917—we’re still debating the number of women in our state legislatures and Parliament, who belongs and who does not.
In December 1946, a newly formed constituent assembly came together to debate and draft a constitution for a soon-to-be independent India. The debate took place over two years, 11 months and 17 days. It was an extraordinary project—an experiment that would determine the ability of a country to govern itself. Among the 299 members of the assembly, 15 were women who had either been voted or chosen to represent their provinces, who left their mark on the making of the republic. The assembly was a platform from which they could assert their equality and craft a politically balanced republic.
Very little is known about these 15 women. They were freedom fighters, lawyers, reformists, suffragettes and politicians. Many of them belonged to women’s organizations and had taken part in feminist movements since 1917. They had been to jail during the Dandi March, and the protests against the Simon Commission. In the assembly, they raised their voice for minority rights, against reservation, and for an independent judiciary.
The ongoing “Women Architects Of The Indian Republic” project aims to look at the lives of these women. It’s an attempt to create a conversation about this extraordinary moment in our republic. For a watered-down, gendered reading of history perpetuates the idea that equality, reservations and women’s rights are modern Western constructs.
The goal of this project—which started in January and will continue as a series of blogs, culminating with a piece on 15 August—is an inclusive study of our constitutional history.
The women whose speeches can still be found in archives are Durgabai Deshmukh, Rajkumari Amrit Kaur, Begum Aizaz Rasul, Renuka Ray and Purnima Banerji, as well as well-known names like Sarojini Naidu and Vijayalakshmi Pandit. Ammu Swaminathan, better known as the mother of Captain Lakshmi Sahgal, expressed her disappointment about the length of the constitution, wishing they had made one which could be easily converted into a pocketbook. Sucheta Kriplani led the assembly in singingVande MataramSaare Jahan Se Achcha and the national anthem.
The other women that the project will research on are Annie Mascarene, Kamla Chaudhri, Leela Roy and Malati Choudhury.
As a disclaimer, I need to point out that I’m neither a professional historian nor a lawyer. “Women Architects Of The Indian Republic” is not a scholarly pursuit. The research is limited, in that I’m relying for the most part on online resources, including the record of debates in the Lok Sabha archives, Rajya Sabha’s selected speeches of these women, Granville Austin’s books, and online publications.
Two women that the project has looked at so far are Dakshayani Velayudhan and Hansa Jivraj Mehta. In some ways, they symbolize the diversity that this group of 15 women represents.
Dakshayani Velayudhan
She was the first and only Dalit woman to be elected to the constituent assembly in 1946. She served as a member of the assembly, and as a part of the provisional parliament from 1946-52. At 34, she was also one of the youngest members of the assembly.
Velayudhan’s life was shaped by the upheavals in Kerala society in the early 20th century. Before her birth, two of Kerala’s biggest reformers, Sree Narayana Guru and Ayyankali, had begun movements to end Kerala’s virulent casteism. They organized civil disobedience movements that defied restrictions on movement and entry to school for the depressed classes.
One of the more novel forms of protest was led by an organization called the Pulaya Mahajana Sabha in 1913. Founded by Kallachamuri Krishnaadi Asan, Pandit Karuppan and T.K. Krishna Menon, along with K.P. Vallon, the Sabha, named after the Pulaya caste, organized a Kayal Sammelan, or lake meeting. The meeting that took place on a catamaran in Vembanad lake was in defiance of the king, who had proclaimed that no Dalit group could have a meeting in his land. By holding the meeting on water, the group claimed that “they did not disobey the king”.
Velayudhan was the niece of Krishnaadi Asan, and the sister of K.P. Vallon.
She was one of the first girls in her Pulaya community to wear an upper cloth. Growing up at a time of radical social change, and into a family that spearheaded many of these changes, the right to wear an upper cloth was just the first in a series of firsts in her life. She was part of movements that called for the democratization of public spaces, education, work security, equality and abolition of caste slavery.
She was the first Dalit woman in the state to earn a degree. With a scholarship from the Cochin State government, she went on to get a bachelor of arts degree and a teachers’ training certificate from Madras University. The stigma and institutional discrimination she faced as an educator in a government school pushed her to reconsider her career. She followed in the footsteps of her brother K.P. Vallon, and was nominated to the Cochin legislative council in 1945. The council elected her to the constituent assembly in 1946.
Velayudhan’s term in the constituent assembly was defined by two objectives, both inspired and moulded by Mahatma Gandhi and Bhimrao Ambedkar. One was to make the assembly go beyond framing a constitution and offer people “a new framework of life”, and two, to use the opportunity to make untouchability illegal, unlawful, and ensure a “moral safeguard that gives real protection to the underdogs”.
In a speech delivered on 28 August 1947, she said: “As long as the Scheduled Castes, or the Harijans or by whatever name they may be called, are economic slaves of other people, there is no meaning demanding either separate electorates or joint electorates or any other kind of electorates with this kind of percentage. Personally speaking, I am not in favour of any kind of reservation in any place whatsoever.” Her dismissal of separate electorates and reservations hailed an independent India based on a strong, common national identity.
Velayudhan was scathing about the draft constitution presented by Ambedkar. She found the draft constitution “barren of ideas and principles”. The blame, she said, had to be shared by all the members of the constituent assembly who, in spite of lofty ideals, illustrious backgrounds and prodigious speeches, could not come up with an original constitution.
Unlike many of her peers, she moved away from direct electoral politics to creating groups that worked for the uplift of the so-called untouchables. Her final foray into electoral politics was an unsuccessful contest for a Lok Sabha seat in 1971. Her work was an inspiration for her first cousin, K.R. Narayanan, who would become India’s first Dalit president.
Hansa Jivraj Mehta
Hansa Jivraj Mehta served in the constituent assembly from 1946-49. She was a member of the fundamental rights sub-committee, the advisory committee and the provincial constitutional committee. On 15 August 1947, a few minutes after midnight, Mehta, on behalf of the “women of India”, presented the national flag to the assembly—the first flag to fly over independent India.
Her appointment to the constituent assembly was from Bombay, where she was a member of the legislative council. In 1946, she was also serving her one-year term as president of the All India Women’s Conference (AIWC). She had started a two-year term at the SNDT Women’s University in Bombay, as India’s first woman vice-chancellor. Internationally, in the same year, she served as a member of the UN sub-committee on the status of women, and vice-chair, with Eleanor Roosevelt, on the committee which drafted the Universal Declaration of Human Rights that was adopted by the UN.
Mehta’s background—daughter of Manubhai Mehta, thediwan of Baroda state—her education at Baroda university and in London, and her list of accomplishments would have been out of place in any other period of Indian history. In the constituent assembly, she fitted right in with the other women. Sarojini Naidu introduced her to Gandhi and the Indian women’s freedom movement when the two met in London in early 1920. With Rajkumari Amrit Kaur, she framed the Indian Women’s Charter of Rights and Duties and fought for the uniform civil code (UCC); with Vijayalakshmi Pandit, she worked on women’s equality and human rights in the UN. Before her stint in the constituent assembly, Mehta was an educationist, feminist and reformist. A prolific writer, she wrote children’s books in her native Gujarati and in English, and translated books into Gujarati.
Mehta played an integral role in a women’s movement that pushed for the abolition of child marriage (the Sarda Act) as well as the devadasi system, for better educational opportunities for women, and personal law reforms.
Mehta’s most significant contribution to the constituent assembly debates was in trying to make the UCC a justiciable part of the constitution. As part of the fundamental rights sub-committee, she, along with Rajkumari Amrit Kaur, Ambedkar and Manoo Masani, saw the UCC as part of the state’s responsibility to establish a single Indian identity over multiple religious identities. Their motion to pass this as a right was overturned. While Nehru justified not making the civil code a right, Mehta hoped the advisory committee would reconsider its decision. The UCC went on to become a non-justiciable directive principle.
While welcoming the reforms suggested by Ambedkar in inheritance laws, divorce, property rights, and adoptions, Mehta said: “This Bill to codify the Hindu Law is a revolutionary Bill and though we are not quite satisfied with it, it will be a great landmark in the social history of the Hindus. But since this Bill was drafted, many things have happened and one of the biggest things that has happened is the achievement of our political freedom. The new State is going to be a democratic State and democracy is based on the equality of individuals. It is from this point of view that we have now to approach the problems of inheritance and marriage, etc., that are before us.”
She was appointed to the UN Human Rights Council after Nehru recommended her for the position. She piloted a change of phrase in the Universal Declaration of Human Rights, from “All men are born free and equal” to “All human beings are born free and equal”.
She served on the board of Unesco and was awarded the Padma Bhushan in 1959. Her husband Jivraj Narayan Mehta became the first chief minister of Gujarat in 1960.

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Anti-Diabetic Drug ‘Ayush-82’ to be commercialised

Anti-Diabetic Drug ‘Ayush-82’ to be commercialised
The National Research Development Corporation(NRDC) of the Department of Scientific & Industrial Research, Ministry of Science & Technology signed a License Agreement with Kudos Laboratories India for commercialization of Ayush-82, an ayurvedic formulation for prevention and management of  Diabetes.

It has been developed by Central Council for Research in Ayurvedic Sciences (CCRAS), New Delhi, an apex organization for research in Ayurveda under the Ministry of AYUSH (Ayurveda, Yoga & Naturopathy, Unani, Siddha and Homeopathy).
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