आधुनिकीकरण और अंधाधुंध विकास का सबसे बुरा प्रभाव मानवीय स्वास्थ्य पर पड़ा है, विशेषकर मानसिक स्वास्थ्य पर। आधुनिक युग की नवीन जीवन-शैली ने मानव मस्तिष्क को‘तनाव’ एवं ‘अवसाद’ का घर बना दिया है। कई बार अत्यधिक तनाव एवं अवसाद के परिणामस्वरूप व्यक्ति ‘आत्महत्या’ (Sucide) जैसे आत्मघाती कदम उठा लेता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन(World Health Organization -WHO) के अनुसार ‘अवसाद’ (Depression) जैसी मानसिक बीमारी विश्व में आत्महत्या की सबसे बड़ी कारक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकडों के अनुसार वर्ष 2012 में संपूर्ण विश्व में लगभग 8,04,000 आत्महत्या के मामले सामने आए थे जिनमें से 2,58,000 आत्महत्याओं के पीछे प्रमुख कारक ‘अवसाद’ था। इसी परिप्रेक्ष्य में 10 अक्टूबर, 2014 को भारत के तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के द्वारा देश की प्रथम ‘मानसिक स्वास्थ्य नीति’ (Mental Health Policy) का शुभारंभ किया गया।
- 10 अक्टूबर को मानसिक स्वास्थ्य नीति के शुभारंभ के साथ ही आगे से प्रत्येक वर्ष 10 अक्टूबर का दिन ‘राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य दिवस’ (National Mental Health Day) के रूप में संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाएगा।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति के ही तहत आगरा के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान और अस्पताल के आधुनिकीकरण और विस्तार का प्रस्ताव है।
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति ‘मानसिक स्वास्थ्य कार्य-योजना 365’ (Mental Health Action Plan 365) द्वारा समर्थित है। इसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों एवं सिविल सोसायटी संगठनों द्वारा अदा की जाने वाली विशेष भूमिकाओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है।
- इस नीति के शुभारंभ के अवसर पर तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन द्वारा दो पुस्तिकाओं ‘सामान्य प्रैक्टिस में अनिवार्य मनोचिकित्सा का मॉड्यूल’(A Training Module of Essential Psychiatry in General Practice) और ‘सामान्य प्रैक्टिस में मनोचिकित्सा के लिए पथप्रदर्शक’ (A Guide to Psychiatry in General Practice) का विमोचन भी किया गया।
- मानसिक रूप से बीमार लोगों की देखभाल के लिए बनाए गए पूर्व कानून जैसे-भारतीय पागलखाना अधिनियम, 1858 (Indian Lunatic Asylum Act, 1858) और भारतीय पागलपन अधिनियम, 1912 (Indian Lunacy Act,1912) में मानवाधिकार के पहलू की उपेक्षा की गई थी और केवल पागलखाने में भर्ती मरीजों पर ही विचार किया जाता था, सामान्य मनोरोगियों पर नहीं।
- स्वतंत्रता के पश्चात भारत में‘मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987’ (Mental Health Act, 1987) अस्तित्व में आया, परंतु इस अधिनियम में कई खामियां होने के कारण इसे कभी भी किसी राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश में लागू नहीं किया गया।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के‘मानसिक स्वास्थ्य एटलस, 2011’ (Mental Health Atlas of 2011) के अनुसार भारत अपने संपूर्ण स्वास्थ्य बजट का मात्र .06 प्रतिशत ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करता है जबकि जापान और इंग्लैंड में यह प्रतिशत क्रमशः 4.94 और 10.84 है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूर्वानुमान लगाया है कि वर्ष 2020 तक भारत की लगभग 20 प्रतिशत जनसंख्या (लगभग 30 करोड़ लोग) किसी न किसी प्रकार की मानसिक अस्वस्थता से पीड़ित होगी। वर्तमान में भारत में मात्र 3500 मनोचिकित्सक हैं, अतः सरकार को अगले दशक में इस अंतराल को काफी हद तक कम करने की समस्या से जूझना होगा।
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