6 December 2017

राजनीतिः चाबहार की अहमियत

राजनीतिः चाबहार की अहमियत
चाबहार होकर भारत को अफगानिस्तान जाने का एक रास्ता मिला है। वहीं अफगानिस्तान का व्यापार भी दुनिया के बाकी हिस्सों से बढ़ेगा। लेकिन सबसे ज्यादा लाभार्थी ईरान होगा। भविष्य में ईरान इसे उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे से जोड़ेगा जो यूरोप तक जाता है। ईरान की भविष्य की योजना चीन के ‘वन बेल्ट वन रोड’ के लिए चुनौती है।
भारत-ईरान संबंधों में उतार-चढ़ाव के बीच तीन दिसंबर को चाबहार बंदरगाह के पहले चरण का उद्घाटन हो गया। चाबहार के पहले चरण की शुरुआत भारत-ईरान संबंधों में भी एक नए अध्याय की शुरुआत है। ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी इस बंदरगाह का उद्घाटन किया। अब भारत, पाकिस्तान को छोड़, सीधे अफगानिस्तान और मध्य एशिया से व्यापारिक रिश्ते कायम कर सकेगा। बंदरगाह की शुरुआत पश्चिम और मध्य पूर्व एशिया की कूटनीति को सीधे प्रभावित करेगी। क्योंकि अब ईरान का कद यूरेशिया की सीमा तक बढ़ गया है। पाकिस्तान तो चिंतित है ही, चिंता चीन को भी होगी।
ईरान इस बंदरगाह के व्यापारिक इस्तेमाल से जहां मजबूत आर्थिक शक्ति बनेगा, वहीं चीन द्वारा पाकिस्तान के तट पर विकसित ग्वादर बंदरगाह के लिए चुनौती भी। मध्य एशिया और पश्चिम एशिया की कूटनीति में सऊदी अरब के नेतृत्व वाले सुन्नी गठबंधन को लगातार चुनौती दे रहा ईरान इस समय किसी को भी आंख दिखाने की स्थिति में है। सीरिया, यमन, लेबनान में अपने सफल हस्तक्षेप के बाद ईरान ने दुनिया को यह संदेश दिया है कि पश्चिम एशिया और मध्य-पूर्व एशिया में उसे कमजोर आंकना ठीक नहीं है।
चाबहार होकर भारत को अफगानिस्तान जाने का एक रास्ता मिला है। वहीं अफगानिस्तान का व्यापार भी दुनिया के बाकी हिस्सों से बढ़ेगा। लेकिन सबसे ज्यादा लाभार्थी ईरान होगा। भविष्य में ईरान इसे उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे से जोड़ेगा जो यूरोप तक जाता है। ईरान की भविष्य की योजना चीन के ‘वन बेल्ट वन रोड’ के लिए चुनौती है। ईरान दुनिया को यह बताने में कामयाब रहा है कि ओमान की खाड़ी और हिंदी महासागर से मध्य एशिया और यूरोप तक पहुंचने का एक महत्त्वपूर्ण रास्ता ईरान है। चाबहार चीन के अलावा अमेरिका के लिए भी एक संदेश है। क्योंकि ईरान से खराब संबंध ने अमेरिका को पाकिस्तान पर निर्भर बना दिया। आज भी अमेरिका अफगानिस्तान में नाटो सैनिकों तक सैन्य साजो-सामान पहुंचाने के लिए कराची बंदरगाह पर निर्भर है। अमेरिका की इसी कमजोरी का लाभ पाकिस्तान ने अकसर उठाया है।
चाबहार के पहले चरण के उद््घाटन ने पाकिस्तान की चिंता बढ़ाई है। भारत को अफगानिस्तान तक पहुंचने का आसान रास्ता मिल गया है। पाकिस्तान का आरोप है कि भारत चाबहार के रास्ते अफगानिस्तान पहुंच पाकिस्तान को घेरेगा। भारत पाकिस्तान को दोनों सीमाओं पर घेरने की योजना में है। पाकिस्तान और चीन दोनों मजबूरी में चाबहार में घुसपैठ करना चाहते हैं। उधर ईरान संतुलन साधने की रणनीति पर है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ईरान के प्रति लगातार सख्त हो रहे हैं। सऊदी अरब के दबाव में वे ईरान से हुए परमाणु करार को एकतरफा रद््द करने की बात कर रहे हैं। यही कारण है कि चाबहार खोलने का मतलब यह नहीं है कि ईरान भारत के प्रति खासा उदार हो गया है। ईरान भारत से अपनेसंबंधों को व्यावहारिकता के आधार पर तय करेगा। ईरान की व्यावहारिक कूटनीति ने उसे इराक, सीरिया और लेबनान में मजबूत किया। कतर जैसा सुन्नी देश सऊदी अरब से विद्रोह कर ईरान से संबंध बढ़ाने को तरजीह दे रहा है।
भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के चतुर्भुज गठबंधन पर ईरान की नजर है। ईरान खुले पर तौर पर भारत-अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है, लेकिन व्यवहार में वह भारत को समय-समय पर झटका देने में संकोच नहीं करता। ईरान ने फरजाद बी गैस क्षेत्र से गैस निकालने का अधिकार भारतीय कंपनी ओएनजीसी-विदेश को देने के बजाय एक रूसी कंपनी को दे दिया। कूटनीति के जानकारों के अनुसार भारत को ईरान ने जानबूझ कर झटका दिया। जबकि ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने इस गैस क्षेत्र में दिलचस्पी दिखाई थी।
गौरतलब है कि इस गैस क्षेत्र की खोज भारतीय कंपनी ने की थी। ईरान ने भारत को झटका देते हुए तर्क दिया कि गैस क्षेत्र की खोज और अनुसंधान तक का अधिकार भारतीय कंपनी के पास है। इसलिए गैस निकालने का काम वह रूसी कंपनी को दे रहा हैं। हालांकि भारत ने इस गैस क्षेत्र में 11 अरब डॉलर के निवेश का प्रस्ताव दिया था। यही नहीं, भारत-अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों के मद््देनजर ईरान ने भारत को तेल सौदों में दी गई कुछ छूट भी वापस ले ली थी।
दक्षिण पूर्व एशिया में अमेरिका के साथ अहम सहयोगी की भूमिका निभा रहे भारत को रूस-ईरान गठजोड़ पर ध्यान रखना होगा। क्योंकि ईरान की नाराजगी भारत की परेशानी का सबब बन जाएगी। अफगानिस्तान से लेकर मध्य एशिया तक के व्यापारिक रास्ते भारत के लिए ईरान ही खोल सकता है। पाकिस्तान भारत के लिए अफगानिस्तान का रास्ता आज भी खोलने को तैयार नहीं है। वैसे में भारत के लिए चाबहार के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं है। भारत को यह सावधानी बरतनी होगी कि यहां चीन और पाकिस्तान घुसपैठ करने को तैयार हैं।
अगर मध्य एशिया और पश्चिम एशिया में भारत को अपने महत्त्व को बनाए रखना है तो ईरान से संबंध मधुर रखने ही होंगे। सऊदी अरब के तमाम अहसानों के बावजूद पाकिस्तान ईरान से संबंध खराब करने को तैयार नहीं है। पाकिस्तान ईरान के महत्त्व को समझता है। पाकिस्तान की एक बड़ी सीमा ईरान से लगती है। पाकिस्तान अच्छी तरह जानता है कि इस समय अफगान-तालिबान के कमांडरों की ईरान में काफी घुसपैठ है। अफगान-तालिबान के नेता ईरान के संपर्क में है। इसका खुलासा अमेरिकी मीडिया ने भी किया है।
चीन की चिंता अलग है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में है, जिसकी सीमा ईरान के साथ लगती है। ग्वादर बंदरगाह भी बलूचिस्तान में स्थित है। ईरान से खराब संबंध सीधे चीनी निवेश को प्रभावित करेगा। बलूच विद्रोही पहले ही चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का विरोध कर रहे हैं। यही कारण है कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ सऊदी अरब के नेतृत्व में बने 41 देशों के संयुक्त सैन्य गठबंधन में शामिल होने के बावजूद ईरान से अपने संबंधों को मधुर बनाए हुए है। इस गठबंधन में सीरिया, ईरान और इराक नहीं हैं। ईरान इस गठबंधन का घोर विरोधी है।
अफगानिस्तान भी ईरान की बढ़ती ताकत को समझ रहा है। अफगानिस्तान को पता है कि ईरान शुरू से ही उसके आंतरिक मामलों में दखल देता रहा है। क्वेटा-कंधार-अश्काबाद आर्थिक गलियारा जो पाकिस्तान से अफगानिस्तान के रास्ते तुर्कमेनिस्तान जाता है, उस पर ईरान की नजर काफी समय से है। यह आर्थिक गलियारा ईरान की सीमा से लगते हुए तुर्कमेनिस्तान को जाता है। इस गलियारे पर कब्जा करने की कोशिश पाकिस्तान ने भी की, लेकिन ईरान ने उसे सफल नहीं होने दिया। ईरान समय-समय पर इस गलियारे पर नियंत्रण के लिए स्थानीय अफगान आबादी, तालिबान और अन्य गुटों को आर्थिक और सैन्य मदद देता रहा है। अफगानिस्तान में इस समय ईरान फिर सक्रिय है। हाल ही में पश्चिमी मीडिया में इस तरह की खबरें आई हैं।
खबरों के मुताबिक अफगान-तालिबान के लड़ाके ईरानी सेना से प्रशिक्षण ले रहे हैं। वे क्वेटा से सीधे ईरान की सीमा में जाते हैं। उन्हें आर्थिक मदद भी मिलती है। अफगानिस्तान के फरह में नाटो सेना और तालिबान की लड़ाई में मारे गए तालिबानी लड़ाकों के बीच कुछ ईरानी सैनिकों के शव भी मिले। खबरों के मुताबिक अफगानिस्तान के हेलमंड, कंधार, हेरात प्रांतों में ईरानी सैनिक सीधे हस्तक्षेप कर रहे हैं। इसके बावजूद अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घनी ईरान से अच्छे संबंधों की वकालत कर रहे हैं, क्योंकि अफगानिस्तान को बाहरी दुनिया से व्यापारिक पहुंच के लिए चाबहार बंदरगाह की जरूरत है। अफगान-पाक संबंध इस कदर खराब है कि पाकिस्तान अफगान सीमा की बाड़बंदी में लग गया है।

No comments:

Post a Comment

Featured post

UKPCS2012 FINAL RESULT SAMVEG IAS DEHRADUN

    Heartfelt congratulations to all my dear student .this was outstanding performance .this was possible due to ...