उच्चतम न्यायालय और देश के विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए संविधान के अनुच्छेद 124(2) और 217 के निर्वचन पर आधारित ‘कॉलेजियम’ व्यवस्था की जगह अब ‘न्यायिक नियुक्ति आयोग’ का गठन किया जाएगा। इस व्यवस्था को स्थापित करने के लिए संसद ने संविधान संशोधन (121वां) विधेयक, 2014 के साथ-साथ न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक, 2014 को भी पारित कर दिया है, किंतु संविधानिक व्यवस्था के अंतर्गत इन दोनों विधेयकों पर अभी कम से कम देश के आधे राज्यों की विधान सभाओं का अनुसमर्थन आवश्यक होने के कारण इस पर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर नहीं हो सका है।
- संविधान संशोधन (121वां) विधेयक, 2014 को विधेयक संख्या 97, वर्ष 2014 के रूप में 11 अगस्त, 2014 को लोक सभा में प्रस्तुत किया गया था, किंतु इसमें कुछ संशोधन किए जाने के कारण इसे 13 अगस्त, 2014 को विधेयक संख्या 97-C के रूप में पारित किया गया।
- विधेयक को 13 अगस्त, 2014 को ही राज्य सभा में पेश किया गया और 14 अगस्त, 2014 को इसे राज्य सभा से पारित किया गया।
- इस विधेयक पर राज्यों का अनुसमर्थन प्राप्त करने हेतु इस समय यह संविधानिक प्रक्रिया में है।
- इस विधेयक के द्वारा संविधान से संबंधित अनेक अनुच्छेदों में संशोधन के अलावा तीन नए अनुच्छेद 124 क, 124 ख और 124 ग जोड़े गए हैं।
- उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति स्वयं राष्ट्रपति के द्वारा अनुच्छेद 124(2) के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से ‘परामर्श’ के बाद की जाती थी जिन्हें राष्ट्रपति आवश्यक समझता था, किंतु इस संविधान संशोधन के बाद यह ‘परामर्श’ अर्थात ‘सिफारिश’ अब ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ से ली जाएगी।
- इसी परामर्श शब्द की व्याख्या करते हुए उच्चतम न्यायालय ने सर्वप्रथम सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1993) के मामले में ‘कॉलेजियम’ (मुख्य न्यायाधीश एवं चार अन्य न्यायाधीशों की समिति) व्यवस्था स्थापित करके निर्णीत किया था कि उच्चतम और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति संबंधी परामर्श इसी समिति के द्वारा दिया जाएगा।
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना के लिए संविधान में नया अनुच्छेद 124 क जोड़ा गया है। आयोग का अध्यक्ष भारत का मुख्य न्यायाधीश होगा। इसके अलावा उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीश, विधि और न्याय मंत्री तथा दो प्रबुद्ध व्यक्ति (जो प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, लोक सभा में विपक्ष के नेता या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता से मिलकर गठित समिति के द्वारा नामित किए जाएंगे) इसके सदस्य होंगे। इस प्रकार यह आयोग 6 सदस्यीय होगा।
- आयोग में प्रबुद्ध व्यक्तियों की नियुक्ति केवल 3 वर्ष के लिए की जाएगी जबकि शेष सदस्य पदेन अर्थात अपने-अपने कार्यकाल की अवधि तक आयोग के सदस्य बने रहेंगे।
- दो प्रबुद्ध व्यक्तियों में से एक पद अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक वर्ग या महिला वर्ग के लिए आरक्षित होगा, जिसका नियमन अलग से नियमावली के द्वारा किया जाएगा।
- प्रबुद्ध व्यक्तियों को दोबारा सदस्य के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
- नए अनुच्छेद 124 ख में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के कृत्यों का उल्लेख किया गया है। इसमें इसके निम्नलिखित तीन मुख्य कार्य निर्धारित किए गए हैं-
(i) भारत के मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश करना;
(ii) उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरण करने का कार्य; तथा
(iii) यह सुनिश्चित करना कि सिफारिश किए गए व्यक्ति सक्षम और योग्य हैं।
- तीसरा अनुच्छेद 124 ग को जोड़कर न्यायिक नियुक्ति से संबंधित किसी या सभी प्रकार के कानून बनाने की शक्ति संसद को प्रदान की गई है। इसी अनुच्छेद द्वारा प्रदत्त शक्ति के प्रयोग में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक, 2014 भी पारित किया गया है और इसके अंतर्गत नियमावली का निर्माण किया जा रहा है।
- उपर्युक्त के अलावा अनुच्छेद 127, 128, 217, 222, 224, 224A एवं 231 में जहां कहीं भी न्यायिक नियुक्तियों के मामले में मुख्य न्यायाधीश से ‘परामर्श’ लिए जाने की संविधानिक व्यवस्था थी, अब इस संशोधन विधेयक द्वारा उसके स्थान पर ‘राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग’ शब्द रख दिए गए हैं अर्थात अब इस संबंध में देश के मुख्य न्यायाधीश या राज्यों के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश से ऐसी नियुक्ति में ‘परामर्श’ लेने की संविधानिक व्यवस्था हमेशा के लिए समाप्त कर दी गई है।
- इसके पूर्व राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन के लिए संविधान संशोधन (120वां) विधेयक, 2013 को राज्य सभा से 6 सितंबर, 2013 को पारित कराया गया था किंतु इसके कुछ प्रावधानों पर विवाद होने के कारण इसे लोक सभा से पारित कराने के पूर्व संसदीय समिति को भेज दिया गया था।
- वर्तमान संविधान संशोधन (121वां) विधेयक, 2014 (विधेयक संख्या 97, वर्ष 2014) संसदीय समिति की सिफारिशों पर ही आधारित था।
- इस विधेयक को सदन में प्रस्तुत किए जाने के क्रम में 121वां क्रम होने के कारण इसे 121वां संविधान संशोधन विधेयक, 2014 कहा गया है किंतु वास्तविक संविधान संशोधन के अनुक्रम में इसका क्रम 99वां होगा। अतः अधिनियम बनने के बाद इस संविधान संशोधन को 99वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2014 कहा जाएगा।
- इसके पूर्व अभी तक संविधान में 98 संशोधन हो चुके हैं।
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