18 December 2014

Soft targets, hard questions

The world saw terrorism’s darkest face on Tuesday. The cold-blooded killing of 132 students and nine staff members in a school in Peshawar has left the entire world shaken at the terrorists’ determination to find ever softer targets and notch up higher levels of brutality. There could not have been a more vulnerable place than a school, or more defenceless targets than children. Yet, even in a place used to terrorist acts, even after the Taliban targeted a 15-year-old girl called Malala Yusufzai two years ago, if parents continued to send their children to school, it was because they thought terrorism had already plumbed such depths that nothing worse could happen. They were proved tragically wrong. Going by the accounts of those who were inside and fortunate to live to tell the tale, the six men who entered the school were merciless, going from classroom to classroom hunting for those still alive. The Tehreek-e-Taliban Pakistan have claimed responsibility for the act, describing it as revenge for the Pakistan Army operation against them in North Waziristan and other parts of the north-western frontier region. The bombing campaigns by the Pakistan military in those regions had claimed civilian lives, and the Taliban have said they carried out the school bloodbath because they want the Army to feel the same pain. The Pakistani Taliban are evidently hoping to bring public pressure on the Army to call off operation Zarb-e-Azb entirely.
Pakistan’s response to this outrage will be crucial to its own future, and to the peace and stability of the region. After an all-party meeting, Prime Minister Nawaz Sharif said that the military operation would go on until the last terrorist was eliminated. Army chief General Raheel Sharif has also stood firm. But it will take more than a drive against a select group of militants to root out terrorism. Decades of active encouragement by the Pakistani state and its security establishment to terrorism aimed at Afghanistan and India have engendered a high level of tolerance within sections of the Pakistani military, polity and society for such non-state actors. Only those with blinkers would believe that there are “good” and “bad” Taliban, that it is all right for the Lashkar-e-Taiba to run free and recruit for jihadi missions in India but it is unacceptable for Taliban to strike inside Pakistan. Lifting a moratorium on hangings, as Prime Minister Sharif has announced, is not going to stop terrorists. Unless the change comes in what Pakistan describes as its “national ideology”, in effect a fusion of religion with national security, militancy will continue to haunt the country. The widespread revulsion over the school massacre provides an opportunity to craft a new ideology that does not confuse terrorists with instruments of national security.

वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट, 2014

  • 28 अक्टूबर, 2014 को विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट (Global Gender Gap Report) 2014 जारी की गई।
  • इस रिपोर्ट में प्रस्तुत लैंगिक अंतराल सूचकांक (GGI-Gender Gap Index) में इस वर्ष 142 देशों को सूचीबद्ध किया गया है, जबकि गतवर्ष (2013 में) इसमें शामिल देशों की संख्या 136 थी।
  • लैंगिक अंतराल सूचकांक (GGI) 2014 में शामिल 142 देशों में भारत को 0.6455 स्कोर के साथ 114 वां स्थान प्राप्त हुआ है, जबकि गतवर्ष (2013) में यह 136 देशों में 101 वें स्थान पर था।
  • लैंगिक अंतराल सूचकांक (GGI), 2014 में शीर्ष 4 स्थानों पर नार्डिक (Nordic) देश हैं जिनका क्रम इस प्रकार है-1. आइसलैंड (स्कोर-0.8594), 2. फिनलैंड (स्कोर-0.8453), 3. नॉर्वे (स्कोर-0.8374) 4. स्वीडन (स्कोर-0.8165)।
  • पांचवां स्थान डेनमार्क (स्कोर-0.8025) को प्राप्त हुआ है।
  • इस सूचकांक में निचले पांच स्थान प्राप्त करने वाले देश क्रमशः हैं-
    142. यमन (स्कोर-0.5145), 141. पाकिस्तान (स्कोर-0.5522), 140. चाड (स्कोर-0.5764), 139. सीरिया (स्कोर-0.5775), 138. माली (स्कोर-0.5779।
  • ब्रिक्स (BRICS) समूह के देशों के संदर्भ में भारत सबसे निचले स्थान पर है।
  • वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक पहली बार वर्ष 2006 में विश्व आर्थिक मंच (WEF) द्वारा प्रस्तुत की गई थी।

वैश्विक आतंकवाद सूचकांक-2014

  • 18 नवंबर, 2014 को ‘इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस’ (IEP) द्वारा वैश्विक आतंकवाद सूचकांक-2014 (Global Terrorism Index-2014) जारी किया गया।
  • वैश्विक आंतकवाद सूचकांक ऎसा पहला सूचकांक है जिसने व्यवस्थित रुप से आतंकवाद के प्रभाव के अनुसार 162 देशों को रैंक प्रदान किया है।
  • आतंकवाद से सबसे अधिक प्रभावित देशों के इस सूचकांक में ईराक (स्कोर-10) लगातार दूसरी बार शीर्ष पर है।
  • इस सूचकांक में अफगानिस्तान दूसरे (स्कोर-9.39), पाकिस्तान तीसरे (स्कोर-9.37), नाइजीरिया चौथे (स्कोर-8.58) स्थान पर हैं।
  • वैश्विक आतंकवाद सूचकांक-2014 (GTI-2014) में शामिल 162 देशों में भारत को 7.86 स्कोर के साथ छठवां स्थान प्राप्त हुआ है। जबकि GTI- 2012 में यह 158 देशों में चौथे स्थान पर था।
  • वैश्विक आतंकवाद सूचकांक-2014 के अनुसार, भारत में वर्ष 2012 से 2013 के दौरान आतंकवादी घटनाओं में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
  • GTI आतंकवाद के प्रभाव को मापने के लिये चार प्रकार के संकेतकों का उपयोग करता है- आतंकवादी घटनाओं की संख्या, मौतों की संख्या, हताहतों की संख्या और संपत्ति के नुकसान का स्तर।
  • GTI के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में 17,958 लोग वर्ष 2013 में आतंकवादी घटनाओं में मारे गये।
  • वर्ष 2013 में आतंकवादी घटनाओं में मारे गये 82% लोग इराक, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, नाइजीरिया और सीरिया से हैं।
  • ध्यातव्य है कि पहली बार वैश्विक आतंकवाद सूचकांक 4 दिसंबर, 2012 को जारी किया गया था।

भ्रष्टाचार बोध सूचकांक-2014

  • ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल द्वारा 3 दिसंबर, 2014 को 20वां वार्षिक भ्रष्टाचार बोध सूचकांक (CPI-2014) जारी किया गया।
  • इस सूचकांक में इस वर्ष कुल 175 देशों/टेरिटरीज को रैंकिंग प्रदान की गई है।
  • यह सूचकांक 0 से 100 अंकों तक विस्तारित है जिसमें 0 का अर्थ है सर्वाधिक भ्रष्ट (Highly Corrupt) तथा 100 का अर्थ सर्वाधिक ईमानदार (Very Clean)।
  • इस सूचकांक में इस वर्ष डेनमार्क (स्कोर-92) प्रथम स्थान पर है अर्थात ये सर्वाधिक ईमानदार देश के रूप में निर्दिष्ट है।
  • इसके पश्चात न्यूजीलैंड (स्कोर-91), फिनलैंड (स्कोर-89), स्वीडन (स्कोर-87) तथा नार्वे (स्कोर-86) क्रमशः दूसरे, तीसरे, चौथे तथा पांचवे स्थान पर हैं।
  • इस सूचकांक में सोमालिया एवं उत्तर कोरिया (प्रत्येक का स्कोर-8) संयुक्त रूप से अंतिम स्थान (174वें) पर हैं अर्थात ये सर्वाधिक भ्रष्ट देश हैं।
  • सूडान (स्कोर-11), अफगानिस्तान (स्कोर-12), दक्षिण सूडान (स्कोर-15) तथा ईराक (स्कोर-16) क्रमशः 173वें, 172वें, 171वें तथा 170वें स्थान पर हैं।
  • CPI-2014 में भारत (स्कोर-38) 85वें स्थान पर है।
  • गत वर्ष (वर्ष 2013) में इस सूची में शामिल 177 देशों में से भारत 36 अंकों के साथ 94वें स्थान पर था।
  • CPI-2014 में शामिल भारत के पड़ोसी देशों में भूटान 30वें (स्कोर-65), चीन 100वें (स्कोर-36), श्रीलंका 85वें (स्कोर-38), नेपाल 126वें (स्कोर-29), पाकिस्तान 126वें (स्कोर-29) तथा बांग्लादेश 145वें (स्कोर-25) स्थान पर है।
  • ज्ञातव्य हो कि भ्रष्टाचार बोध सूचकांक (CPI) वर्ष 1995 से प्रतिवर्ष जारी किया जा रहा है।
  • उल्लेखनीय है कि CPI-2014 में शामिल 175 देशों में दो-तिहाई से अधिक को 50 से कम स्कोर प्राप्त हुए हैं जो कि सार्वजनिक भ्रष्टाचार की व्यापकता को प्रदर्शित करता है।
  • प्रथम बार भ्रष्टाचार बोध सूचकांक 1995 में जारी किया गया था।

जी-20 शिखर सम्मेलन और प्रधानमंत्री की ऑस्ट्रेलिया यात्रा

  • कभी बहिष्कृत नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद अब सर्वत्र निमंत्रित हैं। राष्ट्रों की स्वागताकांक्षा चरमोत्कर्ष पर है। प्रधानमंत्री मोदी ने यात्राएं भी खूब कीं, इतनी कि कांग्रेस ने उन्हें पर्यटक प्रधानमंत्री कहा। यात्राओं के क्रम में प्रधानमंत्री 11 से 20 नवंबर के मध्य म्यांमार, ऑस्ट्रेलिया और फिजी की राजकीय यात्रा पर रहे। प्रथम दो यात्राओं का मुख्य उद्देश्य वैश्विक शिखर सम्मेलनों में प्रतिभाग करना था जबकि फिजी की यात्रा का मुख्य उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों का संवर्द्धन था।
  • अपनी त्रिदेशीय यात्रा के प्रथम चरण में प्रधानमंत्री 11 नवंबर, 2014 को म्यांमार की राजधानी नाय पी ताव (Nay Pyi Taw) पहुंचे। यहां वे 12-13 नवंबर, 2014 को संपन्न 12वें भारत-आसियान शिखर सम्मेलन और 9वें पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन में शामिल हुए।
  • यात्रा के द्वितीय चरण में प्रधानमंत्री 14 से 18 नवंबर के बीच ऑस्ट्रेलिया प्रवास पर रहे जबकि अंतिम चरण में 19 नवंबर को फिजी पहुंचे।
  • प्रस्तुत आलेख जी-20 शिखर सम्मेलन और प्रधानमंत्री की ऑस्ट्रेलिया यात्रा पर केंद्रित है।
यात्रा की पृष्ठभूमि
  • जी-20 शिखर सम्मेलन में प्रतिभाग के लिए जब प्रधानमंत्री ने ऑस्ट्रेलिया की यात्रा की तो यह 1986 के बाद 28 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली ऑस्ट्रेलिया यात्रा थी। इस वर्ष ऑस्ट्रेलिया एवं भारत के प्रधानमंत्रियों की यह दूसरी बैठक हो गई क्योंकि सितंबर माह में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट भारत यात्रा पर आए थे। ऑस्ट्रेलिया यात्रा के बाद प्रधानमंत्री जब 19 नवंबर को फिजी गए तो यह 33 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली फिजी यात्रा थी। इससे पूर्व 1981 में इंदिरा गांधी फिजी की यात्रा करने वाली आखिरी भारतीय प्रधानमंत्री थीं। विगत वर्षों में ऑस्ट्रेलिया में भारतीय मूल के व्यक्तियों की संख्या में खासी वृद्धि हुई है। इस समय यहां इनकी संख्या 450,000 है। गत वर्ष भारत ने पहली बार चीन से आगे बढ़ते हुए ऑस्ट्रेलिया को तकनीकी दृष्टि से सक्षम प्रवासियों के लिहाज से सर्वाधिक योगदान दिया था। बावजूद इसके वस्तुओं के व्यापार में हम पिछड़े हुए हैं। वर्ष 2011-12 में वस्तु व्यापार 17.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर ही रह गया। आर्थिक मोर्चे सहित अन्य द्विपक्षीय संबंधों में संवर्द्धन हेतु जी-20 शिखर सम्मेलन एक अवसर के रूप में उभर कर आया। यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने जी-20 शिखर सम्मेलन में तो भाग लिया ही, साथ ही ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंधों में बेहतरी को भी दिशा दी। न केवल वर्तमान बल्कि ऑस्ट्रेलिया के साथ संबंधों के संवर्द्धन हेतु कुछ भावी कार्यक्रम भी निश्चित किए गए हैं। कुछ प्रस्तावित कदम इस प्रकार हैं-
  • वर्ष 2015 में ऑस्ट्रेलिया में मेक इन इंडिया शो आयोजित किया जाएगा।
  • वर्ष 2015 में प्रथम द्विपक्षीय समुद्री अभ्यास (Maritime Exercises) संपन्न किया जाएगा।
  • वर्ष 2015 में ऑस्ट्रेलिया में भारत-महोत्सव आयोजित करने की योजना बनाई गई है।
  • ऑस्ट्रेलिया ने 2015 से प्रारंभ होने के लिए नई कोलंबो योजना प्रारंभ की है।
  • जनवरी, 2015 में भारत के अनेक शहरों में ‘ऑस्ट्रेलियाई व्यवसाय सप्ताह’ आयोजित किया जाएगा।
  • भारत द्वारा वर्ष 2015 में ऑस्ट्रेलिया में पर्यटन सप्ताह का आयोजन किया जाएगा।
जी-20 शिखर सम्मेलन
  • प्रधानमंत्री ने ऑस्ट्रेलिया एवं फिजी की संसद को भी संबोधित किया। दोनों ही संसदों में संबोधन किसी भारतीय प्रधानमंत्री के लिए पहले थे। एक उल्लेखनीय बात यह है कि फिजी की संसद में प्रधानमंत्री का संबोधन विश्व के किसी नेता का पहला संबोधन था। यात्रा की समाप्ति पर प्रधानमंत्री ने ब्लॉग में लिखा है, ‘‘विश्व नए उत्साह के साथ भारत को देख रहा है। हमें अपने समान मूल्यों एवं लक्ष्यों के प्रति नई प्रतिबद्धता के साथ परस्पर चलना होगा। हम एक साथ भारत और शेष विश्व के लिए बेहतर भविष्य की कथा लिखेंगे।’’
जी-20 : पृष्ठभूमि
  • जी-20 (जी-20 : Group of Twenty) अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं वित्तीय व्यवस्था से संबंधित मामलों पर सहयोग एवं परामर्श का एक महत्त्वपूर्ण अनौपचारिक मंच है। यह वैश्विक आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए विश्व की प्रमुख विकसित तथा उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एक मंच पर एकत्रित करता है। इसमें 19 देश तथा यूरोपीय संघ शामिल हैं। इसमें शामिल सदस्य इस प्रकार हैं-अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, ब्रिटेन, अमेरिका एवं यूरोपीय संघ। जी-20 के ब्रिसबेन शिखर सम्मेलन की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार समूह के सभी सदस्य समग्र रूप से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के करीब 85 प्रतिशत का, 75 प्रतिशत से अधिक वैश्विक व्यापार का तथा दुनिया की दो-तिहाई जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। जी-20 देश विश्व के कुल जीवाश्म ईंधन उत्सर्जनों के 84 प्रतिशत के लिए भी उत्तरदायी हैं। जी-20 की स्थापना पूर्व एशियाई वित्तीय संकट के बाद वर्ष 1999 में हुई। स्थापना के बाद वर्ष 2000 से प्रति वर्ष इसके सदस्य देशों के वित्त मंत्रियों एवं केंद्रीय मंत्रियों के गवर्नरों की बैठक प्रारंभ हुई।
  • वैश्विक आर्थिक एवं वित्तीय संकट के मद्देनजर वर्ष 2008 से जी-20 के राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों की शिखर बैठक प्रारंभ हुई। वर्ष 2010 तक इसे अर्द्धवार्षिक आधार पर आयोजित किया गया, किंतु वर्ष 2011 से इसे प्रति वर्ष आयोजित किया जा रहा है। गत वर्ष (2013 में) इस शिखर सम्मेलन को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में आयोजित किया गया था जबकि इस वर्ष यह सम्मेलन ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन नगर में आयोजित किया गया।
जी-20 का 9वां शिखर सम्मेलन
  • जी-20 का 9वां शिखर सम्मेलन 15-16 नवंबर, 2014 को ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड प्रांत की राजधानीब्रिसबेन में संपन्न हुआ। सम्मेलन में यूरोपीय संघ के अध्यक्ष सहित सभी सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने प्रतिभाग किया। मारितानिया, म्यांमार, न्यूजीलैंड, सेनेगल, सिंगापुर और स्पेन के नेता आमंत्रित सदस्य के रूप में सम्मेलन में उपस्थित थे।
  • शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। सम्मेलन में प्रधानमंत्री के शेरपा रेल मंत्री सुरेश प्रभु थे।
  • जी-20 एक ऐसा समूह है जो मुद्दों पर वार्ता एवं चर्चाएं करता है। ब्रिसबेन सम्मेलन में वार्ता हेतु निर्धारित औपचारिक मुद्दे इस प्रकार थे-
  • 2 प्रतिशत के आर्थिक विकास का लक्ष्य हासिल करने हेतु नीति-नियमन;
  • अवसंरचना का विकास;
  • ऊर्जा;
  • पर्यावरणीय संरक्षण;
  • रोजगार सृजन;
  • इबोला वायरस;
  • आईएमएफ सुधार; तथा
  • सूचनाओं का स्वतः आदान-प्रदान आदि।
  • 15 नवंबर को सम्मेलन के आरंभिक भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘‘सुधार अनुभव और आगे ले जाने पर बल’’ (Reform Experience and Thrust Forward) पर हस्तक्षेप नामक संबोधन प्रस्तुत किया। हस्तक्षेप संबोधन में प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि सुधार छुपाकर नहीं बल्कि इसे जनप्रेरित और जनकेंद्रित बनाकर किया जा सकता है।
  • 16 नवंबर, 2014 को जी-20 समिति के सत्र के दौरान प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के द्वारा वैश्विक अर्थव्यवस्था को लचीलापन बनाने के लिए हस्तक्षेप किया। प्रधानमंत्री ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में आर्थिक लचीलापन लाने के लिए सूचनाओं के खुद-ब-खुद आदान-प्रदान के बारे में नए वैश्विक मानक के लिए भारत का समर्थन व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि वे कर नीति और प्रशासन में सूचना के आदान-प्रदान और आपसी सहायता सुगम बनाने के लिए सभी प्रयासों का समर्थन करते हैं।
  • प्रधानमंत्री ने उम्मीद जाहिर की कि ‘बेस इरोजन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग’ (BEPS-Base Erosion and Profit Shifting) प्रणाली में विकसित एवं विकासशील दोनों ही देशों के पक्ष को ध्यान में रखा जाएगा। BEPS एक तकनीकी शब्दावली है जो देशों के कर आधार पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कर से बचने की रणनीति के प्रभाव को अभिव्यक्त करती है। बहुत-सी बड़ी कंपनियां और इकाइयां कर से बचने के लिए कुछ छोटे टैक्स हैवेन देशों में अपनी कंपनी को रजिस्टर्ड करा देती हैं। इससे वे उन देशों में कर देने से बच जाती हैं, जहां ये कारोबार करती हैं। प्रधानमंत्री के जोरदार हस्तक्षेप के बाद ही जी-20 नेताओं द्वारा जारी आधिकारिक विज्ञप्ति में कराधान के प्रयोजनों के लिए खातों के संबंध में सूचना हेतु पारदर्शिता (Transparency) शब्द अंतर्योजित किया गया। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री ने सुरक्षा, धन-प्रेषण पर होने वाले खर्च, ऊर्जा एवं पर्यावरणीय संरक्षण का भी उल्लेख किया।
आधिकारिक विज्ञप्ति
  • सम्मेलन के अंतिम दिन ब्रिसबेन कार्य-योजना पर हस्ताक्षर किए गए तथा आधिकारिक विज्ञप्ति जारी की गई। विज्ञप्ति की मुख्य बातें इस प्रकार हैं-
  • संपूर्ण विश्व में लोगों के लिए उत्तम जीवन-स्तर तथा गुणवत्तापरक रोजगार प्रदान करने हेतु वैश्विक संवृद्धि को बढ़ाना सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में चिह्नित किया गया।
  • वर्ष 2018 तक जी-20 देशों के सकल घरेलू उत्पाद में 2 प्रतिशत अतिरिक्त वृद्धि का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया।
  • वैश्विक अवसंरचना पहल (Global Infrastructure Initiative) का बहुवर्षीय कार्यक्रम के रूप में समर्थन किया गया ताकि गुणवत्तापूर्ण निजी एवं सार्वजनिक अवसंरचना निवेश को गति प्रदान की जा सके।
  • वैश्विक अवसंरचना केंद्र के गठन के प्रति स्वीकृति जताई गई।
  • स्त्री-पुरुष कार्य सहभागिता अंतराल को वर्ष 2025 तक 25 प्रतिशत तक लाने के प्रति सहमति व्यक्त की गई, ताकि 100 मिलियन से अधिक महिलाओं को श्रम बल से जोड़ा जा सके।
  • गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम के प्रति प्रतिबद्धता को अभिव्यक्त किया गया।
  • धन-प्रेषण की वैश्विक औसत लागत को घटाकर 5 प्रतिशत तक करने और प्राथमिकता के तौर पर वित्तीय समावेशन को बढ़ाने हेतु व्यावहारिक उपाय के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।
  • जी-20/ओईसीडी बेस इरोजन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (BEPS) कार्य-योजना में हुई महत्त्वपूर्ण प्रगति का स्वागत किया गया। यह कार्य-योजना अंतर्राष्ट्रीय कर नियमों को आधुनिक बनाने के लिए क्रियान्वित है।
  • इस कार्य-योजना को वर्ष 2015 तक अंतिम रूप दे दिया जाएगा।
  • वर्ष 2015 तक क्षतिकारी कर व्यवहारों की स्थापना करने वाले करदाता विशिष्ट विनियमों में पारदर्शिता भी लाई जाएगी।
  • वर्ष 2017-18 तक एक-दूसरे से स्वतः सूचनाओं का आदान-प्रदान प्रारंभ कर दिया जाएगा।
  • सीमा-पार कर-वंचना पर रोक के उद्देश्य से सूचनाओं के स्वतः विनिमय (AEOI-Automatic Exchange of Information) के लिए वैश्विक साझा रिपोर्ट मानक को संदर्भित किया गया।
  • एक मजबूत कोटा आधारित तथा पर्याप्त संसाधनों वाले ‘अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष’ के गठन की वकालत की गई।
  • भारत एवं अमेरिका के मध्य संपन्न उस समझौते का स्वागत किया गया जो व्यापार सुविधा समझौते (TFA-Trade Facilitation Agreement) के समग्र और त्वरित क्रियान्वयन में सहायक होगा तथा जिसमें खाद्य सुरक्षा से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
  • प्राकृतिक गैस को ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण स्रोत मानते हुए गैस बाजार की कार्य-प्रणाली में सुधार का आह्वान किया गया।
  • जलवायु परिवर्तन हेतु प्रभावी कार्य-योजना के प्रति समर्थन व्यक्त किया गया। हरित जलवायु कोष (Green Climate Fund) हेतु सहयोग के प्रति भी समर्थन व्यक्त किया गया।
  • गिनी, लाइबेरिया एवं सिएरा लियोन में फैली इबोला महामारी-जन्य मानवीय एवं आर्थिक संकट में सहायता हेतु अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों का आह्वान किया गया।
राजनीतिक-कूटनीतिक घटनाक्रम
  • ब्रिसबेन शिखर सम्मेलन को उस वृहद राजनीतिक-कूटनीति घटनाक्रम के लिए भी याद किया जाएगा, जिसके कारण रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जी-20 के लिए अपने निर्धारित कार्यक्रम से पहले ही रूस लौटने का फैसला किया। यद्यपि कि आधिकारिक रूप से उन्होंने यह बताया कि वे नींद पूरी करने के लिए समय-पूर्व प्रस्थान कर रहे हैं, लेकिन पूरी दुनिया ने यह महसूस किया कि यूक्रेन मसले पर पश्चिमी देशों की आलोचनाओं के विरोध में उन्होंने ऐसा किया। ब्रिसबेन में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने नौसैनिक सुरक्षा के संदर्भ में अलग से बैठक की। ऐसा मानना है कि इन देशों के बीच दक्षिण चीन सागर व जापान से लगे समुद्र पर चीनी दावे को लेकर चर्चाएं हुईं।
एक अहम मंच
  • जी-20 शिखर सम्मेलन उन सदस्य देशों के लिए एक बड़ा ही अहम फोरम है जो अपनी गतिविधियों में तालमेल बैठाने, वैश्विक आर्थिक विकास एवं स्थिरता को सहारा देने, स्थिर वित्तीय बाजार, वैश्विक व्यापारिक व्यवस्था और रोजगार सृजन को सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक कदम उठाने के पक्षधर हैं। दुनिया के पांच महाद्वीपों में फैली 20 बड़ी एवं उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का मंच होने के कारण इसे ‘20 कादम’ भी कहा जाता है। भारत के लिए जी-20 एक पसंदीदा मंच है। यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तुलना में अधिक समावेशी और प्रतिनिधिक है। ब्रिसबेन शिखर सम्मेलन में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज कर भारतीय प्रधानमंत्री ने एक बार फिर बहुपक्षीय मंचों पर अपनी छाप छोड़ने की प्रभावी क्षमता प्रमाणित कर दी है।
  • वर्ष 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट से शिखर सम्मेलनों का जो सिलसिला प्रारंभ हुआ, उसमें इस मंच का एजेंडा संकट प्रबंधन से आगे निकलकर संवर्द्धित समग्र आर्थिक समन्वय तक और वैश्विक अर्थव्यवस्था में नवीन संतुलन एवं लचीलापन पैदा करने तक पहुंच गया है। 15-16 नवंबर, 2015 को तुर्की के ‘अंटले’ (Antalya) में आयोजित होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन में ये मुद्दे और मजबूती के साथ उभरेंगे। वर्ष 2016 में जी-20 की शिखर बैठक चीन में प्रस्तावित है।
प्रधानमंत्री की ऑस्ट्रेलिया यात्रा
  • प्रधानमंत्री अपनी त्रिदेशीय यात्रा के दूसरे चरण में ऑस्ट्रेलिया पहुंचे। वहां पर उन्होंने अपनी पांच दिवसीय (14-18 नवंबर, 2014) यात्रा के क्रम में ब्रिसबेन में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लिया और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट के साथ द्विपक्षीय बैठकें संपन्न कीं। इसके अतिरिक्त इस यात्रा के दौरान वे ऑस्ट्रेलिया के चार शहरों-ब्रिसबेन, सिडनी, कैनबरा और मेलबर्न में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए। वर्ष 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा के 28 वर्षों बाद यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली यात्रा रही। प्रधानमंत्री मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि नागरिक आवश्यकताओं के लिए परमाणु ऊर्जा हेतु यूरेनियम की आपूर्ति हेतु ऑस्ट्रेलिया का समर्थन हासिल करना रहा। इसी आधार पर यह संभावना जताई जा रही है कि शीघ्र इन दोनों देशों के बीच यूरेनियम की आपूर्ति का समझौता हो जाएगा। ऑस्ट्रेलियाई नगरों में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम का वर्णन अग्रवत है।
ब्रिसबेन
  • अपनी ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री म्यांमार से रात्रिकालीन विमान से 14 नवंबर को ब्रिसबेन पहुंचे।
  • ब्रिसबेन में वे क्वींसलैंड प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के दौरे पर रहे। यहां पर वे इस विश्वविद्यालय के कृषि व जैव विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों और छात्रों से मिले।
  • इस संस्थान के ‘द क्यूब’ (The Cube) कॉम्प्लेक्स में प्रधानमंत्री को एक कृषि रोबोट एग्बोट(Agbot) दिखाया गया। यह रोबोट इस विश्वविद्यालय के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र द्वारा संयुक्त जैव-ऊर्जा योजना के तहत विकसित किया गया है।
एग्बोट (Agbot)
एग्बोट (Agbot), कृषि (Agriculture) और रोबोट (Robot) का संक्षिप्ताक्षर है। यह कृषि में प्रयोग किया जाने वाला एक रोबोट है। इसे क्वींसलैंड तकनीकी विश्वविद्यालय के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र द्वारा संयुक्त जैव-ऊर्जा योजना के तहत विकसित किया गया है। इसके द्वारा कृषि से निकलने वाले कूड़े-कचरे का इस्तेमाल करके ऊर्जा बनाई जाएगी। यह रोबोट कृषि क्षेत्र में रोबोटिक्स तकनीक के उपयोग के द्वारा विकसित किया गया है। यह लघु भार वाली एक मशीन है। इसके द्वारा निराई सहित ट्रैक्टर द्वारा किए जाने वाले सारे कार्य संपन्न किए जा सकते हैं।
  • यहां पर प्रधानमंत्री मोदी विश्वविद्यालय के उस ग्लास हाउस को भी देखने गए जहां पर आयरन युक्त केला विकसित किया जा रहा है। यह उन विकासशील देशों के लिए बहुत ही उपयोगी हो सकता है, जहां पर बड़ी संख्या में लोग लौह तत्त्व की कमी से प्रभावित हैं।
  • 14 नवंबर को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिसबेन में ही जापान, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ अलग-अलग तीन द्विपक्षीय बैठकें कीं।
  • इन बैठकों में प्रधानमंत्री ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून, यूरोपीय संघ के अध्यक्ष हरमन वॉन रॉम्पुई और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे से मुलाकात की।
  • यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और जापान ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से जुड़े खाद्य सुरक्षा मुद्दों पर भारत और अमेरिका के बीच हुए समझौते का स्वागत किया और इन तीनों ने ही इसे अपना समर्थन देने की बात कही। उल्लेखनीय है कि भारत एवं अमेरिका खाद्य सब्सिडी में कमी के प्रावधान को स्थायी समाधान तक टालने के लिए तैयार हो गए हैं।
  • भारतीय प्रधानमंत्री ने जापानी प्रधानमंत्री से 14 नवंबर को रात में मुलाकात की। इस अवसर पर जापानी प्रधानमंत्री ने मोदी के सम्मान में रात्रिभोज का आयोजन किया था।
  • इस अवसर पर दोनों नेताओं के बीच दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को पुनः मजबूती प्रदान करने की संभावना पर वार्ता हुई।
  •  इस वार्ता में जापानी प्रधानमंत्री ने ‘स्मार्ट सिटी’ और ‘स्वच्छ गंगा अभियान’ सहित आधारभूत संरचना योजना में अगले पांच वर्षों में लगभग 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश करने की वचनबद्धता व्यक्त की।
  • इस मुलाकात के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री ने क्योटो के उप- महापौर की हालिया वाराणसी यात्रा की सराहना की।
  • उल्लेखनीय है कि विगत 30 अक्टूबर, 2014 को केनिची ओगसवारा (Kenichi Ogasawara) (क्योटो के उपमहापौर) ने एक दल के साथ वाराणसी को ‘स्मार्ट सिटी’ बनाने हेतु यहां की यात्रा की थी।
  • ब्रिसबेन में स्थित एक ऑस्ट्रेलियाई फूड कोर्ट का नाम बदलकर नरेंद्र मोदी के नाम पर‘नमो फूड इंडियन कोर्ट’रखा गया।
  • 15 नवंबर, 2014 को ब्रिसबेन में ब्रिक्स (BRICS) देशों के नेताओं ने एक अनौपचारिक बैठक की। इस बैठक को भारतीय प्रधानमंत्री ने भी संबोधित किया। 15-16 नवंबर को प्रधानमंत्री ने जी-20 शिखर बैठक में भाग लिया। (देखें आलेख का पूर्व खंड)।
  • प्रधानमंत्री ने फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसिस ओलांडे और कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर के साथ द्विपक्षीय बैठक की। यह पहला अवसर है, जब मोदी इन दोनों नेताओं से मिले। इन दोनों नेताओं ने मोदी को अपने देश आने के लिए आमंत्रित किया। प्रधानमंत्री ने दोनों नेताओं के आमंत्रण को स्वीकार किया। दोनों ही बैठकों में प्रधानमंत्री ने आतंकवाद को धर्म से न जोड़ने के अपने पक्ष को व्यक्त किया।
मोदी एक्सप्रेस
        रविवार, 16 नवंबर, 2014 को भारतीय प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र मोदी’ के नाम पर एक विशेष ट्रेन मेलबर्न से सिडनी के लिए चलाई गई। चार बोगी वाली इस ट्रेन को विक्टोरिया प्रांत के संस्कृति मंत्री मैथ्यू ग्वे (Mathhew Guy) ने मेलबर्न के सदर्न क्रॉस स्टेशन से झंडा दिखाकर रवाना किया। यह ट्रेन सिडनी में सोमवार, 17 नवंबर, 2014 को होने वाले मोदी के पहले सार्वजनिक व्याख्यान में भाग लेने वाले यात्रियों को लेकर रवाना हुई। इस ट्रेन का संचालन ओवरसीज फ्रेंड्स ऑफ बीजेपी, विक्टोरिया के द्वारा किया गया था।
  • महात्मा गांधी की प्रतिमा का अनावरण
  • जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ब्रिसबेन में रोमा स्ट्रीट पार्क लैंड्स में महात्मा गांधी की एक प्रतिमा का अनावरण किया। इस कार्यक्रम का आयोजन हेमंत नायक ने किया।
  • इस अवसर पर क्वींसलैंड के गवर्नर पॉल डी जर्सी और ब्रिसबेन के लॉर्ड मेयर काउंसर ग्राहम किर्क भी उपस्थित थे।
सिडनी
  • 17 नवंबर, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिसबेन से अपनी ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दूसरे चरण के लिए सिडनी पहुंचे। यहां पर उन्होंने न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वायर की तर्ज पर अलफांस एरिना के ओलंपिक पार्क में आयोजित कार्यक्रम में भारतीय समुदाय के लोगों (NRIs) को संबोधित किया।
  • अल्फांस एरिना में करीब 17 हजार लोगों की भीड़ जुटी थी।
  • यहां पर उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए घोषणा की कि अब ऑस्ट्रेलियाई लोगों को ‘वीजा ऑन अराइवल की सुविधा मिलेगी।
  • उन्होंने बताया कि 7 जनवरी, 2015 से शुरू होने वाले प्रवासी भारतीय दिवस तक पीआईओ (Person of Indian Origin : PIO) और ओसीआई (Overseas Citizenship of India : OCI) कार्ड्स को मिला दिया जाएगा।
  • उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री ने विगत सितंबर-अक्टूबर, 2014 में अमेरिका यात्रा के दौरान इन दोनों सुविधाओं को मिलाने की घोषणा की थी। इसे मिलाने के बाद इनके धारकों को आजीवन वीजा दिया जाएगा। इस दौरान सिडनी में एक सांस्कृतिक केंद्र बनाए जाने की भी घोषणा की गई।
  • प्रधानमंत्री ने ऑस्ट्रेलियाई लोगों का भारत में निवेश के लिए आह्वान किया। उन्होंने बताया कि उनकी सरकार आर्थिक सुधारों के लिए प्रतिबद्ध है। अब भारत निवेश का एक आकर्षक एवं सुरक्षित केंद्र बन गया है। इस अवसर पर उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई रेल कंपनियों को भारतीय रेलवे में निवेश के लिए आमंत्रित किया और कहा कि अब भारतीय रेलवे में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की सीमा को 100 फीसदी तक कर दिया गया है।
कैनबरा
  • 17 नवबंर, 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रेलिया के चार शहरों की यात्रा के तीसरे चरण में रात में एयर इंडिया के विशेष विमान से सिडनी से ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा पहुंचे।
  • यहां पर रात में ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री जूली बिशप डिफेंस एस्टैबलिशमेंट फेयरवेम पहुंच कर प्रोटोकॉल को तोड़कर प्रधानमंत्री मोदी का स्वागत किया। ध्यातव्य है कि रात में आने वाले विदेशी राजनयिकों के स्वागत की परंपरा ऑस्ट्रेलिया सरकार के प्रोटोकॉल में नहीं है। ऐसा किसी भारतीय प्रधानमंत्री की 28 वर्ष बाद ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा की यात्रा की महत्ता को देखते हुए किया गया।
  • कैनबरा में अपने पहले कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी सुबह युद्ध स्मारक (वार मेमोरियल) गए। यहां पर उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी एबॉट को‘मान सिंह ट्रॉफी’प्रदान की और युद्ध स्मारक की आगंतुक पुस्तिका पर हस्ताक्षर भी किए।
वाल्टर बर्ले ग्रिफिन
     (Walter Burley Griffin)
  भारतीय प्रधानमंत्री ने जी-20 समिति के सम्मेलन में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से वाल्टर बर्ले ग्रिफिन की चर्चा की। ग्रिफिन एक वास्तुकार थे, जो इन तीनों देशों- भारत, अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया से संबंधित थे। ग्रिफिन एक अमेरिकी वास्तुकार थे, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया की राजधानी को डिजाइन किया था और भारत में कई भवनों के डिजाइन कार्यों को संपन्न किया था और (11 फरवरी, 1937 मृत्योपरांत) लखनऊ में दफनाए गए थे।
  लखनऊ में ग्रिफिन द्वारा डिजाइन किए गए स्थापत्यकृति हैं-
  1. लखनऊ विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी
  2. लखनऊ विश्वविद्यालयका छात्रसंघ भवन
  3. राजा महफूज का संग्रहालय व पुस्तकालय
  4. राजा जहांगीरवाद का जनाना भवन (महिला आवास)
  5. पॉयनियर प्रेस भवन
  6. नगरपालिका कार्यालय
  7. किंग जॉर्ज पंचम का स्मारक …. आदि।
  • कैनबरा के इस युद्ध स्मारक का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध में अक्टूबर, 1914 से मई, 1917 तक मिस्र के मल्लीपोली, सिनाई और मेसापोटामिया में सेवा देने वाले बटालियन के सिपाहियों की याद में किया गया है।
  • इसके बाद प्रधानमंत्री कैनबरा में ही स्थित ऑस्ट्रेलिया की संसद पहुंचे। यहां पर प्रधानमंत्री टोनी एबॉट के साथ द्विपक्षीय वार्ता शुरू होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भारत के प्रति लगाव रखने वाले ऑस्ट्रेलिया के नागरिक जॉन लैंग (John Lang) को समर्पित स्मरणीय फोटो संग्रह भेंट किया।
  • जॉन लैंग पेशे से एक वकील थे। उन्होंने 8 जून, 1854 की झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की ओर से तत्कालीन भारतीय गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी (1848-1856) को उनके व्यपगत-सिद्धांत (Doctrine of Laps) को लेकर एक ज्ञापन प्रस्तुत किया था।
  • ध्यातव्य है कि रानी लक्ष्मीबाई का जन्म वाराणसी में ही मणिकर्णिका घाट पर हुआ था और वर्तमान में वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है।
  • फोटो संग्रह में निम्नलिखित तीन महत्त्वपूर्ण फोटोग्राफ सम्मिलित हैं-
  1. 11 मई, 1861 को क्राइस्ट चर्च मसूरी में संपन्न जॉन लैंग का माग्रेट वेटर से विवाह प्रमाण-पत्र की फोटो;
  2. जॉन लैंग के समाधि स्थल का फोटो (यह समाधि मसूरी में केमल रोड पर स्थित कब्रगाह में है; तथा
  3. मसूरी के क्राइस्ट चर्च में जॉन लैंग की स्मृति में लगाई गई ‘स्मरण पट्टिका’ की फोटो।
  • इसके बाद दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की उपस्थिति में दोनों देशों के बीच सामाजिक समझौता, सजायाफ्ता कैदियों के स्थानांतरण, नशीले पदार्थों की तस्करी, कला और संस्कृति में सहयोग, और पयर्टन क्षेत्र से संबंधित पांच समझौतों या सहमति-पत्रों पर हस्ताक्षर हुए।
   प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा (16-18 नवबंर2014) के दौरान हस्ताक्षरित समझौते/सहमति-पत्र इस प्रकार हैं-
  1. सामाजिक सुरक्षा पर समझौता
  • इस समझौते का उद्देश्य सामाजिक सुरक्षा के लाभ और कवरेज के संदर्भ में दोनों देशों की जनता के बीच संपर्क मजबूत करना और दोनों देशों के बीच नियमों को सुगम और दुरुस्त करना है। यह एक-दूसरे देशों में बसने वालों को लाभ की समानता, लाभ के निर्यात और दोहरे कवरेज से बचते हुए सामाजिक सुरक्षा और पेंशन लाभ दिलाएगा। इससे अर्थव्यवस्थाएं अधिक विस्तृत होंगी और व्यवसायियों का प्रवाह बढ़ेगा।
  • इस समझौते पर भारत की ओर से ऑस्ट्रेलिया में भारत के उच्चायुक्त बीरेन नंदा और ऑस्ट्रेलिया की और से वहां के सामाजिक सेवा मंत्री केविन एंड्रयूज ने हस्ताक्षर किए।
  1. जेल में सजा काट रहे लोगों के हस्तांतरण से संबंधित समझौता
  • कानून प्रवर्तन और न्याय के प्रशासन में सहयोग के प्रयास तथा सजाओं के प्रवर्तन में सहयोग बढ़ाना इस समझौते का उद्देश्य है। इस समझौते से जेल में सजा काट रहे लोगों के हस्तांतरण और उनके पुनर्वास तथा ऐसे लोगों को समाज की मुख्य धारा में वापस लाने की प्रक्रियाएं सुगम, नियंत्रित और निर्धारित की जा सकेंगी।
  • इस समझौते पर भारत के उच्चायुक्त बीरेन नंदा और ऑस्ट्रेलिया के न्याय मंत्री माइकल कीनन ने हस्ताक्षर किए।
  1. मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने और पुलिस सहयोग विकसित करने पर सहमति- पत्र
  • इस सहमति-पत्र को मादक पदार्थों की तस्करी और दुरुपयोग से संबंधित चिंताओं को दूर करने के उद्देश्य से हस्ताक्षरित किया गया है। यह मादक पदार्थों की तस्करी से निपटने, पूर्व सूचना प्रदान करने, परिसंपत्तियां जब्त करने और ड्रग मनी लॉडि्रंग को प्राथमिकता देता है। यह क्षमता निर्माण को बढ़ावा देगा और मादक पदार्थों से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय खतरों से निपटने की कार्रवाइयों की रणनीतियां और प्रक्रियाएं निर्धारित करने में सहायता देगा।
  • इस सहमति-पत्र पर भारत के विदेश मंत्रालय में सचिव पूर्वी अनिल वाधवा और ऑस्ट्रेलिया के न्याय मंत्री माइकल कीनन ने हस्ताक्षर किए।
  1. कला और संस्कृति के क्षेत्र में सहयोग पर सहमति-पत्र
  • इस समझौते का उद्देश्य वर्ष 1971 के सांस्कृतिक समझौते के अनुरूप दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना है। यह कला के क्षेत्र में सूचना, पेशेवर विशेषज्ञों, प्रशिक्षण और प्रदर्शकों के आदान-प्रदान के जरिए सहयोग को बढ़ावा देगा। यह लोगों, संस्थाओं और कला-शैलियों के बीच समझ बढ़ाएगा और पुख्ता एवं स्थायी कलात्मक गतिविधियों को बढ़ावा देगा।
  • इस सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में भारत के विदेश मंत्रालय में सचिव पूर्वी अनिल वाधवा और ऑस्ट्रेलिया के अटॉर्नी जनरल और कला मंत्री जॉर्ज ब्रेंडिस शामिल हैं।
  1. पर्यटन के क्षेत्र में सहमति-पत्र
  • इस सहमति-पत्र का उद्देश्य द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाना और लोगों के बीच मैत्री संबंध मजबूत करना है। यह पर्यटन नीति, सूचना के आदान-प्रदान, पर्यटन से संबंधित हितधारकों के बीच संपर्क, आथित्य क्षेत्र में प्रशिक्षण और निवेश में सहयोग को बढ़ावा देगा तथा आर्थिक विकास और रोजगार सृजन में पर्यटन क्षेत्र के महत्त्व को प्रोत्साहित करेगा।
  • इस सहमति-पत्र पर भारत की तरफ से भारत के विदेश मंत्रालय के सचिव पूर्वी अनिल वाधवा और ऑस्ट्रेलिया के व्यापार और निवेश मंत्री, एंड्रयू रॉब ने हस्ताक्षर किए।
  • इसके बाद दोनों प्रधानमंत्रियों ने दोनों देशों के बीच सुरक्षा सहयोग के लिए एक ढांचे पर फैसला लिया। इस ढांचे में एक कार्य-योजना और क्रियान्वयन का उल्लेख है। कार्य-योजना में निम्नलिखित बिंदुओं को समाहित किया गया है-
  1. वार्षिक शिखर बैठक तथा विदेशी नीति आदान-प्रदान और समन्वय;
  2. रक्षा नीति नियोजन एवं समन्वय;
  3. आतंकवाद रोधी तथा पार-देशीय अपराध;
  4. सीमा सुरक्षा, कोस्ट गार्ड और कस्टम;
  5. निरस्रीकरण, अप्रसार, नागरिक परमाणु ऊर्जा तथा समुद्री सुरक्षा;
  6. आपदा प्रबंधन एवं शांति कार्य; तथा
  7. क्षेत्रीय एवं बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग।
  • इस कार्य-योजना में नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग के शीघ्र संचालन तथा भारत के सुरक्षित परमाणु रिएक्टरों के लिए यूरेनियम की सप्लाई के जरिए भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए ऑस्ट्रेलिया ने समर्थन किया है। इसी के आधार पर माना जा रहा है कि ऑस्ट्रेलिया भारत को यूरेनियम की आपूर्ति के लिए तैयार हो गया है और शीघ्र ही इससे संबंधित समझौता संपन्न कर लिया जाएगा।
मेलबर्न
  • 18 नवबंर, 2014 को प्रधानमंत्री अपनी ऑस्ट्रेलिया यात्रा के अंतिम चरण में विक्टोरिया प्रांत की राजधानी एवं ऑस्ट्रेलिया के दूसरे सबसे बड़े नगर मेलबर्न पहुंचे। मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर प्रधानमंत्री मोदी के सम्मान में ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने भोज का आयोजन किया था। यहां प्रधानमंत्री मोदी और ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी एबॉट ने वर्ष 2015 में होने वाले क्रिकेट विश्व कप की ट्रॉफी के साथ फोटो खिंचवाए।
  • प्रधानमंत्री ने मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री को एक स्मृति-चिह्न भेंट किया, जिसमें चरखे की प्रतिकृति के साथ क्रिकेट की 3 गेंदें बनी थीं, जिन पर उनके और विश्व कप विजेता भारतीय कप्तानों कपिल देव और महेंद्र सिंह धौनी के हस्ताक्षर थे। सुनील गावस्कर, कपिल देव और वी.वी.एस. लक्ष्मण प्रधानमंत्री के साथ दौरे पर गए थे जो मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में मौजूद थे। प्रधानमंत्री ने यहां टोनी एबॉट को ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड के सह-आयोजन में विश्व कप, 2015 की मेजबानी के लिए शुभकामनाएं दीं तथा यह कामना की कि विश्व कप का फाइनल भारत एवं ऑस्ट्रेलिया के बीच खेला जाए। मेलबर्न से प्रधानमंत्री फिजी के लिए रवाना हो गए जो उनकी 10 दिवसीय यात्रा का अंतिम चरण था।

वैश्विक भुखमरी सूचकांक – 2014

वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) विश्व के विकासशील देशों में भुखमरी व कुपोषण की गणना एवं इसके तुलनात्मक अध्ययन हेतु बहुआयामी सूचकांक है। इस सूचकांक को अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (International Food Policy Research Institute-IFPRI) द्वारा दो गैर-सरकारी संगठनों (NGOs)- वेल्ट हंगर हिल्फ (Welt Hunger Hilfe) और कन्सर्न वर्ल्डवाइड(Concern Worldwide) की सहायता से प्रतिवर्ष प्रकाशित किया जाता है। इस सूचकांक को तीन संकेतकों के आधार पर तैयार किया जाता है-अल्प-पोषण (Under-nourishment), बाल अल्पवजन (Child Underweight)एवं बाल मृत्यु दर (Child Mortality Rate)। इस सूचकांक में कम मान देश की अच्छी स्थिति को दिखाता है वहीं अधिक मान देश में भयावह भुखमरी को प्रदर्शित करता है। इस सूचकांक में पांच वर्ग बनाए गए हैं- 4.9 या उससे कम अल्प (Low), 5-9.9 मध्यम (Moderate), 10-19.9 गंभीर (Serious), 20-29.9 भयावह (Alarming)और 30 या उससे अधिक चरम भयावह (Extreme Alarming) वर्ष 2014 के लिए यह सूचकांक 13 अक्टूबर,2014 को जारी किया गया। इस सूचकांक के महत्त्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं-
  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI)-2014 में भारत का स्थान 55वां (76 देशों में) है। भारत का वर्ष 2013 में 63वां स्थान था।
GHI स्कोर निकालने का फार्मूला
G H I =    PUN + CUW + CM 3
G H I –     वैश्विक भुखमरी सूचकांक
P U N-     अल्पपोषित जनसंख्या का प्रतिशत
C U W-   पांच वर्ष से कम आयु के अल्पवजन बच्चे
C M- पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (प्रतिशत में)
  • इस वर्ष भारत की स्थिति पाकिस्तान एवं बांग्लादेश (दोनों 57वें स्थान पर) से बेहतर है, लेकिन वह नेपाल (44वां स्थान) और श्रीलंका (39वां स्थान) से अभी भी पीछे बना हुआ है।
  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक, 2014 में भारत का स्कोर 17.8 है। गत वर्ष भारत का स्कोर 21.3 था। इस प्रकार इस वर्ष भारत ‘भयावह’ (Alarming) वर्ग से निकलकर ‘गंभीर’ (Serious) वर्ग में आ गया।
  • इस वर्ष भारत का स्कोर अल्प-पोषण में 17 (अर्थात 17% जनसंख्या अल्प-पोषित), बाल अल्पवजन में 30.7 (अर्थात 5 वर्ष से कम आयु के 30.7% बच्चे अल्पवजन) और बाल मृत्यु दर में 5.6 (अर्थात 5 वर्ष से कम आयु के 5.6% बच्चे बाल मृत्यु का शिकार) रहा।
  • इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 1990 से 2014 तक वैश्विक भुखमरी की स्थिति में 39% सुधार हुआ है। वर्ष 1990 में विश्व का औसत GHI स्कोर 20.6 था जो 2014 में 39% कम होकर 12.5 हो गया।
  • भुखमरी की स्थिति में इस सुधार के बावजूद अभी भी‘गंभीर’(Serious) स्थिति बरकरार है। विश्व की 805 मिलियन आबादी (80.5 करोड़) अभी भी भुखमरी की चपेट में है।
  • इस वर्ष की रिपोर्ट में ‘चरम भयावह’स्थिति वाले मात्र दो देश हैं-बुरुंडी (76वां स्थान) और इरिट्रिया (75वां स्थान)। इसके अलावा 14 देश ‘भयावह’ स्थिति में हैं।
  • इस वर्ष की रिपोर्ट में सबसे कम GHI स्कोर मॉरिशस और थाईलैंड (स्कोर-5, प्रथम स्थान) का है।
  • इस वर्ष की रिपोर्ट का केंद्रीय विषय है-छिपी हुई भुखमरी(Hidden Hunger)।

देश की पहली मानसिक स्वास्थ्य नीति का शुभारंभ

आधुनिकीकरण और अंधाधुंध विकास का सबसे बुरा प्रभाव मानवीय स्वास्थ्य पर पड़ा है, विशेषकर मानसिक स्वास्थ्य पर। आधुनिक युग की नवीन जीवन-शैली ने मानव मस्तिष्क कोतनाव एवं अवसाद का घर बना दिया है। कई बार अत्यधिक तनाव एवं अवसाद के परिणामस्वरूप व्यक्ति आत्महत्या (Sucide) जैसे आत्मघाती कदम उठा लेता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन(World Health Organization -WHO) के अनुसार अवसाद (Depression) जैसी मानसिक बीमारी विश्व में आत्महत्या की सबसे बड़ी कारक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकडों के अनुसार वर्ष 2012 में संपूर्ण विश्व में लगभग 8,04,000 आत्महत्या के मामले सामने आए थे जिनमें से 2,58,000 आत्महत्याओं के पीछे प्रमुख कारक अवसाद था। इसी परिप्रेक्ष्य में 10 अक्टूबर2014 को भारत के तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के द्वारा देश की प्रथम मानसिक स्वास्थ्य नीति (Mental Health Policy) का शुभारंभ किया गया।
  • 10 अक्टूबर को मानसिक स्वास्थ्य नीति के शुभारंभ के साथ ही आगे से प्रत्येक वर्ष 10 अक्टूबर का दिन राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य दिवस (National Mental Health Day) के रूप में संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाएगा।
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति के ही तहत आगरा के मानसिक स्वास्थ्य संस्थान और अस्पताल के आधुनिकीकरण और विस्तार का प्रस्ताव है।
  • राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति मानसिक स्वास्थ्य कार्य-योजना 365 (Mental Health Action Plan 365) द्वारा समर्थित है। इसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, स्थानीय निकायों एवं सिविल सोसायटी संगठनों द्वारा अदा की जाने वाली विशेष भूमिकाओं का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है।
  • इस नीति के शुभारंभ के अवसर पर तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन द्वारा दो पुस्तिकाओं ‘सामान्य प्रैक्टिस में अनिवार्य मनोचिकित्सा का मॉड्यूल’(A Training Module of Essential Psychiatry in General Practice) और ‘सामान्य प्रैक्टिस में मनोचिकित्सा के लिए पथप्रदर्शक’ (A Guide to Psychiatry in General Practice) का विमोचन भी किया गया।
  • मानसिक रूप से बीमार लोगों की देखभाल के लिए बनाए गए पूर्व कानून जैसे-भारतीय पागलखाना अधिनियम, 1858 (Indian Lunatic Asylum Act, 1858) और भारतीय पागलपन अधिनियम, 1912 (Indian Lunacy Act,1912) में मानवाधिकार के पहलू की उपेक्षा की गई थी और केवल पागलखाने में भर्ती मरीजों पर ही विचार किया जाता था, सामान्य मनोरोगियों पर नहीं।
  • स्वतंत्रता के पश्चात भारत में‘मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम, 1987’ (Mental Health Act, 1987) अस्तित्व में आया, परंतु इस अधिनियम में कई खामियां होने के कारण इसे कभी भी किसी राज्य एवं केंद्र शासित प्रदेश में लागू नहीं किया गया।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के‘मानसिक स्वास्थ्य एटलस, 2011’ (Mental Health Atlas of 2011) के अनुसार भारत अपने संपूर्ण स्वास्थ्य बजट का मात्र .06 प्रतिशत ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करता है जबकि जापान और इंग्लैंड में यह प्रतिशत क्रमशः 4.94 और 10.84 है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूर्वानुमान लगाया है कि वर्ष 2020 तक भारत की लगभग 20 प्रतिशत जनसंख्या (लगभग 30 करोड़ लोग) किसी न किसी प्रकार की मानसिक अस्वस्थता से पीड़ित होगी। वर्तमान में भारत में मात्र 3500 मनोचिकित्सक हैं, अतः सरकार को अगले दशक में इस अंतराल को काफी हद तक कम करने की समस्या से जूझना होगा।

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