जनसंख्या, नगरीकरण और औद्योगीकरण में तीव्र वृद्धि के कारण हो रहा पर्यावरण अवनयन तथा प्रदूषण वैश्विक चिंता का विषय बना हुआ है। इसके साथ ही मानवीय गतिविधियों के फलस्वरूप उत्पन्न वैश्विक ऊष्मन तथा ओजोन परत का क्षरण वर्तमान दौर के सबसे प्रभावी मुद्दे हैं। रेफ्रिजरेटर, वातानुकूलन, हेयरस्प्रे, डिऑडरेंट, फोम तथा एयरोसोल स्प्रे आदि में व्यापक पैमाने पर उपयोग में लाए जा रहे क्लोरो-फ्लोरो कार्बन तथा हैलोजन यौगिक ओजोन परत के विघटन को बढ़ावा देकर पृथ्वी के रक्षा कवच को कमजोर कर रहे हैं। पृथ्वी से 15 से 30 किमी. की ऊंचाई पर समतापमंडल में विद्यमान ओजोन गैस की परत सूर्य से आने वाले पराबैंगनी विकिरण को अवशोषित कर लेती है एवं इस प्रकार हानिकारक विकिरण के विरुद्ध धरती के जीवों के लिए यह एक रक्षा कवच का काम करती है। ओजोन परत के क्षय से त्वचा कैंसर, पौधों को क्षति, समुद्र में प्लेंक्टन (Plankton) की आबादी में कमी तथा जानवरों की प्रजनन क्षमता में कमी जैसे जैविक परिणाम उत्पन्न हो रहे हैं। सबसे पहले ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे के वैज्ञानिकों ने वर्ष 1985 में अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में एक बड़े छिद्र की खोज की थी। अतः इस संबंध में अनुसंधान गतिविधियां तेज हुईं और ओजोन परत में छिद्र के लिए सर्वप्रथम क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFCs) को जिम्मेदार माना गया, जिसकी खोज वर्ष 1920 में हुई थी। ओजोन परत में हो रहे विघटन के संदर्भ में वैश्विक चिंता के निहितार्थ इसे सुरक्षित रखने के लिए ओजोन परत को नष्ट करने वाले पदार्थों पर वर्ष 1985 में ‘वियना समझौता’और 1987 में ‘मांट्रियल संधि प्रस्ताव’ पारित हुआ, जिसमें 43 देशों के प्रतिनिधियों द्वारा मांट्रियल प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए गए। मांट्रियल संधि में सहभागी देश सीएफसी को वर्ष 1986 के स्तर पर रोकने तथा वर्ष 1999 तक इसके उत्पादन को 50 प्रतिशत तक कम कर देने के प्रस्ताव पर सहमत हुए थे। वर्ष 1990 में लंदन संशोधन (London Amendment to the Montreal Protocol) में हैलोजन तत्वों (क्लोरीन व ब्रोमीन) को भी ओजोन परत के क्षय के लिए जिम्मेदार माना गया। भारत, मांट्रियल संधि प्रस्ताव में लंदन संशोधन के पश्चात वर्ष 1992 में शामिल हुआ था। वर्तमान समय में सीएफसी को कम हानिकारक हाइड्रो-क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (HCFCs) के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है। एचसीएफसी (HCFCs), जिसमें कोई क्लोरीन या ब्रोमीन नहीं है, ओजोन रिक्तिकरण में योगदान नहीं देते हैं। क्लोरीन और ब्रोमीन के परमाणु ओजोन के अणुओं को कई अपघटनी चक्रों के द्वारा नष्ट कर देते हैं। एक परमाणु के आधार पर ओजोन को नष्ट करने में ब्रोमीन, क्लोरीन की तुलना में अधिक प्रभावी है लेकिन वर्तमान में वातावरण में कम मात्रा में ब्रोमीन है, इसके परिणामस्वरूप समग्र रिक्तिकरण में क्लोरीन व ब्रोमीन दोनों महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। वर्ष 2010 में सीएफसी के उत्पादन पर वैश्विक स्तर पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है।
हाल ही में यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने चार नई गैसों की खोज की, जो ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रही हैं। 1960 के दशक तक ये गैसें वायुमंडल में विद्यमान नहीं थीं जबकि 1990 के दशक के बाद इन गैसों का पता पहली बार लगा है। सीएफसी से मिलती-जुलती इन गैसों की उत्पत्ति का सही कारण अभी भी रहस्य है, फिर भी इनकी उत्पत्ति के लिए मानवीय गतिविधियों को जिम्मेदार माना जा रहा है।
9 मार्च, 2014 को शोध जर्नल ‘नेचर जियोसांइस’(Nature Geoscience) में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, वायुमंडल में चार नई गैसों की पहचान की गई है जो ओजोन रिक्तिकरण (Ozone Depletion) के लिए जिम्मेदार हैं।
ब्रिटेन स्थित ‘यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया’ के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि 74 हजार टन से अधिक मात्रा में तीन नई क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (CFC : Chlorofluorocarbons) तथा एक नई हाइड्रो-क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (HCFC : Hydrochloroflurocarbon) गैसें वायुमंडल में छोड़ी गई हैं।
वैज्ञानिकों द्वारा इन गैसों की पहचान सीएफसी-112(CFC : Tetrachloro-1, 2-Difluoroethane or freon-112), सीएफसी-112ए (CFC-112a : Tetrachloro-1, 1-Difluoroethane or freon-112a), सीएफसी-113ए (CFC-113a: 1, 1,1- Trichloro-2,2,2- trifluoroethane or freon-113a) तथा एचसीएफसी-133ए(HCFC-133a : Mono chlorotrifluoroethane) के रूप में की गई है।
यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया के स्कूल ऑफ इंवॉयरमेंटल साइंसेज के मुख्य शोधकर्ता डॉ. जोहानिस लाबे के अनुसार, वर्ष 1960 तक ये चारों गैसें पर्यावरण में मौजूद नहीं थीं इसलिए यह मानव निर्मित भी हो सकती हैं।
उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिकों ने वर्तमान में विद्यमान वायु और ‘ध्रुवीय फर्न बर्फ’ (Polar Firns Snow) में फंसी वायु के नमूनों के बीच तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर इन गैसों की खोज की है।
ध्यातव्य है कि ध्रुवीय फर्न बर्फ से निकाली गई वायु के विश्लेषण से यह पता लगाया जा सकता है कि आज से एक शताब्दी पहले वायुमंडल किस तरह का रहा होगा।
वैज्ञानिकों द्वारा ध्रुवीय फर्न बर्फ से तुलनात्मक अध्ययन के लिए मौजूदा वायु के नमूने तस्मानिया के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से लाए गए।
इसके लिए प्रदूषण रहित सुदूरवर्ती क्षेत्र (तस्मानिया) में वर्ष 1978 से 2012 के मध्य के वायु के नमूने इकट्ठे किए गए।
शोधकर्ताओं के निष्कर्ष में जिन चार गैसों की खोज की गई है, उनमें सीएफसी-113ए ओजोन रिक्तिकरण के लिए अधिक जिम्मेदार मानी जा रही है।
नई खोजी गई गैसें वायुमंडल में बहुत धीरे-धीरे नष्ट होती हैं, इसलिए ओजोन रिक्तिकरण के लिए प्रभावी रूप से जिम्मेदार मानी जा रही है।
शोध में कीटनाशकों के निर्माण में उपयोग होने वाला कच्चा माल तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अवयवों की धुलाई में प्रयोग होने वाले विलायकों को इन गैसों का संभावित स्रोत माना जा रहा है।
कृषि क्षेत्र में व्यापक रूप से प्रयोग किए जाने वाले कीटनाशक ‘पायरेथ्रॉयड’ के निर्माण में प्रयुक्त एग्रोरसायन को सीएफसी-113 ए की उत्पत्ति का कारण माना जा रहा है।
सीएफसी-113 ए के साथ एचसीएफसी-133 ए के उत्पत्ति का कारण रेफ्रिजरेटर की शीतलन प्रणाली निर्माण में किए गए इसके प्रयोग को माना जा रहा है।
सीएफसी-112 और सीएफसी-112 ए के उत्पत्ति का कारण इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की धुलाई में प्रयोग होने वाले विलायकों के निर्माण में इसके इस्तेमाल को माना जा रहा है।
No comments:
Post a Comment