अगर आप लक्ष्य पर फोकस कर रहे हैं, मेहनत कर रहे हैं तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती। सफलता मिलनी तय है। यूपीएससी में नौवीं रैंक लाने वाले दिव्यांशु कहते हैं- मेरे साथ कुछ ऐसा ही हुआ। यूपीएससी की परीक्षा में पहली बार भाग ले रहे थे। पीटी निकाल लिया। मेंस के समय डेंगू ने रास्ता रोक दिया। वर्ष 2012 में उसने दोबारा यूपीएससी में भाग लिया। रैंक मिली 648। फिर तैयारी की और तीसरे प्रयास में उसने राष्ट्रीय स्तर पर नौवां स्थान हासिल कर लिया।
बकौल दिव्यांशु, बचपन से ही आईएएस बनने की तमन्ना थी। मां चाहती थी कि बेटा इंजीनियरिंग करे। आईआईटी जेईई में 2006 में ऑल इंडिया रैंक 10 मिली। इसके बाद आईआईटी कानपुर से कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की। कई जॉब ऑफर मिले। लेकिन, लक्ष्य कुछ और था। इसलिए सिविल सर्विसेज की तैयारी दिल्ली में शुरू की।
पिता बिमलेंद्र शेखर झा झारखंड राज्य बिजली बोर्ड में प्रबंध निदेशक के पद पर कार्यरत हैं। वे डेपुटेशन पर थे। अब वे वापस पावरग्रिड के एजी पद पर वापस बिहार आ रहे हैं। बेटे की सफलता पर पिता और गृहिणी मां डॉ. सीमा झा काफी खुश हैं। बड़ी बहन व पीएमसीएच से रेडियोलॉजी में एमडी कर रही डॉ. सोनालिका झा ने कहा कि शुक्रवार को पापा व दिल्ली से दिव्यांशु पटना आ रहे हैं। इसके बाद खुशियां मनेगी।दिव्यांशु का पैत्रिक निवास मधुबनी में झंझारपुर के पास रहुआ गांव में है।
दिव्यांशु का सफर
10वीं : डॉन बॉस्को, 2004, स्कूल टॉपर
12वीं : सेंट माइकल, टॉपर
जेईई : 2006, एआईआर 10
तीन वर्षों से लगातार कैट में बेहतर प्रदर्शन । आईआईएम अहमदाबाद से उन्हें कॉल आया। दिव्यांशु ने कहा कि अगर इस वर्ष यूपीएससी में बेहतर रैंक नहीं आता तो आईआईएमए ज्वाइन कर लेते।
No comments:
Post a Comment