28 June 2014

environment

नैरोबी में पहली संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में श्री प्रकाश जावडेकर का वक्तव्य सतत खपत और उत्पादन के माध्यम से पृथ्वी के सुरक्षित संचालन स्थान के अंतर्गत गरीबी उन्मूलन और समृद्धि हासिल करने के लिए भारत का हस्तक्षेप 

दक्षिण एशिया और सहारा के दक्षिण में स्थित अफ्रीकी देशों में अधिकांश रूप से रहने वाले लगभग 1.3 अरब लोग प्रतिदिन 1.25 अमेरिकी डालर से भी कम प्रति व्यक्ति आय पर जिंदा हैं। विकसित और विकासशील देशों में रहने वाले लोगों की प्रति व्यक्ति आय में भारी अंतर का होना चिंता का विषय है। सतत विकास प्राप्त करने के लिए गरीबी उन्मूलन और असमानता को कम करना सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए। हम सब जिस विकास का उद्देश्य लेकर चल रहे हैं उसे समग्र और दुनिया के सबसे अधिक वंचितों, सीमांतों और गरीबी से ग्रस्त व्यक्तियों की समस्या को दूर करने वाला होना चाहिए। रियो+20 सम्मेलन का सबसे महत्वपूर्ण निष्कर्ष गरीबी उन्मूलन को वैश्विक विकास एजेंडे का केन्द्र बिंदु बनाना था।

सतत विकास के लिए आज विश्व के सामने गरीबी उन्मूलन सबसे बड़ी चुनौती बनकर खड़ी है। इस संबंध में हम मानवता को गरीबी से मुक्त करने और भूख को एक आवश्यकता के मुद्दे के रूप में मानने के लिए प्रतिबद्ध हैं। संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) द्वारा स्थापित मुक्त कार्यदल (ओडब्लूजी) के सतत विकास लक्ष्यों के विकास पर ध्यान दिये जाने वाले विभिन्न क्षेत्रों के बारे में विचार किया जाना एक संतोषजनक मामला है। पहला प्रस्तावित लक्ष्य दुनिया से गरीबी समाप्त करने से संबंधित है।

निरंतर विकास के लिए सतत खपत और उत्पादन के महत्व को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जा सकता। आज के विचार-विमर्श का विषय ‘पृथ्वी के सुरक्षित संचालन स्थान के अंतर्गत’ का संदर्भ प्रस्तुत करता है और मेरे मन में तुरंत महात्मा गांधी का प्रसिद्ध कथन “पृथ्वी प्रत्येक मनुष्य की संतुष्टि के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध कराती है लेकिन हर मनुष्य के लोभ की पूर्ति नहीं”।

हर साल 1.3 अरब टन अनाज बर्बाद हो जाता है जो सभी तरह के उत्पादित खाद्य पदार्थों का एक तिहाई भाग है। औद्योगिक देशों में उपभोक्ता स्तर पर ही इतना खाना बर्बाद होता है जो सहारा के दक्षिण में स्थित अफ्रीकी देशों के कुल उत्पादन से अधिक है। विकासशील देशों में खाने की बर्बादी को प्रायः पोस्ट-हार्वेस्ट क्षति से जोड़ दिया जाता है। विश्व में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत स्तर में भी व्यापक अंतर है। यह सब विकसित देशों में अस्थाई और फिजूल खपत पद्धति की ओर इशारा करती है और इन देशों के लिए सतत खपत और उत्पादन पद्धति को अपनाना ही जरूरी बना देती हैं।

"सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियां" और "समता" के सिद्धांतों को सतत विकास के वर्तमान और भविष्य में होने वाले वैश्विक विचार-विमर्श का लगातार आधार होना चाहिए। यह स्पष्ट है कि विश्व की अर्थव्यवस्था को सतत मार्ग पर लाने के हमारे प्रयास गरीबों के ऊपर निर्भर नहीं होनी चाहिए। जहां सतत उत्पादन और खपत की पद्धति अपनाने के परिणाम स्वरूप अनुत्पादक एवं व्यर्थ संसाधनों को बढ़ावा मिलेगा, जिसे लाभदायक रूप में इस्तेमाल किया जाएगा और इससे यह माना जाएगा कि सतत उत्पादन और विकास स्वयं विश्व से गरीबी उन्मूलन करने के लिए पर्याप्त होंगे। गरीबी उन्मूलन के लिए कहीं अति सक्रिय और ठोस कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

सतत और समग्र आर्थिक विकास गरीबी उन्मूलन की मुख्य कुंजी है। गरीबी उन्मूलन की नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने की अपेक्षा रखने वाले देशों को पूर्वानुमानित, अतिरिक्त और पर्याप्त वित्तीय सहायता उपलब्ध करानी होगी।

विकासशील देशों को आधिकारिक वित्तीय सहायता (ओडीए) के रूप में सकल राष्ट्रीय आय का 0.7 प्रतिशत अंश उपलब्ध कराये जाने की अपनी बचनबद्धता को न केवल तत्काल पूरा किये जाने की आवश्यकता है बल्कि 2015 के बाद के विकास एजेंडा के लिए महत्वाकांक्षी स्तर पर विचार करते हुए अतिरिक्त और पूर्वानुमानित वित्तीय सहायता देने के संकल्प की भी आवश्यकता है। जैसे ही विकसित देशों द्वारा इस मूलभूत बचनबद्धता को पूरा किया जाता है वित्तीय सहायता के अन्य अनुपूरक उपायों के विकल्पों पर भी विचार किया जा सकता है।

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