| डॉ. अविनाश जी, डॉ. मारकंडे जी और उपस्थित सभी महानुभाव। आज उपस्थित सभी जिन महानुभावों को सम्माीनित करने का मुझे सौभाग्य मिला है, उन सब का मैं हृदय से अभिनंदन करता हूं, बधाई देता हूं। उनका क्षेत्र ऐसा है कि वे न तो प्रेस कॉन्फ्रे स कर सकते हैं, और न ही दुनिया को यह बता सकते हैं कि वे क्याम रिसर्च कर रहे हैं। और रिसर्च पूरी हो जाने के बाद भी, उन्हेंन दुनिया के सामने अपनी बात खुले रूप से रखने का अधिकार नहीं होता। यह अपने आप में बड़ा कठिन काम है। लेकिन यह तब संभव होता है, जब एक ऋषि-मन इस कार्य से जूझता है। हमारे देश में हजारों सालों पहले वेदों की रचना हुई और यह आज भी मानव जाति को प्रेरणा देते हैं। लेकिन किसको पता है कि वेदों की रचना किसने की? वे ऋषि भी तो वैज्ञानिक थे, वैज्ञानिक तरीके से समाज जीवन का दर्शन करते थे, दिशा देते थे। वैज्ञानिकों का भी वैसा ही योगदान है। वे एक लेबोरेटरी में तपस्या करते हैं। अपने परिवार तक की देखभाल भूल कर अपने आप को समर्पित कर देते हैं। और तब जाकर मानव कल्यातण के लिए कुछ चीज दुनिया के सामने प्रस्तु त होती है। ऐसी तपस्याे करने वाले और देश की ताकत को बढ़ावा देने वाले, मानव की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्पत रखने वाले – ये सभी वैज्ञानिक अभिनंदन के बहुत-बहुत अधिकारी हैं। बहुत तेजी से दुनिया बदल रही है। युद्ध के रूप-रंग बदल चुके हैं, रक्षा और संहार के सभी पैरामीटर बदल चुके हैं। Technology जैसे जीवन के हर क्षेत्र को pre-dominantly drive कर रही है , पूरी तरह जीवन के हर क्षेत्र में बदल रही है - वैसे ही सुरक्षा के क्षेत्र में भी है। और गति इतनी तेज है कि हम एक विषय पर conceptualize करते हैं, तो उससे पहले ही दो-कदम आगे कोई product निकल आता है और हम पीछे-के-पीछे रह जाते हैं। इसलिए भारत के सामने सबसे बड़ा challenge जो मैं देख रहा हूं, वो यह है कि हम समय से पहले काम कैसे करे? अगर दुनिया 2020 में इन आयुद्धों को लेकर आने वाली है, तो क्याि हम 2018 में उसके लिए पूरा प्रबंध करके मैदान में आ सकते हैं? विश्वो में हमारी स्वीयकृति हमारी मांग किसी ने किया इसलिए हम करेंगे उस में नही है, हम visualize करें कि जगत ऐसे जाने वाला है और हम इस प्रकार से चलें, तो हो सकता है कि हम leader बन जाए। और DRDO को स्थिति को respond करना होगा, कि DRDO ने pro-active होकर एजेंडा सेट किया है। हमें ग्लोिबल कम्युपनिटी के लिए एजेंडा सेट करना है। ऐसा नहीं है कि हमारे पास टेलेंट नहीं है, या हमारे पास रिसोर्स नहीं है। लेकिन हमने इस पर ध्या न नहीं दिया है। दूसरा जो मुझे लगता है डीआरडीओ का कंट्रीब्यूंशन कम नहीं है। इसका कंट्रीब्यूयशन बहुत महत्वeपूर्ण है। और इसे जितनी बधाई दी जाए, वह कम है। आज इस क्षेत्र में लगे हुए छोटे-मोटे हर व्य क्ति अभिनंदन के योग्य। है। लेकिन कभी उन्हें वैज्ञानिक तरीके से भी सोचने की आवश्यलकता है। अभी मैं इमरान जी से चर्चा कर रहा था। डीआरडीओ और इससे जुड़े हुए साइंटिस्टोंइ को तो हम सम्माान दे रहे हैं और यह अच्छा भी है, लेकिन मुझे लगता है कि भविष्यस में डीआरडीओ एक दूसरी कैटेगिरी के अवार्ड की व्यहवस्थाज करे, जिसका डीआरडीओ से कोई भी लेना देना नहीं होगा। जिसने डीआरडीओ के साथ कभी काई काम नहीं किया है, लेकिन इस फील्डे में रिसर्च करने में उन्होंेने दूसरे को कॉन्ट्री्ब्यूसशन किया है- प्रोफेसर के रूप में, आईटी के क्षेत्र में। ऐसे लोगों को भी खोजा जाए, परखा जाए तो हमें एक टेलेंट जो डीआरडीओ के पास है उनका भी पूल बनाने की हमें संभावना खोजनी चाहिए। और इसलिए हमें उस दिशा में सोचना चाहिए। तीसरा मेरा एक आग्रह है कि हम कितने ही रिसर्च क्यों न करें। लेकिन आखिरकार चाहे जल सेना हो, थल सेना हो, या नौसेना हो सबसे पहले नाता उसका आता है, क्योंखकि उसी से उसका गुजारा होता है और ऑपरेट भी उसी को करना है। लेकिन सेना के जवान और अफसर रोजमर्रा की उस जिंदगी को जीते हैं। काम करते वक्तल उसके मन में भी बड़े इनोवेटिव आइडियाज आते हैं। जब वो किसी चीज को उपयोग करता है तो उसे लगता है कि इसकी बजाय ऐसा होता तो अच्छाय होता। उसको लगता है कि लेफ्ट साइड दरवाजा खुलता है तो राइट साइड होता तो और अच्छा होता। यह कोई बहुत बड़ा रॉकेट साइंस नहीं होगा। क्याह हम कभी हमारे तीनों बलों को जल सेना, थल सेना और नौसेना उनमें से भी जो आज सेवा में रत है, उनको कहा जाए कि आप में कोई इनोवेटिव आइडिया होंगे तो उनको भी शामिल किया जाएगा। आप जैसे अपना काम करते हैं। जैसे एजुकेशन में बदलाव कैसे आ रहा है। एक टीचर जो अच्छेम प्रयोगकर्ता है, वो आगे चलकर के आइडिया इंस्टीाट्यूशन और वो आगे आने वाली पीढि़यों के लिए काम आता है। वैसे ही सेना में काम करने वाले टेकनिकल पर्सन और सेवा में रत लोग हैं। हो सकता है पहाड़ में चलने वाली गाड़ी रेगिस्ताटन में न चले तो उसके कुछ आइडियाज होंगे। हमें इसको प्रमोट करना चाहिए और एक एक्सकटेंशन डीआरडीओ टाइप हमें इवोल्वय करना चाहिए। अगर यह हम इवोल्व़ करते हैं तो हमारे तीनों क्षेत्रों में काम करने वाले इस प्रकार के टेलेंट वाले जो फौजी है। अफसर है मैं मानता हूं, वे हमें ज्यातदा प्रेक्टिकल सोल्यूइशन दे सकते हैं या हमें वो स्पेैसिफिक रिसर्च करने के लिए वो आइडिया दे सकते हैं कि इस समस्याक का समाधान डीआरडीओ कर सकता है। उस पर हमें सोचना चाहिए। चौथा, जो मुझे लगता है कि हम डीआडीओ के माध्याम से समाज में किस प्रकार, जैसे हमने इतने साइंटिस्टोंस का सम्मा न किया। क्याा हम देशभर में से इस क्षेत्र में रूचि रखने वाली अच्छीै युनिवर्सिटी हो उनकी पहचान करें और एक साल के लिए विशेष रूप से इन साइंटिस्टों को उन विश्व विद्यालयों के साथ अटैच करें। उन विश्वटविद्यालयों के छात्रों के साथ के डायलॉग हों, मिलना-जुलना हो। दो चार यूनिवर्सिटी हो जाएं उनमें डायलॉग हों, उनके लिए साइंटिस्ट् बहुत बड़ा इन्सलप्रेशन बन जाएगा। जो सोचता था मैं अपना करियर यह बनाऊंगा। उसमें अपना जीवन खपा दिया। मैं भी अपने आप को खपा दूं। पर हो सकता है वो देश को कुछ देकर जाए। यह जो हमारा काम है संस्काकर-संक्रमण का एक जनरेशन से दूसरी जनरेशन। हमारी यह समर्थकों कैसे परप्लेसट भी करे और डेवलप भी करे और यह काम जब तक हम मैकेनिज्मस नहीं बनाएंगे यूनिवर्सिटी में हम कन्वो केशन में किसी साइंटिस्टे को बुला लेंगे। लेकिन हम उनके टेलेंट और उनकी तपश्चिर्या और उनके योगदान को किस प्रकार से उनके साथ जोड़ें कि हो सकता है वो आपके बहुत काम आएगा। क्याे इन साइंटिस्टों को सिविल के साथ इन्टकरेक्शोन करने का मौका मिलता है, क्यों्कि इतने लोगों ने रिसर्च की है। सेना के जवान को मिलने से रक्षा का विश्वानस पैदा होता है। क्यास कभी सेना के जवान ने उस ऋषि को देखा है, जिसने उसकी रक्षा के लिए 15 साल लेबोरिटी में जिदंगी गुजारी है। जिस दिन सेना में काम करने वाला व्यसक्ति उस ऋषि को और उस साइंटिस्ट् को देखेगा, आप कल्पदना कर सकते हैं और इसलिए हमारी पूरी व्य वस्थाट इस अंधेरे से बाहर निकल करके जिस में ह्यूमन टच हो, एक इन्समप्रेशन हो, उस दिशा में कैसे ले जा सके। अगर उस विषय को मैं मानता हूं कि अभी जिन लोगों का सम्मा न हुआ, उनकी स्पेशशिलिटी और उसका इस्ते माल करने वाले इंटररेक्शनन करके देंखे। आपको अनुभव होगा कि इस फंक्शकन से भी उसका इंप्रेशन हाई हो जाएगा कि वो काम करने वाले को भी प्रेरणा देगा और जिसने उनके लिए काम किया है उसका भी इन्साप्रेशन हाई हो जाएगा। उसी प्रकार से डीआरडीओ को अपना लेयर बढ़ाना चाहिए। ऐसा हो सकता है क्यों कि इसमें मेरा ज्यासदा अध्यकयन नहीं है एक तो है हाईटेक की तरफ जाना और बहुत बड़ा नया इनोवेशन करना है लेकिन एट द सेम टाइम रोजमर्रा की जिदंगी जीने वाला जो हमारा फौजी है, उसकी लाइफ में कम्फ र्ट आए। ऐसे साधनों की खोज उसका निर्माण यह एक ऐसा अवसर है। आज उसका वाटर बैग तीन सौ ग्राम का है तो वो डेढ सौ ग्राम का ऐसा बैग होने, आज उसके जूते कितने वेट के हैं। पहाड़ों में एक तकलीफ रहती है, रेगिस्ता न में दूसरी तकलीफ होती है। इसमें भी बहुत रिसर्च करना है। क्यार कभी जूते बनाने वाली कंपनी और डीआरडीओ के साथ इनका भी कभी इन्ट रफेस होता है। क्या ये रिसर्च करके देते हैं। ये लोग डीआरडीओ को एक लैब से बाहर निकल करके और जो उनकी रोजमर्रा की जिदंगी है। अब देखिए हम इतने इनोवेशन के साथ लोग आएंगे, इतनी नई चीजें देंगे। जो हमारी समय की सेना के जवानों के लिए बहुत ही कम्फ र्टेबल व्यीवस्थाे उपलब्ध करा सकते हैं। बहुत लाभ कर सकता है। इस दिशा में क्यार कुछ सोचा जा सकता है। एक और विषय मेरे मन में आता है कि आज डीआरडीओ के साथ करीब 50 लेबोरेट्री भिन्नआ- भिन्ना क्षेत्रों में काम कर रही है। क्या हम एक काम कर सकते हैं कि मल्टीस टैलेंट का उपयोग करने वाली पांच लैब हम ढूंढे और खुली हवा में डिसीजन लें कि पांच लेयर ऐसी होंगी, जिसमें नीचे से ऊपर एक भी व्यखक्ति 35 साल से ऊपर की उम्र का नहीं होगा सब के सब बिलो 35 होंगे। अल्टीकमेट डिसिजन लेने वाले भी 35 ईयर से नीचे के होंगे। यह कार्य हिम्म5त के साथ हिन्दुकस्तान की यंगेस्टव टीम होगी और उनको अवसर दें। दुनिया वाले देखेंगे कि मैं विश्वा5स के साथ कहता हूं कि देश के टेलेंट में दम है, जो हमें बहुत कुछ नई चीजें दे सकता है। अब साईबर सिक्योूरिटी की बहुत बड़ी लड़ाई हैं। मैं मानता हूं कि 20-25 साल का नौजवान बहुत अच्छे ढंग से यह करके दे देगा। क्योंहकि उसका विकास इस दिशा में हुआ है क्योंयकि ये चीजें उसके ध्या न में आतीं हैं। यहां हम पांच लेयर टोटली डेडिकेटिड टू 35 ईयर्स। डिसिजन मैकिंग प्रोसेस आखिर तक 35 से नीचे के लोगों के हाथों में दे दी जाए। हम रिस्क ले लेंगे हमने बहुत रिस्के लिए हैं। एक रिस्क और लेंगे। आप देखिए एक नई हवा की जरूरत है। एक फ्रेश एयर की जरूरत है। अब फ्रेश एयर आएगी। हमें लाभ होगा। डिफेंस सिक्यो रिटी को लेकर हमे सामान्यय स्टु डेंट्स को भी तैयार करना चाहिए। क्याो कभी हमने सरकार के द्वारा, स्कूहलों के द्वारा साइंस को बढ़ाया है। क्या कभी उनको कहा है कि यह साइंस फोर 2015 विद डेलीकेटिड टू डिफेंस रिलेटिड इशूज। हम योजना खोजेगे नहीं टीचर इन्ट्रे स्टा लेग, इशूज पर स्टिडीज होगा, प्रोजैक्टक रिपोर्ट बनेंगे। हमारे स्टूेडेंस को रिपोर्ट करनी होगी। टेक्नो लॉजी एक बहुत बड़ा काम है। डिफेंस रिसर्च एक बड़ा काम है। उसके सोचने की खिड़की खुल जाएगी। हो सकता है दो चार लोग ऐसे निकल आएं जिनको काम सौंपा जाए और जिनको विशेष कैटेगिरी माने। हमें देखना है कि आजकल टेक्निकल यूनिवर्सिटीज की ग्लोशबल रॉबोट ओलंपिक होता है। क्याड हम उसको स्पेजशली डीआरडीओ से लिंक करके ये दोनों टोटली डेलिकेडिड टू डिफेंस। अब ये देखिए जो ये नौजवान है रॉबोर्ट के द्वारा फुटबाल खेलते हैं रॉबोर्ट के द्वारा क्रकिेट खेलते हैं। हम देखते हैं कि प्लीॉज स्टे्प अहेड, प्ली ज स्टेेप अहेड। ये चीजें हम कर सकते हैं क्या । एक नये तरीके से एक नई सोच के साथ वहां सभी लोगों को जोड़ पूरी व्यीवस्थाट को विकसित करना होगा। यह समय की मांग है। दुनिया हमारा इंतजार नहीं करेंगी। हमे सोचना होगा कि जो कुछ भी करें तत्काील करे। दुनिया बहुत आगे बढ़ जाएगी। डीआरडीओ के कुछ लोगों से मुझे मिलने का अवसर मिला है, उन्होंुने इतना उत्तम काम किया है। लोग कहते हैं- मोदी जी आपकी सरकार से हमें अपेक्षाएं बहुत हैं। जो करेगा, उसी से अपेक्षा होती है। जो नहीं करेगा- उससे क्याव अपेक्षा। डीआरडीओ से भी मेरी बहुत अपेक्षा है। डीआरडीओ में सामर्थ्यर है। फिर एक बार देश के वैज्ञानिकों को उत्तडम कार्य करने के लिए बधाई देता हूं। |
Read,Write & Revise.Minimum reading & maximum learning
21 August 2014
Full Text of Prime Minister Shri Narendra Modi's address at the DRDO Awards Ceremony
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Featured post
UKPCS2012 FINAL RESULT SAMVEG IAS DEHRADUN
Heartfelt congratulations to all my dear student .this was outstanding performance .this was possible due to ...
-
प्रदेश में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए Single-Window System लागू किया गया है। पूंजी निवेश को आकर्षित करने एवं इसे और कारगर बना...
-
Building on India’s family planning success Empowering women to make reproductive choices is the best way to address fertility, and its as...
-
Sure PV Sindhu and Sameer Verma would have preferred to become first Indians to win both men’s and women’s Super Series titles since Saina ...
-
For the first time, India will allow nearly 15% of universities to offer online degrees allowing students and executives to learn anywhere...
-
Uttarakhand (UK) Forest Ranger Officer (FRO) exam 2016 Paper and solution by SAMVEG IAS Dear candidate we have provided solutio...
-
Missing the grass for the trees in Western Ghats Drastic decline in shola grasslands in Palani Hill range Timber plantations, expanding...
-
उपस्थित सभी महानुभाव, मैं पीयूष जी और उनकी टीम को बधाई देता हूं कि उन्हों।ने बहुत बड़े पैमाने पर आगे बढ़ने के लिए निर्णय किया है और उसी क...
-
As per Sample Registration System (SRS), 2013 reports published by Registrar General of India the Infant Mortality Rate (IMR) of India ...
-
14th #FinanceCommission (FFC) Report Tabled in Parliament; FFC Recommends by Majority Decision that the States’ Share in the Net Proceeds ...
-
Fifty years of shared space In October 1967, as the heat of the Cold War radiated worldwide, the Outer Space Treaty came into f...
No comments:
Post a Comment