उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों के लिए खबर...
राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिए जाने संबंधी शासनादेश को उत्तराखंड सरकार वापस लेने जा रही है।अपर महाधिवक्ता ने इस संबंध में हाईकोर्ट को अवगत कराया है। हाईकोर्ट ने इस संबंध में शासनादेश वापस लेने संबंधी दस्तावेज दाखिल करने के लिए 24 जुलाई की तिथि नियत की है।
न्यायमूर्ति आलोक सिंह व सर्वेश कुमार गुप्ता की संयुक्त खंडपीठ के समक्ष सोमवार को मामले की सुनवाई हुई। देहरादून निवासी मनोज चौधरी व अन्य ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा कि सरकार की ओर से राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में दस प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का प्रावधान किया गया है, जिसके लिए शासनादेश भी जारी किया गया है।
याचिकाकर्ताओं ने शासनादेश को चुनौती देते हुए कहा गया था कि यह जीओ संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत है। इस पर अपर महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट को अवगत कराया कि इस संबंध में जारी शासनादेश को वापस लेने के लिए सरकार विचार कर रही है।
पक्षों की सुनवाई के बाद अपर महाधिवक्ता की ओर से दिए गए बयानों के आधार पर अगली सुनवाई के लिए 24 जुलाई की तिथि नियत की है।
राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियों में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने के सरकार के फैसले पर हाईकोर्ट ने 26 सितंबर 2013 में रोक लगा दी थी। इसके बाद यह मामला सर्वोच्च न्यायालय व उच्च न्यायालय नैनीताल के बीच झूलता रहा।
राज्य में रही सरकारों ने इस मामले को लेकर ईमानदारी नहीं बरती। सरकार ने आरक्षण दिया तो उसने नियमों में ईमानदारी नहीं बरती, इसलिए न्यायालयों में आदेश गिरते रहे।
सबसे पहले नारायण दत्त तिवारी और इसके बाद बीसी खंडूड़ी सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों के लिए दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण की व्यवस्था की थी। क्षैतिज आरक्षण किसी वर्ग विशेष के लिए तय आरक्षण कोटे का हिस्सा होने के बजाय सामान्य सीटों में से लिया जाता है।
जब सरकार ने आदेश जारी किया तो मामला हाईकोर्ट पहुंच गया। हाईकोर्ट ने कई बार सरकार को इस आरक्षण का आधार बताने को कहा, लेकिन लचर पैरवी ने इस मामले में सरकार की खूब फजीहत कराई और मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने सरकार का आरक्षण का आदेश निरस्त कर दिया।
http://dehradun.amarujala.com/feature/politics-dun/no-job-reservation-for-uttarakhand-state-activists-hindi-news/
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